क्योंकि यूसुफ एक बढ़ई था, और वे कहते हैं कि यीशु ने अपने माता-पिता की मदद् की और बढ़ई का काम किय। लेकिन कृपया इसके बारे में सोचें। यह केवल मानवीय सोच है। यह बाईबिल में नही लिखा है यह केवल मानवीय विचार है।
जब हमारा प्रभु बढ़ा हो रहा था, और जब तक वह 30 का न हो गया वह, नासरत गांव के पीछे पहाडों पर प्रार्थना करने और परमेष्वर के वचन को मनन करने के लिए जाया करता था, और अपने समय के आने का इन्तज़ार कर रहा था। वह हमेषा परमेष्वर को देखता और प्रार्थना करता और बाईबिल के वचनों पर ध्यान करता रहता। क्योंकि वह अपने समय को जानता था और उस समय के आने का इंतजार कर रहा था। तो क्या उसने इतने किमती समय के दौरान लोगों के घरों के निर्माण और बढ़ई का काम किया?
यह केवल एक मानव विचार है। अगर प्रचारक इस संदेष को ईन्टरनेट अथवा कैसेट के माध्यम से सुन रहे हैं तो मुझे आषा है कि जो प्रचार वे करते हैं उसमें सुधार कर लेंगे।
लेकिन कुछ लोग मरियम को ”पवित्र माता“ बोलते है और उसके आगे झुकते और उससे प्रार्थना करते हैं वो इसलिए कि उसने यीशु को जन्म दिया। लेकिन यीशु परमेष्वर का पुत्र है, और वह हमारी आराधना का विषय है और हमारी प्रार्थनाऐ केवल त्रिएक परमेष्वर से होनी चाहिए।
मसीह में प्यारे भाईयों और बहनों, और उद्धारकर्ता के तीसरी शर्त यह है कि उसके पास दुष्ट शत्रु और शैतान पर विजय होने की सामर्थ्य होनी चाहिए। अगर आप युद्ध क्षेत्र में कैदियों का बचाव करना चाहते है तो उन्हें दुष्मन से वापस लाने की शक्ति आपके पास होनी चाहिए।
और आत्मिक रीति उन्हे बचाने के लिए जो शैतान के गुलाम हैं हमारे पास शत्रु शैतान के ऊपर विजय होने की सामर्थ होनी चाहिए ताकि हम उन्हे वापस ला सकें। लेकिन यहां तक कि यदि कोई ताकतवर मनुष्य हो और उसका वह बलवान शरीर का हो वह भी शत्रु शैतान को नही जीत सकता।
यहां पर शत्रु दुष्ट को जीतने की सार्म्थय कोई शारीरिक साम्थर्य नही बल्कि आत्मिक सामर्थ है।
और आत्मिक क्षेत्र मे सार्म्थय उसके पास होती है जिसमें कोई पाप नहीं। एैसे जैसे अन्धकार रौषनी के आने से चला जाता है। वे जो बिना कीसी अन्धकार के पूरी रीति से उजियाले में रहते हैं उनके पास दुष्टात्माओं पर विजय पाने की सामर्थ्य होती है जो अन्धकार से सम्बन्ध रखती हैं।
यहां पर पाप दो प्रकार के होते है, मूल पाप और स्वयं के द्वारा किया गया पाप। मूल पाप के बारे में पहले ही व्याख्या कर चुका हूँ, और जो पाप आदम के द्वारा आया वो पापी स्वभाव को संदर्भित करता है। यह मूल पाप षरीरिक माता-पिता से विरासत में मिलता है। और जो स्वयं के द्वारा किया गया पाप का मतलब एैसे पाप से है जिसे हम अपने जीवन में जीवित रहते हुए करते हैं। लोग अपने जीवन में बहुत से छोटे बड़े पापों को करते हैं।
न केवल वे लोग जो गम्भीर पाप करते हैं बल्कि वे जो छोटे पाप करते हैं वो भी पापी होते हैं।अय्यूब 2-10 कहता है, ’क्योंकि जो कोई सारी व्यवस्था का पालन करता है परन्तु एक ही बात में चुक जाये तो वह सब बातों में दोषी ठहरा।
