विषयः ‘‘क्रूस का संदेश-1’’ सृष्टिकर्ता परमेश्वर
बाईबल उत्पत्ति 1ः1
‘‘आदि में परमेश्वर ने स्वर्ग और पृथ्वी की रचना की’’
परिचय :-
संसार भर के देख रहें श्रोताओं
प्रभु यीशुमसीह के नाम में आप से मिलकर मैं बहुत खुश हूँ।
मैं मानमिन जूंग-आंग कलीसिया का सीनियर पास्टर रेवरण्ड जैरॉक ली हूँ। ये कलीसिया सीओल कोरिया में स्थित है और आज से जिस सन्देश को मैं आपके साथ बाँटुंगा उसका विषय है ‘‘क्रूस का संदेश’’।
‘‘क्रूस का संदेश’’ हमें साफ साफ ‘‘मानव उद्धार के लिए परमेश्वर के प्रावधान के बारे में बताता है।
और ये एक गहरा भेद है, जो युगों के आरम्भ होने से भी पहले से छिपा हुआ था। आईये परमेश्वर के महान प्रेम और न्याय को जाने और समझें।
परमेश्वर कौन है?
क्या कारण है कि परमेश्वर ने स्वर्ग और पृथ्वी और जो कुछ इनमें है सबकी रचना की, और क्यों मानव जाति को पृथ्वी पर बसाया?
क्यों परमेश्वर ने भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष को लगाया? यीशु मसीह कौन है? और केवल वो ही क्यों, मानव-जाति का उद्धारकर्ता है?
क्यों जब हम केवल यीशु मसीह में विश्वास करते हैं तो उद्धार प्राप्त करते हैं? ‘‘क्रूस का संदेश’’ में इन सब सवालों का जवाब पाये जाते है।
मैंने पहली बार इस संदेश का प्रचार 1985 में किया था तब से अभी तक इस संदेश के द्वारा अनगिनित आत्माएं न केवल कोरिया में बल्कि विश्व-भर में उद्धार के मार्ग की ओर बढ़ रही हैं।
इस संदेश को ऑडियो, वीडियो, टेप द्वारा ब्रॉड कास्टिंग और किताबों द्वारा, फैलाया जा रहा है। इस संदेश द्वारा अनगिनित लोगों ने परमेश्वर के अदभुत कार्यां का अनुभव किया है।
उन्होंने दिल की गहराई से पश्चाताप किया, और स्वर्ग के राज्य के लिए पक्का विश्वास और बड़ी आशा प्राप्त की है। वे अपने पापों का दूर कर पायें है और परमेश्वर के वचन के अनुसार अपना जीवन व्यतीत कर पाये है।
और संदेश को सुनने के बाद जब उन्होंने अपने पापों से पश्चाताप किया, और फिर जब यीशु मसीह के नाम में मैंने उनके लिए प्रार्थना की तब उन्होंने परमेश्वर के सामर्थ्य के, अदभुत कार्यों का अनुभव किया।
बीमारियां ठीक हो गई, दुर्बलताएं दूर हो गई दुष्टात्माएं और अन्धकार की शक्तियां निकल भागी।
जिस किसी ने भी उद्धार के मार्ग को सुना और जाना वे यीशु मसीह के नाम में किए गए परमेश्वर के सामर्थ्य के अद्भुत कार्यों का अनुभव कर पाए।
मैं प्रभु के नाम में प्रार्थना करता हूँ कि क्रूस का संदेश सुनने के द्वारा, आप इन अदभुत कार्यों का अनुभव कर पाएगें, जिसका प्रचार आज से किया जा रहा है।
प्यारे भाईयों और बहनो! यदि आप चर्च जाते हैं और मसीह में जीवन बिताते हैं तो मसीहीयत में आप ‘‘उद्धार का मार्ग’’ के बारे में जरूर सुनेंगे।
लेकिन आईए फिर से इसे जाने, लगभग 2000 साल पहले परमेश्वर का पुत्र यीशु मानव-जाति को उनके पापों से छुड़ाने के लिए इस पृथ्वी पर आया।
और आप में से बहुत से लोग इतना ही जानते हैं कि मानव जाति को, उसके पापों से छुड़ाने के लिए उसे क्रूस पर चढ़ा दिया गया और दफनाया गया, लेकिन तीसरे दिन मृत्यु पर विजय पाकर वह जी उठा। जो लोग इस सच्चाई पर विश्वास करते हैं। वे पापों से क्षमा किये जायेंगे। और उद्धार प्राप्त कर स्वर्ग जाएंगे।
लेकिन इतना जानने से हम ये नहीं कह सकते कि हम परमेश्वर के प्रावधान को वास्तव में जानते हैं। जो ‘‘क्रूस के संदेश’’ में मौजूद है।
उदाहरण के लिए क्या हम जानते हैं कि क्यों परमेश्वर ने भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष को लगाया था?
