Krus ka sandesh 07 – परमेश्वर ने भलें और बुरे के ज्ञान का वृक्ष क्यों लगाया?

भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष के लगाने के पीछे योजना
धर्मशास्त्र (उत्पत्ति2ः16)
‘‘फिर यहोवा परमेश्वर ने आदम को यह कहकर आज्ञा दी’’ तू वाटिका के किसी भी पेड़ का फल बेखटके खा सकता है परन्तु जो भले और बुरे के ज्ञान का वृक्ष है उसमें से कभी न खाना क्योंकि जिस दिन तू उसमे से खाएगा उसी दिन तू अवश्य मर जाएगा।’’
प्यारे भाईयो और बहनों,
जब आप दो से तीन साल के बच्चों का पालन-पोषण करते हैं, तो हो सकता है घर में रखी हुई वस्तुओं को छुने से या खतरनाक चीजों को खाने से बच्चों को नुकसान पहुंच जाए। उदाहरण के लिए माने, कि घर में कोई जहरीली वस्तु है, और यदि माता-पिता बच्चों को बता भी दें ‘‘तुम कभी भी उसे नहीं पीना’’, वे फिर भी समझ नहीं पाएंगे इसका क्या मतलब है।
इसीलिए माता-पिता खतरनाक चीजों को बच्चों से छिपा देते हैं, या ऐसी चीजों को घर से हटा देते हैं। नुकसान पहुंचाने वाली ऐसी चीजों को वे घर से हटा देते हैं ताकि उनके बच्चों को नुकसान न पहुंचे। मैं सोचता हूं आप भी ऐसा करेंगे, है की नही!
लेकिन बाइबल में अजीब बात नजर आती है। ये बात भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष के बारें में है।
परमेश्वर ने मनुष्य की रचना अपने स्वरूप में की और प्रथम मनुष्य आदम को बहुत प्यार किया। और उसने अपने अति-प्रिय आदम को अदन की वाटिका में जीवन जीने के लिए रखा। लेकिन परमेश्वर ने भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष को भी वहां रखा, यदि आदम उसमें से खाएगा तो निश्चय ही मर जाएगा।
आदम ने तब भी उस वृक्ष से खाया इस कारण वह और उसके वंशज सब पापी बन गए। जिनको मृत्यु की सजा का सामना करना पड़ा? तो फिर क्यों परमेश्वर ने ऐसे खतरनाक पेड़ को अदन की वाटिका में रखा?
क्या परमेश्वर को मालूम नहीं था कि आदम उस वृक्ष से खाएगा? तो क्या इसका मतलब ये है कि परमेश्वर के साथ कुछ ऐसा हो गया जो उसे मालूम नहीं था? यदि ऐसा है तो हम परमेश्वर को सर्वज्ञानी परमेश्वर नही कह सकते? और यदि सामर्थी परमेश्वर ने सब कुछ जानते हुए पेड़ को वहां लगाया तो क्या इसका अर्थ ये हुआ कि परमेश्वर आदम को प्रेम नहीं करता था?
बिलकुल नही। परमेश्वर सब कुछ जानता था और आदम को बहुत प्यार करता था। इसीलिए उसने भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष को वहां रखा था। आज क्रूस का सन्देश का पांचवा सत्र है और आज मैं आपको भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष को अदन की वाटिका में रखने में परमेश्वर के विधान के बारें में बताउंगा।
मैं आशा करता हूं कि आप परमेश्वर की योजना, और उसके प्रेम को जो भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष में थी उसकी वास्तविकता को जानेंगे और समझेंगे, मैं प्रभु के नाम में आशीषित करता हूं कि इसे महसूस करने के बाद आप परमेश्वर की उसी सन्तान बन जाएंगे जो उसे अपने दिलों की गहराईयों से प्रेम करें और उसका प्रेम प्राप्त करें।

(मुख्य भाग)
यीशु में प्यारे भाईयों, बहनों और श्रोतागण-
जब आदम को रचा गया, तो यद्यपि वह बाहरी रूप से बड़ा और युवा पुरूष नजर आता था, लेकिन जहां तक उसके ज्ञान का सम्बन्ध था वह अभी भी एक नवजात शिशु के समान था। ये बिल्कुल ऐसा था जैसे एक ठतंदक दमू भ्प.जमबी ब्वउचनजमत है और उसके अन्दर कोई भी डाटा न हो।
ठीक ऐसी स्थिति से, आदम ने सब प्रकार के ज्ञान को एक के बाद एक परमेश्वर से प्राप्त करना आरम्भ किया।
उसने परमेश्वर के बारे में आत्मिक क्षेत्र, सत्य, भलाई, ज्योति और आत्मिक ज्ञान की और अन्य बातों के बारे में ज्ञान प्राप्त किया जिनमें वह ज्ञान भी था जिसकी जरूरत सब वस्तुओं पर शासन करने के लिए थी । जब आदम ने पर्याप्त ज्ञान प्राप्त कर लिया तो वह इस योग्य हो गया था कि संपूर्ण सृष्टि पर शासन करे और उसे अपने अधीन रख कर चला सकता था।
