Krus Ka Sandesh 03 – परमेश्वर कौन है?
परमेश्वर सृष्टीकर्ता
उत्पति 1ः1‘‘आदि में परमेश्वर ने स्वर्ग और पृथ्वी की रचना की’’
परिचय
मसीह में प्यारे भाईयों और बहनों,
संसार में अनेकों लोग ऐसे हैं जो दावा करते हैं कि वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं। लेकिन उनमें से बहुत से लोग परमेश्वर के प्रेम को महसूस नहीं करते और न ही उन्हें अपने उद्धार का निश्चय होता है।
जब पूछा जाता है ‘‘वह परमेश्वर कौन है जिसमें आप विश्वास करते हैं’’ तो बहुत से लोग इस बारें में विश्वास के साथ कुछ भी जवाब नहीं दे पाते। लेकिन बच्चे को अपने पिता के बारे में मालूम होना चाहिए। वह इस योग्य होना चाहिए कि अपने पिता से बात कर सके और अपना प्रेम उसके साथ बांट सके।
जब आप ये दावा करते हैं कि आप परमेश्वर की सन्तान हैं लेकिन यदि आप पिता परमेश्वर के बारे में नहीं जानते और उसके साथ संगति नहीं करते। तो फिर उद्धार के बारें में निश्चय रखना, और मसीह में पवित्र आत्मा से भरा हुआ जीवन बिताना कठिन है।
क्रूस का संदेश आप को पिता परमेश्वर के बारें में और हमारे लिए उसके प्रावधान के बारे में साफ साफ शिक्षा देता है। मुझे आशा है कि आज के संदेश के द्वारा आप जान सकेंगे की पिता परमेश्वर किस प्रकार से अस्तित्व मे आया।
मसीह में प्यारे भाइयो और बहनों, और श्रोताओं
ये क्रूस के सन्देश का दूसरा सत्र है, और पिछले सन्देश को ज़ारी रखते हुए, आज मैं आपको बताउंगा की परमेश्वर कौन है।
पिछले भाग में मैंने आपको बताया था कि केवल एक ही परमेश्वर है और वह ही केवल सब वस्तुओं का सृष्टिकर्ता है। मैने आपको बताया था कि सृष्टिकर्ता के प्रमाण, हमें साफ साफ उसके प्राणियों में, उसके उन सामर्थ्यी कार्यों में जो किसी भी मनुष्य के द्वारा नहीं किए जा सकते दिखाई देते हैं। और आज इस दूसरे संदेश में हम उस परमेश्वर से मिलेंगे जो‘‘मैं जो हूं सो हूं’’ है।
जब लोग यह सुनते है कि परमेश्वर ने सृष्टि और जो कुछ इसमें हैं सब की रचना की है तो कुछ लोग कहते हैं ‘‘सृष्टिकर्ता परमेश्वर को किसने बनाया है? परमेश्वर कब से विद्यमान है और अस्तित्व में आने से पहले क्या था?