मनुष्य जाति का पापी बनने का कारण यह था क्योंकि आदम ने भले और बुरे के ज्ञान के बृक्ष मे से खाया था।
यदि पेड़ न होता तो आदम पाप न करता और आराम से अदन की वाटिका में हमेशा के लिए जीवित रहता।
इसलिए क्या, परमेश्वर को भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष को पहले ही उस स्थान में नहीं रखना चाहिए था? क्यों परमेश्वर ने पेड़ को वहां ही रखा, जहां से आदम फल खा सकता था?
क्या परमेश्वर नहीं जानता था की आदम भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष से फल खाएगा? परमेश्वर सर्व शक्तिमान और सर्वज्ञानी है वह निश्चित तौर पर इस बात को जानता था।
लेकिन तौभी परमेश्वर ने उस वृक्ष को वहां रखा। इसलिए इसका कारण क्या है।? क्या आप इन सवालों के जवाब साफ तौर पर दें सकते हे।?
क्या पहले कभी आपने इन सवालों के जवाब कही सुने हैं? हॉलाकि, ऐसा नहीं है की यदि हम ये नहीं जानते की क्यों परमेश्वर ने भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष को वहां रखा तो हमारा उद्धार ही नहीं होगा।
यदि हम पापों से पश्चाताप करतें है और यीशु मसीह को अपना उद्धारकर्ता ग्रहण करते है तो हम उद्धार पा सकते है।
लेकिन यदि आप उद्धार की इस प्रक्रिया की गहरी बातों को भी समझते हैं तो आपका विश्वास और भी मजबूत हो जाएगा।
आप परमेश्वर के हृदय और इच्छा को साफ साफ समझ जाएंगे और एक विजयी मसीह जीवन की अगुवाई करेंगे। आप इस योग्य हो जाएंगे की शैतान की परिक्षाओं को दूर कर सकें और परमेश्वर की सन्तान होने के अधिकारों का आनन्द ले पाऐंगे, जो ज्योति है।
मैं आपको एक उदाहरण देता हूँ। यदि आप एक संन्तरे को खाते हैं, तो सन्तरा आप को फायदा करेगा लेकिन यदि आपको ये मालुम हो जाए की सन्तरे में कौन कौन से पोषक तत्व हैं और वे क्या क्या फायदा आपको देते हैं, तो ये तो आपके लिए और भी अच्छी बात होगी।
सोंचे यदि आपको मालुम चले कि सन्तरे में विटमिन (सी) होता है और वह आपकी त्वचा के लिए अच्छा होता है, थकान को दूर करता है, और बीमारियों के विरूद्ध लड़ता है।
तब आप सन्तरे को केवल तभी नहीं खाएंगे जब आपका दिल करता है बल्कि आप उसे ये सोचकर कभी भी खाना चाहेंगे कि ये तो मेरे लिए बहुत जरूरी है। ऐसा ही मसीह जीवन में भी है। सिर्फ ये कहना की आप विश्वास करते हैं, काफी नहीं। होना ये चाहिए की आपको क्रूस में पाये जाने वाले उद्धार के प्रावधान को साफ साफ समझना चाहिए और परमेश्वर की इच्छा अनुसार जीवन व्यतीत करना चाहिए।
क्योंकि तब ही आप मजबूत विश्वास के साथ बलपूर्वक स्वर्गीय राज्य को थामे रख सकते हैं। और परमेश्वर की सन्तान होने के कारण आशीषों से भरा जीवन भी जी सकते हैं। मुझे आशा है आप क्रूस के संदेश को, जो आज मैं प्रचार करूंगा एक रोटी के रूप में ग्रहण करेंगे।
मैं प्रभु के नाम में प्रार्थना करता हूं कि आप परमेश्वर के उद्धार के प्रावधान को, जो क्रूस में है, अहसास करेगें और यह आपको अनुग्रह और बल प्रदान करेगा। इसका प्रचार अब से आने वाले कई महिनों तक किया जाऐगा।
मसीह में प्यारे भाईयों और बहनों! क्रूस का संदेश के पहले भाग में, आप परमेश्वर की चीजों बारे में सीखेंगे।
क्योंकि संसार में बहुत से लोग, इस बात पर जोर देते हैं कि कोई परमेश्वर है ही नहीं। अन्य लोग मानवीय कल्पना पर बनाए गए देवताओं की आराधना करते हैं। और कुछ परमेश्वर द्वारा बनाए गए प्राणियों की तसवीरें बनाकर उन्हे ईश्वर मानकर उनकी आराधना करते हैं।
यद्यपि हम परमेश्वर को देख नहीं सकते फिर भी वह जीवित है, और केवल एक ही परमेश्वर है। जिसकी हमें आराधना करना चाहिए।
परमेश्वर सृष्टि का रचनेवाला है। उसी ने सब वस्तुओं और मानवजाति को बनाया है। वह ही सब चीजों का न्यायी और शासक है। परमेश्वर किस प्रकार का अस्तित्व है?