उत्पत्ति 2ः19 कहता है ‘‘और यहोवा परमेश्वर भूमि में से प्रत्येक जाति के वन पशु और आकाश के सब प्रकार के पक्षियों को रचकर आदम के पास ले आया। कि देखें कि वह उनका क्या-क्या नाम रखता है, और आदम ने प्रत्येक जीवित प्राणी को जो नाम दिया वही उसका नाम हो गया।
आज, यहां तक कि पक्षियों का सबसे बड़ा विद्धान भी पृथ्वी के सभी पक्षियों के नाम और उनकी विशेषताओं को नहीं जानता है। लेकिन आदम उनकी विशेषताओं को और न केवल पक्षियों के बारे में बल्कि पशुओं के बारे में भी जानता था इसीलिए ही वह उन्हे सबको ठीक-ठीक नाम दे सका।
इस प्रकार के विचित्र ज्ञान और बुद्धि के साथ आदम और हव्वा बहुत से बच्चों को जन्म देते हुए बढ़ने लगे।
उत्पत्ति 1ः28 कहता है ‘‘परमेश्वर ने उन्हें आशीष दी और उनसे कहा ‘‘फूलो-फलो और पृथ्वी में भर जाओ और उसे अपने वश में कर लो, और समुद्र की मछलियों तथा आकाश के पक्षियों और पृथ्वी पर चलने-फिरने वाले प्रत्येक जीव-जन्तु पर अधिकार रखो’’ जैसा उनसे यहां पर कहा, उन्होंने बहुत से बच्चों को जन्म दिया।
ये सत्य है कि आदम और हव्वा ने अदन में बच्चों को जन्म दिया, यह बाइबल में देखा जा सकता है।
उत्पत्ति 3ः16 के पहले भाग में परमेश्वर कहता है ‘‘मैं तेरी प्रसव-पीड़ा को अधिक बढ़ाउंगा’’ तू पीड़ा में ही बच्चे उत्पन्न करेगी। ये वाक्यांश ‘‘अधिक बढ़ाउंगा’’ हमें बताता है कि हव्वा को पहले भी प्रसव-पीड़ा हो चुकी थी।
बच्चे को बाहर निकलने के लिए हड्डियों को थोड़ा और फैलाना पड़ता है तो वहां कुछ दर्द होता ही है। लेकिन श्राप से पहले दर्द कम था लेकिन बाद में परमेश्वर ने कहा, ये और अधिक बढ़ जाएगा; इसलिए आज बच्चे को जन्म देते समय ये दर्द बहुत अधिक होता है।
लेकिन ये सच है कि जैसे जैसे स्त्री अपने पापों से छुटकारा प्राप्त करती और पवित्र बनती जाती है वैसे वैसे बच्चे को जन्म देने की पीड़ा कम होती जाती है। हमारी कलीसिया की महिला सदस्यों ने पवित्र होने और एक अच्छा मसीह जीवन जीने की कोशिश की, उनका बच्चों को जन्म देने का समय आसान रहा।
बहुत सी एसी भी हैं जिन्होंने बच्चों को बिना किसी दर्द के जन्म दिया। विश्वास के साथ प्रार्थना प्राप्त करने के बाद उन्होंने जल्दी ही बिना अधिक दर्द के जन्म दिया।
मसीह में प्यारे भाईयो और बहनों,
अदन की वाटिका वह स्थान है जहां कोई बीमारी बुढ़ापा या मौत नहीं है। आदम और हव्वा को अदन की वाटिका में रहते हुए काफी लम्बा समय बीत चुका था और लोग भी बहुत बढ़ चुके थे।
जब परमेश्वर ने क्रूस के सन्देश को मुझे समझाया तो उसने कहा कि आदम अदन की वाटिका में इतने लम्बे समय तक रहा जिसकी कल्पना नहीं कि जा सकती, बाइबल संक्षिप्त में इसके बारे में बताती है, बहुत से लोग इसे गलत समझ लेते हैं। वे सोचते हैं आदम तो थोड़े से समय के लिए वाटिका में रहा था। भले और बुरे का ज्ञान के वृक्ष का फल खाने तक।
ऐसा कहा जाता हैं कि मानवीय खेती का इतिहास छःहजार साल का है, तो ये 6000 साल तब से शुरू नहीं हुए हैं जब से आदम की रचना हुई है लेकिन जबसे उसको पृथ्वी पर निकाल दिया गया यह समय तब से है। आदम के पतन के साथ ही, जब से उसे इस संसार में निकाल दिया गया तब से ही मानवीय खेती का आरम्भ हुआ है।
आदम की रचना से उसके पाप में पड़ जाने तक एक लम्बा समय गुजर चुका था। जिसका हिसाब नहीं लगाया जा सकता आदम ने सब वस्तुओं के स्वामी के रूप में अपने बड़े अधिकार का आनन्द उठाया था। उसे किसी भी वस्तु की कमी नहीं थी। लेकिन जब परमेश्वर ने आदम को अदन की वाटिका में रखा तो उसने आदम को एक चीज के लिए मना किया। उसे भले और बुरे के वृक्ष का फल खाने की अनुमती नहीं थी।
उत्पत्ति 2ः16-17 कहता है, ‘‘फिर यहोवा परमेश्वर ने आदम को यह कहकर आज्ञा दी, ‘‘तू वाटिका के किसी भी पेड़ का फल बे खटके खा सकता है, परन्तु जो भले और बुरे के ज्ञान का वृक्ष है उस में से कभी न खाना, क्योंकि जिस दिन तू उसमें से खाएगा उसी दिन तू अवश्य मर जाएगा।
