Krus Ka Sandesh 06 – परमेश्वर ने मनुष्यों को क्यों और कैसे बनाया?

परमेश्वर ने मनुष्य को बनाया!
पवित्रशास्त्र (उत्पत्ति1ः27-28 से उत्पत्ति 2ः7)
उत्पत्ति 1ः27-28,
‘‘और परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप में सृजा, अपने ही स्वरूप में परमेश्वर ने उनको सृजा, उसने नर और नारी करके उनकी सृष्टि की। परमेश्वर ने उन्हें आशीष दी, और उनसे कहा ‘‘फूलो-फलो और पृथ्वी में भर जाओ और उसे अपने वश में कर लो। और समुद्र की मछलियों तथा आकाश के पक्षियों और पृथ्वी पर चलने फिरने वाले प्रत्येक जीव-जन्तु पर अधिकार रखो’’
उत्पत्ति 2ः7 और यहोवा परमेश्वर ने आदम को भूमि की मिटृ से रचा और उसके नथनों में जीवन का श्वास फूंका और आदम जीवित प्राणी बन गया।


मसीह में प्यारे भाईयों और बहनों,
‘क्रूस का संदेश‘ का ये चौथा भाग है, और मैं परमेश्वर के बारे में बात करूंगा जिसने मनुष्य को रचा।परमेश्वर का न तो आदि है और न ही अन्त है; वह अनन्त काल के पहले से विद्यमान है जिसे कोई नहीं समझ सकता।
और फिर एक निश्चित समय बिन्दु पर परमेश्वर ने एक योजना बनाई, ये योजना स्वर्गों, पृथ्वी और मानवजाति की रचना की थी। इस योजना को पुरा करने के लिए, परमेश्वर लम्बे समय से एक-एक करके सब वस्तुओं को तैयार करता रहा।
सबसे पहले आत्मिक स्थान से जहां वह रहता था, परमेश्वर ने भौतिक स्थान को अलग कर दिया जहां पर उसे सब वस्तुओं और मनुष्यों की रचना करनी थी। तब मूल रूप मे विद्यमान परमेश्वर ने अपने आप में से परमेश्वर-पुत्र, और परमेश्वर-पवित्रआत्मा, को त्रिएक परमेश्वर बनने के लिए अलग किया और उसी समय से परमेश्वर ने एक निश्चित स्वरूप को धारण कर लिया, जो अब हमारे पास है।
आत्मिक क्षेत्र में उसने आत्मिक प्राणियों को बनाया जैसे स्वर्गीय सेनाएं, स्वर्गदूत और करूब। भौतिक क्षेत्र में उसने पृथ्वी को बनाया, जिस पर मनुष्यों को रहना था। सारी तैयारियों को कर लेने के बाद परमेश्वर ने स्वर्गां और पृथ्वी को पूरे स्तर पर बनाना आरम्भ कर दिया। उत्पत्ति पहला अध्याय संक्षेप में हमें छः दिन की रचना की प्रक्रिया के बारें में बताता है।
पहले दिन उसने उजियाले को बनाया, दूसरे दिन अन्तर का,े और तीसरे दिन उसने भूमि और समुद्र को अलग किया और पौधां को, सब्जियों को और फलों के पेड़ों को बनाया। चौथे दिन उसने सूरज, चाँद और आकाश के तारों को, और पांचवे दिन समुद्र के जीवजन्तु और चिड़ियों को बनाया।
छठवें दिन घरेलू पशुओं और भूमि पर रेंगने वाले जन्तुओं को बनाया। और अन्त में उसने मनुष्य की रचना की। परमेश्वर का भौतिक स्थान को आत्मिक क्षेत्र से अलग करने का कार्य और स्वर्ग और पृथ्वी का बनाने और सब कुछ बनाने का उदेश्य वास्तव में मनुष्य की रचना करने के लिए ही था।
ठीक वैसे ही जैसे माता-पिता बच्चे के पैदा होने से पहले ही उसके कमरे की, और सब वस्तुओं की तैयारी करते हैं। जैसे वे खिलौने और सब चीजों को अपने बच्चे के लिए तैयार करते हैं वैसे ही परमेश्वर ने भी मनुष्यों के लिए उपयुक्त वातावरण बनाया और उनकी रचना की ताकि वे सब वस्तुओं का आनन्द ले सकें।
मानवजाति, पशु, पक्षी और पौधे अचानक नहीं बनें और न ही सूरज, पानी और हवा । परमेश्वर ने मानवजाति के विकास के लिए प्रत्येक वस्तु को उपयुक्त बनाया।
लेकिन क्यों परमेश्वर ने मनुष्यों की रचना की? क्यों आजतक वह अनकों लोगों को पृथ्वी पर रहने देता है? यदि आप इस सवाल का जवाब दे सकते हैं तो आप ये निर्धारित करने योग्य हो जाएंगे कि क्यों आपके जीवन व्यतीत करने का क्या उदेश्य है और कैसे आपको जीना व्यतीत करना चाहिए।
मनुष्यों की वास्तविक कीमत को जानने के लिए सबसे पहले आपको परमेश्वर का उदेश्य जो मानवजाति के रचे जाने के लिए था उसे जानना जरूरी है। आप वास्तविक मे तभी एक अर्थपूर्ण और कीमती जीवन जी सकते हैं जब आप इस दुनिया में पैदा होने के उद्धेश्य के अनुसार जीवन जीएंगे।मैं आशा करता हूं कि आप इस संदेश के द्वारा परमेश्वर के उस उद्देश्य को जानेंगे जिस कारण उसने मनुष्य की रचना की।