असल में हमे यह नही सोचना चाहिए, क्योंकि यह थोड़ा हलका है ठीक है। अगर आप बड़ी चीजों को मान सकते हैं तो आप छोटे चीजो को और भी अच्छे से मान पायेंगे। तो आप सब कुछ मान सकते हैं। यदि आप ये कहतें है कि मै आप को बस बड़ी चीजों को ही मानने की जरूरत है लेकिन छोटी चीजों को नहीं तो इसका कुछ मतलब नही बनता।
यदि आप कई कानूनों में से किसी एक का भी उलंघन करते हैं तो आप पहले से ही पापी ठहर जाते हैं। इसके अलावा, संसारिक लोग पाप पर ध्यान नहीं देते जब तक कि वह कार्य के रूप में न दिखाया जाये। लेकिन आत्मिक तौर पर , केवल हृदय मे पाप होने से, हालांकी यह कार्य में प्रकट नही है, तौभी वह पहले से ही पापी ठहर चुका।
1 यूहन्ना 3ः15 कहता है, ’’जो कोई अपने भाई से बैर रखता है वो हत्यारा है, (प्रिय भाइयों तुम क्यों हत्या करते हो? ओह वरिष्ठ पास्टर मैंने कब हत्या की? पर कृप्या इसे स्पष्ट रूप से समझें) और तुम जानते हो कि, किसी हत्यारे में अनन्त जीवन नहीं रहता।’’
यदि आप अपने भाई से बैर करते हैं तो आप में अनन्त जीवन नहीं। इसका मतलब आप बचाये नहीं जायेंगे। अपने भाई से बैर करने का मतलब है आत्मिक रीति से हत्या करना। इसका मतलब हत्यारे में अनन्त जीवन नहीं और वह उद्धार नहीं प्राप्त कर सकता।
मत्ती 5ः28 पद में भी यही कहा गया है, ’’ परन्तु मैं तुमसे यह कहता हूं, कि जो कोई किसी स्त्री पर कुदृष्टि डाले वह अपने मन में उससे व्यभिचार कर चुका’’ इसलिए, यदि आपके मन में लालच है। तो आप एक चोर के समान पापी हैं क्योंकि आप के अन्दर बुरी इच्छा है। इसी प्रकार से ,यदि कोई मन में और कर्मो के द्वारा पाप करता है। एैसा व्यक्ति मानवजाति को उनके पापों से नहीं छुड़ा सकता।
आदम के बाद पैदा हुआ हर कोई पापी है जिसके अन्दर मूल पाप पाया जाता है। और हर कोई संवय से भी पाप करता है। यहां एैसा कोई नहीं जो यह साहसपूर्वक कह सके ’’कि मैंने न मन से और न कर्मो से कोई पाप किया है।’’
इस प्रकार किसी के पास योग्यता नहीं कि वह उद्धारकर्ता बन सके। केवल यीशु ही एैसा है जिसमें कोई पाप नहीं और न कभी उसने कोई पाप किया। इसलिए उसके द्वारा उद्वारकर्ता बनने की यह शर्त पूरी होती है।
यीशु आदम के वंष का नहीं था इसलिए उसमें मूल पाप नहीं था। उसने कभी पाप नहीं किया। क्योंकि वह जन्म से लेकर क्रूस पर चढ़ाये जाने तक पूरी रीति से परमेष्वर के व्यवस्था का पालन करता रहा।
जन्म के आठवें दिन खतना किये जाने के समय से ही, उसने एैसा कुछ नहीं किया जो असत्य था न तो अपने हृदय मे न ही अपने कामों में। इसलिए इब्रानियों 4ः26 मे यीशु को संदर्भित किया गया है। सो ऐसा ही महायाजक हमारे योग्य था, जो पवित्रा, और निष्कपट और निर्मल, और पापियों से अलग, और स्वर्ग से भी ऊंचा किया हुआ हो।
साथ ही साथ 1 पतरस 2ः22 कहता है, ’’उसने न तो कोई पाप किया और न उसमें मूंह में कोई छल पाया गया।’’
केवल यीशु ही पवित्र है और उसमें कोई पाप नहीं, और यीशु ही एैसा है जिसने कभी कोई पाप नहीं किया।