शुरू में तो आदम और हव्वा ने इस आज्ञा का पालन ठीक से किया लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया उन्होंने परमेश्वर की आज्ञा को अपने हृदय में नहीं रखा।
स्वर्गदूतों की रचना तो केवल परमेश्वर की आज्ञा का पालन बिना शर्त के पूरा करने के लिए की गई थी। लेकिन मनुष्यों को परमेश्वर ने स्वतंत्र-इच्छा दी। मनुष्य अपनी स्वतंत्र इच्छा के अनुसार उसकी आज्ञा का पालन कर भी सकते हैं और न करने का भी चुनाव कर सकते हैं।
लम्बा समय गुजर जाने के बाद आदम और हव्वा अपने मनों में, अपनी स्वतंत्रइच्छा के साथ परमेश्वर के वचन को और अधिक लम्बे समय तक अपने हृदय मे नहीं रख पाए, और अन्त में उन्होंने भले और बुरे के ज्ञान का वृक्ष का फल खा ही लिया। जब तक आदम और हव्वा ने वृक्ष से फल नहीं खाया, सांप ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। शत्रु, दुष्ट और शैतान ने, सांप को,हव्वा को धोखा देने के लिए उकसाया।
आज बहुत से लोग जब सांपों को देखते हैं वे झल्लाहट और नफरत महसूस करते हैं। लेकिन ऐसा नहीं था कि मनुष्य शुरू से ही जब से सांप बनाए गए थे पसन्द नहीं करते थे। मनुष्यों में सांपों को अपने स्वभाव की गहराई से न पसन्द करना इसलिए आया क्योंकि सांप के कारण ही मनुष्य मृत्यु के मार्ग को पहुंचा।
लेकिन वास्तव में सांप श्रापित होने से पहले वह बिल्कुल भी अप्रिय नहीं थे। परमेश्वर के सब दूसरे प्राणियों की तरह वे भी आकर्षक और मनोहर दिखाई देते थे।
हवा को धोखा देने के बाद, आज जो सांपों का बाहरी रूप है वह परमेश्वर के श्राप द्वारा बदलकर बहुत ही बुरा हो गया। आईए निष्पक्ष तौर पर हम सांप को देखें क्या वे आकर्षक नहीं दिखते ? वे पालतू पशु की तरह बहुत चिकने और समतल होते हैं। वे साफ होते हैं।
यदि कुत्तों को देखें, तो उनमे पिस्सु पाए जाते है और उनमे गदंगी भी होती है और यदि आप उन्हें नहीं नहलाएं तो वे गन्दे भी होते हैं। उनमें से बदबू भी आती है। लेकिन सांप बहुत मुलायम होते हैं उनके उपर कोई मिटृ भी नहीं होती। कितने आकर्षक वे दिखते हैं? लेकिन सत्य ये है कि लोग सांपों से बहुत घृणा करते हैं। वे उन से डरते भी हैं विशेषकर स्त्रियां।
आमतौर से स्त्रियां सांपों से बहुत डरती हैं,शायद आप में से कुछ नहीं लेकिन ज्यादातार डरती हैं। विश्वासी बनने के बाद जब मैं बाइबल पढ़ रहा था, तो मुझे इसका कारण भी मालुम पड़ा। ऐसा इसलिए है क्योंकि सांप ने ही हव्वा को विनाश में गिरने के लिए फुसलाया था। इसीलिए मानवीय स्वभाव में ही हम इस सांप से नफरत करते हैं। विशेषकर स्त्रियां तो और भी अधिक सांपों से नफरत करती हैं।
अन्यथा सांप तो बहुत साफ होते हैं और खेलने के लिए अच्छे होते हैं केवल कुछ जहरीले सांपां को छोड़कर। बाइबल पढ़ते समय मैंने महसूस किया कि क्यों वे इतने घृणित है। आपको यह जानना चाहिए कि बाइबल कितनी सत्य है। हव्वा को धोखा देने के बाद आज के सांपों का बाहरी रूप परमेश्वर के श्राप द्वारा बदला और बिगड़ा हुआ रूप है।
सांप केवल आकर्षक ही नहीं था बल्कि बहुत ही धुर्त भी था। इसका अर्थ वह चालाक था। धूर्त होने का अर्थ, दूसरे शब्दों में यह है कि उसके पास लोगों के दिलों को जीतने की बुद्धि थी। सांप धूर्त था ताकि वह हव्वा को प्रसन्न कर सके और उसका हृदय जीत सके। इसलिए जब सांप ने हव्वा को धोखा देने की कोशिश की तो, अधिक संभावना यह है कि हव्वा सावधान नहीं रह पाई हो।
जब आप मसीह जीवन जी रहे होते हैं तो कई बार शत्रु दुष्ट और शैतान आपको उन लोगों के द्वारा जो आपके करीबी होते हैं, पाप करने के लिए परीक्षा में डालता है। जब आप अपने परिवार, मित्रों या जिन्हें आप प्रेम करते हैं उनके द्वारा सत्य से भटकाए जाते हैं।
जब शैतान ने हव्वा को प्रलोभन दिया उसने सांप को इस्तेमाल किया जो कि हव्वा के बहुत नजदीक था। और एक दिन, सांप ने स्त्री से पूछा ‘‘क्या परमेश्वर ने सचमुच कहा है कि तुम इस वाटिका के किसी भी वृक्ष में से न खाना?
