Krus Ka Sandesh-26 – जल और आत्मा से नए सिरे से जन्म

क्रूस का संदेश (23)
रास्ता)

(यूहन्ना 3ः1-8)
फरीसियों में से नीकुदेमुस नाम एक मनुष्य था, जो यहूदियों का सरदार था।
2 उस ने रात को यीशु के पास आकर उस से कहा, हे रब्बी, हम जानते हैं, कि तू परमेश्वर की आरे से गुरू हो कर आया है; क्योंकि कोई इन चिन्हों को जो तू दिखाता है, यदि परमेश्वर उसके साथ न हो, तो नहीं दिखा सकता।
3 यीशु ने उस को उत्तर दिया; कि मैं तुझ से सच सच कहता हूं, यदि कोई नये सिरे से न जन्मे तो परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकता।
4 नीकुदेमुस ने उस से कहा, मनुष्य जब बूढ़ा हो गया, तो क्योंकर जन्म ले सकता है? क्या वह अपनी माता के गर्भ में दुसरी बार प्रवेश करके जन्म ले सकता है?
5 यीशु ने उत्तर दिया, कि मैं तुझ से सच सच कहता हूं; जब तक कोई मनुष्य जल और आत्मा से न जन्मे तो वह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता।
6 क्योंकि जो शरीर से जन्मा है, वह शरीर है; और जो आत्मा से जन्मा है, वह आत्मा है।
7 अचम्भा न कर, कि मैं ने तुझ से कहा; कि तुम्हें नये सिरे से जन्म लेना अवश्य है।
8 हवा जिधर चाहती है उधर चलती है, और तू उसका शब्द सुनता है, परन्तु नहीं जानता, कि वह कहां से आती और किधर को जाती है? जो कोई आत्मा से जन्मा है वह ऐसा ही है।

मसीह में प्रिय भाइयों और बहनों,
संदेशों को ध्यान से सुनने के लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूं। क्रूस का संदेश मसीहो के लिए सबसे बुनियादी बातें और सार हैं।

मुझे आशा है कि आप उन संदेशों को पूरी तरह से समझेंगे जो आपने सुने हैं और दृढ़ विश्वास रखे, ताकि आप सभी लोगों को स्पष्ट रूप से क्रूस के उद्धार के प्रावधान का प्रचार कर सकें।

साथ ही, मैं आपसे आग्रह करता हूं कि आप नए लोगो को “क्रूस का संदेश“ सुनने के लिए अगुवाई करें और इस संदेश श्रृंखला की सामग्री की अच्छी समझ प्राप्त करें।

इन संदेशो को पूरी तरह से समझकर, आप यीशु मसीह पर विश्वास कर सकते हैं और पवित्र आत्मा के कार्यों का अनुभव करते हुए एक सुखद मसीह जीवन जी सकते हैं।

मैं प्रभु के नाम से प्रार्थना करता हूं कि परमेश्वर के वचन का प्रमाण जीवित और सक्रिय हो ताकि आप जीवन और अनुग्रह से भर जाएं।

मसीह में प्रिय भाइयों और बहनों, आज के वचन में वह दृश्य है जहाँ यहूदियों का शासक निकुदेमुस यीशु के पास आया और आत्मिक विषयों पर बातचीत की। नीकुदेमुस एक शासक था, और एक फरीसी होने के नाते, वह एक शिक्षक भी था जो व्यवस्था को अच्छी तरह से जानता था।

यीशु अक्सर फरीसियों को कड़ी फटकार लगाते थे। उन्होंने सोचा कि वे बहुत अच्छी तरह से परमेश्वर की सेवा कर रहे हैं, लेकिन वास्तव में उनका हृदय सत्य का अनुसरण नहीं कर रहा था, और वे परमेश्वर से बहुत दूर थे।

उन्होंने यीशु की शिक्षाओं पर विश्वास नहीं किया, बल्कि उन्होंने उसका विरोध किया और उसे मारने की कोशिश की। फरीसियों सहित यहूदियों के शासक यीशु पर विश्वास करने वालों को आराधनालय से बाहर करने के लिए सहमत हुए। इसका मतलब है कि वे इन लोगों को बहिष्कृत कर देंगे।