क्योंकि यीशु मे बिलकुल भी कोई पाप नही था इसलिए उसके पास शत्रु दुष्ट और शैतान से मनुष्यजाति को बचाने की सामर्थ्य थी। और वह व्यवस्था के उस श्राप के अधीन भी नही था जो यह आदेष देता है कि पाप की मजदूरी मृत्यु है।
इसी लिए भले ही वह क्रूस पर मरा, लेकिन वह मृत्यु के अधिकार को तोड़ पाया और जी उठा।
मसीह मे प्यारें भाईयों और बहनों। क्योंकि यीशु मे कोई पाप नही था इसलिए वह मृत्यु के अधिकार को तोड़ सका और पापियों को बचाया और अपनी आत्मिक सामर्थ्य के द्वारा सब चीजों पर अधिकार रखता है। न केवल शत्रु दुष्ट और शैतान पर वरन बीमारियां, जीवाणु विषाणु आर निर्बलताएं भी उसकी वषं मे है।
वे जो दुष्आत्माओ से ग्रसित थे जब वे यीशु के सामने आएं, उसने दुष्ट आत्माओं को जाने की आज्ञा दी तो दुष्ट आत्माओं को उसकी बात मानकर छोड़कर जाना पड़ा।
लेकिन इसका अर्थ यह नही है कि यीशु ने कीसी को भी आज्ञा दी हो। उसने केवल उन्ही मे से निकल जाने की आज्ञा दी जिनके पास उत्तर प्राप्त करने का विष्वास था। और जब वे पापों से दूर थे। जब लगडां और लकवाग्रसित यीशु के पास आया, यीशु ने क्या किया? जब उसने कहा कि तेरे पाप क्षमा हुए तो वह लगडां उठा और अपनी चटटाई को लिया और चलकर वापस गया।
जब उनके पाप क्षमा किये गये , उन्होने चगांई पाई। आप इस बात को बहुत ज्यादा देख चुके है कि परमेष्वर के सामने पाप की दीवार बनाने के कारण लोग उनकी प्रार्थनाओं के उत्तर प्राप्त नही कर सकें।
वो जिन्होने वास्तव मे पष्ताप किया और प्रार्थनाओ को ग्रहण किया वे पूरी तरह से चगें हे गये। आप ने इस प्रकार की बहुत सी गवाहीयों सुनी है। इसलिए यीशु के समय में भी बहुत से अन्धें मनुष्य थें और बहुत से लगंडें़ और गूगें भी थे।
परन्तु हमारे प्रभु ने सभी अन्धों को चगां नही किया। बाइबल हमे बताती है कि उसने एक अन्धें मनुष्य को कैसे चगां किया और उस अन्धें मनुष्य का हृदय कितना भला था। उसका हृदय बिना कीसी छल के धार्मिक और सच्चा था। यह हमे बताता है कि कैसे सच्चा हृदय उसका था।
इसलिए जीवन के जोखिम मे भी अर्थात यदि वह इस बात की जाहिर करता की यीशु के द्वारा वह देखने पाया है तो वे उसे भी मार सकते है उसके माता पिता भी डरपोक थे। और वे इस बात का अगींकार नही करना चाहते थे कि यीशु ने उनके बेटे को चगां किया है। इसलिए उन्होने लोगों को कहा कि वे सवयं ही उनके बेटे से जाकर पुछें। लेकिन इस मनुष्य ने साहस के साथ उत्तर दिया।
उसने उत्तर दिया कि यीशु ने उसे चगां किया हैं। तुम ये बात क्यां नही जानते हो? यदि वह स्वर्ग से नही आता तो वह मुझे कैसे दृष्टी दे सकता था। जीवन के जोखिम मे भी उसने वीरता के साथ ज्वाब दिया।
क्योंकि उसके पास इस प्रकार का सत्य, धार्मिक और इमानदार हृदय था, हमारा प्रभु उसे मिला और दृष्टी की चगांई दी। यही दुष्टआत्माओं से ग्रसित लोगों पर भी यही लागू होता है।
क्योंकि ये लोग पवित्र आत्मा की निन्दा करते है या फिर उसके विराध मे खडे़ होते हैं इसलिए दुष्ट आत्माऐं उन्हे नही छोड़ती नही तो हम उन्हे निकल जाने की आज्ञा दे सकते हैं और उन्हे निकल कर जाना होंगा।