सच्चाई ये है कि मनुष्य के लिए, परमेश्वर के बारे में वर्णन करना आसान नहीं है। क्योंकि मनुष्य तो केवल एक प्राणी है। और परमेश्वर , मनुष्य की सीमाओं से बहुत बढ़कर है। परमेश्वर असीमित है।
चाहे हम अपने ज्ञान से, परमेश्वर के बारे मे कितना ही मनन क्यां न करें, हम पूरी तरह परमेश्वर के बारे में न तो जान सकते हैं, और न ही समझ सकते हैं।
परन्तु जबकि हम परमेश्वर के बारे में पूरी तरह नहीं जान सकते तब भी हम परमेश्वर की सन्तान होने के कारण, मूल बातों को तो जान ही सकते हैं।
परमेश्वर कौन है? इस बारे में मैं, चार अलग अलग पहलुओं पर बात करूंगा।
पहली बात – परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी का सृष्टिकर्ता है (उत्पत्ति 1ः1) आदि में परमेश्वर ने स्वर्ग और पृथ्वी की रचना की।
उत्पत्ति अध्याय एक बताता है कि छः दिन मे परमेश्वर ने बिना किसी के केवल अपने वचन द्वारा स्वर्ग और पृथ्वी की रचना की। और छः दिन की सृष्टी मे अन्तिम दिन उसने पहला मनुष्य आदम बनाया जो कि समस्त मानव-जाति का पूर्वज बना।
इसी प्रकार क्यांकि मनुष्य परमेश्वर द्वारा रचा गया है। इसलिए मनुष्य अपने हृदय की गहराई में स्वभाविक रूप में परमेश्वर की उपस्थिति का अनुभव करता है।
सभोपदेषक 3ः11 में लिखा है ‘‘ उस ने सब कुछ ऐसा बनाया कि अपने अपने समय पर वे सुन्दर होते है; फिर उस ने मनुष्यों के मन में अनादि-अनन्त काल का ज्ञान उत्पन्न किया है, तौभी जो काम परमेश्वर ने किया है, वह आदि से अन्त तक मनुष्य बूझ नहीं सकता। ’’
यहाँ जैसा कहा गया कि परमेश्वर ने मनुष्य के हृदयों में अनादि-अनन्त का ज्ञान दिया है।
क्योंकि मनुष्य के पास ये ज्ञान है। इसलिए वे, जो भला विवेक रखते है वे अस्पष्टता से परमेश्वर के अस्तित्व को पहचानते हैं और उसकी खोज करते है। यहां तक कि चाहे वे परमेश्वर के बारे में न तो जानते हो या न ही उन्होने सुना हो।
यहां तक की वे, जो ये कहते हैं ‘‘मैं परमेश्वर में विश्वास नहीं करता’’ उनमे भी कुछ ऐसे होते है जो आने वाले जीवन को सोचकर डरते हैं और सोचते हैं कि ‘‘क्या होगा अगर स्वर्ग और नरक वास्तव में हुआ तो?