लेकिन नीकुदेमुस दूसरे फरीसियों से अलग था। वह परमेश्वर के वचन को जानता था और उसकी व्यवस्था का पालन करता था, लेकिन केवल बाहरी रूप से पवित्र होने का ढोंग करने से संतुष्ट नहीं था। उसे सत्य की प्यास थी।

जब उसने यीशु के बारे में सुना था, तो उसे एक गहरी आशा थी कि यीशु उसकी प्यास बुझा पाएगा और रात को उसके पास आया। वह रात में आया क्योंकि उसे अभी तक दिन के समय अन्य लोगों के सामने यीशु के पास साहसपूर्वक आने का विश्वास नहीं था।

यदि हम उसके बारे में बाद के अभिलेखों को देखते हैं, तो हम देख सकते हैं कि उसने अंततः उद्धार प्राप्त किया। उदाहरण के लिए, यूहन्ना 7ः50-51 में, हम देख सकते हैं कि उसने क्रोधित फरीसियों के सामने यीशु के लिए बात की।

यह कहता है, नीकुदेमुस ने, (जो पहिले उसके पास आया था और उन में से एक था), उन से कहा।
क्या हमारी व्यवस्था किसी व्यक्ति को जब तक पहिले उस की सुनकर जान न ले, कि वह क्या करता है; दोषी ठहराती है?

चूंकि यीशु के वचन और कर्म अधार्मिक नहीं थे, नीकुदेमुस उन फरीसियों की गलतियों को इंगित करने का प्रयास कर रहा था जो यीशु को हानि पहुँचाने का प्रयास कर रहे थे। यह ऐसा कुछ था जो करना आसान नहीं था।
यह एक इस्लामी देश में सरकारी अधिकारी का यीशु मसीह के पक्ष में बोलने के समान है जो मसीही धर्म को सख्ती से प्रतिबंधित करता है, या एक हिंदू देश में जो मसीही धर्म के लिए सार्वजनिक रूप से बोलने पर रोक लगाता है। निकुदेमुस अपना पद और अपना जीवन भी खो सकता था, लेकिन फिर भी वह यीशु के लिए बोला।

इसके अलावा, यीशु के क्रूस पर मरने के बाद, यूहन्ना 19ः39 कहता है, “ निकुदेमुस भी जो पहिले यीशु के पास रात को गया था पचास सेर के लगभग मिला हुआ गन्धरस और एलवा ले आया।

यीशु के मरने के बाद भी, नीकुदेमुस पापी के पद पर होते हुए भी उसकी सेवा करने आया। उसके कर्मों को देखकर हम अनुमान लगा सकते हैं कि उसे उद्धार प्राप्त हो गया था।

आज के वचन में वह दृश्य है जहाँ निकुदेमुस सच्चाई जानने से पहले यीशु से मिला, और पहली बार उससे बात की। उस ने कहा, हे रब्बी, हम जानते हैं, कि तू परमेश्वर की ओर से गुरू होकर आया है; क्योंकि कोई इन चिन्हों को जो तू दिखाता है, तब तक नहीं दिखा सकता जब तक परमेश्वर उसके साथ न हो।

क्योंकि निकुदेमुस का हृदय अच्छा था, वह यीशु जो कर रहा था उसके बारे में संदेह या बहस नहीं करना चाहता था, बल्कि उसने पहले अपने विश्वास को स्वीकार किया। उसने कबूल किया कि यीशु परमेश्वर से आया था।

यीशु उसके हृदय की प्यास को जानता था और उसने कुछ ऐसा उत्तर दिया जो नीकुदेमुस ने अभी तक नहीं पूछा था। उसने कहा, मैं तुझ से सच सच कहता हूं, यदि कोई नये सिरे से न जन्मे तो परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकता

हम सिर्फ इसलिए स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते क्योंकि हमारे पास ज्ञान और धन है। न ही हम केवल परमेश्वर के वचन को जानने और लंबे समय तक चर्च में जाने से उद्धार प्राप्त कर सकते हैं।

