क्यों यीशु ही हमारा उद्वारकर्ता है?
बाइबल : 1 कुंरन्थियों 2ः6-9
फिर भी सिद्ध लोगों में हम ज्ञान सुनाते हैंः परन्तु इस संसार का और इस संसार के नाश होनेवाले हाकिमों का ज्ञान नहीं। परन्तु हम परमेश्वर का वह गुप्त ज्ञान, भेद की रीति पर बताते हैं, जिसे परमेश्वर ने सनातन से हमारी महिमा के लिये ठहराया। जिसे इस संसार के हाकिमों में से किसी ने नहीं जाना, क्योंकि यदि जानते, तो तेजोमय प्रभु को क्रूस पर न चढ़ाते। परन्तु जैसा लिखा है, कि जो आंख ने नहीं देखी, और कान ने नहीं सुना, और जो बातें मनुष्य के चित्त में नहीं चढ़ी वे ही हैं, जो परमेश्वर ने अपने प्रेम रखनेवालों के लिये तैयार की हैं।
प्यारे श्रोताओं
जब से पहले मनुष्य आदम ने भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष में से खाकर पाप किया, न केवल आदम परन्तु उसकी सारी वंशावली पापी बन गई। मानव जाति जो पापी बन गई, vआत्मिक क्षेत्र के नियम के अनुसार, जो यह बताता है कि पाप की मज़दूरी मृत्यु है, उन्हें जीवन दुख, आसुओं और कष्ट मे जीना था। और इस धरती पर जीवन जीने के बाद,उन्हे नर्क मे गिरने के लिये नियुक्त कर दिया गया। उन्हें अनन्त सज़ा के लिये आग की झील और गन्धक की झील मे गिरना था। परन्तु समय के शुरू होने से पहले ही मनुष्य जाति को बचाने के लिये जो पाप में थी, परमेश्वर ने यीशु को तैयार किया जो उद्वारकर्ता होगा। प्रेरितों के काम 16ः31 कहता है उन्होंने कहा, प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर, तो तू और तेरा घराना उद्धार पाएगा।
जो यीशु मसीह पर विश्वास करते है। परमेश्वर ने उनके लिये उद्वार का मार्ग खोला। ताकि वे नर्क की सज़ा से छुटकारा पाएं और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर पायेगें। लेकिन जब आप सुसमाचार का प्रचार करते है तो कभी कबार लोग आपसे इस तरह के प्रश्न पूछते है हमे क्यों मसीही बनना है। जबकि दूसरे और भी बहुत से धर्म है। क्या इतना काफी नही कि भले ही हम यीशु मसीह पर विष्वास न करें लेकिन भलाई से जीऐं। या फिर, इतिहास में बहुत से महान पुरूष है, और ऐसा क्यों है कि केवल यीशु ही उद्वारकर्ता है? तब, क्या आप इन सब प्रश्नों के उत्तर दे सकते है।
यूहन्ना 14ः6 कहता है – यीशु ने उस से कहा, मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता।
प्रेरितों के काम 4ः12 कहता हैं – और किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं; क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिस के द्वारा हम उद्धार पा सकें।
चाहे कोई कितना ही क्यों न साचें कि वह भलाई से जीता है तोभी वह पापी है जिसके अन्दर मूल पाप और स्वंय के किये हुए पाप पाये जाते है। इसलिये आखिरकार वह मृत्यु की सज़ा से नही छूट सकता। जो कि पाप की मज़दूरी है। हम केवल यीशु मसीह पर विश्वास करने के द्वारा ही बचाये जा सकते है। और यह भी कि यीशु मसीही ही केवल ऐसे है जिसके पास, आत्मिक क्षेत्र के नियम के अनुसार उद्वारकर्ता की योग्यता है। तो फिर उद्वारकर्ता बनने की योग्यता क्या है?
पिछले संदेश को ज़ारी रखते हुए, मैं आपको बताउगा कि क्यों यीशु ही हमारा उद्वारकर्ता बन सकता था। मै आशा रखता हूॅ कि इस संदेश के द्वारा आप अपने विश्वास को वचन की चटृन पर बांध पाएगें और मैं प्रभु के नाम से प्रार्थना करता हॅू कि आप बहुत से लोगां को यह गवाही दें पाएगें कि यीशु मसीही ही उद्वारकर्ता है। ताकि आप बहुत सी आत्माओं को उद्वार के मार्ग की ओर लें आऐे।
मसीही मे प्यारे भाईयों,बहनो और श्रोतांओं, मनुष्य जाति को बचाने के लिये जो पापों में गिरी है कोई भी उद्वारकर्ता नही बन सकता है। उसके पास अवश्य ही आत्मिक क्षेत्र के नियम के आधार पर उचित योग्यताएं होनी चाहिए। आप उद्वारकर्ता की योग्यताआें को भूमि के छुटकारे की व्यवस्था में देख सकते है जो वह व्यवस्था है जिन्हें परमेश्वर ने इज्राएली लोगों को दिया था।
जो यह आज्ञा देता है। कि ईज़राइल के लोगों के पास जो भूमि है वह परमेश्वर की है, इसलिये इसे हमेशा के लिये नही बेची जा सकती। यहां तक कि यदि उसका मालिक गरीब हो जाए और उसे बेच दें तो उसका नज़दीकी सम्बंधी उस भूमि को छुड़ाने हेतु उस मालिक की ओर से किमत चुका सकता है।