यीशु जिसमें कोई पाप नही था उसके अधिकार के सामने स्वर्ग और धरती का सारी वस्तुए उसका पालन करती थी। जब यीशु ने हवाओं का डांटा और समुद्र को शांत होने की आज्ञा दी तो हवाऐं रूक गई और समूद्र शांत हो गया।
आत्मिक क्षेत्र का यह नियम न केवल यीशु पर लागू होता है बल्कि परमेष्वर की सभी संतानो पर जो यीशु मे विष्वास करते हे।
1 यूहन्ना 5ः18 कहता है“ हम जानते हैं, कि जो कोई परमेश्वर से उत्पन्न हुआ है, वह पाप नहीं करता; जो परमेश्वर से उत्पन्न हुआ, उसे वह बचाए रखता हैः और वह दुष्ट उसे छूने नहीं पाता।“
जो परमेष्वर से जन्मा है वह हमारे प्रभु को दर्षाता हैं और पवित्र आत्मा को भी। इसलिए क्योंकि आप पवित्र आत्मा की अग्निमय दीवरों मे सुरक्षित है, न तो कोई बीमारी आप को छुती है और आप सभी विपतियों से सुरक्ष्ति रहतें है।
उदारण के लिए मान लिजिए की आप के शरीर मे एक बड़ा घाव हैं। तो संसारीक दृष्टीकोण से, आप उसका उपचार करते है, गोलियों खाते है या फिर उस पर पटृ बांधते है लेकिन हमारे सदस्य क्या करते है? जो जिनमे विष्वास है वे उस घाव को छोड़ देते है। वे हवा मे उसे उघड़ा हुआ छोड़ देते हैं।
यहां तक कि आप न तो कोई गोली लेते है न ही कोई दवा। आप उसे एसे ही छोड़ देते है। तौ भी घाव पूरी सफाई के साथ बदं होकर ठीक हो जाता है।
क्यों? पवित्रआत्मा की आग की दीवार आप को सुरक्षा देती है। आप परमेष्वर की संतान है और मै हमेषा आप के लिए परमेष्वर से प्रार्थना करता हूॅ की पवित्र आत्मा की आग की दीवार से आप को सुरक्षा दें। इसलिए वहाओं मे जीवणु आप को सक्रमित नही कर सकतें। आप असंख्य बार इसका अनुभव लेते है। इसलिए यहां कहा गया है कि जो परमेष्वर से जन्मा है वह उसे बचाए रखता हैं और बुराई उसकी हानि नही कर सकतीं।
अर्थात वे सतांन जो परमेष्वर से जन्मे है वे उसके द्वारा सुरक्षित रहते है जो परमेष्वर से जन्मा है। अर्थात हमारा प्रभु ताकि शत्रु दुष्ट और शैतान आप की हानि न कर पाए।
परन्तु पाप से बचे रहने के द्वारा आप के पास आत्मिक सामर्थ्य अवष्य होनी चाहिए ताकि दुष्ट आत्माऐ आपकी हानि करने की हिम्मत न करें। चाहे आप कितने ही लम्बे समय से चर्च आते हो, और एक मसीही जीवन जी रहें हो या फिर आपके पास चर्च मे बहुत से पद क्यों न हो, आपके पास आत्मिक सामर्थ्य नही हो सकती यदि आप पाप में ही जीवन व्यतीत करते है।
चाहे आप यीशु के नाम से दुष्ट आत्माओं को निकालने के लिए प्रार्थना भी करो, आजमाइषें और परिक्षाऐं आप का पीछा नही छोडे़गी। जैसे रोगाणु गदें तालाब के सामने इकटठे होते है वैसे ही शत्रु दुष्ट आप पर कार्य करता रहता है और लोगों को कठिनाइयों मे डालता रहता है।
लेकिन यहां तक कि यदि छोटा बच्चा भी परमेष्वर से प्रेम करता है और परमेष्वर की आज्ञाओं का पालन करता है तो उसके पास भी आत्मिक सामर्थ्य होती है। यदि वह बच्चा यीशु मसीह के नाम से आज्ञा देता है ता शत्रु दुष्ट उसका पालन करतें है और निकल जाते हे।
यदि आप वास्तव मे सत्य मे रहकर जीवन बीताते है और अपने कामो के साथ पवित्र हृदय साध लेते है। तो अधंकार आपके जीवन से निकल जाएगा और यहां समान रूप से जब आप दुसरे लोगां के लिए प्रार्थना करोगे तो परमेष्वर की कार्य प्रकट होगे।