मैं प्रभु के नाम में प्रार्थना करता हूं कि जब आपके जीवन का अन्त इस पृथ्वी पर हो उससे पहले आप ये अंगीकार करने योग्य हो जाएं कि ‘‘मैंने वास्तव में एक कीमती जीवन जीया है’’
मसीह में प्यारे भाईयों और बहनों उत्पत्ति 2ः7 कहता है ‘‘तब यहोवा परमेश्वर ने आदम को भूमि की मिटृ से रचा, और उसके नथनों में जीवन का श्वास फूंका और आदम जीवित प्राणी बन गया’’ परमेश्वर ने स्वर्गों और पृथ्वी को अपने वचन द्वारा रचा, लेकिन मनुष्य को उसने स्वंय भूमि की मिटृ से बनाया।
उसने न केवल बाहरी रूप को बनाया बल्कि उसके अन्दर के अंगों को, हड्डियों मांसपेशियों और कोशिकाओं को बिल्कुल ठीक-ठीक बनाया। मनुष्य को बहुत ही उन्नत और जटिल बनाने के बाद उसने उसके नथुनों में जीवन के श्वास को फूंका। और उसी समय से वह जीवित प्राणी बन गया।
लेकिन जब लोग इसे सुनते हैं, कुछ कहते हैं कि वे इस पर विश्वास नहीं कर सकते। वे संदेह करते हैं कि कैसे एक भूमि की मिटृ से बनी प्रतिमा में जीवन आ गया और चलने फिरने लगी। लेकिन यदि आप देखें तो इन्सान भी जो कि स्वंय एक प्राणी मात्र है उसने भी इतना अधिक ज्ञान प्राप्त कर लिया है कि वह रोबोट बना सकता है जो कि मनुष्य के जैसे है और कमप्यूट बना सकता है जो कि मनुष्यों के दिमाग के समान है। वे यहां तक कि मनुष्य के कृत्रिम अन्दरूनी अंगों और त्वचा को भी बना सकता है।
और जब वे मशीन को बनाने के लिए जटिल पुर्जों को एकत्र करते है और उसे बिजली से जोड़ते ह,ैं तो वे ऐसे चलने लगते हैं मानो वे जीवित हो। हमारे परमेश्वर ने भी मनुष्य के शरीर के सब अंगों को बनाया, और फिर जीवन के श्वास को मनुष्य में डाल दिया, और मनुष्य जीवित प्राणी बन गया।
यदि मनुष्य जो केवल प्राणी मात्र है इन चीजों को कर सकता है तो फिर सर्वशक्तिमान परमेश्वर के लिए मनुष्य की रचना करना क्यों कठिन होगा? लकिन क्योंकि मनुष्य ने अपनी सोच को यहां तक सीमित कर लिया है कि वह परमेश्वर के सामर्थ्य में विश्वास ही नहीं कर पाता है।
परमेश्वर आदि से भी पहले से विद्यमान है, लेकिन मनुष्य अपनी मां से पैदा हुआ है। मनुष्य अपना ज्ञान और बुद्धि दूसरे लोगों और प्राणियों से प्राप्त करता है। इसलिए हमें इस सीमित ज्ञान से परमेश्वर को नहीं आकंना चाहिए। जबकि आज भी परमेश्वर हमें सृष्टि के कार्य दिखाता है ताकि हम अपनी मानसिक सोच की सीमाओं और विचारों से बढ़कर सोच सकें।
हमारी कलीसियाआें की बेदारी सभाओं या विदेशी क्रूसेडों में बहुत से लोग परमेश्वर के रचना के कार्य को अनुभव करते हैं। उदाहरण के लिएः- वे लोग जिनकी टागें लकवे या यातायात दुर्घटनाओं के कारण छोटी बड़ी हो गई थी, प्रार्थना प्राप्त करने के बाद उन्होंने टांगों के लम्बाई बराबर होने का अनुभव प्राप्त किया।
छोटी टांगों की ऐसी घटनाओं में टांगे 2 से.मी. से 4 से.मी. यहां तक कि 8 से.मी. तक बढ़ गई। उदाहरण के लिएः- डिकनेस हिक्यूंग सोंग की बाई टांग, जन्म से ही दांई टांग से 4 से.मी. छोटी थी। चलते समय वह लंगड़ाती थी क्योंकि उसकी कमर और कूल्हे की हड्डी मुड़ चुकी थी इसलिए लम्बे समय तक खड़े रहना या चलना उसके लिए कठिन था।
उसने 1997 की बेदारी सभा में प्रार्थना प्राप्त की और उसी समय उसकी छोटी टांग लम्बी हो गई ताकि वह सीधी खड़ी हो सके। उसकी कमर सीधी हो गई जो टांग छोटी होने के कारण मुड़ी हुई थी, कूल्हे की मुड़ी हुई हड्डी भी सामान्य हो गई, और उसकी अपनी लम्बाई भी 3से.मी. बढ़ गई।
छोटी टांग को इस तरह बढ़ने के लिए न केवल हड्डियों बल्कि मांसपेशियों, नसों, त्वचा और सब कोषिकाओं को एक साथ नया होना पड़ता है। और प्रार्थना द्वारा, इन सब अंगों को पूरा करने के लिए परमेश्वर ने रचना के कार्य को किया। अब वह शादीशुदा है और उसके पास दो बच्चे हैं।
सन 2002 में भी एक युनाइटेड क्रूसेड में 30 लाख लोग मरिना बीच चैन्नई भारत में उपस्थित हुए। एक लड़का गनेश सभा में आया। उसके कूल्हे की हड्डी में एक गांठ थी गांठ को हटाने के लिए उसने एक ऑप्रेशन करवाया।