यद्यपि हम चर्च में जाते हैं और चर्च के कार्यो को करते हैं, ये किसी काम के नहीं है। हम तब तक स्वर्गीय राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते जब तक कि हमारा नये सिरे से जन्म न हो। लेकिन नीकुदेमुस यीशु की बात नहीं समझ सका।

उसने कहा, मनुष्य जब बूढ़ा हो गया, तो क्योंकर जन्म ले सकता है? नीकुदेमुस इसकी कल्पना भी नहीं कर सकता था।
जब आप पहली बार चर्च आए और सुना कि आपको नये सिरे से जन्म लेना है, तो आप शायद इसका मतलब नहीं समझ पाए होंगे।

आप यह भी महसूस कर सकते हैं कि जब तक आपकी आत्मिक आंखें और कान नहीं खुल जाते, तब तक न केवल इन आत्मिक वचनो को समझना मुश्किल है, बल्कि दूसरे वचनो के आत्मिक अर्थ को भी समझना मुश्किल है।

लेकिन अगर आप लगातार सीखने और समझने की कोशिश करते हैं और अगर आप परमेश्वर का अनुग्रह मांगते हैं, तो एक निश्चित समय पर परमेश्वर का अनुग्रह आप पर उतरेगा।

जो वचन आपको कठिन लगते थे उन्हें आप समझ पाएंगे और वे वचन रोचक और भावपूर्ण दोनों बन जाएंगे। यह केवल नए-विश्वासियों के लिए ही नहीं बल्कि सभी विश्वासियों के लिए है

जैसा कि मैंने पहले कहा था, आज की आयत में, नीकुदेमुस यहूदियों का एक शासक और एक शिक्षक है इसलिए वह व्यवस्था और परमेश्वर के वचन को अच्छी तरह से जानता था। लेकिन वह तब भी नहीं समझ सका जब यीशु किसी ऐसी बात के संदर्भ में बोल रहा था जो आत्मिक थी।

आज भी ऐसा ही है। चर्च के सदस्य जो लंबे समय से उपस्थित हैं, जिनके पास चर्च की उपाधि हैं, और यहां तक कि पास्टरो के बीच भी, अगर उन्होंने आत्मिक समझ हासिल नहीं की है, जैसा कि नीकुदेमुस के साथ हुआ था, तो वे समझ नहीं सकते हैं।

भले ही वे थीओलोजी और सेवकाई में डॉक्टरेट हो, और बाइबल के बारे में बहुत ज्ञान हो, वे वचन के आत्मिक अर्थ के बिना नहीं समझ सकते।

वे परमेश्वर के कार्यों का अनुभव करने या झुंड को आत्मिक रूप से बढ़ाने में सक्षम नहीं हैं, इसलिए उनके चर्च विकसित नहीं हो पा रहे हैं।

यही कारण है कि प्रेरित पौलुस ने भी, जिसके पास इतना बड़ा ज्ञान था, 1 कुरिन्थियों 2ः1-2 में कहा, और हे भाइयों, जब मैं परमेश्वर का भेद सुनाता हुआ तुम्हारे पास आया, तो वचन या ज्ञान की उत्तमता के साथ नहीं आया। क्योंकि मैं ने यह ठान लिया था, कि तुम्हारे बीच यीशु मसीह, वरन क्रूस पर चढ़ाए हुए मसीह को छोड़ और किसी बात को न जानूं।
जैसा कि 1 कुरिन्थियों 4ः20 में कहा गया है, क्योंकि परमेश्वर का राज्य बातों में नहीं, परन्तु सामर्थ में है।“ हम केवल पवित्र आत्मा की प्रेरणा और परमेश्वर की सामर्थ के द्वारा आत्मिक भेदों को जान सकते हैं और परमेश्वर के राज्य को भी पूरा कर सकते हैं।

परमेश्वर के राज्य को अधिक व्यापक रूप से और अधिक स्पष्ट रूप से परमेश्वर की इच्छा को समझने के लिए, हमें क्रूस के रहस्य को और अधिक गहराई से समझना होगा और अपने मन में आत्मिक रूप से परमेश्वर के वचन को समझना होगा।