जब पहले मनुष्य आदम ने परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन किया और पाप कर दिया तो मनुष्यजाति उस पाप की मज़दूरी के निमित बैरी दुष्ट के पास बिक गई। भूमि की तरह, मनुष्य भी सदा के लिए नही बेचा जा सकता क्योंकि उन्हें भूमि की मिटृ से बनाया गया है। और वह परमेश्वर की है। यदि कोई जिसके पास याग्यताऐं है, आता है और उनके पापों की कीमत को चुकाता है, तो शत्रु दुष्ट को उन मनुष्य को छोड़ना होता है एक बार जो अपने पापों के कारण बिक गए है।
इनमें से पहली योग्यता यह है कि वह छुड़ाने वाला मनुष्य होना चाहिए।
इज्रालियों की भूमि के छुटकारे के नियम मे, छुड़ाने वाला प्रारंभिक मालिक का नज़दीकी संबंधी होना चाहिए। इसी तरह जो मनुष्य के पापों की कीमत चुका सकता है। वह मनुष्य का संबंधी होना चाहिए। जिसके पास आत्मा, प्राण और देह हैं। अर्थात न तो वह स्वर्गदूत होना चाहिए, और न ही जानवर परन्तु एक वह मनुष्य होना चाहिए इसी कारण से यीशु मनुष्य के समान मास और हडियों मे जन्मा जबकि वह परमेष्वर का पुत्र था।
उद्वारकर्ता की दूसरी योग्यता यह है कि वह आदम का वंशज नही होना चाहिए।
आदम के सभी वंशज मूल पाप से जन्मे है। भले ही वह मनुष्य जिसने अपनी भूमि बेच दी हो, यदि उसका काई संबंधी हो परन्तु यदि वह संबंधी गरीब है तो वह भूमि को छुड़ा नही सकता। इसी तरह से आदम के वंशज जो मूल पाप से जन्में है। वे नर्क मे डाले जाने के लिए नियुक्त हैं। क्योंकि वे भी पापी है। इसलिए वह दूसरों को पापां से नही छुड़ा सकते। केवल यीशु ही एकमात्र मनुष्य है। जो आदम का वंशज नही है। यह इसलिए है। क्योंकि वह शुक्राणु और अंडाणु के संयोजन से नही बल्कि पवित्र आत्मा के द्वारा कुवांरी मरियम के गर्भ में पाया गया।
तीसरा, उद्वारकर्ता बनने के लिए, उसके पास शत्रु दुष्ट के उपर विजय प्राप्त करने के लिए सामर्थ होनी चाहिए।
एक युद्व की लड़ाई में कैदियों को बचाने के लिए, हमारे पास इतनी सामर्थ होनी चाहिए कि हम शत्रु को जीत सकें और कैदियों को वापस ला सकें। आदम के बाद सभी को शत्रु, दुष्ट और शैतान के अधीन रहना पड़ा। क्योंकि जिसके पास मूल पाप और स्वयं के किये गए पाप है वे पापी है। परन्तु केवल यीशु ही जिसके अन्दर न तो काई मूल पाप है। और न ही स्वयं का किया गया कोई पाप है। इसिलिए उसी के पास शत्रु, दुष्ट और शैतान के अधिकार को तोड़ने की और मनुष्य को बचाने की सामर्थ थी। पिछली सभा में मैने आपको यहां तक बताया है।
चौथी योग्यता मनुष्यजाति के उद्वारकर्ता बनने की यह है कि उसके पास स्वयं को बलिदान करने जैसा प्रेम होना चाहिए।
मान लिजिए कि एक छोटे भाई को अपने कर्ज के कारण सजा़ मिलनी है। यदि उसका बड़ा भाई अमीर है और उसका कर्ज अदा करता है। तो उसको सजा़ नही मिलेगी। परन्तु भले ही यदि उसका बड़ा भाई अमीर भी हो, परन्तु वह किस काम है यदि उसके छोटे भाई के लिए उसके पास प्रेम न हो वह यह कहकर अपने भाई की कठिनाईयों को अन्देखा करेगा कि मैंने एसा भाग्य बनाने के लिए परिश्रम किया हैं। और मैं तेरी वजह से क्यों हानि उठांऊ। परन्तु यदि बड़ा भाई अपने छोटे भाई से प्रेम करता है। तो वह अपने भाई के कर्ज को वापस चुकाना चाहेगा। चाहे उसे स्वयं बड़ी हानि ही क्यों न उठानी पडे़।
यह भूमि के छुटकारे के नियम के समान है। जब एक व्यक्ति गरीब हो जाएं और अपनी भूमि बेच दें और यदि उसका कोई संबंधी अमीर हो जिसके पास भूमि को छुड़ाने के लिए दोनो ही योग्यताएं और सामर्थ हो परन्तु चाहे वह संबंधी कितना ही अमीर क्यों न हों यदि भूमि को छुड़ाने के लिए उसमें प्रेम न हो तो वह भूमि छुड़ाई नही जा सकती। केवल जब उसके अन्दर मदद करने के लिए पर्याप्त प्रेम हो, तभी भूमि का छुटकारा हो सकता है। रूत अध्याय 4 में हमें ऐसी घटना मिलती है।
एक नोआमी नामक स्त्री गरीब हो गई थी और उसने अपनी भूमि बेच दी परन्तु उसके नज़दीकी संबंधी ने उसकी भूमि छुड़ाने से इन्कार कर दिया क्यांकि वह कोई नुकसान नही उठाना चाहता था। परन्तु एक और संबन्धी, बोआज़ उसके अन्दर प्रेम था और उसने उसके लिए उस भूमि को छुड़ा दिया। यदि बोआज के अन्दर भी प्रेम नही होता तो वह भी उस भूमि को छुड़ाने के लिए इन्कार कर सकता था। उसी प्रकार से मनुष्यजाति को उनके पापों से छुटकारा दिलाना भी हैं।