एक धातू की प्लेट को कूल्हे और जांघ की हड्डी को जोड़ने के लिए अन्दर डाला गया। एक्सरे में आप साफ मैटल प्लेट और बोल्टस का,े हड्डी में देख सकते हैं।
ऑप्रेशन के बाद भी गनेश दर्द से पीड़ित था और बैसाखियों के बिना नहीं चल सकता था। लेकिन जब क्रूसेड में उसने प्रार्थना को प्राप्त किया एक दम से उसका सारा दर्द खत्म हो गया, और वह बैसाखियों के बिना चलने और दौड़ने लगा। और अब वह क्रिकेट भी खेल सकता है।
कुछ समय बाद हमने सुना उसकी हड्डियां जिसमें से कुछ भाग को हटाया गया था दोबारा से आ गया है और अब उस धातू की प्लेट और बोल्ट को हटाया जा सकता है।
सृष्टिकर्ता परमेश्वर छोटी टांग को लम्बा कर सकता है। और बिना हड्डी के चला सकता है जबकि ये बहुत महत्वपूर्ण अगं है और उस हड्डी को जो हटाई गई थी दोबारा से बढ़ा सकता है। रचना के इन कार्यों के द्वारा हम निश्चित रूप से विश्वास कर सकते है कि परमेश्वर ने मनुष्यों को रचा है।
मसीह में प्यारे भाईयों और बहनों सृष्टिकर्ता परमेश्वर ने आदम और हवा को बनाने के बाद उन्हें जीवन का बीज दिया ताकि वे सन्तान प्राप्त कर सकें। उसने उन्हें पुरूष को शुक्राणु और स्त्री को अण्डाणु दिया। शुक्राणु और अण्डाणु में माता-पिता की जीवन शक्ति होती है।
इतने छोटे से जीवन के बीज में माता-पिता की शक्ल-सूरत, गुण, बुद्धि और आदतें सब शामिल होती हैं इसीलिए बच्चे माता-पिता जैसे दिखाई देते हैं। कितना हैरान करनेवाली बात है, कि ये सब चीजें एक छोटे से बीज में शामिल है जो कि नंगी आंखों से नजर नहीं आता। परमेश्वर ही है जिसने सन्तान उप्तन्न करने के लिए जीवन के बीज को दिया है वह ही एक है जो बीज के द्वारा गर्भधारण भी करवाता है।
क्योंकि बच्चे इन बीजों के द्वारा पैदा होते है हम उस व्यक्ति पिता कहते है जो शुक्राणु देता है और दूसरे को जो अण्डाणु देती और जन्म देती है ‘मां’ कहते हैं। यदि आप शुक्राणु या अण्डाणु से नही जन्मे है तो आप अपने माता-पिता को माता या पिता नहीं कह सकते।
बच्चा माता-पिता के अण्डणु और शुक्राणु के सयोंजन से बनता है लेकिन गर्भ का धारण होना सवयं परमेश्वर के द्वारा नियंत्रित होता है। मसीह में प्यारे भाईयों और बहनों यदि बच्चे माता-पिता या अपने पूर्वजों जैसे दिखाई देते हैं तो आदम मानवजाति का पूर्वज किसके जैसा दिखाई देता होगा?
उत्पत्ति 1ः27 कहता है ‘‘और परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप में सृजा अपने ही स्वरूप में परमेश्वर ने उसको सृजा उसने नर और नारी करके उनकी सृष्टि की’’।
आदम और हव्वा पवित्र परमेश्वर के स्वरूप पर बनाए गए थे। ये स्वरूप यहां केवल बाहरी रूप को ही नही बताता है। लेकिन मनुष्य के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण उसका आत्मा है जबकि उसका शरीर तो केवल आत्मा को रखने का एक पात्र है।
ये कहने का कि मनुष्य परमेश्वर के स्वरूप में रचा गया है। इसका और भी अधिक महत्वपूर्ण अर्थ ये है कि मनुष्य का आत्मा परमेश्वर के आत्मा से आया है और हमारा आत्मा परमेश्वर के आत्मा के स्वरूप में बनाया गया है।इसलिए हम उसे आत्मा का पिता कहते हैं। ठीक ऐसा ही हमारे शरीर के साथ है। हमारा शरीर शुक्राणु और अण्डे के द्वारा गर्भ में आता है जो कि परमेश्वर द्वारा दिया गया है।
जब पहले पहल आदम रचा गया उसका आत्मा केवल भलाई, ज्योति और सत्य, परिपूर्ण थी बिलकुल परमेश्वर के समान जो कि पवित्र और शुद्ध है। लेकिन जब से आदम ने भले बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल खाया मानवजाति पापों और बुराई से धब्बित हो गई अब आदम वैसा नहीं रहा जैसा पहले जब उसे रचा गया था। उसने पवित्र परमेश्वर के स्वरूप को खो दिया।