सांप चालाक शब्दों से हव्वा को लालच दे रहा था ताकि वह परीक्षा में पड़ जाए, परमेश्वर ने कभी नहीं कहा था ‘‘कि तुम इस वाटिका के किसी भी वृक्ष में से न खाना’’ उसने कहा था ‘‘तू वाटिका के किसी भी पेड़ का फल बेखटके खा सकता है जिसमें जीवन का वृक्ष भी शामिल था जो वाटिका के बीच में था। केवल भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष को छोड़कर। लेकिन हव्वा को परीक्षा में लालच में डालने के लिए उसने शब्दों को बदल डाला।
और स्त्री ने उत्तर दिया ‘‘वाटिका के वृक्षों के फल तो हम खा सकते हैं परन्तु उस वृक्ष के फल में से जो वाटिका के बीचों बीच है परमेश्वर ने कहा है कि न तो उस में से खाना और न उसे छूना, नहीं तो मर जाओगे’’
परमेश्वर ने वास्तव में कहा था ‘‘क्योंकि जिस दिन तू उसमें से खाएगा उसी दिन तू अवश्य मर जाएगा’’ लेकिन क्योंकि हव्वा परमेश्वर के वचन को अपने हृदय मे न रख सकी उसने उत्तर दिया ‘‘नहीं तो मर जाओगे।
जो परमेश्वर ने कहा था यहां पर उससे कुछ अलग ही उत्तर हमे मिलते है, परमेश्वर ने क्या कहा था जरा आप सवयं से सोचिए? वास्तव में वे आसान उत्तर थे। परमेश्वर ने कहा था ‘‘यदि वे वृक्ष में से खाएंगे तो वे अवश्य मर जाएंगे लेकिन उसने केवल ये कहा कि ‘‘नहीं तो मर जाओगे’’।
उसने अस्पष्ट उतर दिया, अनुमानित तौर पर या शायद वह देखेंगी कि जब वह वास्तव मे उस वृक्ष से खाएगी तो खाने के बाद वह मर जाएगी या नहीं। यदि परमेश्वर ने कहा था ‘‘तुम निश्चय मर जाओगे’’ तो इसका अर्थ था वे वास्तव में मर जाएंगे। लेकिन उसने शब्दों को बदल डाला था।
क्या परमेश्वर ने ऐस भी कहा था कि ‘‘तू वाटिका के बीच के वृक्ष का फल न खाना और न ही उसे छूना?’’ नहीं, उसने ऐसा नहीं कहा था। वाटिका के बीच में जीवन का वृक्ष है परमेश्वर ने कहा था वे इस वृक्ष का फल खा सकते है। लेकिन हव्वा ने ऐसे कहा जैसे की परमेश्वर ने फल खाने से या इस पेड़ को छूने से भी मना किया हो।
उसने परमेश्वर के वचन को ऐसे बदल डाला जैसे कि इसे खाने के द्वारा वह मर भी सकती है और नहीं भी, यदि हम परमेश्वर के वचन को हृदय में नहीं रखेंगे, लेकिन उसे इस तरह बदल देंगे तो अगली बार और आसानी से शैतान के झांसे मे फस सकते है।
इन्हीं बातों के कारण शैतान के काम होते हैं। परमेश्वर की आज्ञा ऐसी नहीं है कि हम उसे माने या न माने, यदि हम उसे पूरा करते हैं तो जीवन पाते हैं। लेकिन यदि आज्ञा का उल्लंघन करते हैं तो हम मृत्यु की ओर जाते हैं,उदाहरण के लिएः- यदि परमेश्वर कहता है ‘‘विश्राम दिन को मानना है’’ तो हमें इसे अपने हृदय में और अपने जीवन में अपनाना चाहिए।
यदि एक व्यक्ति अपने विचार के अनुसार,कुछ रविवार को तो विश्राम दिन मानता है लेकिन दूसरे रविवारों को वह विश्राम दिन को नहीं मानता। तो उसका उद्वार भी नही हो पाएगा। जब हव्वा ने परमेश्वर के वचन को बदला तभी सांप इस शुरूआत के द्वारा उसमें प्रवेश कर पाया।
सांप ने कहा ‘‘तुम निश्चय न मरोगे परमेश्वर यह जानता है कि जिस दिन तुम उसमें से खाओेगे, तुम्हारी आंखे खुल जाएंगी और तुम भले और बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के समान हो जाओगे’’। हव्वा के दृष्टिकोण से वह उस वृक्ष से खाना नहीं चाहती थी, क्यांकि ये परमेश्वर द्वारा मना किया गया था।
लेकिन जब उसने सांप के लालच को स्वीकार कर लिया तो उसने चाहा कि वह परमेश्वर के समान बन जाए। इसीलिए अब जब उसने पेड़ को देखा तो ये बिल्कुल अलग नजर आने लगा। क्योंकि आंखों की अभिलाषा, शरीर की अभिलाशा और जीवन का घमण्ड सब उसमे उत्तेजित हो चुके थे। फल खाने के लिए अच्छा और आंखों के लिए लुभावना प्रतीत हो रहा था। और बुद्धि प्राप्त करने के लिए चाहने योग्य भी था।
सो हव्वा ने परमेश्वर की आज्ञा को तोड़ दिया और वृक्ष से खा लिया और फल को अपने पति आदम को भी खाने को दे दिया। ऐसा ही आपके साथ भी है, उदाहरण के लिएः- जब आप पक्के तौर पर विश्राम दिन को पवित्र मानना चाहते हैं तो आपको रविवार के दिन पिकनिक या टीवी देखने की इच्छा नहीं होगी।
लेकिन आपके मित्र आते हैं और आपको परिक्षा में या लालच में डालना चाहते हैं वे कहते हैं उनके साथ सुन्दर जगह पिकनिक मनाने चलो। तब आपको दृढ़ता के साथ इस लालच को दूर हटाना चाहिए। यदि आपने इसे हृदय में ले लिया तो रविवार खेलते के लिए अनेको प्रकार के विचार आपके अन्दर चलेंगे और आप सुन्दर स्थानों को देखना चाहेंगे इत्यादी।
यदि आप विश्राम दिन का, एक बार उल्ल्ांघन करते है, तो फिर ये दो बार और तीन बार हो जाता है और फिर आप इसे ऐसे उल्ल्ांघन करते ही जाते हैं। आपने इसे पूरा करने की बहुत कोशिश की थी और विश्वास के पहले स्तर से दूसरे और तीसरे स्तर पर आने की कोशिश की थी तो फिर कैसे आप इसका दोबारा से उल्ल्ांघन कैसे सकते है?