आयत पर वापस चले, नीकुदेमुस, जो समझ नहीं पाया कि यीशु ने क्या कहा, उसने उससे फिर से पूछा। “ मनुष्य जब बूढ़ा हो गया, तो क्योंकर जन्म ले सकता है? क्या वह अपनी माता के गर्भ में दुसरी बार प्रवेश करके जन्म ले सकता है?
यीशु ने उत्तर दिया, कि मैं तुझ से सच सच कहता हूं; जब तक कोई मनुष्य जल और आत्मा से न जन्मे तो वह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता। क्योंकि जो शरीर से जन्मा है, वह शरीर है; और जो आत्मा से जन्मा है, वह आत्मा है। अचम्भा न कर, कि मैं ने तुझ से कहा; कि तुम्हें नये सिरे से जन्म लेना अवश्य है। हवा जिधर चाहती है उधर चलती है, और तू उसका शब्द सुनता है, परन्तु नहीं जानता, कि वह कहां से आती और किधर को जाती है? जो कोई आत्मा से जन्मा है वह ऐसा ही है।
यीशु जिस बारे में बात कर रहा हैं वह उस शरीर के बारे में नहीं है जो नाश हो जाएगा। यह संदर्भ में आत्मिक है।

वह कह रहा था कि, मनुष्य को स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लिए, उसकी आत्मा जो अदृश्य है, को फिर से जन्म लेना चाहिए, न कि दृश्य शरीर को।

पहले मनुष्य आदम को एक जीवित आत्मा के रूप में बनाया गया था। लेकिन पाप में गिरने के कारण उसकी आत्मा मर गई। अब, वह एक जीवित आत्मा नहीं बल्कि शरीरिक मनुष्य था।

जैसा कि कहा गया है ’जो शरीर से जन्मा है वह शरीर है,’ आदम के वंशज, जो शरीर के मनुष्य बन गए, वे शरीर में ही पैदा हुए थे। सारी मानवजाति शारीरिक मनुष्य बन गई जिनकी आत्मा मरी हुई थी। शारीरिक मनुष्य स्वर्गीय राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते। उन्हें मृत्यु के मार्ग, नरक में गिरना पड़ता है।

मनुष्य के स्वर्गिक राज्य में प्रवेश करने के लिए इस मृतक आत्मा को नया जन्म लेना आवश्यक है, और यह जल और आत्मा द्वारा किया जाता है।

यीशु ने इन आत्मिक बातों के विषय में कहा, “हवा जिधर चाहती है उधर चलती है, और तू उसका शब्द सुनता है, परन्तु नहीं जानता, कि वह कहां से आती है और किधर को जाती है; जो कोई आत्मा से जन्मा है वह ऐसा ही हैं।
हम हवा की आवाज सुन सकते हैं लेकिन हम इसे देख नहीं सकते। हम यह पता नहीं लगा सकते कि हवा कहाँ से शुरू होती है और कहाँ रुक जाती है।

हवा की तरह जिसे हम देख नहीं सकते, हम अपने शरीर की सीमा के भीतर आत्मिक बातों को नहीं समझ सकते।

विज्ञान के विकास के बाद भी हम इस दुनिया की हर चीज को नहीं समझ सकते हैं। हम कह सकते हैं कि हम आज आधुनिक विज्ञान से हवाओं के बारे में जानते हैं, लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका जैसा देश भी हाल के तूफान की आपदा को नहीं रोक सका।

वास्तव में, जैसे-जैसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी अधिक विकसित होती है, हम केवल और अधिक स्पष्ट रूप से महसूस कर सकते हैं कि सृष्टिकर्ता परमेश्वर वास्तव में सर्वशक्तिमान है, और मनुष्यों का ज्ञान और क्षमता की स्पष्ट और निश्चित सीमाएँ हैं।

इसलिए कई वैज्ञानिक वैज्ञानिक तरीके से यह साबित करने की कोशिश करते हैं कि परमेश्वर की बात सच है।

हम हवा की गति को भी नहीं समझ सकते हैं, तो हम अपनी भौतिक सीमाओं के भीतर स्वर्ग की उन चीज़ों को कैसे समझ सकते हैं जो आत्मिक क्षेत्र से संबंधित हैं?