इसलिए परमेश्वर में विश्वासी होने के कारण हमें क्या करना है। हमें दोबारा से पवित्र परमेश्वर की खोई हुई स्वरूप को प्राप्त करना है। क्योंकि हम परमेश्वर के स्वरूप को खो चुके थे इसीलिए हमें प्रभु को ग्रहण करना चाहिए, पापो की क्षमा प्राप्त करना चाहिए और परमेश्वर की खोई हुई स्वरूप को दोबारा से प्राप्त करना आरम्भ कर देना चाहिए। ये मसीह जीवन है और मानवजाति का बोया जाना है। हमें परमेश्वर को प्रेम करना चाहिए और परमेश्वर के वचन अनुसार बदला हुआ जीवन जीना चाहिए।
प्यारे श्रोताओं, मानवजाति लम्बे समय से इस सवाल का जवाब जानने की कोशिश कर रही है ‘‘क्यों मैं जीवित हूं’’ हम अपने जीवन के उद्धेश्य का साफ साफ जवाब तभी प्राप्त कर सकते हैं जब हम सृष्टिकर्ता परमेश्वर को स्वीकार कर लेते हैं।
पहले हमें ये जानना और समझना होगा कि क्यों परमेश्वर ने मनुष्यों को बनाया और इस पृथ्वी पर खेती उनकी खेती करता है। यहां पर मैंने विशेष अर्थ रखने वाला शब्द ‘‘खेती’’ प्रयोग किया है ये शब्द बाइबल के दृष्टान्तों में से लिया गया है। बाइबल में अनेकों दृष्टान्त हैं और उनमे से बहुत से भूमि को जोतने बोने खेती करने और फलो और गेहूं की फसल की कटनी के बारे में है।
उदाहरण के लिएः- मत्ती अध्याय 13 में यीशु ने मनुष्य के हृदय की तुलना चार प्रकार की भूमि से की है। उसने बताया कि सत्य को एक फल के रूप उत्पन्न करने का परिमाण इस बात पर निर्भर करता है कि वह परमेश्वर के वचन का बीज किस प्रकार के हृदय में गिरता है
उसने मत्ती अध्याय 3 में गेहूं और भूमि के दृष्टान्त द्वारा परमेश्वर के न्याय के बारे में भी समझाया, और मत्ती अध्याय 13 में जंगली बीज और गेहू के दृष्टान्त द्वारा बताया की आत्माएं गेहूं के समान हैं जो कि स्वर्ग के राज्य के खलिहान में जाएंगी लेकिन वे आत्माएं जो जंगली और भूसी के समान हैं वे नरक की आग में डाली जाएंगी।
बाइबल के इन दृष्टान्तों द्वारा परमेश्वर हमें बताना चाहता है कि इस पृथ्वी पर मनुष्य की रचना करना और मानव इतिहास की अगुवाई करना ‘‘खेती करने’’ के समान है। जैसे किसान भूमि को जोतता और बोता है परमेश्वर भी हमें किसान के समान बोता है।
इसलिए हम ये कह सकते हैं कि परमेश्वर का विधान हम मनुष्यों को रचना का और हमे पृथ्वी पर रहने देने का एक प्रकार से मनुष्यों की खेती का विधान है। तो फिर क्यों परमेश्वर ने आदम को रचा, और क्यों आज तक वह मनुष्यों की खेती कर रहा है?
निर्णायक रूप से मनुष्यों को बोए जाने का उद्धेश्य सच्ची सन्तान को प्राप्त करना है। परमेश्वर सच्ची सन्तान प्राप्त करना चाहता था जिनके साथ वह अपने प्रेम को बांट सके। सृष्टिकर्ता परमेश्वर के पास इश्वरीय सामर्थ्य है, वह न्यायाधीश के रूप में अधिकार रखता है और ईश्वरीय प्राणी होने के कारण उनके पास सख्त न्याय भी है।
लेकिन ठीक उसी समय उसके पास मानवीय स्वभाव भी है जैसे प्रेम, दया भाव, रहम। कई बार वह आनन्दित होता है और खुश होता है कई बार वह उदास होता है और शोकित होता है क्योंकि उसके पास मानवीय स्वभाव है उसने चाहा कि अकेला रहने के बजाए उसके पास कोई हो जिसके साथ वह अपने प्र्रेम को बांट सके इसीलिए उसने मनुष्य को रचने और उसकी खेती करने की योजना बनाई।
हालॉकि, उसे कोई जरूरत नहीं थी कि वह मनुष्यों को बनाए, उसके पास तो अनगिनित स्वर्गदूत और स्वर्गीय सेनाएं थी। वे प्राणी हैं जो बिना शर्त परमेश्वर की आज्ञा मानते थे, वे उपासना करते , प्रशंसा करते और परमेश्वर को महिमा देते थे।
वे ऐसे प्राणी नहीं है जो अलग अलग स्थिति के अनुसार आज्ञा मानने या न मानने का निर्णय लेते हैं बल्कि बिना शर्त के आज्ञा का पालन करते हैं। लेकिन कुछ स्वर्गदूत है जिन्हें परमेश्वर ने मानवीय स्वभाव दिया था अपने आप चुनाव कर सकते थे। उनमें से एक लूसीफर था, और इसीलिए लूसीफर ने आज्ञा मानना नहीं चुना बल्कि विश्वासघात किया।
लेकिन परमेश्वर सच्ची सन्तान चाहता था जो अपनी स्वंय इच्छा से पालन कर सके और अपने हृदय से उसे प्रेम कर सके, इन स्वर्गदूतों के समान नहीं। आइए मैं आपको एक उदाहरण दूं। एक व्यक्ति के पास एक पुत्र है जो कभी कभी उन्हें परेशानी देता है और अपने माता-पिता का हृदय तोड़ देता है।