और इसीलिए ही वे लोग भलाई से जीवन जीने की कोशिष करते हैं। ताकि नरक में न जाना पड़ जाए।
लेकिन रोमियों 1ः20 में लिखा है ‘‘ क्योंकि उसके अनदेखे गुण, अर्थात् उस की सनातन सामर्थ, और परमेश्वरत्व जगत की सृष्टि के समय से उसके कामों के द्वारा देखने में आते है, यहां तक कि वे निरूत्तर हैं।“
इसका अर्थ ये हुआ कि यद्यपि हमें परमेश्वर के अदृष्य गुण और उसका ईश्वरीय स्वभाव, दिखाई नहीं देता। तौभी सब चीजों में हम उसे साफ देख सकते है। और इसीलिए हम ये बहाना नहीं बना सकते की हम ने परमेश्वर में इसलिए विश्वास नहीं किया, क्यांकि हम उसे नही जानते है।
जैसा कहा गया, यद्यपि हम प्रत्यक्ष में परमेश्वर को नहीं देख सकते तौभी हम यह अहसास कर सकतें है कि सृष्टीकर्ता परमेश्वर है और एक ही सृष्टीकर्ता है। क्योंकि सृष्टिकर्ता परमेश्वर के प्रमाण उसके द्वारा रचित सृष्टि की सब वस्तुओं में पाए जाते हैं।
आईये मैं आपको एक उदाहरण दूँ। अनेको लोग इस संसार में हैं। जिनकी बहुत सी जातियां और धार्मिक संगठन है जिनकी भाषाएं, संस्कृति, त्वचा का रंग सब अलग अलग है लेकिन सब के पास कुछ चीजें एक समान है जैसे सब की दो आँखे, दो कान, एक नाक और एक मुँह है। और ये सब एक जगह ही है। ठीक चेहरे के बीच में नाक और आँखे हैं। ठीक नाक के नीचे मुँह है और चेहरे के दोनों ओर कान है।
लेकिन ऐसा केवल इन्सानों में ही नहीं है कि जिनकी बनावट और ढांचा एक सा है बल्कि जानवरों, चिड़ियों, मछलियों में भी ऐसा ही है। हां प्रत्येक जाति की विशिष्ता के अनुसार उनमें गूड़ अन्तर जरूर है। अन्यथा मूल रूप से उन सब की बनावट एक सी है।
इसके अतिरिक्त उनकी पाचन और प्रजनन प्रणाली की बनावट भी एक जैसी है। और इस एक जैसी बनावट का कारण यह है कि सब चीजें की रूपरेखा और रचना एक ही सृष्टीकर्ता परमेश्वर ने की है।
लेकिन संसार के लोग, सृष्टिकर्ता परमेश्वर का इन्कार करते हैं। और वे डारविन के सिद्धान्त पर विश्वास करते है।
यदि मनुष्य उस प्रकार से विकसित हुआ होता तो हमारी बनावट एक जैसी कभी नहीं होती। हम अलग अलग रूप और बनावट में विकसित हो सकते थे।
और ये भी, की यदि सृष्टिकर्ता केवल एक न होता, तो मनुष्य और जानवरों की बनावट की रूपरेखा, एक जैसे तरीके की बनी न होती।
क्यांकि यदि अनेकों सृष्टिकर्ता होते, तो वे सब अपने अपने प्राणीयों को अपनी अपनी पसन्द अनुसार अलग अलग बनावट और कार्य प्रणाली में बनाते।
लेकिन ये सब देखकर की सबकी बनावट और काम लगभग एक जैसा है हम बिना सन्देह के समझ सकते है कि इनकी रचना और सही सही रूपरेखा, केवल एक ही सृष्टिकर्ता परमेश्वर के द्वारा की गई है।
प्यारे भाईयों और बहनों!
डारविन के विचार को मानने वाले कहते हैं कि अति सुक्ष्म जीव छोटे छोटे जीवों से बड़े बड़े जीवों में विकसित हुए हैं।
लेकिन उत्पत्ति 1ः21 में लिखा है ‘‘और परमेश्वर ने विशालकाय समुद्री जल-जन्तुओं तथा प्रत्येक जीवित और तैरने-फिरनेवाले जन्तु की सृष्टि की जिनकी भिन्न भिन्न जातियों से जल बहुत ही भर गया और इसी प्रकार हर एक जाति के उड़नेवाले पक्षियों की भी सृष्टि की और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है।’’
उत्पत्ति 1ः25 में भी लिखा है ‘‘और परमेश्वर ने पृथ्वी के जाति जाति के वन-पशुओं, जाति जाति के घरेलू पशुओं और भूमि पर रेंगने वाले जाति जाति के सब जन्तुआें को बनाया। और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है।’’
हाँ समय बीतने के साथ उनके रूप में हल्का सा बदलाव जरूर आया है। लेकिन परमेश्वर ने सब की रचना उनकी जाति के अनुसार की।
मछलियाँ, स्तनधारी प्राणीयों मे विकसीत नही हुई है और स्तनधारी प्राणी पक्षियों में विकसित नही हुऐ है। ऐसा नही है कि बन्दर से मनुष्य विकसित हुआ है। बदंर को बदंर बनाया गया है और मनुष्य को मनुष्य बनाया गया है। और केवल मनुष्य को ही ऐसा प्राणी बनाया गया जिसमें आत्मा, प्राण और देह है परमेश्वर के स्वरूप मे बनाया गया है।
ये बात कोई महत्व नहीं रखती कि बन्दर कितना भी इन्सान जैसा दिखाई दे। लेकिन बन्दर परमेश्वर के अस्तित्व को नहीं समझ सकता और न ही वह मनुष्य की तरह परमेश्वर की आराधना कर सकता है, क्योंकि उसमें आत्मा नहीं है।
क्या बन्दर परमेश्वर की खोज करेगा? क्या वह आने वाले जीवन के बारे में सोचेंगे अर्थात स्वर्ग ओर नर्क। और क्या वह अच्छा जीवन जीने की कोशिश करेगा?