जैसे हम पहले ही सुन चुके हैं। कि यीशु के पास मनुष्य को उनके पापो से छुड़ाने के लिए सभी तीन योग्यताएं थी। वह मनुष्य की तरह पैदा हुआ। परन्तु आदम का वषंज नही था, इसिलिए उसके अन्दर कोई मूल पाप नही था। क्योकि उसके अन्दर न ही तो कोई मूल पाप था और न ही कोई स्वयं का किया गया पाप इसलिए उसके पास पापियों को दुष्ट, शत्रु से बचाने के लिए आत्मिक सामर्थ थी। लेकिन यदि यीशु के अन्दर प्रेम नही होता, तो वह शायद छुटकारा नही दिलाता।
यह इसलिए है क्योकि उद्वारकर्ता बनने के लिए और मनुष्यजाति को उनके पापों से छुड़ाने के लिए उसे बहुत बड़ा बलिदान करना था। उद्वारकर्ता बनने के लिए उसे पापियों की ओर से मृत्यु की सज़ा लेनी थी। इसके अलावा, एक भयानक अपराधी के समान उसे सूली पर चढ़ कर अपना सारा पानी और खून बहाना था। इस ससांर मे अपराधियों को दण्ड देने के बहुत से तरीके है। लेकिन सब मनुष्यजाति को उनके पापों से मुक्ति दिलाने के लिए केवल दण्ड ही काफी नही था।
आत्मिक क्षेत्र के नियम के अनुसार वह अवश्य ही पेड़ पर लटकाया जाए और अपना खून बहाएं।
गलतियों 3ः13 कहता है। मसीह ने जो हमारे लिये शा्रपित बना, हमें मोल लेकर व्यवस्था के शा्रप से छुड़ाया क्योंकि लिखा है, जो कोई काठ पर लटकाया जाता है वह शा्रपित है।
व्यवस्था का शा्रप यहां पर उस आत्मिक क्षेत्र के नियम से संबन्ध रखता है। जो रोमियों 6ः23 मे पाप की मजदूरी को मृत्यु का आदेश देता है। आत्मिक क्षेत्र के नियम के अनुसार व्यवस्था का शा्रप जिसे मृत्यु कहा जाता है। मनुष्य पर आ गई जो कि पापी थे। इसलिए मनुष्य को व्यवस्था के शा्रप से मुक्ति भी,
आत्मिक क्षेत्र के नियम के अनुसार ही होनी है। अर्थात, आत्मिक क्षेत्र के नियम के अनुसार उद्वारकर्ता को उस पेड़ पर लटकाया जाएं जिसमें शा्रपित मनुष्यजाति को लटकाया जाना था। क्रूस पर लहू बहाना और मरना उसी प्रकार से है।
लैव्यव्यवस्था 17ः14 कहता है। क्योंकि शरीर का प्राण जो है वह उसका लोहू ही है।
इब्रानियों 9ः22 कहता है। और व्यवस्था के अनुसार प्रायः सब वस्तुएं लोहू के द्वारा शुद्ध की जाती हैं; और बिना लोहू बहाए क्षमा नहीं होती।
मनुष्यजाति ने अपना अनन्त जीवन पापों के कारण खो दिया। अवश्य ही उनके पास सासें है। और जब जक वह इस धरती पर जीवित है उनमें जीवन पाया जाता है। परन्तु वह वास्तविक जीवन खो चुकें है। और हमेशा के लिए जीवित नही रह सकते। आत्मिक अर्थ के अनुसार खून ही जीवन है।
और इसिलिए केवल उद्वारकर्ता का लहु बहाने के द्वारा ही पापी अपने पापों से मुक्ति प्राप्त कर सकते है। और जीवन प्राप्त कर सकते है। निसन्देह मनुष्यजाति के पापों को किसी के भी लहू बहाने के द्वारा माफ नही किया जाएगा। जैसे कि पहले ही बता दिया गया कि, जो लहु मनुष्यजाति के पापों को उनके पापों से मुक्त करा सकें वह उस मनुष्य का लहु होना चाहिए जो पापरहित हो।
लहु में जीवन पाया जाता है इसलिए उस लहू में कोई पाप नही होना चाहिए। वह मनुष्य जो बिना किसी स्वभाविक पाप के दोषरहित और दागरहित हैं उसी को अपना लहू बहाना जाना है। परन्तु क्यों एक मनुष्य जो पापरहित है। वह दूसरों के लिए इस तरह की घिनौनी मूत्यु लेना चाहेगा। कू्रस की पीड़ाएं सब पीड़ाओं से क्रूर होती है। यीशु भूखा था। उससे पूरी रात भर यहां वहां पूछताछ की गई। यहां तक कि नौकरों ने उस पर थूका और उनके द्वारा उस पर थप्पड़ मारे गए। उसे बहुत ही निन्दा सहनी पड़ी।
धर्म शास्त्रियों, महा याजकों और याजक, जिन्हें परमेष्वर का ज्ञानी माना जाता था। उनके द्वारा उसका तिरस्सकार किया गया। उसको मृत्यु दण्ड सुनाया गया। उसे नग्न अवस्था मे कोड़े मारे गए। जब मैं क्रूस के सदेश को प्राप्त कर रहा था, हमारे प्रभु ने एक बार मुझे इन कोडा़े का वर्णन किया था। अन्त बहुत ही तीखा था, और वे बखुबी प्रशिक्षित रोम के सैनिक जब कोड़े मारते थे, तो वह चाबुक कोड़ा पूरे शरीर को चारों ओर से घेर लेता था। और, वे सैनिक उसे वापिस खींचने मे बहुत ही माहिर थे। जब वे उस कोड़े का वापस खिंचते थे। तो शरीर के हिस्से फट जाते थे। तब हडियां दिखाई देती थी। उसके पूरे शरीर पर बहुत ही बेरहमी से कोड़े
मारे गए। और, वह अपने सिर पर काटों को पहने हुए था। उसके हाथों और पैरों को छेदा गया। और उसका लहू बहाया गया। क्रूस पर लटकाये जाने के बाद उसे बहुत घंटों तक उस गर्म मौसम में रहना पड़ा। कितनी थकान उसे हुई होगी?
