विश्वास का परिमाण 7 – विश्वास के विभिन्न स्तर-1
(1 यूहन्ना 2ः12-14) हे बालकों, मैं तुम्हें इसलिये लिखता हूं, कि उसके नाम से तुम्हारे पाप क्षमा हुए।
हे पितरों, मैं तुम्हें इसलिये लिखता हूं, कि जो आदि से है, तुम उसे जानते होः हे जवानों, मैं तुम्हें इसलिये लिखता हूं, कि तुम ने उस दुष्ट पर जय पाई हैः हे लड़कों मैं ने तुम्हें इसलिये लिखा है, कि तुम पिता को जान गए हो। हे पितरों, मैं ने तुम्हें इसलिये लिखा है, कि जो आदि से है तुम उसे जान गए होः हे जवानो, मैं ने तुम्हें इसलिये लिखा है, कि तुम बलवन्त हो, और परमेश्वर का वचन तुम में बना रहता है, और तुम ने उस दुष्ट पर जय पाई है।
(रोमियों 12ः3) क्योंकि मैं उस अनुग्रह के कारण जो मुझ को मिला है, तुम में से हर एक से कहता हूं, कि जैसा समझना चाहिए, उस से बढ़कर कोई भी अपने आप को न समझे पर जैसा परमेश्वर ने हर एक को परिमाण के अनुसार बांट दिया है, वैसा ही सुबुद्धि के साथ अपने को समझे।
मसीह में प्रिय भाइयों और बहनों,
लोग केवल कुछ दशकों तक ही इस धरती पर रहते हैं, वे अच्छा खाना खाने, अच्छे कपड़े पहनने और अच्छे वातावरण में रहने के लिए बहुत मेहनत करते हैं।
लेकिन भले ही वे इतना परिश्रम करें और इस धरती पर इतनी बड़ी संपत्ति और प्रसिद्धि का आनंद लें, लेकिन वे सब चीजे केवल क्षण भर के लिए हैं। हमारे छोटे से जीवन के बाद, हमारी मृत्यु होगी, और हर किसी का न्याय किया जाएगा और वे या तो स्वर्ग या नरक में जायेंगे।
एक बार जब प्रत्येक व्यक्ति के लिए स्वर्ग या नर्क का निर्णय हो जाता है, तो उस निर्णय को हमेशा के लिए नहीं बदला जा सकता है। नरक में कोई कितना भी पछताए, उसे दोबारा उद्धार का कोई मौका नहीं मिलेगा।
साथ ही, जो लोग स्वर्ग के राज्य में जाते हैं, उनके लिए भी उनका निवास स्थान और महिमा अलग होगी।
1 कुरिन्थियों 15ः41 कहता है, सूर्य का तेज और है, चान्द का तेज और है, और तारागणों का तेज और है, (क्योंकि एक तारे से दूसरे तारे के तेज में अन्तर है)।
स्वर्ग के राज्य में, कुछ लोग सूर्य जैसे सबसे शानदार स्थानों में प्रवेश करेंगे, और अन्य लोग चंद्रमा या सितारों की महिमा का आनंद लेंगे।
साथ ही, जैसे-जैसे सितारों की चमक अलग-अलग होती है, वैसे ही उनके पास सितारों की महिमा भी अलग-अलग होगी। साथ ही, एक बार तय हो जाने के बाद यह महिमा हमेशा के लिए नहीं बदलेगी।
भले ही आपको यह कहते हुए पछतावा हो, “मुझे खुद को पवित्र करना चाहिए था और थोड़ा और वफादार होना चाहिए था और एक बेहतर निवास स्थान में प्रवेश करना चाहिए था,“ तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।
स्वर्ग के राज्य में आप किस प्रकार का जीवन जिऐंगे इसका निर्णय इस धरती पर आपके कर्मों के अनुसार किया जाएगा।
आपने परमेश्वर के वचन का कितना अभ्यास किया है, आपने पापों को कितना त्यागा है और अपने हृदय को कितना शुद्ध किया है, और आप परमेश्वर के राज्य के प्रति कितने वफादार रहे हैं, इस आधार पर तय किया जाएगा कि आप किस प्रकार के स्वर्गीय निवास स्थान और महिमा का आनंद लेंगे।
तो फिर, आप अभी अपने विश्वास के साथ किस स्वर्गीय निवास स्थान में प्रवेश कर सकते हैं? अंतिम निर्णय सख्त न्याय द्वारा किया जाएगा, और परमेश्वर बाहरी रूप् को नहीं बल्कि केवल अंदरूनी हृदय को देखते हैं।
वह हर एक के आंतरिक हृदय को मापता है कि उसमें सच्चा आत्मिक विश्वास है या नहीं। लेकिन कुछ लोग अपने विश्वास को ज़्यादा बढ़ा चढ़ा कर मानते हैं। यह उन मामलों में अधिक संभावना है जहां वे लंबे समय से मसीही रहे हैं, उनके पास कई चर्च की उपाधियां हैं, और वे दूसरों को परमेश्वर के वचनों के बारे में बहुत कुछ सिखाते हैं।
मत्ती 7ः22-23 कहता है, उस दिन बहुतेरे मुझ से कहेंगे; हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत अचम्भे के काम नहीं किए? तब मैं उन से खुलकर कह दूंगा कि मैं ने तुम को कभी नहीं जाना, हे कुकर्म करने वालों, मेरे पास से चले जाओ।
ये लोग, जिन्हें प्रभु ने डाँटा था, ग़लत समझा कि उनमें बहुत विश्वास है। आपको इनमें से कोई भी व्यक्ति नहीं होना चाहिए।
आपको लगता है कि आप परमेश्वर का काम कर रहे हैं और आपमें बहुत विश्वास है, लेकिन अगर अंतिम न्याय के समय प्रभु आपसे कहे, “आपका विश्वास इतना कम है,“ तो यह कितना शर्मनाक होगा!