हम केवल पवित्र आत्मा की सामर्थ से ही परमेश्वर के कार्यों को समझ और अनुभव कर सकते हैं।

मसीह में प्रिय भाइयों और बहनों, फिर, जल और आत्मा से नया जन्म लेने का क्या अर्थ है? आइए पहले जल को देखें।

यहाँ, ’जल’ वही जल है जैसा कि यूहन्ना 4ः14 में कहा गया है, एक जल का सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा।
जैसा कहा गया है, परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूंगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगाः वरन जो जल मैं उसे दूंगा, वह उस में एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा। अनन्त जीवन का यह जल पीकर, मनुष्य फिर से जन्म लेते है
तो फिर, यह ’अनन्त जीवन के लिये उमड़नेवाला जल का सोता’ क्या है?

पिछले सत्र में, मैंने आपसे कहा था कि यदि हम मनुष्य के पुत्र का मांस नहीं खाते और उसका लहू नहीं पीते तो हमारे पास अनन्त जीवन नहीं है ।

मनुष्य के पुत्र का मांस खाना परमेश्वर के वचन को अपने हृदय में रखना है और उसका लहू पीना विश्वास के साथ परमेश्वर के वचन पर चलना है।

उसी तरह, मनुष्य के पुत्र का मांस खाना और उसका लहू पीना, अर्थात् स्वयं परमेश्वर का वचन, मनुष्यों को अनन्त जीवन देने वाला जल बन जाता है।

जल गंदगी और दाग-धब्बों को धो देता है और हर चीज को जीवन देता है। आत्मिक रूप से भी, जल, अर्थात् परमेश्वर का वचन, पापों के दाग को धोता है और हमें अनन्त जीवन देता है।

अगर आपके हृदय में ईर्ष्या, बैर, घृणा और क्रोध है तो यह कितना गंदा है?

बाद में जब हम परमेश्वर के सामने खड़े होंगे, जिन्होंने पापों की मलिनता को दूर नहीं किया, वे इतना लज्जित होंगे कि वे अपना चेहरा ऊपर नहीं उठा सकेंगे।

परन्तु यदि परमेश्वर का वचन हमारे हृदय में आ जाए, तो पापों का मैल धुल जाएगा।

उदाहरण के लिए, जैसा कि पिछले सत्र में बताया गया है, यदि हमारे हृदय में आत्मिक प्रेम है, तो घृणा, ईर्ष्या और बैर, और क्रोध और स्वयं का लाभ चाहले वाले दाग धुल जाते हैं।

जब हम अपने हृदय के पापों और बुराई को धो देते हैं, हम फिर से जन्म ले सकते हैं और उद्धार प्राप्त कर सकते हैं।

इसलिए, 1 पतरस 3ः21 भी कहता है, “ और उसी पानी का दृष्टान्त भी, अर्थात बपतिस्मा, यीशु मसीह के जी उठने के द्वारा, अब तुम्हें बचाता है; ( उस से शरीर के मैल को दूर करने का अर्थ नहीं है, परन्तु शुद्ध विवेक से परमेश्वर के वश में हो जाने का अर्थ है )।

परमेश्वर का वचन स्वयं सत्य है और यीशु मसीह जो कि वचन है जो इस पृथ्वी पर देह में आया था।

यीशु, जो वचन है, पुनरूत्थानित हुआ और उद्धारकर्ता बन गया, उसके बाद से पुराने नियम और नए नियम दोनों में सभी वचन सच होने के लिए पूरे हुए।

इन वचनों पर विश्वास करने से, और जब हम उन्हें अपने मन में रखते हैं और उनका अभ्यास करते हैं, तो हम अधिक धर्मी बनते हैं। अर्थात्, परमेश्वर का वचन मनुष्यों को जीवन देता है और उन्हें धर्मी मनुष्य बनाता है।

जो वास्तव में परमेश्वर के पुत्र पर विश्वास करते हैं, जो कि वचन है, अपने उद्धारकर्ता के रूप में स्वाभाविक रूप से विश्वास करेंगे और बाइबल की 66 पुस्तकों में सभी आज्ञाओं का पालन करेंगे।