लम्बे समय पहले जब मै एक जागृति सभा मे प्रचार कर रहा था, मैने कहा कि चाँद अपने आप मे घूर्णन करता है और इस बात पर कुछ लोगों ने एतराज जताया। कुछ लोगों ने कहा चाँद केवल चक्कर काटता है। स्कूल मे प्राथमिक पाठशाला मे मैने पढ़ा था कि चाँद घुर्णन करता है, परन्तु मै निश्चित नही था क्योंकि लोग कह रहें थे कि ये सत्य नही हैं इसलिए मैने हमारे सदसयों मे कुछ अध्यापकों से पूछा।
क्या चांद अपनी धूरी पर घूमता है या नहीं? कुछ ने कहा हां घूमता है कुछ ने कहा उन्हें पक्का नहीं मालूम। सो मुझे इस पर खोज करनी पड़ी। और पाया की हां चांद भी अपनी धूरी पर घूमता है। लेकिन फिर क्यों हमेशा चांद की सतह एक ही जैसी दिखाई देती है?
इसे भी समझाया जा सकता है। लेकिन अभी हमारे पास इसके लिए समय नहीं है। इसलिए कृपया आप केवल ये जान लें कि चांद भी धूरी पर घूमता है और पृथ्वी के चारों ओर महीने में एक चक्कर भी लगाता है।
इन परिक्रमाओं और घुर्णने के द्वारा ही पृथ्वी पर सबकुछ क्रमानुसार होता है। जैसे दिन रात है और चार मौसमों का बनना, ज्वार भाटा का उतरा चढ़ाव और हवा का संचरण।
स्वर्गीय स्थानो के इन पिडों की गतिविधियां और स्थान ठीक ठीक स्थापित किये गये है जो कि मनुष्य और प्राणीयों के जीवन व्यतीत करने के लिए बिलकुल स्टीक और उपयुक्त है। और सुर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी अपने अक्ष पर हमेशा उपयुक्त दूरी बनी रहती है।
क्यांकि यदि यह सूर्य के ज्यादा नज़दीक होगी तो बहुत ही तेज़ गर्मी हो जाएगी, ओर यदि दूर हुई तो बहुत ठन्डा हो जाएगी। यहाँ तक की पृथ्वी और चांद की दूरी भी न तो थोड़ी सी भी नजदीक होनी चाहिए और न ही थोड़ी सी दूर। वर्तमान दूरी ज्वार-भाटा के उतार चढ़ाव के लिए बिल्कुल ठीक स्थिति में है। क्योंकि ज्वार भाटा और बाढ़ के द्वारा तापमान और नमी नियंत्रण में रहती है और बहुत सी अन्य प्राकृतिक घटनाएं होती रहती है। इसके कारण वायु बहती है, जिससे बादलों मे गतिविधियां हाती है। और हर जगह पर वर्षा होती है।
इसलिए इनकी दूरी न तो अभी से नज़दीक हो सकते हैं और न ही इससे दूर। आज भी पृथ्वी बिना किसी भी थोडे़ से बदलाव और त्रुटी के, लगातार अपनी धूरी पर नियमित रूप से उचित दूरी पर बने हुए इतने लम्बे समय से जिसको नापा नहीं जा सकता लगातार चक्कर लगा रही है।
क्या आप सोचते हैं ये सब क्रम और घटनाएं बड़े विस्फोट(बिग बैगं) के द्वारा हुये है जैसा वैज्ञानिक कहते हैं?