इन बातों का अनुभव मैने असंख्य बार किया है, परमेष्वर में विष्वास करने से पहले न केवल मै, मेरे बच्चे भी लगातार बीमारियों से पीड़ीत रहते थे। इस करण हमने बहुत पैसे अस्पतालों के बिल भरने और दवाइयों मे खर्च किये।
लेकिन प्रभु को ग्रहण करने के बाद इस दिन तक मै हमेषा परमेष्वर के वचन के अधीन रहा हूॅ और पापों से रहित जीवन व्यतीत किया है इसलिए बीमारीयां और निर्बलताए न केवल मुझ मे से दूर हुई बल्कि मेरे परिवार के सदस्यों से भी।
जब से हम ने प्रभु का ग्रहण किया है, हमारे परिवार के कोई भी सदस्य न तो अस्पताल गये है और न ही कोई दवाएें ली है। मुझे कभी कोई इंजेक्शन या कुछ और नही लगा हैं। मेरे बच्चों के साथ भी एसा ही है। उनके जन्म से ही उन्हे कभी भी कोई इन्जेक्शन नही लगा है और न तो काई दवाएें या न ही वे अस्पताल गयें है।
यहां तक की मै सेवक बनने से पहले भी जब मेरे बच्चे बीमार हो जाते थे तो मै उनके लिए प्रार्थना करता था तो बीमारी तुरंत उन्हे छोड़ कर चली जाती थी और वे पूरी रीती से चगें हो जाते थे। और वे भी जो दुष्ट आत्माओ से ग्रसित रहते है वे आत्मिक सामर्थ्य के द्वारा लोगो को साधारण लोगों की तुलना मे ज्यादा सही से पहचानते हे।
वे जो दुष्टआत्माओं से ग्रसित रहते है जब वे कोई हलचल मचाते है, तो वे डर कांपने लग जाते है और शांत हो जाते है जब मै उनके पास आता हॅू।
एक बार मैने इस का अनुभव किया, जैसे ही मै अपने घर से कीसी स्थान के लिए एक व्यक्ति से भूत निकालने को निकला, तो वह भूत शांत हो गया और डरा हुआ था।
जब एक पापरहित मनुष्य कीसी जन के लिये यीशु मसीह के नाम से प्रार्थना करता है तो न केवल बीमारीयां, रोगाणु और दुष्ट आत्माऐं बल्कि निर्जिव वस्तुए भी उसका पालन करती है।
बिलकुल एसे जैसे प्रभु ने समुद्र की हवाओं को शांत किया। प्रभु के नाम मे प्रार्थना करने के द्वारा हम भी हो रही वर्षा को रोक सकते है और मौसम को बदल सकते है या फिर जब हम उनके लिए प्रार्थना करते है जिन्हे जहरीली गैस कार्बन मोनाआक्साइड चड़ जाती है तो निर्जीव गैस भी आज्ञा का पालन करती है और छोड़ के चली जाती है।
आप इसे बहुत बार देख चुके है आजकल के दिनो मे ज्यादा लोग कोयले का इस्तेमाल नही करते है परन्तु पहले गरमी पैदा करने के लिए कोयले का इस्तेमाल किया जाता था और इस कारण सर्दियों मे उस जहरीली गैस के कारण बहुत से लोग मर जाते थे।
इसी प्रकार चर्च की शुरूआत में, वे जो गैस के जहर के कारण अपना होश खो बैठते थे और उन्हे मेरे पास लाया जाता था और जब मै उनके लिए प्रार्थना करता था तो वे कुछ ही मिनटो मे चगें हो जाते थे और न ही उन्हे कोई दुष प्रभाव रहते थे। हमारे कुछ कार्यकता यहां पर इसी तरह से पूर्नजीवित किये गये।
केवल एक ही आदेष के यंहा तक कि गैस ने भी आज्ञा पालन किया और छोड़ के चली गई। और जब आप जल जाते है तो दहन सवेंदना कितनी दर्दनॉक होती है आप बहुत कष्ट होता है। परन्तु जब मै आपके लिए प्रार्थना करता हॅू, तो गर्माहट और दहन सवेंदना तुरन्त निकल जाती है।