लेकिन जब उसके माता-पिता उसे डांटते हैं तो बड़े प्यार और खुशी से वह पश्चाताप करता और क्षमा मांगता है और जैसे जैसे वह बड़ा होता जाता है वह अपने माता पिता के हृदय को समझने लगता है। और जितना अधिकवह अपने माता-पिता को समझने लगता है उतना ही अधिक उसका धन्यवाद और प्रेम माता-पिता के अनुग्रह के लिए और बढ़ जाता है।
आपका प्रेम दिन-प्रतिदिन गहरा होता जाना चाहिए लेकिन ज्यादतर ऐसा नहीं होता समय बीतता जाता है लोग और अधिक बुरे होते जाते हैं। पिछले सप्ताह इए प्रकार की एक बुरी खबर थी। एक बेटा था जिसकी माँ को दिमागी बिमारी थी और वह अपने शरीर का निचला भाग इस्तेमाल नहीं कर सकती थी। लेकिन उसका बेटा उसे घर पर अकेला छोड़ कर चला गया।
जब वह एक साल बाद घर पर वापस आया तब तक उसकी मां मर चुकी थी और केवल उसकी हड्डियां रह गई थी कमरा गन्दी बदबू से भरा हुआ था मुझे नहीं मालूम की क्यों लेकिन पड़ोसियों तक को भी इस बारें में मालूम नहीं था बहरहाल बेटा वापस आया और उसने ये सब देखा लेकिन वह दोबारा बिना उसे दफनाए चला गया।
बाद में उसे इस बात के लिए ढूंढा गया और पकड़ा गया। इस तरह की बुरी खबर मैं हर सप्ताह सुनता हूं लेकिन 50 और 60 के दशक में एसी घटनाऐं कई महिनों में, केवल एक बार ही सुनने की मिलती थी। और जब कभी ऐसा होता था तो सब लोग ऐसा जानकर बहुत हैरान होते थे।
लेकिन आज दुनिया पापों से इतनी भरी हुई है कि हम इस प्रकार की खबरें हर सप्ताह सुन सकते हैं। और कितनी ही घटनाएं बिना ध्यान दिये निकल जाती है, जितना अधिक हम अपने माता-पिता को समझने लगते हैं उतना ही अधिक धन्यवाद और प्रेम, माता-पिता के अनुग्रह के लिए और बढ़ जाता है।
आइए सोचें कि घर में एक हाई-टेक रोबोट है।
और इसे मनुष्य रूप में बनाया गया है। यहां तक कि ये बोल भी सकता है और किसी भी आज्ञा का पालन भी कर सकता है। और ये मालिक की मदद के लिए बिना किसी परेशानी के कठिन से कठिन कार्य भी कर सकता है। और ये उस पुत्र की तरह जिसके बारे में मैने बताया है न तो कोई परेशानी देगा और न ही माता-पिता का दिल तोड़ेगा।
तो रोबोट और पुत्र में से किसे आप रखना चाहेंगे? क्या आप कहेंगे कि आप को पुत्र की आवश्यकता नहीं है क्योंकि आपके पास अच्छा व्यवहार करने वाला हाई-टेक रोबोट है?ये बात कोई महत्व नहीं रखती कि रोबोट चाहे कितनी भी आज्ञा का पालन कर ले और मनुष्यों जैसे दिखाई दे। उसकी तुलना हम अपने बच्चों के साथ नहीं कर सकते जिनके साथ हम अपना हृदय बांट सकते हैं।
एक बार मैने मैनाओं को पाला उन्हें हैलो बोलना सिखाया जल्दी ही वे सीख गईं, वे बुरी बातें भी बोलती थी जो उन्होंने पहले सीखी थी वे लोगों से सवाल पुछती थी क्यो? क्यो? कुछ सप्ताह के लिए मैने उन्हें पाला और फिर छोड़ दिया, मैं देखना चाहता था कि कितनी जल्दी वे लोगों की बोली सीख सकती थी और वे जल्दी ही उसे दोहराती थी।
इसलिए, मैं उन्हें बाइबल के पद सिखाना चाहता था लेकिन क्या ये चिड़ियाएं मनुष्यों की बोली समझती थी? क्या वे इसका अर्थ समझती थी? वे तो दिन-भर खाती ही रहती थी? मुझे बताया गया कि हमें हर समय उन्हें कुछ खाना देना होगा। वे पूरे दिन भर खाती रहती थी और पूरे दिन पेट खाली करती रहती थी।
ये तो ठीक था यदि वे अपना पेट दिन में दो या तीन बार खाली करती लेकिन वे तो पूरे दिन ही ऐसा करती रहती थी। सो क्योंकि वे पूरे दिन ऐसा करती थी पूरी मंजिल में इसकी बदबू आती थी। जब कलीसिया के सदस्य मेरे घर मिलने आते थे तो उन्हें अच्छी खुशबु आनी चाहिए थी लेकिन ये अच्छी महक नहीं थी इसीलिए मुझे उनसे छुटकारा चाहिए था।
ये कोई बात नहीं कि रोबोट कितना ही आज्ञा को मानता हो और मनुष्य जैसा दिखाई देता है। उसकी तुलना हम अपने बच्चे से नहीं कर सकते जिनके साथ हम अपना हृदय बांट सकते है।
परमेश्वर इसी प्रकार की सच्ची सन्तान को प्राप्त करना चाहता है जिनके साथ वह अपना हृदय बांट सके। बजाय इसके की स्वर्गीय सेना और स्वर्गदूतों के साथ जिन्हें केवल आज्ञा मानने के लिए बनाया गया है, वह सच्ची संतान चाहता है जो अपनी स्वयं इच्छा से प्यार के साथ परमेश्वर कि आज्ञा का पालन करे। इसलिए उसने मनुष्यों को बनाया।