इसके विषय में निर्गमन 3ः14 कहता है ‘‘परमेश्वर ने मूसा से कहा ‘‘मैं जो हूं सो हूं’’ किसी ने भी परमेश्वर को न तो जन्म दिया है और न ही किसी ने उसे रचा है।
परमेश्वर अनंतकाल से भी पहले से विदय्मान है जिसकी गहराई मनुष्य नाप नही सकता है और अनंतकाल तक विद्यमान रहेगा। परन्तु मनुष्य के अनुभव और ज्ञान में, प्रत्येक वस्तु का आदि भी है और अन्त भी है।
उदाहरण के लिए मनुष्यों और जानवरों का आदि और अन्त है। जन्म लेने के साथ इस संसार मे उनका आरम्भ होता है और मृत्यु के साथ उनका अन्त होता है। यहां तक कि कोई पुरानी चीज भी जब वह बनाई गई थी उसका भी आरम्भ हुआ था और सब ऐतिहासिक घटनाओं की भी शुरूआत हुई थी और अन्त भी।
इसलिए लोग हैरान होते हैं कि परमेश्वर कैसे अस्तित्व में आया, ये सोचते हुए कि परमेश्वर का भी किसी न किसी प्रकार का आरम्भ होना चाहिए। लेकिन यदि आप मनुष्य की सोच की सीमा से आगे बढ़कर सोच सकें तो संपूर्ण अस्तित्व रखने वाले सृष्टिकर्ता परमेश्वर के लिए किसी प्रकार की शुरूआत का होना एक अजीब सी बात होगी।
क्योंकि हम इन्सानों का और हमारे ज्ञान का आदि और अन्त है। इसीलिए हम इस प्रकार से गलत समझ बैठते है। इसलिए हमे परमेश्वर के सत्य में अपनी समझ को लागू नही करना चाहिए।
यदि किसी निश्चित समय बिन्दु पर परमेश्वर अस्तित्व में आया तो उस समयबिन्दु से पहले भी कुछ होना चाहिए।
और फिर इसका अर्थ ये हुआ कि जरूर किसी और ने परमेश्वर को बनाया होगा या फिर ये कहेंगे कि परमेश्वर स्वयं अपने आप में संपूर्ण, स्वतंत्र अस्तित्व नहीं रखता।
लेकिन यदि परमेश्वर संपूर्ण और सिद्ध परमेश्वर है तो फिर जाहिर है कि उसका न तो कोई आदि और न ही अन्त हो सकता है उसकी उत्पति अवश्य ही सवंय से अस्तित्व में आई होगी।
भाईयो और बहनो, तो फिर समय के आरम्भ होने से पहले परमेश्वर का स्वरूप किस प्रकार का था और कैसे वह विद्यमान था? यूहन्ना अध्याय एक पद एक कहता है ‘‘आदि में वचन था और वचन परमेश्वर के साथ था और वचन परमेश्वर था’’।
आज के पाठ में ‘‘आदि’’ उस समय को बताता है जब परमेश्वर प्रत्येक वस्तु की रचना करने से पहले अकेले ही विद्यमान था। अनन्त काल से पहले। जिसे मनुष्य जो केवल प्राणी मात्र है अपने सीमित अनुभव और ज्ञान से इसे समझ नहीं सकता।
परमेश्वर के विषय में लिखा है कि ‘‘वचन परमेश्वर है’’जो कि आदि से भी पहले से विद्यमान है।
परमेश्वर का कोई रूप नहीं था लेकिन वह स्वयं वचन के समान अस्तित्व में था और ये एक ‘‘आवाज’’ थी।
पहला यूहन्ना अध्याय 1ः5 कहता है ‘‘वह समाचार जो हमने उससे सुना है और तुमको सुनाते हैं वह यह है कि परमेश्वर ज्योति है और उसमें कुछ भी अन्धकार नहीं। यहां ज्योति और अन्धकार के आत्मिक अर्थ है। यहां ‘‘अन्धकार’’ उन बातों को दर्शाता है जो सत्य नहीं है जैसे अधार्मिकता,अनियमितता, पाप और बुराई।
वहीं दूसरी ओर ‘‘ज्योति’’ हमें उन बातों को दर्शाती है जो सत्य है जैसे प्रेम भलाई और धार्मिकता। और ज्योति में कोई पाप ओर बुराई नहीं है।