आप यहां तक कि रविवार को लालच में पड़कर विश्राम दिन का उल्ल्ांघन कर सकते है। इस कारण आपके और परमेश्वर के बीच में पाप की एक बड़ी दीवार बन जाती है। आदम और हव्वा द्वारा परमेश्वर की आज्ञा तोड़ने का नतीजा (जैसा परमेश्वर का वचन कहता है) ‘‘तुम निश्चय मर जाओगे’’ वास्तव में उनके जीवन में सच साबित हुआ।
आत्मिक क्षेत्र के नियम अनुसार रोमियों 6ः23 में लिखा है ‘‘पाप की मजदूरी मौत है’’ उन्हें अपने पाप की कीमत को चुकाना पड़ा। बेशक आदम और हव्वा जैसे ही उन्होंने वृक्ष से खाया वे एक दम नहीं मर गए, लेकिन परमेश्वर का वचन कहता है ‘‘तुम निश्चय मर जाओगे’’ ये केवल शारीरिक मृत्यु के बारे में नहीं था।
इसका अर्थ वास्तविक मृत्यु था जो कि आत्मा की मृत्यु है। हमारा दिखाई देने वाला शरीर तो केवल हमारी आत्मा को रखने वाला एक बाहरी आवरण है, और मनुष्यों के लिए सबसे महत्वपूर्ण उसकी आत्मा और प्राण है जो कि उसके शरीर में हैं।
मनुष्य का आत्मा परमेश्वर से बातचीत कर जीवन प्राप्त करने के द्वारा जीवित रह सकता है। लेकिन आदम के पापी बन जाने के बाद अब वह परमेश्वर के साथ बातचीत नहीं कर सकता था।
सो मनुष्य परमेश्वर से कट चुके थे। शत्रु दुष्ट और शैतान ने उन्हें अपना बना लिए और उन से पाप करवाए ताकि अन्त में वे नरक मे जा सकें।
चाहे शरीर मरता, नष्ट होता और मिट जाता है लेकिन मनुष्य की आत्माएं खत्म नही होती। इसलिए ये आत्मा नरक में अनन्त काल की सजा प्राप्त करती है। इसी तरह जब आदम और परमेश्वर के बीच बातचीत समाप्त हो गई तो हम कहते है आदम का आत्मा मर गया था।
पाप के कारण न केवल आदम स्वयं श्रापित हुआ बल्कि उसके सब वंशज भी आदम की तरह पापी हो गए और मृत्यु के अधीन हो गए।
क्योंकि आदम के वंशजों ने आदम और हव्वा का लहू प्राप्त किया था, इसलिए उन सब में मूल पाप था, और वे पहले से ही मृत्यु के लिए ठहराए गए थे। लेकिन वो सन्तान जो आदम और हव्वा के भले और बुरे का ज्ञान के वृक्ष से खाने से पहले उत्पन्न हुए थे उनमें मूल पाप नहीं है और इसीलिए वे मृत्यु के अधीन भी नहीं है।
मसीह में प्यारे भाईयो और बहनों, आदम के पाप के कारण केवल मनुष्य ही श्रापित नहीं हुए थे लेकिन पृथ्वी पर की सभी वस्तुएं भी जो आदम के नियंत्रण में थी वे भी श्रापित हुई थी। उत्पत्ति 3ः17 कहता है ‘‘तब आदम से उसने कहा ‘‘क्योंकि तू ने अपनी पत्नी की बात मानकर उस वृक्ष का फल खाया जिसके लिए मैने आज्ञा देकर कहा था कि तू उसमें से न खाना इसलिए भूमि तेरे कारण श्रापित है। तू उसकी उपज जीवन भर कठिन परिश्रम के साथ खाया करेगा।
पहले उन्हें भोजन केवल पेड़ों से प्राप्त करना होता था जो अधिक मात्रा में फल देते थे लेकिन अब क्योंकि भूमि श्रापित हो चुकी थी और कांटे और उंट कटारे उगती थी इसलिए आदम को कडे़ परिश्रम और माथे के पसीने के द्वारा ही भोजन प्राप्त हो सकता था।
और श्रापित भूमि के उपर भी अनेकों बिमारियां और नुकसान दायक जीव आ चुके थे जो पहले नहीं थे। मनुष्य भी परिक्षाओं और परेशानियों से दुखी हो गए जो उनके उपर शत्रु दुष्ट और शैतान द्वारा लाई गई थी।
पृथ्वी की श्रापित वस्तुओं में से सांप सबसे अधिक श्रापित था।
उत्पत्ति 3ः14 कहता है ‘‘तब यहोवा परमेश्वर ने सर्प से कहा ‘‘इसलिए कि तू ने यह किया है, तू सब घरेलू पशुओं और प्रत्येक वन-पशुओं से अधिक श्रापित है तू पेट के बल चला करेगा और जीवन भर मिटृ चाटा करेगा। तो क्या आपने सांप को मिटृ खाते हुए देखा है?