यदि उसने सच्ची सन्तान को जो उसका हृदय जानते और अपने हृदय की गहराई से उसकी आज्ञा का पालन करते पाया होता तो वह उन्हें स्वर्ग के अनन्त राज्य में ले गया होता और उन्हें वहां केवल आनन्द और खुशी का आनन्द लेने देता।
लेकिन जब आप खेती करते है,ं तो आप केवल गेहूं ही प्राप्त नहीं करेंगे। यद्यपि किसान अपनी पूरी कोशिश करता है, तब भी वहां केवल गेहूं नहीं होता लेकिन कटनी के समय वहां भूसी भी होती है।आप भूसि को नहीं खा सकते और यदि आप भूसी को गेहूं के साथ खलिहान में रखते हैं, तो गेहूं भी खाने लायक नहीं रह जाएगा। इसलिए भूसी को आप केवल खाद के लिए या जलाने के लिए इस्तेमाल करेंगे।
इसी प्रकार मानवजाति को बोने के बाद अन्त में परमेश्वर गेहूं और भूसी को अलग अलग करेगा। मत्ति-3ः12 कहता है, ‘‘उसका सूप उसके हाथ में है वह अपना खलिहान पूर्णतः साफ करेगा, और अपना गेहूं भण्डार में इकट्ठा करेगा। परन्तु भूसी को उस आग में जलाएगा जो बुझने की नहीं’’ यहां न बुझनेवाली आग नरक की आग को दर्शाती है।
परमेश्वर द्वारा ठहराया गया अन्त जब आता है। परमेश्वर मानवजाति की खेती का अन्त करेगा और प्रत्येक का जो इस पृथ्वी पर रहते हैं उसका न्याय करेगा। उस समय जो गेहूं नहीं बल्कि भूसी बने होंगे वे नरक की आग में न्याय द्वारा डाले जाएंगे।
सो वे किस प्रकार के लोग हैं जे गेहूं है और स्वर्गीय राज्य में प्रवेश करते हैं और किस प्रकार के भूसी हैं जो नरक में गिरते हैं। गेहूं वे हैं जिन्होंने यीशु मसीह को ग्रहण किया है, परमेश्वर से प्रेम करते हैं।और परमेश्वर के वचन अनुसार जीवन जीते हैं।
ये लोग वे हैं जिन्होंने परिश्रमपूर्वक बुराई से छुटकारा पाया है, और परमेश्वर के स्वरूप को फिर से प्राप्त किया है। इसके विपरित भूसी वे हैं जिन्होंने यीशु को अपना नीजि उद्धारकर्ता ग्रहण नहीं किया है। ये ही वे लोग हैं जो झूठ और अन्धकार में जीते हैं।
कुछ ऐसे भी हैं जो परमेश्वर में अपने विश्वास का दावा करते हैं लेकिन वास्तव में वे अपने हृदय में विश्वास नहीं करते लेकिन झूठ और अन्धकार में जीते हैं। लेकिन विशेष बात ये है कि प्रत्येक जो कलीसिया में आता है पूरी तरह पका हुआ गेहूं नहीं होता।
यद्यपि वे अपने होठों से दावा करते हैं कि वे प्रभु में विश्वास करते हैं। लेकिन यदि वे परमेश्वर के वचन अनुसार नहीं जीते किन्तु पापों में जीते और संसार को पाने की इच्छा रखते हैं, तो वे गेहूं नहीं हैं बल्कि भूसी हैं।
इसीलिए मत्ति-7ः21 कहता है ‘‘प्रत्येक जो मुझ से ‘हे प्रभु! हे प्रभु! कहता है स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा। परन्तु जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है वही प्रवेश करेगा।
प्यारे भाईयो और बहनों पहला तिमोथी अध्याय-2ः4 कहता है,‘‘परमेश्वर चाहता है कि सब लोग उद्धार प्राप्त करें और सत्य को जानें। परमेश्वर चाहता है कि प्रत्येक उसके हृदय को जाने, गेहूं बने और उद्धार को प्राप्त करें। इसलिए उसने अपने इकलौता पुत्र को क्रूस पर चढ़ाने के लिए दे दिया।
लेकिन फिर भी यदि जिन्होंने प्रभु को अपना उद्धरकर्ता ग्रहण नहीं किया या जो अभी भी पापों में रहते हैं और वे परमेश्वर की सच्ची संतान होने की कीमत को दोबारा प्राप्त नहीं कर सकते जिन्हें परमेश्वर के स्वरूप में रचा गया था। वे परमेश्वर की सच्ची संतान नहीं बन सकते।
क्योंकि वे मनुष्य के कर्तव्य को पूरा नहीं कर सकते, इसलिए वे जानवरो से अलग नहीं हैं, वे कुछ भी नहीं बल्कि भूसी है। परमेश्वर इस भूसी को स्वर्ग के राज्य में उन आत्मओं के साथ जो गेहूं हैं नहीं ला सकता उन्होने अपने मनुष्य होने के कर्तव्य को खो दिया है।
क्या होगा यदि परमेश्वर उन्हें जो नफरत, ईर्ष्या, लड़ाई अैर सब प्रकार की बुराई करते थे स्वर्ग के राज्य में आने दे तो?