परमेश्वर केवल आत्मिक रूप से ही ज्योति नहीं है बल्कि वह वास्तव में भी ज्योति के रूप में अस्तित्व में है। वास्तव में परमेश्वर वचन था, जो अकल्पनीय तौर पर सुदंर और रहस्यपूर्ण ज्योति जिसके अंदर झंकार का सा शब्द था, के रूप में विद्यमान था ।
वह एक साफ, पारदर्शी, मीठी और कोमल, तौभी सामर्थी आवाज के रूप में विद्यमान था। जो पूरे ब्रहाण्ड को एक अत्यंत सुन्दर ज्योति में ढंक सकती थी, जिसकी गहराई मनुष्य नही नाप सकता।
ज्योति और आवाज के रूप में किसी निश्चित बिन्दु पर परमेश्वर ने मानवजाति की रचना का विचार किया कि उसके पास वे लोग हो जिनके साथ वह अपना प्रेम बांट सकें।
मनुष्य रचना के निमित अपनी योजना को पूरा करने के लिए सबसे पहले उसने अपने आप को त्रिएकता में विभाजित किया। पिता परमेश्वर से, पुत्र यीशु जो बाद मे उद्धारकर्ता बना और पवित्र आत्मा जो सहायक है, विभाजित हुए।
इस प्रकार तीन अस्तित्व अलग अलग व्यक्तित्व विद्यमान हुए। लेकिन उनकी उत्पति एक समान है। इसलिए हम कहतें है त्रिएक परमेश्वर।
जब त्रिएकता पिता परमेश्वर से अलग हुई तो उन्होने एक विशेष रूप ले लिया। उत्पत्ति अध्याय 1ः26 इस रूप का वर्णन करता है वहां ऐसा लिखा है ‘‘हम मनुष्य को अपने स्वरूप में, अपनी समानता के अनुसार बनाए’’।
परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप में बनाया। अर्थात त्रिएक परमेश्वर के स्वरूप मेंः पिता, पुत्र और पवित्रआत्मा, सो हम अपने आप को देखकर, देख सकते हैं कि परमेश्वर कैसा दिखाई देता है।
अर्थात त्रिएक परमेश्वर ने ,अपने स्वरूप में मनुष्य की रचना की।
बेशक, स्वरूप केवल बाहरी रूप ही नहीं है बल्कि ये परमेश्वर का हृदय भी है।
लेकिन आदम के पाप में गिर जाने के बाद से मनुष्य का हृदय परमेश्वर के हृदय के समान नहीं रहा। और मनुष्य परमेश्वर से दूर हो गया मैं इसके बारे में पूरी तरह बाद में समझाऊंगा।
मसीह में प्यारे भाईयों और बहनों,मनुष्य जो कि केवल प्राणी है,उसके विपरीत परमेश्वर ‘‘मैं जो हूं सो हूं’’ है वह अनन्तकाल से पहले से विद्यमान है और अनन्त काल के बाद भी मौजूद रहेगा।
वह परमेश्वर जो ‘‘मैं जो हूं सो हूं’’ है वही केवल सच्चा और सिद्ध परमेश्वर है हमें केवल उसकी ही आराधना करनी चाहिए और उससे प्रेम करना चाहिए। कुछ लोग इसे नहीं जानते है। वे उन मूर्तियों की पूजा करते हैं जो मनुष्यों के द्वारा बनाई जाती हैं।
वे इन्हें धातू, लकड़ी या पत्थर से उन्हे बनाते हैं आकार देते हैं और फिर वे उनके आगे दण्डवत करते हैं। यदि आपके बच्चे आपको न पहिचाने और दूसरे लोगों को माता पिता कह कर पुकारे तो आपको कितना दुख होंगा।
इसी तरह जब लोग परमेश्वर को जो उनका सृष्टिकर्ता है उसे नहीं खोजते, किन्तु मूर्तियों की आराधना करते हैं जिन्हें उन्होंने खुद बनाया है। तो क्या इस वजह से हमारे परमेश्वर का दिल नहीं टूटेगा।
इसलिए परमेश्वर मूर्तिपूजा से घृणा करता है निर्गमन अध्याय 20ः3-5 कहता है ‘‘तू मुझे छोड़ दूसरों को ईश्वर करके न मानना।।
4 तू अपने लिये कोई मूर्ति खोदकर न बनाना, न किसी कि प्रतिमा बनाना, जो आकाश में, वा पृथ्वी पर, वा पृथ्वी के जल में है।
5 तू उनको दंडवत् न करना, और न उनकी उपासना करना; क्योंकि मै तेरा परमेश्वर यहोवा जलन रखने वाला ईश्वर हूं, और जो मुझ से बैर रखते है, उनके बेटों, पोतों, और परपोतों को भी पितरों का दंड दिया करता हूं,