जब मै जले हुओं के लिए प्रार्थना करता हॅू। मै पहले दहन सवेदना को निकल जाने के लिए प्रार्थना करता हॅू। और उस वक्त वह वह गर्मी प्रार्थना की आज्ञा मानती है और शरीर को छोड़ कर चली जाती है इसलिए वहां और अधिक दर्द नही होता है।
हमारे बहुत से चर्च के सदस्य इसके गवाह है जिन्हे इसे देखा, सुना और अनुभव किया है। केवल इन कामो को देखने के द्वारा भी हम एहसास कर सकते है कि आत्मिक सामर्थ्य और अधिकार पाप न होने के कारण प्राप्त होता है।
मसीह में प्यारे भाईयों और बहनो, मैने उद्धारकर्ता की दूसरी और तीसरी शर्त के बारे मे समझाया। उद्वारकर्ता आदम का वंशज नही होना चाहिए। और उसके पास दुष्ट , शत्रु और शैतान पर विजय प्राप्त करने के लिए सामर्थ्य होनी चाहिए।
अतिंम और चौथी योग्यता यह है कि उसमें अपने आप को बलिदान करने योग्य प्रेम होना चाहिए।
आइयें सदेंष के निष्कर्ष को देखें।
मसीह में प्यारे भाईयों और बहनो, मनुष्य के इतिहास के शुरूआत से ही कोई भी ऐसा नही था जो उद्धारकर्ता बनने के योग्य था।
सभी मनुष्य पापी है जिन्हे उनके माता-पिता शुक्राणु और अडांणु द्वारा आदम का पाप विरासत मे मिला है। यहां तक कि महान मनुष्य भी चाहे बुद्धा हो, कन्फयूषियस, सुकरात, मे भी आदमे का वष होने के नाते मूल पाप पाया जाता हैं। ओर वे भी परमेष्वर के समुख एक पवित्र जीवन नही जी पाये।
एक बार मैने एक व्यक्ति की कहानी सुनी जिसे कहा जाता था कि उसने बहुत तालीम प्राप्त की है और वास्तव मे उसने दूसरे लोगों से बहुत आदर पाया।
वह अपनी दंतखुदनी को एक बार इस्तेमाल के बाद दुसरी बार इस्तेमाल के रख दिया करता था इसका अर्थ है कि वह उस छोटी सी दंतखुदनी को बार बार इस्तेमाल किया करता था। लेकिन उसके सेवल ने उसे फैंक दिया। इस कारण उसे अपने सेवक पर बहुत गुस्सा आया। कहने का इरादा यह था कि वह बहुत की बचत करने वाला मनुष्य था।
लेकिन हम कैसे कह सकतें है कि वह धार्मिक मनुष्य था जो कि अपना गुस्सा तक नियंत्रित नही कर पाया ओर अपने सेवक को परेषान किया वो भी एक छोटी सी दंतख्ुदनी के लिए।
यह भी की वह मनुष्य जिसका पूरे संसार भर में आदर किया जाता था, वह एक लम्बे समय तक अलग अलग प्रकार की बीमारीयों से पीड़ित रहा। अंत मे बीमारी के कारण उसकी मृत्यु हो गई। इसी प्रकार से ऐसे लोग है जिन्हे संसार भर मे पहचाना जाता है लेकिन वे अपने ही पाप की समस्या की नही सुलझा पाते है। और क्योंकि उनके पास कोई आत्मिक सामर्थ्य नही है, वे अध्ांकार करे दूर नही कर सकते।
मुझें आशा है कि आप साफ तौर पर समझेगें कि यीशु मे न तो कोई मूल पाप है और न ही कोई स्वंय का किया गया पाप और इसलिए केवल उसी के पास हमारे उद्धार के योग्यताऐं है।
इसलिए जैस कि पहल पतरस 1ः16 मे लिखा है कि “ कि पवित्रा बनो, क्योंकि मैं पवित्रा हूं।“ मै प्रभु के नाम से प्रार्थना करता हूॅ कि आप एक पवित्र जीवन व्यतीत करेगें ताकि बुराई आप को छू भी ना पाएं और आप शान्ति और आशीषो मे निवास करों।
आमीन!