तब तो स्वर्ग का राज्य आनन्दित, सुन्दर महिमा युक्त स्थान नहीं रह पाएगा। सो उन आत्माओं का क्या होगा जो स्वर्ग के राज्य में नहीं आ सकते। क्या वे विलुप्त हो जाएंगी? वे आत्माएं भी जो भूसी है, क्योंकि उन्होंने परमेश्वर से जीवन का श्वास प्राप्त किया है,इसलिए वे भी हमेशा विद्यमान रहेंगी, विलुप्त नहीं हो सकती। इसलिए जरूरी है कि उनको हमेशा के लिए रख्ने के लिए स्थान हो।
वह स्थान नरक है। वे आत्माएं जो भूसी बन चुकी हैं वे अपने पापों की मजदूरी के अनुसार अनन्त आग में सजा पाएंगी।
नरक, आग की झील और गन्धक की झील में बंटा हुआ है। एक बार यदि किसी को इनमें से एक झील में डाल दिया, तो उसे वहां हमेशा-हमेशा के लिए दुख उठाना होगा। हमारे प्रभु ने यह भी कहा नरक की आग कभी नहीं बुझेगी।
वहां तो हमेशा-हमेशा के लिए दुःख उठाना होगा। ये सब बातें स्पष्ट और सत्य हैं। हमारे सब सदस्य अपनी आंखों से देख कर इनके गवाह है वे बाइबल में दिये गये चिन्हों और चमत्कारों का अनुभव कर रहे हैं।
सो आप विश्वास कर सकते हैं कि बाइबल सत्य है, और एक जीवन है जो आने वाला है। स्वर्ग और नरक। ‘‘स्वर्ग और नरक’’पुस्तक के द्वारा आप इसके बारें में जान सकते हैं और स्वर्ग और नरक में विश्वास कर सकते हैं।
अभी भी कुछ लोग हैं जो सन्देह करते हैं और विश्वास में जीवन व्यतीत नही करते हैं। मैं उनके लिए बहुत दुःख महसूस करता हूं। मेरा हृदय उनके लिए जलता और पीड़ित होता है।
वे हर सप्ताह अनेकों प्रमाण देखते हैं कैसे वे सन्देह कर सकते हैं? वे प्रत्येक सप्ताह आश्चर्यकर्म और अद्भुत कार्यों को देखते हैं। तो कैसे वे विश्वास नहीं कर सकते? वे उन चिन्हों और अद्भुत कार्यों को देखते हैं जो नबियों और चेलों द्वारा प्रकट किए गए थे। कैसे वे तब भी विश्वास नहीं कर सकते?
मसीह में प्यारे भाईयो और बहनों,अभी तक आपने सुना कि क्यों परमेश्वर ने मनुष्य को पृथ्वी पर बनाया, और क्यों उनकी खेती करता है। क्या अब आप इस सवाल का जवाब दे सकते हैं। क्यों हम जीते हैं?
हम परमेश्वर के उदेश्य के अनुसार हमारी खेती कर गेहूॅ बनने के लिए जीते हैं। सबसे पहले हमें सृष्टिकर्ता परमेश्वर में विश्वास करना चाहिए और फिर यीशु को अपना उद्धारकर्ता ग्रहण करना चाहिए। हमें परमेश्वर के वचन का भी पालन करना चाहिए और अपने आप को पवित्र आत्मा के सामर्थ्य द्वारा पवित्र जीवन जीने के लिए बदलना चाहिए।
यदि आप ऐसा करें तो परमेवर आप को अपनी सच्ची संतान मानेगा। जिनके साथ वह अपना प्रेम बांट सकता है।
प्रमेश्वर आपको तब ही सुरक्षित रखता है जब आप उसकी सच्ची संतान है। वह आपके साथ चलेगा और पवित्र आत्मा कि अग्नी रूपी दीवारों, स्वर्गीय सेना और स्वर्गदूतों और जलती हुई आंखों के साथ आपकी रक्षा करेगा। ताकि शत्रु दुष्ट और शैतान बीच में न आ सकें और न ही कोई बीमारी या घोर विपत्ति प्रभावित कर सके।
यदि आपकी गलती द्वारा कोई यातायात दुर्घटना हो भी जाए तब भी आपका शरीर सुरक्षित रहेगा। और दुनिया भर में हमारी बहुत सी शाखा कलीसियाएं हैं कुछ सदस्यों की यातायात दुर्घटना हुई। लेकिन मैने कभी नहीं सुना की किसी का दिमाग क्षतिग्रस्त हुआ है।
जैसा परमेश्वर ने मुझे बताया है, ‘मैं तेरे झूण्ड को बहुत प्रेम करता हूं’ सो यदि वे अपनी गलती द्वारा जख्मी भी हो जाएं तो भी मैं उनके मस्तिष्क को बचाउंगा। हमारे सदस्य बचाए गये हैं। यदि आपकी हड्डी जख्मी है, तो यह इसलिए है क्यांकि आप पूरे सब्त को नहीं मानते और पूर्ण दशवांश नहीं देते।
हमारे सब सदस्यों को परमेश्वर के वचन को उचित तरीके से समझना चाहिए। सही से इसकी शिक्षा देना और अभ्यास में लाना चाहिए। हमारी कलीसिया का सिर यीशु है। वह हमारा प्रभु है वह हमारा राजा है। वह राजाओं का राजा है और प्रभुओं का प्रभु है।
वह इस्राएल का राजा बनकर आया, उसे राजाओं का राजा कहा गया लेकिन एक और व्यक्ति है जो एक सम्राट के समान है क्या आप जानते हैं सम्राट राजा के उपर होता है। लेकिन कुछ लोग है जो व्यक्ति की सम्राट के समान सेवा करते हैं और ये भी कहते हैं कि यीशु मसीह हमारा राजा है।
सो पिता परमेश्वर चंगा करनेवाला है लेकिन इस व्यक्ति को बहुत सी बिमारियां थी और वह चंगा नहीं हो सकता था। विशेषकर यदि वह एक सम्राट के समान था तो उसे परमेश्वर के साथ बात करनी चाहिए थी और परमेश्वर द्वारा सुरक्षित होना चाहिए था। ताकि कोई बीमारी या कीटाणु उसे प्रभावित न करे। लेकिन जब उसे बीमारी हुई तो वह चंगा नहीं हो सकता था।
आपको बाइबल को सही तरीके से समझना चाहिए। कलीसिया का सिर यीशु है। वह हमारा प्रभु यीशु मसीह है। जब परमेश्वर ने उसे नया नाम दिया। परमेश्वर ने उसे राजाओं का राजा कहा। और कैसे कोई सम्राट के समान हो सकता है?