क्या आपने वास्तव में देखा है? जब मैं विदेशों में या अमेरिका में 80 के दशक में बेदारी सभाओं में बोला करता था तो लोगों से मैं ये ही सवाल पूछा करता था। परमेश्वर ने सांप से कहा वह भूमि की मिटृ खाया करेगा, मैने लोगों से पूछा की क्या उन्होने सांप को मिटृ खाते हुए देखा है।
बहुत से लोगों ने अपने हाथों को उठाया जिसका अर्थ था वे झूठ बोल रहे थे। कैसे वह सांप को मिटृ खाता हुआ देख सकते थे? वे मिटटी नहीं खाते, सांप तो चुहों, मेढ़कों, चिड़ियों या कीट-पतंगों पर जीते हैं। यहां सांप आत्मिक रूप से शत्रु दुष्ट और शैतान को दर्शाता है और मिटृ मनुष्य को प्रदर्शित करती है। जो कि मिटृ से बनाए गए हैं।
सांप का मिटटी खाने का अर्थ हुआ कि शत्रु दुष्ट और शैतान शारीरिक मनुष्यों को परिक्षाओं परेशानियों और महाविपदाओं को उन पर लाकर उन्हें अपना भोजन बनाएगा जैसा कहा गया है कि जो पाप करते और शरीर में भ्रष्ट होते हैं, शत्रु दुष्ट और शैतन के नियंत्रण में कई प्रकार की पीड़ाओं को उठाते हैं।
मसीह में प्यारे भाईयों और बहनों, जैसा आज के सन्देश के आरम्भ में मैने थोड़ा सा आपको बताया था कि जब लोगों को आदम के पाप में पड़ने के बारे में पता चलता है, तो उनके पास एक सवाल हो सकता है, वह ये कि ‘‘परमेश्वर ने भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष बनाया ही क्यों?
यदि परमेश्वर ने वृक्ष को वहां रखा नहीं होता तो आदम ने उसमें से खाया न होता, और फिर उससे पाप भी न होता और उसे मृत्यु का दण्ड भी नहीं मिलता। परमेश्वर को निश्चित रूप से मालूम था कि आदम उसमें से खाएगा। वह आदम को बहुत प्रेम करता था लेकिन फिर भी उसने पेड़ को वहां रखा।
क्या कारण है? निर्णायक रूप से कहूं तो आदम को सच्चा आनन्द देने के लिए परमेश्वर ने भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष को वहां रखा था।
कृप्या ध्यान से सुनीए इसका क्या अर्थ है। अदन की वाटिका जहां आदम रह रहा था बहुत ही सुन्दर और शान्त स्थान था जिसमें कोई कमी नहीं थी। आदम जो इस वाटिका में रह रहा था वह बहुत खुश नही था? नहीं वह खुश नहीं था।
और अधिक स्पष्ट रूप से कहूं तो वह खुशी जैसा कुछ भी महसूस नहीं कर सकता था। वह कभी नहीं जानता था कि खुशी क्या होती है। ऐसा इसलिए था क्योंकि उसने कभी भी नाखुश होने का या दुःख का अनुभव नही ंकिया था। जो कि खुशी का विपरित होता है।
आदम ने कभी भी बिमारी मृत्यु या दुर्घटना का अनुभव अदन की वाटिका में नहीं किया था। इसलिए उसे कभी कोई दुःख या दर्द इन बातों के चलते नहीं हुआ था। बेशक जब परमेश्वर ने उसे समझाया कि दुःख क्या है, तो वह इसे मानसिक रूप से समझ सकता था। लेकिन जब तक वह स्वयं इसका अनुभव न कर ले वह अपने हृदय में इसे नहीं जान सकता था, कि नाखुश होना कितना दर्दनॉक होता है।
क्योंकि अदन की वाटिका में अप्रसन्नता जैसा कुछ था ही नही, इसलिए यदि कोई उसे इस बात को समझाता भी तो भी वह नही समझ पाता। वह कुछ हद तक इसे समझ सकता था, यदि वह कीसी और को अप्रसन्ता मे देखता तो वह कुछ हद तक समझ सकता था लेकिन वहां उसके चारों ओर कोई ऐसा नहीं था जो अप्रसन हो, इसलिए वह इसे नहीं समझ सकता था।
मनुष्य के लिए किसी वस्तु के सच्चे महत्व को जानने के लिए उसके पास उसका विपरित अनुभव अवश्य हाना चिहए ताकि वह दोना चीजों की सापेक्षता को सीख सकें। सोचीए की जब से आप पैदा हुए हैं आप कभी बीमार नहीं हुए है, तब आप अपने दिल में कभी महसूस नहीं कर पाएंगे कि बिमारी का दर्द या दुःख क्या होता है चाहे कितना भी इसके बारे में आप सुनलें।
यदि आप किसी को बिमारी से दःुख उठाते हुए देखें तो उसके बारें में आप कुछ महसूस कर सकते हैं। लेकिन आप बीमार होने के दर्द को कभी भी महसूस नहीं कर सकते। ऐसे व्यक्ति के पास अपने स्वास्थ्य के लिए थोड़ा सा सच्चा धन्यवाद जरूर हो सकता है।
ल्किन यदि स्वस्थ व्यक्ति बीमार होता जाता है तो उसके दिल पर स्वस्थ के महत्व का गहरा अहसास होगा, और स्वस्थ होने का अभारी होगा। और यह सब के साथ एक जैसा ही है। जो वास्तव में भुख का सामना करता है, वह ही प्रचुर मात्रा में भोजन के लिए अभारी हो सकता है।