यदि आपके दादा या दादी ने मूर्तियों की बहुत पूजा की है तो ये उनकी संन्तान से उनके नाती-पोतों तक और ऐसे ही तीसरी से चौथी पीढ़ी तक चलती आती है।
यहां कहा गया है कि परमेश्वर जलन रखने वाला परमेश्वर है। तो क्या आप ये कहेंगे कि क्या परमेश्वर भी किसी से जलन रखता है आईऐ हम इस तरीके से सोचें। यदि आप के अपने बच्चे आपको माता और पिता न पुकारे लेकिन दूसरे किसी स्त्री और पुरूष को जो आपके पड़ोस में रहते हैं माता या पिता पुकारे तो क्या आपको जलन न होगी? ऐसा तो नहीं है कि आपके बच्चे आपके लिए कुछ न हों।
केवल परमेश्वर जो स्वंय से ही अस्तित्व में आया है वही केवल सच्चा परमेश्वर है और हमें केवल उसकी ही आराधना करनी है यहां हमें एक और बात ध्यान में रखनी चाहिए।
ये सच है कि किसी के लिए भी संम्भव नही था कि वे यीशु के माता-पिता बनते। जो इस पृथ्वी पर एक उद्धारकर्ता बन कर आए। क्योंकि यीशु की उत्पति सृष्टिकर्ता परमेश्वर के समान है। बेशक इस पृथ्वी पर देह में आने के लिए यीशु ने कुंवारी मरियम के शरीर से जन्म लिया लेकिन मत्ति अध्याय 1ः18 में कहता है कि ‘‘ अब यीशु मसीह का जन्म इस प्रकार से हुआ, कि जब उस की माता मरियम की मंगनी यूसुफ के साथ हो गई, तो उन के इकट्ठे होने के पहिले से वह पवित्रा आत्मा की ओर से गर्भवती पाई गई।
यहां कहा गया है ‘‘उसकी माता’’ क्यांकि ये यीशु के चेलों ने लिखा था, ये उन्होंने अपने विचार से कहा, सो यहां कहा गया की उसकी माता मरियम की मंगनी यूसूफ के साथ हुई लेकिन “उन के इकट्ठे होने के पहिले“ यहां पर ये बात महत्वपूर्ण है।
तो उन के इकट्ठे होने के पहिले से वह पवित्रआत्मा की ओर से गर्भवती पाई गई। इसका अर्थ ये हुआ कि यीशु ने यूसूफ या मरियम से जीवन शक्ति का लहू प्राप्त नहीं किया। अर्थात यीशु यूसूफ के शुक्राणु या मरियम के अण्डाणु से गर्भ में नहीं आया।
यहां पर ऐसा इस बात पर प्रकाश डालने के लिए लिखा गया है कि यीशु मरियम या यूसूफ के युग्मक से गर्भ में नहीं आया बल्कि केवल पवित्र आत्मा के द्वारा आया।
यहां कहा गया है “उन के इकट्ठे होने के पहिले“ क्या वे इक्टठे नही हुए क्योकि उनकी तो मंगनी हो चुकी थी? नहीं वे इक्टठे नही हुए थे, उनके इक्टठा होने के पूर्व वह गर्भवती पाई गई। ये साफ साफ हमें बताता है कि मरियम के गर्भधारण की प्रक्रिया में कोई शुक्राणु या अण्डाणु शामिल नहीं था।
वह पिता के शुक्राणु और मां के अण्डाणु के सयोंजन से गर्भ में नही पाया गया था जैसे दूसरे सभी मनुष्य होते है लेकिन पवित्र आत्मा के सामर्थ्य द्वारा।
कुवांरी मरियम तो केवल उद्धारकर्ता को लाने के एक साधन के समान थी। परमेश्वर ने केवल उसके शरीर को उस क्षण के लिए इस्तेमाल किया।
शारीरिक माता-पिता बनने के लिए जरूरी होता है कि पुरूष के शुक्राणु और स्त्री के अण्डाणु के सयोंजन के द्वारा बच्चा गर्भ में आए। लेकिन यीशु पवित्र आत्मा के द्वारा गर्भ में आए थे उसने केवल कोख को ही उधार लिया था। तो फिर मरियम कैसे यीशु की मां हो सकती है? कैसे वह पवित्र मां बन सकती है?