वह सो नही सका, वह भूखा था और उसकी हंसी उड़ाई गई और मृत्यु की सज़ा सुनाई गई। उसे गलगोथा तक उतना भारी क्रूस उठाना पड़ा। बहुत से लोग उसका उपहास कर रहे थे। इतने में उसकी एक तरफ भाले से छेदा गया। और उसने अपना लहू और पानी बहाया। यह कू्रस की पीड़ाए थी जिनसे उसे गुज़रना पड़ा। कोई ऐसा बलिदान केवल तभी कर सकता है। जब वह खुद से भी ज्यादा दूसरों से प्रेम करता हो। तभी
वह दूसरों का बचाने के लिए हर प्रकार के दर्द लेने को इच्छुक रहता हैं। हमारे यीशु ने इस प्रकार का प्रेम हमें दिया है। क्रूस पर चढ़ाया जाना जिसे यीशु ने लिया, उन दिनों में मृत्यु की सबसे कू्रर दषा हुआ करती थी। और वह दर्द कल्पनाओं से बहार है। यदि यीशु हमसे प्रेम नही करता, तो वह शिकायत कर सकता था। वह यह सोच सकता था। कि मैंने ऐसा कौन सा पाप किया है। कि मुझे इन लोगां के लिए कू्रस को उठाना चाहिए। क्यों मुझे पापियों के कारण यह दर्द लेना चाहिए।
और कू्रस लेने से इन्कार कर सकता था। परन्तु यीशु ने चुपचाप पीड़ाओं को उठाया और उस घिनौने लकड़ी के कू्रस पर जब तक कि वह मर नही गया उसने अपना लहु बहाया। क्यांकि उसने आपसे और मुझसे प्रेम किया। साथ ही क्योंकि हमारे पिता परमेश्वर ने हमसे इतना प्रेम किया कि उसने उद्वारतापूर्वक अपने इकलौते पुत्र को भी हमारे लिए दे दिया। रोमियां 5ः7-8 कहता है किसी धर्मी जन के लिये कोई मरे, यह तो दुर्लभ है, परन्तु क्या जाने किसी भले
मनुष्य के लिये कोई मरने का भी हियाव करे। परन्तु परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है, कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा। किसी धर्मी मनुष्य के लिए मरना किसी के लिए आसान नही है। परन्तु क्या जाने किसी भले मनुष्य के
लिये कोई मरने का भी हियाव करें। परन्तु हम न ही तो धर्मी थे और न ही भले। हम पापी थे। और इन पापियों के लिए, परमेश्वर ने अपना केवल इकलौता पुत्र ने दिया, उसका सबसे प्यारा पुत्र। और हमारे प्रभु
यीशु ने, परमेश्वर और मनुष्यजाति के बीच में शान्ति बनाने के लिए और पाप की दीवार को तोड़ने के लिए और शान्ति लाने के लिऐ उसने इस तरह के महान दर्द, पीड़ाओं को और कू्रर सज़ा को ले लिया। इसिलिए हम कहते है। परमेश्वर प्रेमी परमेश्वर है। हम ऐसा बिना किसी कारण से नही कहते। परमेश्वर ने हमें इस प्रकार का प्रेम दिया। और इसिलिए हम उसे प्रेमी परमेश्वर और प्रभु को भी प्रेमी प्रभु कहते है।
परमेष्वर ने अपने इकलौते पुत्र को प्रायश्चित का बलिदान कर के यह साबित किया कि वह हम से कितना प्रेम करता है। आप एक क्षण के लिए इस उदारण के बारे में सोचे। अपने आप को एक राजा के स्थान पर रखें। आपका केवल एक ही बहुत प्यारा बेटा है। और आप की प्रजा में कोई बहुत की कू्रर खूनी था। और कानून के आधार पर उसको मृत्यु दण्ड दिया जाना था। और इस अपराधी को बचाने का केवल एक ही
रास्ता यह है कि उसके लिऐ कोई पापरहित मनुष्य मरे। तो इस ससांर का कौन सा राजा अपने इकलौते पुत्र को जो पापरहित है। उस अपराधी को बचाने के लिऐ दे देगा। कोई भी ऐसा नही करेगा। मनुष्य के इतिहास में ऐसा किसी ने नही किया है। परन्तु हमारे परमेश्वर ने ऐसा किया। परमेश्वर जो सृष्टिकर्ता है। जिसकी तुलना इस ससांर के किसी भी राजा से नही हो सकती उसने अपने पापरहित पुत्र को दे दिया। अपने इकलौते पुत्र को, मनुष्यजाति को बचाने के लिए जो पापी बन गई थी, मृत्यु की सज़ा की पीड़ा को उठाए। हमारे लिए अपने महान प्रेम को साबित करने के लिए उसने दोषरहित और दागरहित यीशु को, अपने इकलौते पुत्र को दे दिया। परमेश्वर ने क्या महसूस किया होगा जब यीशु पापियां के द्वारा बंदी बनाया गया, कोड़े मारे गए, दण्ड दिया गया और कूस पर चढ़ाया गया। पिता परमेश्वर जो अपने प्यारे पुत्र को पीड़ा मे देख रहे थे। उसे भी हृदयविदारक दर्द से गुज़रना पड़ा।
तौभी, उसने पापियों को बचाने के लिए अपना इकलौता पुत्र दे दिया और सब बलिदान और दुख ले लिया ऐसा कोई भी नही है। जो इस ससांर के पापियों के लिए इस प्रकार का प्रेम दे सकें। हालांकि बेशक हम उन लोगों की कुछ हृदय स्पर्शी कहानियां सुनते है। जिन्होंने अपना जीवन या तो उन लोगां के लिए बलिदान कर दिया जो भले थे या फिर जिन्हें वे प्रेम करते थे।