ज्ब कोई बुराई होती है तभी हम भलाई को सचमुच अच्छा जान सकते हैं। केवल जब अंधकार होता है तभी हम जान सकते हैं कि रौशनी कितनी कीमती है। बिना गरीबी के धनवान होने के लिए हम धन्यवाद नहीं दे पाएंगे। यदि वहां नफरत नहीं है तो हम नहीं जान पाएंगे कि प्रेम कितना भला है।
हम नफरत को नहीं जान पाएंगे यदि आपने किसी को नफरत न कि हो या आपने किसी के द्वारा नफरत न सही हो तो आप ये नहीं जान पाएंगे कि प्रेम कितना भला है। यदि आप केवल धनी ही रहे हैं तो धनी होने के लिए धन्यवाद देना आप नहीं जान पाएगें। यदि कोई स्वस्थ है और बीमार पड़ जाए तो वह सोचता है दुनिया में सबसे बड़ा दर्द उसके पास है।
वह ऐसा कहता है कि वह नहीं जानता था कि ये कितना दर्दनॉक होगा। मैने कीसी को देखा जिसके दांतों में दर्द था। उसने कहा जब दूसरे लोगों ने उसे दांत दर्द के बारे में बताया तो उसने सोचा था कि ये तो कुछ भी नहीं होता होगा, लेकिन जब ये दर्द उसे स्वयं को हुआ तो ये बहुत ही दर्दनॉक था।
उसके लिए तो ये सबसे बड़ा दर्द था। जिनके कानों में दर्द होता है उनके साथ भी ऐसा ही है उनके लिए उनका दर्द सबसे ज्यादा होता है। कुछ लोग बड़ा चढ़ा कर बोलते हैं। क्या वास्तव में इतना अधिक दर्द होता है? सोचिए उनके बारें में जो कैन्सर की आखिरी स्टेज पर पहुंच जाते हैं जब कैन्सर शरीर के दुसरे भागों में फैल जाता है।
कुछ ही महिनों में उनके बाल सफेद हो जाते हैं क्योंकि ये बहुत पीड़ा दायी और असहनीय होता है।
यहां तक कि वे लोग अपने बाल भी नहीं धोत,े ज्यादा दर्द के कारण वह कुछ भी करना महसूस नहीं करते कोई श्रृंगार भी नहीं करते। क्योंकि लोगों ने पहले कभी ऐसा दर्द अनुभव नहीं किया था। जब कभी उन्हें दांत दर्द या कान दर्द होता है वे सोचते हैं सबसे बड़ा दर्द उनका ही है।
आदम जो अदन की वाटिका में रह रहा था जहां कोई दुख नहीं था, वह अपनी प्रसन्नता को समझ नहीं सकता था। क्यांकि उसने कभी मृत्यु को नहीं देखा था, इसलिए वह अपने हृदय में पूरी तरह नहीं समझ सकता था कि इसका क्या मतलब है। जो परमेश्वर ने कहा था ‘‘तुम निश्चय मर जाओगे’’।
क्यांकि जब से मैने प्रभु को ग्रहण किया है मैं कभी बिमार नहीं पड़ा हॅू। और मेरा परिवार कभी अस्पताल नहीं गया न ही कोई दवाई ली है, इसलिए दर्द के बारें में मेरी यादे पहले की तुलना में कम हो गई है। मुझे वह दर्द याद है जो 31 या 32 साल पहले प्रभु को ग्रहण करने से पहले मुझे था जिसकी यादें अब कमजोर पड़ गई है।
क्या वास्तव में मैं उस समय बीमार था? मैं इतना बीमार था कि मुझे डन्डे का सहारा लेना पड़ता था और बिस्तर में पडा़ रहता था। जब भी कोई मेरी ओर आता और मुझे छूता था मैं डरता था यहां तक कि मैं बाथरूम भी नहीं जा पाता था। लेकिन आज वह सब बातें धूंधली यादें रह गई हैं क्योंकि अब 30 साल से ज्यादा हो चुके हैं और मैं कभी भी बीमार नहीं पड़ा हॅू।
यहां तक कि मुझे और मेरे परिवार को जुकाम भी कभी नहीं हुआ। पास्टर सूजिन ली तो ये भी नहीं जानती कि इन्जैक्शन क्या होता है। उसने कभी भी कोई दवाई नहीं ली और न ही किसी डॉक्टर से मिले या कोई टीका उन्हें लगा हो।
उन्होंने कभी रोकथाम के टीके भी नहीं लगवाए। आज भी वह स्वस्थ्य है क्योंकि परमेश्वर ने उनकी रक्षा की है। इसलिए आदम अपने हृदय में इस बात के अर्थ को नहीं समझ पाया जब परमेश्वर ने कहा ‘‘तुम निश्चय मर जाओगे’’।
परमेश्वर ने आदम से बहुत प्यार किया और उसे सबकुछ दिया लेकिन आदम परमेश्वर को दिल की गहराई से धन्यवाद नहीं दे सका।
लेकिन भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल खाने के बाद सब कुछ बदल गया, जब आदम को श्रापित संसार में रहना पड़ा तो उसे बहुत सी बातों से दुख उठाना पड़ा जिसे वह पहले कभी नहीं जानता था।
पाप करने के द्वारा भूख, थकान, ठन्ड गर्मी, मृत्यु, दूरी, दुःख और दर्द का अनुभव करते हुए आदम एहसास कर सका कि अदन की वाटिका में वह कितना आनन्दित था। मसीह में प्यारे भाईयों और बहनों, यदि मनुष्य बिना सच्ची खुशी के महसूस करते हुए रहे तो उनके जीवनों का क्या अर्थ है यद्यपि वे आराम से रहते हों तब भी?