इसलिए, भले ही आप पहले से ही बचाए गए हों, आपको अपने विश्वास के स्तर की जाँच करनी चाहिए और अधिक विश्वास रखने का प्रयास करना चाहिए।
मैं आप सभी प्रिय सदस्यों से आग्रह करता हूं कि इस संदेश के माध्यम से जांच लें कि आपका विश्वास के किस स्तर पर है।
मैं प्रभु के नाम पर प्रार्थना करता हूं कि फिर आपमें जो भी कमी है उसे पूरा करने में सक्षम होंगे और आपके पास पूर्ण विश्वास होगा।
मसीह में प्रिय भाइयों और बहनों, आज का पढ़ा जाने वाला वचन रोमियों 12ः3 कहता है, जैसा परमेश्वर ने हर एक को परिमाण के अनुसार बांट दिया है, वैसा ही सुबुद्धि के साथ अपने को समझे। यह स्पष्ट रूप से हमें बताता है कि प्रत्येक व्यक्ति का विश्वास अलग-अलग होता है।
किसी का विश्वास बहुत बड़ा होता है तो किसी का राई के दाने जितना छोटा। पुराने और नए नियम दोनों में कई स्थान हमें विभिन्न दृष्टांतों के माध्यम से बताते हैं कि विश्वास के विभिन्न परिमाण हैं।
उदाहरण के लिए, 1 यूहन्ना 2ः12-14 हमें आध्यात्मिक विश्वास के स्तरों के बारे में विस्तार से समझाता है, इसकी तुलना मनुष्य के विकास से करता है।
हे बालकों, मैं तुम्हें इसलिये लिखता हूं, कि उसके नाम से तुम्हारे पाप क्षमा हुए। हे पितरों, मैं तुम्हें इसलिये लिखता हूं, कि जो आदि से है, तुम उसे जानते होः हे जवानों, मैं तुम्हें इसलिये लिखता हूं, कि तुम ने उस दुष्ट पर जय पाई हैः हे लड़कों मैं ने तुम्हें इसलिये लिखा है, कि तुम पिता को जान गए हो। हे पितरों, मैं ने तुम्हें इसलिये लिखा है, कि जो आदि से है तुम उसे जान गए होः हे जवानो, मैं ने तुम्हें इसलिये लिखा है, कि तुम बलवन्त हो, और परमेश्वर का वचन तुम में बना रहता है, और तुम ने उस दुष्ट पर जय पाई है।
यहां, ’बालक,’ ’जवान’, और ’पिता’ शारीरिक उम्र के बारे में नहीं हैं, बल्कि आत्मिक विश्वास के परिमाण को संदर्भित करते हैं।
यहाँ तक कि बच्चों में भी आत्मो बहुत अधिक विश्वास हो सकता है। यहां तक कि बड़े हो चुके वयस्कों में भी आत्मा में केवल बच्चों का ही विश्वास हो सकता है।
सबसे पहले, यह बालको के विश्वास के बारे में बात करता है और कहता है, “उसके नाम के कारण तुम्हारे पाप क्षमा हो गए।“
जैसा कि यूहन्ना 1ः12 में कहा गया है, परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उस ने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं।
उद्धार प्राप्त करने का विश्वास बालको के स्तर का विश्वास है और भौतिक शरीर से तुलना करें तो यह नवजात शिशु जैसा है।
वे सत्य को पर्याप्त रूप से नहीं जानते और न ही सत्य के अनुसार जीने का प्रयास करते हैं। लेकिन उन्होंने सुसमाचार सुना और प्रभु को स्वीकार किया, इसलिए उनके पास एक नए विश्वासी का विश्वास है जिसके साथ वे पवित्र आत्मा और उद्धार को प्राप्त कर सकते हैं।
हालाँकि उन्होने पवित्र आत्मा द्वारा फिर जन्मे हैं, वे वचन को अच्छी तरह से नहीं जानते हैं। इसके अलावा, भले ही वे परमेश्वर के कुछ वचन जानते हों, फिर भी उनके पास इसके अनुसार जीने की ताकत नहीं है।