बाद में वह आपको स्वर्ग के सुन्दर राज्य में ले जाएगा और आपके साथ अनन्त जीवन का आनन्द उठाएगा।
प्यारे भाईयो और बहनों, स्वर्ग और नरक वास्तव में है। परमेश्वर ने मुझे गहरी आत्मिक बातचीत के द्वारा स्वर्ग और नरक के बारें में बहुत कुछ बताया है। और उसने मुझे दर्शन भी दिखाए हैं। उन बातों को हमने किताबों में प्रकाशित किया है और पूरे संसार भर से बहुत सी बिनतियां इन किताबों के लिए आती हैं।
अभीतक इसका अनुवाद अंग्रेजी, स्पैनिश, चाईनिज, जैपनिज, हिन्दी, तामिल और रशियन भाषाओं में हो चुका है और दूसरी भाषाओं में होनेवाला है।
मैं सुनता हूं इन किताबों को पढ़ने वाले अपने विश्वास में मजबूत बन जाते हैं वे अपने गुनगुने विश्वास से पश्चाताप करके अब विश्वास में मजबूत बन गए हैं। यहां तक कि अविश्वासी भी इन किताबों को पढ़ने के बाद प्रभु को ग्रहण करते हैं।
विशेषकर चीन और दूसरे देशों में ये किताबें बहुत से लोगों द्वारा एक के बाद एक पढ़ी जाती हैं क्योंकि वहां बहुत सी किताबें नहीं हैं। सो किताबों के कवर फट जाते हैं जब मैं ऐसी बात सुनता हूं तो मैं बहुत दुःख महसूस करता हूं।
स्वर्ग बहुत ही सुन्दर और आनन्दमय स्थान है। शक्तिमान परमेश्वर ने स्वर्गीय राज्य को बहुत ही अच्छे तरीके से अपने प्यारे बच्चों के लिए सजाया है।
यहां तक की इस पृथ्वी पर सबसे सुन्दर जगह की तुलना स्वर्ग से नहीं की जा सकती। क्योंकि स्वर्गीय राज्य सृष्टिकर्ता परमेश्वर की बुद्धि और सामर्थ्य द्वारा बनाया गया है इसलिए मनुष्य की योग्यता से उसकी तुलना नहीं की जा सकती।
उदाहरण के लिएः- सोना इस पृथ्वी पर बहुत मुल्यवान माना जाता है जो कि स्वर्ग के राज्य के केवल सड़क की एक पटरी भर है। और सभी प्रकार के सुन्दर हीरे-मोती और बिलौर द्वारा घरों को बहुत ही सुन्दर ढंग से सजाया गया है ये उनके लिए लागू होता है जो तीसरे स्वर्ग या उससे उपर जाएंगे।
प्रत्येक प्रकार का रंग और आकर्षण पृथ्वी के हीरों से बिल्कुल अलग है। उदाहरण के लिएः-इस पृथ्वी के बिल्लौर की सुन्दरता स्वर्ग की बिल्लौर की तुलना में बिल्कुल अलग है। जैसे कि हम शीशे की चमक की तुलना हीरे से कर रहे हों।
यहां तक की स्वर्ग में पेड़ों की पत्तियों की जगमगाहट और फूलों की खुशबू का आनन्द बहुत ही शानदार और सुन्दर है मनुष्य की कल्पना से बाहर है। बाइबल में प्रेरित पौलूस ने कहा कि उसने स्वर्गलोग को देखा और स्वर्गलोक स्वर्गीय राज्य के स्थानों में सबसे निचले स्थान का निवास स्थान है।
स्वर्गीय राज्य के केवल निचले निवास स्थान को देखकर उसने ऐसे महान बल और आशा को प्राप्त किया की इतने खतरनाक परीक्षाओं और सतावों में भी वह आनन्दित रहा और धन्यवाद देता रहा और पूरे जीवन भर प्रभु के लिए जीता रहा। मैने आपको पहले ही बताया था कि कैसे खुशी के साथ तलवार द्वारा वह शहीद हो गया।
केवल यदि हम ये जान ले कि स्वर्ग किस प्रकार का स्थान है तो हम पृथ्वी की किसी भी प्रकार की समस्या के उपर धन्यवाद और खुशी के साथ विजयी हो सकते हैं। परमेश्वर इस प्रकार के स्थान में ले जाने के लिए मानवजाति को इस पृथ्वी पर बो रहा है और बहुत ही उत्सुकता के साथ वह सच्ची संतान को प्राप्त करना चाहता है जो परमेश्वर जैसी हों और उसके पास पवित्र और शुद्ध हृदय हो।
मैं आशा करता हूं कि इस संदेश के द्वारा आपने जाना होगा कि क्यों आप इस पृथ्वी पर बोए जा रहे हैं। प्रभु के नाम में मैं प्रार्थना करता हूं कि आप स्वर्ग के राज्य में हमेशा के लिए रहने योग्य हो जाएंगे। और सच्ची संतान के रूप में परमेश्वर का प्रेम बाटेंगे । आमीन

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