कैसे वह पवित्र मां हो सकती है? ये बिल्कुल समझदारी की बात नहीं लगती। प्यारे श्रोताओं, बांजपन की दशा मे एक तरीका होता है कि वे शुक्राणु और अण्डाणु को निकाल कर गर्भ धारण कराते है।
और उसके लिए यदि वे दूसरी स्त्री की कोख को या किसी दूसरे साधन को उधार लेते हैं तो क्या ये दूसरी मां या वह साधन बच्चे के वास्तविक माता-पिता बन सकते हैं? क्या वह उधार ली गई कोख वास्तिविक मां बन सकती है।
क्यांकि वहां किसी युग्मक का मिलन नहीं हुआ है। और यहा पर उन्होने केवल दूसरे व्यक्ति की कोख को उधार लिया था। तो क्या वह स्थानापन्न मां, या वह साधन वास्तविक माता या पिता बन सकते हैं। कभी नहीं। वे नहीं बन सकते ।
बाइबल हमें साफ साफ बताती है कि यीशु ने मरियम को कभी भी ‘मां’ नहीं कहा।
कृप्या बाइबल को ध्यान से देखें।जब चेलों ने अपने दृष्टिकोण से लिखा तो उन्होंने मरियम को ‘‘उसकी मां’’या ‘‘मां’’लिखा, लेकिन हमारे प्रभु ने मरियम को ‘‘हे नारी’’ कहा। केवल एक बार यीशु ने ‘‘मां’’ शब्द कहा, इसका क्या अर्थ हुआ ये उस समय कहा गया जब वह क्रूस के ऊपर टंगा हुआ था और तब उसने अपने चेले यूहन्ना से कहा ‘‘तेरी मां’’।
अर्थात कुवांरी मरियम के लिए प्रभु सब कुछ था लेकिन अब वह क्रूस के उपर बूरी दशा में मर रहा था। मरियम का दिल कितना दुःखी हो रहा था। और इसलिए यीशु ने अपने प्रिये चेले यूहन्ना से कहा ‘‘तेरी मां’’। उसने यूहन्ना से कहा की वह अपनी मां की तरह मरियम की सेवा करे।
और इसीलिए यूहन्ना अन्त तक उसकी सेवा करता रहा। वह जगह टर्की थी जहां वह मर गई थी। यूहन्ना उसकी सेवा करता रहा। और यहां तक कि उसने उसकी सेवा पटमूस टापू के निर्वासन से वापस लौटाने के बाद भी की थी।
जब हमारे प्रभु ने पानी से दाखरस बनाया उसने मरियम को हे ‘‘नारी’’कहा तो फिर क्यों यीशु ने उसे नारी कहा। वह पुरूष तो नहीं थी, स्त्री थी , और उसे स्त्री कहना ही सबसे उचित तरीका था। क्योंकि यीशु उसे श्रीमति या फिर दादी तो नही कह सकता था तो वह उसे क्या कह कर पुकार सकता था।?