आजकल की यह पीढी कैसी है? पिछले सप्ताह मैनें एक माता-पिता की बाल उत्पीड़न की कहानी सुनी। ज़रा इस बारे में सोचिए। कैसे आप अपने बच्चे के साथ बुरा व्यवहार कर सकते हो जिसे आप ने जन्म दिया है। बहुत से चर्च सदस्यों से मुझे बहुत सी बातें सुनने को मिलती है। और बच्चों से दुवर्व्यवहार करने के भी बहुत से तरीके है। कुछ माता पिता अपने बच्चों को बहुत दिनों तक भूखा रखते है। यहां तक कि बच्चों को जो केवल दो या तीन साल के है। और कुछ माता पिता अपने बच्चो को अन्धेरे कमरे में बन्द कर देते है। या फिर कुछ और वे बहार से दरवाज़ा बंद कर देते है। ताकि बच्चा बहुत दिनों तक बहार न आ सके। कुछ माता पिता अपने बच्चों को इतना मारते है कि उनसे खून बहना शुरू हो जाता है। और नीले दाग पड़ जाते है।
माता पिता कहते हैं यह अपने बच्चो को अनुशासन में लाने के लिए प्रेम की सज़ा है। क्या उग्र व्यवहार प्रेम की सज़ा है? कैसे इस प्रकार की कू्ररता प्रेम की सज़ा हो सकती है? यदि यह प्रेम है तो पहले आपको उनसे बात करनी चहिए और यदि वे नही सुनते है तो उन्हें आप समझा सकते है, सावधान कर सकते है। और यदि आपको सचमुच शारीरिक सज़ा देनी है। तो आप उन्हें बताए कि आपको ये क्यों करना पड़ रहा है।
केवल तब ही उनकी सहमती से आप उन्हें मार सकते है या फिर कुछ और परन्तु यह कहकर कि वे फिर से एसे काम न करे क्योंकि बच्चा इतना सक्षम नही हैं कि वह स्वयं से उसे छोड़ सकें। आप उनकी पिंडली पर मार सकते है। परन्तु पहले आप प्रार्थना करें और फिर मारें। यदि आप केवल दुर्वव्यवहार ही करें और कहे कि यह प्यार की सज़ा हैं। तो फिर कैसा होगा। बच्चों के साथ दुर्वव्यवहार करने के बहुत से तरीके है। और दरअसल वे सचमुच समझ से बहार है। यदि आप अपने बच्चे से प्रेम करते है। तो आप उन्हें समझ नही पाओगे। कैसे माता पिता ऐसे काम कर सकते है? लेकिन यही वास्तविकता है।
और पिछले सप्ताह की यह एक बड़ी खबर थी और कुछ लोगों को तो कानूनन सज़ा दी गई। यह तो बच्चों और माता पिता के बीच में होता है। और पति पत्नी के बीच के संबंध के बारे मे क्या कहे? परन्तु परमेश्वर का प्रेम ही सबसे कीमती और अनमोल प्रेम है। जिसे शब्दो मे बयां नही किया जा सकता। परन्तु इस दुनिया मे ऐसा कोई भी नही है। जो अपना जीवन बिना किसी शर्त के एक अति दुष्ट अपराधी के लिए दे दें जिसे उसका कोई संबधं नही है। साथ ही साथ वे उसे नफरत करें, उसे शा्रपित करे और मारने की कोशिश करे जबकि उसने उन्हे चगां किया, प्रेम किया और केवल भलाई का व्यवहार किया। कोई भी ऐसा नही होगा जो इस तरह की भयानक पीड़ायें इस प्रकार के लोगों के लिए लेना चाहेंगा। परन्तु हमारे यीशु ने ऐसा किया। क्योंकि उसके पास इतना महान प्रेम था। उसने पापियों के लिए कू्रस की पीड़ाओं को उठाया और अपना सम्पूर्ण पानी और लहू बहा के मर गया।
मसीह मे प्यारे भाईयों और बहनां,
1 यूहन्ना 4ः10 कहता है – प्रेम इस में नहीं कि हम ने परमेश्वर से प्रेम किया; पर इस में है, कि उस ने हम से प्रेम किया; और हमारे पापों के प्रायश्चित्त के लिये अपने पुत्र को भेजा।
पिता परमेश्वर और प्रभु के प्रेम की तुलना इस संसार के किसी भी प्रेम से नही की जा सकती है।
पहले हम ने परमेश्वर से प्रेम नही किया। परमेश्वर ने पहले हमसे प्रेम किया और हमें बुलाया। स्वर्ग राज्य की ओर अगुवाई करने के लिए, वह हमेशा हमसे उपदेशकों के द्वारा बात करता है। परन्तु वे नही सुनते। आप परमेश्वर के बहुत से कार्य देख रहे है। जो इस चर्च में हो रहे है। आप उन कामों को देखते हो और सुनते हो। जो चिकित्सा विज्ञान के द्वारा सम्भ्ांव नही है, जिसे मनुष्य के द्वारा करना भी असम्ंभव है परन्तु केवल परमेश्वर के द्वारा हर सप्ताह सभंव हो रहे है। आप स्वंय उन्हें अनुभव करते हो। आप चिन्हां, चमत्कारां और परमेश्वर के सामर्थी कामों को देखते हो। इसलिए बहुत से देष मुझे आमंत्रित करते है। ये सब सच है। बाइबल में सभी अभिलेख सत्य है।
पिता परमेश्वर और प्रभु के प्रेम की तुलना इस संसार के किसी भी प्रेम से नही की जा सकती है। यदि हम अपना सम्पूर्ण जीवन और सारी संपति भी दे देें तो भी इस अनुग्रह को चुका नही सकते। मैं इसे आरंभ से जानता हूॅ जिस क्षण से परमेश्वर मुझ से मिला। मैंने सर्वप्रथम अब तक केवल परमेश्वर से ही प्रेम किया है। मैंने कभी भी पीछे मुड़कर नही देखा परन्तु परमेश्वर के लिए ही जीवन जीया है।