हालाँकि वे परमेश्वर में विश्वास का दावा करते हैं, फिर भी उन्हें संसार से बहुत प्रेम है। यदि परीक्षा आती है, तो उनका गिरना और निरूत्साह होना स्वाभाविक है।
भले ही आप बचाए गए हों और परमेश्वर की संतान बन गए हों, आपको इस स्तर पर नहीं रहना चाहिए।
जैसे बच्चे दिन-ब-दिन बहुत तेजी से बढ़ते हैं, वैसे ही आपको परमेश्वर के वचन को जल्दी से अपने अंदर रखना चाहिए और आपका विश्वास तेजी से बढ़ना चाहिए।
वचन आगे कहता हैं हे बालको तुम पिता को जान गए हो। अभी-अभी बचाए गए छोटे बच्चों का अगला स्तर बालको का स्तर है जो पिता को जान गए हैं।
पिता को जानने का अर्थ यह है कि जो विश्वासी बचाए गए हैं वे जानते हैं कि पिता कौन है, जिसका अर्थ है कि वे जानते हैं कि परमेश्वर उनका पिता हैं।
जिनके पास उद्धार प्राप्त करने का विश्वास है वे जानते हैं कि परमेश्वर उनके पिता हैं, और जब वे प्रार्थना करते हैं, तो वे परमेश्वर को ’पिता’ कहते हैं। साथ ही, वे पिता के वचन को सीखने और उसका पालन करने का प्रयास करते हैं।
लेकिन कुछ लोग कहते हैं कि वे यीशु मसीह और परमेश्वर के बारे में जानते हैं, हालाँकि वे चर्च भी नहीं जाते।
उनका मतलब है कि वे पहले कभी मसीही थे, या किसी और से मसीह धर्म के बारे में सुना था। परन्तु यह सत्य नहीं है कि वे ’पिता’ को जानते हैं।
यदि वे वास्तव में परमेश्वर को जानते हैं, तो वे जानते हैं कि परमेश्वर सृष्टिकर्ता हैं जिसने स्वर्ग और पृथ्वी और हमारी आत्मा का निर्माण किया, और उसने अपना एकमात्र पुत्र भेजा और हमें बचाया।
यदि वे वास्तव में इस तथ्य को जानते हैं, तो उन्हें स्पष्ट रूप से प्रभु को स्वीकार करना होगा और चर्च में जाना होगा।
यह सच नहीं है अगर वे कहते हैं कि वे प्रभु को स्वीकार किए बिना या परमेश्वर के साथ किसी भी रिश्ते के बिना रहते हुए परमेश्वर को जानते हैं।
बालको के विश्वास से, वे न केवल यह जानते हैं कि परमेश्वर उनका पिता है, बल्कि यह भी कि उन्हें परमेश्वर पिता के वचन का पालन करना है।
लेकिन कभी-कभी वे बात मानते हैं और कभी-कभी नहीं मानते। जब वे परीक्षा में पड़ते है और उन्हें प्रलोभित किया जाता है, तो कभी-कभी वे शिकायत करते हैं, कुड़कुड़ाते हैं, या निरूत्साह हो जाते हैं।
इसलिए उनका विश्वास बच्चो का विश्वास है.
तीसरा, जवानो के विश्वास के बारे में यह कहता है, “तुम बलवान हो, और परमेश्वर का वचन तुम में बना रहता है, और तुम ने दुष्ट पर विजय पा ली है।“
’परमेश्वर का वचन तुम में बना रहता है’ का अर्थ है कि वे परमेश्वर को सभी वचनो को मानते हैं और उनका अभ्यास करते हैं। क्योंकि परमेश्वर का वचन उनके हृदय में रहता है, उन्हें स्वर्ग की आशा है, और इसलिए वे संसार की ओर नहीं देखते। यहाँ तक कि जब शत्रु दुष्ट, और शैतान उन्हें प्रलोभित करते हैं, तब भी वे बिना धोखा खाए वचन से विजय प्राप्त कर सकते हैं।
इस स्तर पर, वे अपनी बात पर दृढ़ रहते हैं, इसलिए उनमें किसी भी परीक्षा में डगमगाते नही है।
वे धन्यवाद, स्तुति और बिना रुके प्रार्थना करके परीक्षाओं पर विजय पाते हैं।