वह उसे बहन भी नही कह सकता था और इसलिए उसे नारी कह कर पुकारना ही सबसे उचित था। इसलिए यीशु ने उसे ‘‘हे नारी’’ कहा। यीशु ने मरियम को कभी मां नहीं कहा।
इसलिए ही हम पाते हैं कि यीशु ने कुवांरी मरियम को कभी मां नहीं कहा। बल्कि उसने हमेशा उसे नारी ही कहा। और ये इसलिए ऐसा था, क्योकि मनुष्य जो केवल एक प्राणी है सृष्टिकर्ता परमेश्वर की मां नहीं बन सकता।
कुछ लोग कुवांरी मरियम की आराधना ऐसे करते है जैसे परमेश्वर की आराधना लेकिन केवल त्रिएक परमेश्वर ही हमारी आराधना का आधार हो सकता है। मैं आशा करता हूं कि आप केवल उस परमेश्वर की आराधना करेंगे और उसे महिमा देंगे जो ‘‘मैं जो हूं सो हूं’’ है।
मित्रों तीसरी बातः-परमेश्वर सर्वज्ञानी और सर्वशक्तिमान है। वह सब कुछ जानता और सर्वशक्तिमान परमेश्वर है। बाइबल में उन लोगों के बहुत से वर्णन हैं जिन्हांने विश्वास के साथ परमेश्वर के सामर्थ्य का अनुभव किया।
लाल समुद्र दो भागों में बांट दिया गया और सूर्य और चद्रमा परमेश्वर के सामर्थ्य द्वारा स्थिर खड़े रहे। स्वर्ग से अग्नि नीचे गिराई गई। और साढ़े तीन साल के भयानक सूखे के बाद,वर्षा होने लगी।
यीशु जिसका मूल स्वंय परमेश्वर है उसने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के ही जैसे कार्यों को कर दिखाया उसने मृतकों को पुनः जीवित किया बिमारियों और दुर्बलताओं से मुक्त किया। उसने तुफान और समुद्र को शान्त किया,और पानी के उपर चल कर दिखाया।
यहां तक की यीशु के पुनुरूत्थान के बाद और जीवित उपर उठाए जाने के बाद भी परमेश्वर की सामर्थ्य चेलों के द्वारा प्रकट हुई। विशेषकर यदि हम पतरस को देखें। लोग बिमारों को इस आशा से पतरस के पास लाते थे कि यदि पतरस की परछाई ही केवल बीमार व्यक्ति पर पड़ जाए तो वे चंगे हो जाऐगे।
लोग प्रेरित पौलूस के शरीर से रूमालों और अंगोछों को छुआ कर बीमारों पर लगाते थे। बिमारियां ठीक हो जाती थीं, बुरी आत्माएं निकल भागती थीं।
परमेश्वर की सामर्थ्य इन प्रेरितों के साथ बहुत बड़ी थी यहां तक की परमेश्वर के कार्य उनकी परछाईयों और रूमालों के द्वारा होते थे।
ऐसा आज भी आप वास्तव में देख रहे हैं। हमारे अनेकों कार्यकर्ता और सदस्य,रूमालों द्वारा बहुत से प्राणों को चंगा कर रहे हैं। और पूरे संसार भर में रूमाल की प्रार्थना सभायें आयोजित हो रही है आप उन कामो को आज वास्विकता मे होता देख रहें है जो 2000 साल पहले हुये थे।
कुछ कहते हैं ‘‘कैसे इस प्रकार के शक्तिशाली कार्य एक मनुष्य के द्वारा हो सकते हैं? ऐसे कार्य तो केवल 2000 साल पहले यीशु के समय मे हुए थे! मनुष्य कैसे ऐसे सामर्थ्य को दिखा सकता है? ये समझ नहीं आता।
इसलिए यदि कोई ऐसे कार्यों को प्रदर्शित करता है तो लोग कहते हैं वह मनुष्य विधर्मी है, जैसे कि वह झूठ बोल रहा हो या कुछ और हो,लेकिन क्या प्रेरित पौलूस मनुष्य नहीं था? क्या उसने यीशु को व्यक्तिगत तौर पर देखा था? नहीं!