इसलिए यहां तक कि मैंने अपने सारे बच्चों को भी परमेश्वर के आगे समर्पित कर दिए। कभी कभार मुझे अपनी तीनां बेटियों के लिए मनुष्य के विचार आतें है। कि वे तीनों पास्टर बन गई। मनुष्य की सोच में भी यह हृदयविदारक है। यदि वे पास्टर नही बनती, तो वे अच्छे कॉलेज से डिगी्र ले चुकी होती और अच्छे साथी से मिलकर शादी कर चुकी होती या फिर यदि वे शादी नही करती तो वे समाज में कोई विशेष हस्ति बन सकती थी। मैं जानता हूं एक पास्टर की राह आसूओं, पीड़ाओं और दर्दां से भरी होती है। ये जानते हुए भी मैंने उन्हें परमेश्वर को समर्पित कर दिया। यहां तक कि मैंने अपना सब कुछ परमेश्वर को दे दिया मेरा समय, पैसा, मेरी पत्नी और मेरे बच्चे। परमेश्वर के अनुग्रह को वापस चुकाने का कोई रास्ता
नहीं है। परमेश्वर के प्रेम को वापस चुकाने का कोई रास्ता नही है। यहां तक कि दस हज़ार में से एक भी इसलिए वो जो इस प्रेम को अपने हृदय की गहराइयों में महसूस करते है। वे प्रभु के नाम का इकांर नही करते। यहां तक कि गंभीर सताव में भी और वे यहां तक कि अपना जीवन देकर शहीद हो जाते है।
यदि हम इस प्रेम को जानते है। तो हम इस दुनिया के अधिकार, सपंति और विख्याति पाने के लिए प्रभु को त्याग नही सकते। हम प्रभु के प्रेम को त्याग नही सकते चाहे हम किसी भी प्रकार के सताव में क्यों न पड़े। हम अपने भाईयों, बच्चों या पति पत्नी से प्रभु से ज्यादा प्रेम नही कर सकते। निःसदेंह जितना ज्यादा हम प्रभु से प्रेम करते है। हम अपने परिवार के सदस्यों से और दूसरें लोगों से भी प्रेम करेंगे।
हम आत्मा में अधिक गहराई और सच्चाई से उन्हें प्रेम करेंगे। इस ससांर का प्रेम केवल स्वार्थी होता है। यहां तक कि वे कहते है। कि वे अपनी जान दे सकते है। पर उसमें भी स्वार्थीपन होता है। और समय गुजरते हुए बदल जाता है। उदारण के लिए, दो लोग एक दूसरे से मुलाकात करते है। वे कह सकते है। मै तुझसे हमेशा प्यार करता रहूंगा या फिर मैं तुझ से अपने जीवन से ज्यादा प्यार करता हूं।
इस प्रकार के ऐसे कितने प्रकार के अंगीकार होते है। और बहुत प्रकार के काव्यात्मक ढंग भी होते है। जब आप किसी से मुलाकात करना चाहते है। कभी-कभार आप कवितांए पढ़ते है। या फिर अपने दोस्तों से बेहतर ढंग से सीखते है। और अपने प्रेम का इज़हार करते हैं।
कम से कम उस वक्त तो अगींकार सच्चा होना चाहिए। यदि यह उस लड़की से केवल आनन्द उठाने के लिऐ था तो यह अगींकार अलग होगा। परन्तु यदि वह व्यक्ति सचमुच उस स्त्री से शादी करना चाहता है तो उसका अंगीकार सच्चा रहा होगा। यहां तक कि वह जोड़े जो एक दूसरे से बहुत प्रेम करते है। परन्तु कुछ समय बाद टूट जाते है। क्योंकि उनका प्रेम ठंडा हो जाता है। और बदल जाता है। अलग हो जाने के बाद वे किसी और से मिलते है। और दोबारा से अंगीकार करते है। कि मैं तुझ से प्यार करता हूं।
यहां तक कि जब वे एक दूसरे से लम्बे समय तक प्रेम करते है। और शादी कर लेते है। उनके विचार उस समय की तुलना में जब वे एक दूसरे से मिला करते थे, बदल जाते है। जबकि जब वे एक दूसरे से मिला करते थे वे घटों घटों भर एक दूसरे के साथ बिताया करते थे। तौभी घर आ जाने के बाद फोन पर भी बात किया करते थे। लेकिन शादी हो जाने के बाद वे कहते है। उनका विवाहित जीवन सूना है। यहां तक कि तूफानी बर्फ में जब वे एक मिलते है। वे अपने हाथां को एक दूसरे की जेबों मे डालते है। और एक दूसरे के गले मिलते है। और वे नही कहते कि ठंड है। वे अपना कोट अपने साथी के ऊपर डाल देते है। वे पूरे दिन एक दूसरे से मिलते है। परन्तु जब वे वापस घर आते है। एक दूसरे को फिर याद करते है। और वे फोन करते है।
वे 30 मिनट, एक घंटा यहां तक कि दो घंटे फोन पर बात करते है। और फिर से अगले दिन भी मिलने के लिए समय नियुक्त करते है। वे इतना प्यार करते है। परन्तु शादी हो जाने के बाद वे जल्दी ही सूना महसूस करते है। इसका मतलब यह हैं कि अब वे एक दूसरे को और अधिक पसंद नही करते है।
यहां तक कि कभी-कबार वे शादी करने से भी पछताते है। कभी-कबार वे कहते है कि मुझे थोड़ा और इन्तज़ार करना चहिए था। मैं बहुत जल्दी में था। जब वे अपने कार्य स्थानां में जाते है, तो उनके साथी कहते हैं कि आपका समय बहुत अच्छा गुजर रहा होगा। परन्तु वे क्या जवाब देते है?