जब परमेश्वर का वचन आप में है और आपके हृदयों को धोता है, तो यह इस बात का प्रमाण है कि आप बचाए गए हैं। पानी का बपतिस्मा परमेश्वर के वचन से हमारे हृदय को धोने का प्रतीक है।

आगे, आइए हम आत्मा को देखें। यह आत्मा परमेश्वर का पवित्र आत्मा है जो परमेश्वर के बचाए गए बच्चों के हृदय में आता है और उन्हें पूर्ण उद्धार प्राप्त करने में मदद करता है।

यूहन्ना 15ः26 कहता है, परन्तु जब वह सहायक आएगा, जिसे मैं तुम्हारे पास पिता की ओर से भेजूंगा, अर्थात सत्य का आत्मा जो पिता की ओर से निकलता है, तो वह मेरी गवाही देगा। जैसा कि कहा गया है, क्योंकि प्रभु जी उठे और स्वर्ग में चढ़ गए, परमेश्वर ने पवित्र आत्मा को अपने बच्चों के पास भेजा जो बचाए गए हैं।

प्रेरितों के काम 2ः38 कहता है, मन फिराओ, और तुम में से हर एक अपने अपने पापों की क्षमा के लिये यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा ले; तो तुम पवित्र आत्मा का दान पाओगे।

जैसा कि कहा गया है, यदि आप सुसमाचार सुनते हैं, पश्चाताप करते हैं, और यीशु को अपने उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करते हैं, तो आप अपने पापों की क्षमा प्राप्त करेंगे और पवित्र आत्मा आपके हृदय में आ जाएगा। यदि आप पवित्र आत्मा प्राप्त करते हैं, तो आपकी मृत आत्मा फिर जी उठती है और आप आत्मिक विश्वास प्राप्त करते हैं जिसके साथ आप वास्तव में विश्वास कर सकते हैं।
मसीह में प्रिय भाइयों और बहनों, 1 यूहन्ना 5ः5-8 कहता है, संसार पर जय पाने वाला कौन है केवल वह जिस का यह विश्वास है, कि यीशु, परमेश्वर का पुत्र है। यह ही है वह, जो पानी और लोहू के द्वारा आया था; अर्थात यीशु मसीहः वह न केवल पानी के द्वारा, वरन पानी और लोहू दोनों के द्वारा आया था। और जो गवाही देता है, वह आत्मा है; क्योंकि आत्मा सत्य है। और गवाही देने वाले तीन हैं; आत्मा, और पानी, और लोहू; और तीनों एक ही बात पर सहमत हैं।

यहाँ, ’यीशु मसीह का पानी और लहू के साथ आना’ का अर्थ है कि पानी, जो कि वचन है, देह में इस पृथ्वी पर आया और अपना कीमती लहू बहाकर मर गया। क्योंकि यीशु हमारे लिए क्रूस पर मरा, हम उस लहू की सामर्थ से उद्धार प्राप्त करते हैं।

इसलिए, जो पानी और लहू के साथ आया, वह यीशु मसीह है, और पवित्र आत्मा, जो यीशु के स्वर्गारोहण के बाद आया, हमें इस तथ्य पर दृढ़ता से विश्वास करने में मदद करता है।

कहा जाता है कि जो लोग यीशु को परमेश्वर का पुत्र मानते हैं, वे संसार पर जय प्राप्त करेंगे। इसका मतलब यह नहीं है कि हम इस संसार में लोगों के खिलाफ लड़ते हैं। इसका अर्थ है कि हम सांसारिक वासनाओं से लड़ते और उसपर विजय प्राप्त करते है और पापों से लिप्त नही होते।

पवित्र आत्मा न केवल हमें प्रभु में आत्मविश्वास से विश्वास करने में मदद करता है, बल्कि हमें पाप, धार्मिकता और न्याय के बारे में एहसास कराकर इस संसार पर विजय पाने की शक्ति भी देता है।