वह तो प्रभु यीशु से, केवल उसके पुनुरूत्थान के बाद मिला था। यीशु से स्वयं उसकी भेंट जब यीशु शरीर में थे नहीं हुई थी। वह तो केवल उसका आत्मा था। पौलूस ने तो केवल आत्मा की आवाज को सुना था। तौ भी उसने ऐसे अद्भुत कार्यों को कर दिखाया।
और आज 2000 साल बीत चुके हैं लोगों ने ज्ञान के उपर ज्ञान इकट्ठा कर लिया है सारा संसार पापों से भरा हुआ है। इसीलिए जब तक वे परमेश्वर के सामर्थ्यी चिन्हों और अद्भुत कार्यों को देख न लें कैसे वे सच्चा विश्वास प्राप्त कर पाएंगे।
इब्रानियों अध्याय 13 :8 पद कहता है ‘‘यीशु मसीह, कल, आज और युगानुयुग एक सा है।
चाहे 2000 साल पहले या 1000 साल पहले वह वैसे ही कार्य करता है।
जैसे बताया गया कि परमेश्वर की सामर्थ्य प्रभु यीशु के द्वारा, न केवल उस समय प्रकट हुई था, बल्कि आज भी प्रकट हो होती है।
और इस कलीसिया की स्थापना के समय से ही ऐसे शक्तिशाली कार्य लगातार इस कलीसिया में हो रहे हैं।
हर सप्ताह दुनिया भर के कोने-कोने से हम ला-इलाज बिमारियां से चंगे हुए लोगों की गवाहियों को प्राप्त करते हैं। इसके अतिरिक्त वे लोग भी जो आमने सामने होकर मेरी प्रार्थना प्राप्त नहीं कर पाते, परन्तु जो केवल इन्टरनेट या टी.वी पर प्रार्थना प्राप्त करते हैं वे भी परमेश्वर के अद्भुत कार्यों का अनुभव करते हैं।
बहुत से एसे जोड़े हैं जो शादी के कई सालों के बाद भी, संतान प्राप्त नही कर पाए थे, लेकिन प्रार्थना प्राप्त करने के बाद उन्होने संतान प्राप्ती की आशीष प्राप्त की।
और ये जोड़े केवल कोरिया में ही नहीं है लेकिन दूसरे अन्य देशों में भी हैं। जो लोग दूसरे देशों में हैं वे अपने प्रार्थना निवेदन और फोटो,फैक्स या ई-मेल के द्वारा भेजते हैं। और जब मैं अपने हाथों को उनकी तस्वीरों पर रखकर प्रार्थना करता हूं तो परमेश्वर की सामर्थ्य समय और स्थान की दूरी की सीमा को लांघ कर प्रकट होती है।
उन लोगों में से एक पाकिस्तानी लड़की सिंथिया आंतों के रोग की बीमारी से मर रही थी।
वह इतनी कमजोर हो चुकी थी की उसका आप्रेशन भी नहीं किया जा सकता था, डॉक्टर्स उसके जीने की आशा छोड़ चुके थे। लेकिन उसकी बड़ी बहन जो उस समय कोरिया में थी, सिंथिंया की फोटो को मेरे पास लाई और मेरी प्रार्थना प्राप्त की।
जिस क्षण से मैंने फोटो पर प्रार्थना की सिंथिंया की सेहत ठीक होना शुरू हो गई और जल्दी ही उसे अस्पताल से छुटटी मिल गई। जब मैं बेदारी सभाओं या बाहर के देशों में क्रूसेड करता हूं तो प्रत्येक के लिए मैं निजी रूप से प्रार्थना नहीं कर सकता मैं केवल पुलपिट से ही सबके लिए प्रार्थना करता हूं।
और केवल उस प्रार्थना के द्वारा असंख्य लोग तुरन्त चंगे हुए हैं और परमेश्वर को महिमा दी हैं।
Amen