आप इन्तजार करो। जल्दी शादी मत करो। वे इस प्रकार परामर्श देते है। वे ये भी कहते है कि बजाए इसके अकेले रहना ज्यादा बेहतर है। मै भी जल्दी शादी करने से पछताता हूं। वे क्यों महसूस करते है कि उनके जीवन मे सूनापन है। शादी से पहले वे एक दूसरे के ही लाभ को देखते थे लेकिन अब वे सबसे पहले अपना देखते है। यदि कोई समस्या होती है। अब वे एक दूसरे पर इन्ज़ाम लगाते है। क्यों उनका प्रेम बदल जाता है। वे परमेश्वर की दिष्ट में प्रेम की परिभाषा नही जानते है। प्रेम देना होता है।
इसमें अपना नही वरन दूसरों का लाभ देखा जाता है। यह केवल देना होता है। समस्या तब उठती हैं जब आप वापस लेने की कोशिश करते है। आप पाना चाहते है। परन्तु जैसा आप चाहते हैं वैसा नही मिलता इसलिए विवाद होते है। फिर आप परेशानी में आ जाते है।
यदि आप प्रेम करते हैं, आप केवल देते है। आप प्रेम के साथ असीमित देते है। आप ऐसा कह सकते है। कि यदि वापस प्राप्त किये बिना मैं देता रहूंगा, क्या ये बड़ा नुकसान नही है? ये नुकसान क्यों है? आप देते हैं क्योंकि आप प्रेम करते है। प्रेम के बिना देना झूठ है। यदि आप सचमुच प्रेम करते है आप असीमित दे सकते है। क्या आप ऐसा महसूस करते है। कि अपने बच्चों को उनकी जरूरतें देना बर्बाद है? क्या अपने बच्चों से प्रेम करना मुश्किल है। यदि माता पिता अपने बच्चों से प्यार करते हैं तो जब वे अपने बच्चों को देते है।
तो वे खुश होते है। वे खुश होते है। क्योंकि वे उनसे प्यार करते है। वे इसे बर्बादी नही महसूस करते। हो सकता है बच्चे काफी परिपक्व न हो कि वे अपने माता पिता से प्रेम करे। परन्तु माता पिता खुश महसूस करते है। जब वे अपने प्यारे बच्चों को दे सकते है। वे वापस प्राप्त करने की इच्छा नही करते। इसलिए वे खुश होते है।
यह नुकसान नही हैं यदि आप प्रेम करते है। आप सिर्फ दीजिए। वापस लेने की काशिश न करें। यदि दोनों पक्ष एक दूसरे को देते है। तो परिवार कितना आत्मिक और सुन्दर परिवार होगा। परन्तु यहां तक कि यदि आपका साथी आपको नही भी देता है। आपको केवल देते रहना चाहिए। यही हैं प्रभु में सच्चाई के साथ चलना। इसलिए अन्त में परमेश्वर आपके साथी को भी बदल देगा। और वह भी
आपको देने पाएगा। परमेश्वर के पास इस तरह के व्यक्ति को बदलने की सामर्थ है। उस तरीके से आपके पास शान्तिमय और सुन्दर परिवार हो सकता है।
आप को उस व्यक्ति के साथ तब तक रहना है जब तक प्रभु वापस नही आते। इसलिए आपके पास शान्ति होनी चाहिए। कितना दुखद होता हैं यदि आपके पास अपने साथी के लिए शान्ति नही है। यह इसलिए है आप खुद ही पाना चाहते है और प्रेम प्राप्त करना चाहते है। इसलिए यदि कोई समस्या
होती है। तो आप पहले अपने साथी पर इल्ज़ाम लगाते है। यदि आप देने वाले व्यक्ति है तो आप दूसरे पर इल्जाम नही लगाएंगे। यहां तक कि यदि आपके साथी ने कुछ गलत भी किया है। तो आप उसे केवल अपनी गलती मानेंगे। परन्तु क्योंकि आप हर मामले मे हमेशा दूसरे व्यक्ति पर दोष लगाते है। तो कैसे समस्या सुलझ सकती है। आपके पास हमेशा कुछ न कुछ शिकायतें और दुर्भावनाएं और गलतफहमियां रहती है। आपको परेशानी होती है। तब अन्त में आप ऐसे शत्रु बन जाते है। यहां तक कि तालाक ले लेते है।
माता पिता और बच्चों के बीच भी ऐसा ही है। जब बच्चे जवान होते है। वे अपने माता पिता से सबसे बढ़कर प्यार करते है। ऐसा लगता है। कि वे अपने माता पिता से पूरे जीवन भर प्रेम करेंगे। परन्तु बड़े हो जाने और शादी हो जाने के बाद उनके पास अपने बच्चे होते है। और वे पहले के समान अपने माता पिता की परवाह नही करते। कभी कबार भाईयों में झगड़े हो जाते है। क्योंकि वे अपने बीमार और बूढ़े माता पिता की देखभाल नही करना चाहते। कुछ दुखद घटनाऐं भी होती है। माता पिता का प्रेम भी अपने बच्चों के लिए बलिदान जान
पड़ता है। परन्तु जब कुछ चीज़े उनके लाभ की नही दिख पड़ती है तो वह भी बदल जाता है। बच्चों के बडे़ हो जाने के बाद, उनके भी अपने माता पिता के साथ झगड़े या विवाद हो सकते है। उस वक्त यदि बच्चे अपने माता पिता को बहुत ज्यादा निराश करते है। तो वे भी कभी कभी अपने संबंधो को तोड़ देते है। परन्तु प्रेमी परमेश्वर न ही तो बदलता है। और न ही स्वार्थी है।
परमेश्वर ने अपना एकलौता पुत्र प्रेम के कारण यहां तक कि उन पापियां के लिए भी दे दिया जो उसके विरोध में खड़े थे। हमारे प्रभु ने अपना जीवन उन लोगों के लिए दे दिया जिन्हांने उसको ठठों मे उड़ाया और उद्वारकर्ता को कू्रस पर चढा दिया जो उनके लिए आया था। उसने अपने प्रेम के कारण उनके लिए परमेश्वर से क्षमा मांगी। यह सच्चा जीवनदायी प्रेम हैं।
प्रभु में विश्वासी भाईयों मं आत्मिक प्रेम समय गुजरते हुए और भी गहरा और सुन्दर होता चला जाता है। इसमें स्वार्थीपन नही होता परन्तु इस प्रेम के साथ कोई भी अपना जीवन दूसरां के लिए बलिदान कर सकता है।
इसलिए जैसे जैसे आप प्रभु से ज्यादा प्रेम करते है। तो पती पत्नी के बीच आप अपने साथी के हित में ज्यादा रहते है। और आप माता पिता की पूरे हृदय से शारीरिकता और आत्मिकता से सेवा करते है। इस तरह से आप के पास अपने परिवार मे शान्ति और खुशी होती है।