क्यों नहीं आप थोड़ी सी अकल का इस्तेमाल कर सकते? यदि आप घड़ी खोले तो पाएंगे की घड़ी मे बहुत से जटिल पुर्जे हैं जिन्हे बहुत ही उचित तरीके से सुनियोजित किया गया है। जिसके कारण घढ़ी चलती है।
मान लिजिए कि कोई आपको इस घड़ी को दिखाता है और आप से इस प्रकार की बाते कहता है “इस घड़ी को किसी ने नहीं बनाया है। ये पुर्जे तो एक ज्वालामुखी फटने के कारण निकल आये और अपने आप एक साथ इकट्ठे हो गए और वे चलने शरू हो गयें। क्या आप इस बात पर विश्वास कर पाएंगे? हां यदि आप मूर्ख होगे तो। वर्ना आप कभी भी इस पर विश्वास नहीं करेंगे।
ऐसे ही ये कहना की संसार और जो कुछ उसमें हैं लगातार विकसित होकर बना है, कम समझ आता है। क्योंकि कैसे इस ब्रमाडं की गतिविधियां जो कि एक घड़ी से कहीं ज्यादा स्पष्ट और सही रूप से कार्य कर रहें हैं? एक बड़े विस्फोट का नतीजा हो सकते हैं?
कैसे इतना बड़ा ब्रमाडं अपने आप एक निश्चित और कडे़ क्रम में चल सकता है।?
ये केवल तभी सम्भव है जब संसार और जो कुछ उसमें हैं उसकी रूपरेखा रचना और उस पर हुकुमत केवल परमेश्वर की बुद्धि के द्वारा किया जाता है।
सृष्टिकर्ता परमेश्वर ने ही केवल अपने सामर्थ्य से इन सब चीजों को बनाया है और इन्हें चला रहा है। क्योंकि हमारे पास ऐसे प्रमाण मौजूद हैं। इसीलिए अन्तिम न्याय के दिन किसी के पास कोई भी बहाना नहीं होगा।
और कोई भी यह नही कह सकेगा कि ‘‘मैं तो सोचता था परमेश्वर है ही नहीं’’
प्यारे श्रौताओं, लेकिन फिर क्यां लोग सृष्टि के स्पष्ट प्रमाणों को देखने के बाद भी विश्वास नहीं करते?
क्योंकि वे केवल उसी पर विश्वास करते है, जो आँखों से नज़र आता है, जिसे वे अपने हाथों से छू सकते हैं और अपने ज्ञान और विचारों से जिसे वे समझ सकते हैं ।
लेकिन सोचिए उनका ये ज्ञान और विचार उनके पास कहां से आए हैं? क्या जन्म से ही ये ज्ञान और विचार उनके साथ है? नहीं, ये ज्ञान उन्होंने उन लोगों से सीखा और सुना है जो परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते। और इसलिए उनके विचार भी इस तरह के ज्ञान से अत्पन्न होते है।
वे इस सत्य को नही मानना चाहते है कि कोई जीवित अदृष्य परमेश्वर है, न ही उन चिन्हों और चमत्कारों को जिनका वर्णन बाईबल में है ग्रहण करते हैं।
लेकिन बाईबल का प्रत्येक शब्द अपने आप में सत्य है ये भी सत्य है कि परमेश्वर ने स्वर्ग और पृथ्वी की सृष्टि की है। और ये भी कि चिन्ह, चमत्कार और सामर्थी कार्य भी वास्तव में हुए हैं।
ये कार्य केवल सृष्टिकर्ता परमेश्वर के द्वारा ही किये जा सकते है किन्तु लोग बाईबल को नकारने कि कोशिश करते हैं, क्योंकि अपने सीमित ज्ञान और विचारों के द्वारा न ही वे उसे समझ पाते हैं और न ही उस पर विश्वास कर पाते हैं लेकिन चिन्ह और चमत्कार जो बाईबल में हैं वे सब सत्य है। यूहन्ना 4ः48 कहता हैं ‘‘यीशु ने इस पर उस से कहा ‘‘जब तक तुम चिन्ह और चमत्कार न देखोगे तब तक विश्वास नहीं करोगे।
Shrasthikrta kvl ek hi hai wah krus k pravdhan k dwara hi Jaan paye
Jai masih ki … Thank u pasted ji itni achchi bato or parmeshwar pita or sarathi k bare me itne vistar se brand k liye bhut achcha lga lga padh kr pita ko bhut karib paya ise padh k dhanyawad parbhu …..amen
Mujhe padh ke bahut achha laga aur bahut kuchh bhi sikh mili ki pita ne har yek chij ko kaise banaya dhanyawad pastor ji