यदि हम, पवित्र आत्मा के कार्य में, महसूस करते हैं कि पाप क्या है, कि हमें धार्मिकता को पूरा करना है, और यह कि न्याय होगा, तो हम स्वाभाविक रूप से पवित्र आत्मा की इच्छाओं का पालन करेंगे। इसका अर्थ है कि हम प्रतिदिन अपने हृदय के पापों को जल से धोयेंगे।

तब हमारे हृदय के असत्य दूर हो जाएंगे और हमारा हृदय सत्य के हृदय में बदल जाएगा। अंत में, हमारा हृदय केवल सत्य से भर जाएगा जैसे कि जब आदम को एक जीवित आत्मा के रूप में बनाया गया था। यह आत्मा के द्वारा आत्मा को जन्म देने की प्रक्रिया है।

केवल वे ही जो पवित्र आत्मा के द्वारा आत्मा को इस प्रकार जन्म देते हैं, परमेश्वर के राज्य को देखने में समर्थ होंगे।

मसीह में प्रिय भाइयों और बहनों, इफिसियों 2ः8 कहता है, क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन परमेश्वर का दान है।

मनुष्य जल और आत्मा के द्वारा नया जन्म ले सकता है और परमपिता परमेश्वर के प्रेम के द्वारा ही अनन्त जीवन तक पहुँच सकता है। यह तोहफा है जो हमें बिना किसी कीमत के मिला है।

मनुष्य को कभी भी केवल अपने प्रयास या सामर्थ्य से नहीं बचाया जा सकता। उद्धार का कोई दूसरा मार्ग नहीं है, केवल क्रूस का मार्ग है।

क्योंकि यीशु ने परमेश्वर के गुप्त प्रावधान के भीतर क्रूस को लेकर हमारे लिए उद्धार के मार्ग को सिद्ध किया जो कि समय शुरू होने से पहले से छिपा हुआ था, जो कोई भी इसे विश्वास के साथ स्वीकार करता है वह फिर से जन्म ले सकता है और अनंत जीवन प्राप्त कर सकता है।

यूहन्ना 1ः12 कहता है, “ परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उस ने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं।

साथ ही, फिलिप्पियों 3ः20 कहता है, पर हमारा स्वदेश स्वर्ग पर है; और हम एक उद्धारकर्ता प्रभु यीशु मसीह के वहां से आने ही बाट जोह रहे हैं। जो लोग प्रभु में विश्वास करते हैं और पानी और आत्मा से नया जन्म लेते हैं, वे परमेश्वर की संतान के अधिकार का आनंद लेते हैं।

शत्रु शैतान अब उन पर अपनी मृत्यु के अधिकार का दावा नहीं कर सकता। अब वे स्वर्गीय राज्य के नागरिक बन गए हैं और इस पृथ्वी और स्वर्ग दोनों में परमेश्वर की सुरक्षा और आशीषो के भीतर रहते हैं।

यह विशेष उपहार है कि आप बचाए गए है।

मसीह में प्रिय भाइयों और बहनों, ये संदेश आपके उद्धार का मार्ग होंगे, परमेश्वर के प्रेम को प्राप्त करने का मार्ग होंगे, और पवित्र आत्मा द्वारा निर्देशित होने का मार्ग होंगे।
यह आपके जीवन की सभी समस्याओं को हल करने और आशीष प्राप्त करने का मार्ग भी होगा।

मैं आपसे ईमानदारी से इन संदेशों को विश्वास के साथ स्वीकार करने का आग्रह करता हूं ताकि आप में से कोई भी तब तक उद्धार के मार्ग से दूर न हो जाए जब तक कि प्रभु फिर से वापस न आ जाए।

साथ ही, मुझे आशा है कि आप लगन से इस संदेश को फैलाएंगे और बहुत सी आत्माओं को स्वर्ग के राज्य में ले जाएंगे।

मैं यीशु मसीह के नाम से प्रार्थना करता हूं कि आप और मैं परमेश्वर के प्रेम और अनुग्रह की स्तुति करने और नए यरुशलेम के शहर में अनंत महिमा में रहने में सक्षम होंगे, जो सबसे सुंदर स्वर्गीय निवास स्थान है।

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