मसीह में प्यारे भाईयों और बहनां, अभी तक मैंने आपको उन शर्तो के विषय मे बताया कि क्यों यीशु मसीह हमारा उद्वारकर्ता है। यीशु एक मनुष्य के समान जन्मा, वह आदम का वंशज नही है। और उसके पास शत्रु के ऊपर विजय प्राप्त करने के लिए सामर्थ है। क्योंकि उसमें कोई पाप नही है। उसने अपने महान प्रेम के साथ जो उसका जीवन बलिदान करने के लिए काफी था, कू्रस पर चढने के द्वारा औरअपना लहू बहाने के द्वारा आपको और मुझे छुटकारा दिया है।
इसका मतलब यह नही हैं कि हर कोई बचाया जाएगा।यहां तक कि यीशु ने उद्वार के मार्ग को खोला है। लेकिन यदि लोग इस पर नही चलते हैं परन्तु नाश के रास्ते पर चलते रहते है। तो उनका अन्त में नाश हो जाएगा।
वे तभी बचाए जा सकते है। जब से उपदेशक के वचनों पर विश्वास करते है। और उद्वार के मार्ग पर आते है। केवल यीशु मसीह पर विश्वास करने के द्वारा ही हम उद्वार के मार्ग पर जा सकते है। तो क्यों ऐसा है। कि केवल यीशु मसीह पर विश्वास करने के द्वारा ही हमारा उद्वार है। इसके विषय में मै आपको अगले सदेंश मे बताऊंगा।
मै आपको संदेश का निष्कर्ष देता हूं।
मसीह में प्यारे भाइयों और बहनो, और श्रोताओं।
यूहन्ना 3ः16 कहता है। क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोईउस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।
मनुष्य के पूरे इतिहास में, यीशु को छोड़ ऐसा कोई भी नही था जो इन चारों शर्तों को पूरा कर सकें।
केवल यीशु ही उद्वारकर्ता बनने के योग्य है। उसने मुझसे और आपसे जो पापी थे इतना प्रेम किया कि जो सजा हमें लेनी थी उसे लेते हुए वह हमारे लिऐ मरा।
परमेश्वर की यीशु के लिए पहले से ही योजना थी यहां तक कि मनुष्यजाति की सृष्टि से पहले, यह इसलिए है। क्योंकि जबकि वह आदम को अपने स्वरुप मे बनाने के बाद ऐसा महान प्रेम और अनुग्रहदेना चाहता था। परन्तु वह जानता था कि आदम उसकी आज्ञा का उल्लंन करेगा और नाश की ओर
जाएगा। परमेश्वर ने आदि से ही आत्मिक क्षेत्र के नियम के अनुसार मनुष्यजाति को बचाने के लिए जो परमेश्वर का प्रेम त्याग कर नाश के लिए नियुक्त थी, पूरी तरह से योग्य उद्वारर्ता को तैयार किया जब समय आ गया। परमेश्वर ने यीशु को इस धरती पर भेजा। और अपने एकलौते पुत्र, पापरहित यीशु को पापियों की ओर से कू्रस की सजा लेने दिया।
परन्तु जो उस पीड़ी मे जीयें है। जहां लोग उद्वारकर्ता यीशु के विषय में बिलकुल नही जानते थे और और प्रभु के बारे में उन्हांने नही सुना था और फिर मर गए, उनका न्याय उनके विवेक के अनुसार होगा जैसा कि रोमियां मे लिखा गया है। उनका विवेक ही व्यवस्था होगी ओर उनका उसी के अनुसार न्यायकिया जाएगा।
वे जो सचमुच भले है और परमेश्वर को खोजते है। यहां तक कि वे परमेश्वर या प्रभु के बारे में नही जानते। वे जानते हैं कि परमेश्वर है। वे महसूस करते है। कि आने वाला एक और जीवन भी है। इसलिए वह जो भले हृदय के है वे भलाई और इमानदारी से अपना जीवन जीते है। वे बिना पाप किये हुए ईमानदारी से जीते है। इसलिए उनका विवेक उनके लिए व्यवस्था बनेगी और यह उनका न्याय करगी। वे जानते है कि उन्हांने जीवन भलाई से या फिर बुराई से जीया है। वे विवेक के न्याय को प्राप्त करेंगे। इसलिए, जो परमेश्वर को स्वीकारते है। और भलाई से जीते है अन्त में उन्हें प्रभु के लहु के द्वारा साफ किया जाएगा और बचाऐ जाऐंगे। जबकि वो जो बुरे थे उनका नाश हो जाएगा। और यदि उन्होंने उद्वारकर्ता यीशु मसीह के विषय में सुनने के बावजूद भी सुसमाचार पर विश्वास या उसे ग्रहण नही किया उनका विवेक के अनुसार न्याय नही होगा। यह पहले से ही भला विवेक नही है। उन्होंने पहले से ही सच्चे परमेश्वर को और उद्वारकर्ता को जाना परन्तु उन्होंने विश्वास करना और ग्रहण करना न चाहा। इसलिए उनके विवेक पहले से ही भले नही है।
हमारे लिए उद्वार का मार्ग खोलने के लिए परमेश्वर ने हमारे जीवन का मूल्य उसके एकलौते पुत्र के जीवन से चुका दिया। जब हम पिता परमेश्वर के और प्रभु के इस प्रेम को अपने हृदय की गहराई में महसूस करते है। तब हम यह भी महसूस करते है। कि हमें इस ससांर में सब को छोड़ सब से ज्यादा प्रेम परमेश्वर और प्रभु से करना चाहिए। एक बार जब हम इस प्रेम को महसूस करते है, हम किसी भी कलेश या परीक्षा में प्रभु को कभी नही छोड़ सकते। यहां तक कि सम्पति और सम्मान के प्रभोलन से भी हम कभी प्रभु को नही छोड़ सकते। जब आप परमेश्वर के इस प्रेम और अनुग्रह को समझ लेते है। वह आपसे और गहराई से प्रेम करेगा और आपको जीवित परमेश्वर के अनुभव आपके जीवन के हर क्षण में कराएगा।
और अन्त के दिन, वह आपको स्वर्ग के राज्य मे ले जाएगा और अनन्त खुशी का आनन्द देगा। मुझे आशा है कि आप निश्चित ही याद रखेंगे कि यीशु मसीह ही हमारा उद्वारकर्ता है। कृप्या पिता परमेश्वर के प्रेम को अपने मन मे रखें जिसने अपना एकलौता पु़त्र पापियों के लिए दे दिया। और प्रभु यीशु मसीह के प्रेम को जिसने अपना जीवन हमारे लिए दिया।
मैं प्रभु के नाम से प्रार्थना करता हूंॅ कि आप जहां कही भी जाओ मसीह की खुशबू फैलाओ और असंख्य आत्माआें का उद्वार की और नेतृत्व करो। आमीन्।