कुछ हद तक, यद्यपि हमें थोड़े से समय के लिए दःुख उठाना भी पड़े। लेकिन यदि इस थोड़े से दुःख से हम खुशी की कीमत को जान पाएं तो ये जीवन हमारे जीवन का कीमती हिस्सा बन जाएगा। शारीरिक माता-पिता अपने बच्चों को केवल घर में ही नहीं पालते-पोसते। जबकि वे अपने बच्चों को बहुत प्यार करते हैं। घर के बाहर बुरे मित्रों के प्रलोभन खतरनाक दुर्घटनाएं और फैलनेवाली बिमारियां होती है।
लेकिन बच्चे तभी पूरी तरीके से बड़े होते हैं जब वे स्कूल जाते और समाज का अनुभव करते हैं, इसलिए माता-पिता अपने बच्चों को संसार में भेजते हैं।
ऐसा ही पिता परमेश्वर के साथ है। ये अच्छा होता यदि आदम अपने हृदय में खुशी का एहसास कर पाता और परमेश्वर को धन्यवाद दे पाता। एक ऐसे बच्चे की तरह जो परमेश्वर को प्रेम करता हो। लेकिन सृष्टीकर्ता पमरेश्वर के असदृश, एक प्राणी जैसे कि मनुष्य,चीजों को सापेक्षता का एहसास तब तक नही कर सकता जब तक वह उसे सवयं अनुभव न कर ले।
इसी कारण से परमेश्वर ने भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष को वहां रखा था। कि मनुष्य अप्रसन्नता और दुःख अनुभव कर पाए ताकि वह, अपने दिमाग मे केवल ज्ञान के तौर पर ही नही वरन वास्तव में उचित सापेक्षता को समझ सकें ।
लेकिन इसका अर्थ ये नही हैं कि परमेश्वर ने आदम को पाप करने में निर्देशित किया। परमेश्वर ने एसा इसलिए होने दिया कि आदम अपनी स्वतंत्र इच्छा के साथ चुनाव कर सके।
आखिर में आदम ने अपनी स्वतंत्र इच्छा के साथ भले अैर बुरे के ज्ञान के पेड़ से खा लिया और मानवजाति कई प्रकार की पीड़ा से पीड़ित होने लगी जैसे ठन्ड, बिमारियां, गरीबी, भूख, अलगाव, हानि, और मृत्यु। इस पृथ्वी पर से जहां हम दुःख उठाते हैं मानवीय खेती की प्रक्रिया से गुजरने के बाद जब हम स्वर्गीय राज्य में पहुंचेगे, तब हम एहसास करेंगे की स्वर्ग के राज्य का जीवन कितना अच्छा है।
हम इस योग्य हो जाएंगे कि अपने हृदय में गहराई से महसूस कर सकेंगे की स्वर्ग का राज्य जहां कोई पाप और दुख नहीं है , और वह बहुत अच्छा है क्यांकि हमें पहले ही पापों का बिमारियां का, दुखों और मृत्यु का इस पृथ्वी पर अनुभव हो चुका है।
हम परमेश्वर के हृदय की गहराई से ऐसे सुन्दर स्वर्गीय राज्य के लिए और आनन्द में अनन्तकाल तक जीने के लिए धन्यवाद देंगे। यहां तक कि लम्बा समय बीत जाने के बाद भी उस समय हम आदम की तरह नकारात्मकता में नहीं बदल जाएंगे जिसने परमेवर के वचन को अपने हृदय में नही रख पाया था।
प्यारे भाईयों और बहनों, लोग सोने, जेवरात और हीरों को कितना पसन्द करते हैं? कई बार केवल इन चीजों के कारण लोग एक दूसरे को मार देते हैं। इस पृथ्वी पर हम मिटृ या पत्थर की बनी सड़कों पर चलते हैं जो खत्म हो जाती है और बदबू मारती है। लेकिन स्वर्ग में ऐसा कुछ भी नहीं है।
वहां मिटृ नहीं है और न ही कुछ ऐसा है जो नाश होता या बदबू देता है। सोना चांदी जिसे आप इस पृथ्वी पर बहुत प्यार करते हैं स्वर्ग के राज्य में वे सड़क की पटरी होंगे, वह कैसा हमेशा का आनन्दमय जीवन होगा।
वह वस्तुएं जिन्हें आप पसन्द करते हैं लेकिन इस पृथ्वी पर उन्हें प्राप्त नहीं कर पाये लेकिन वहा वह बहुत ही सुन्दरता से एक घर के रूप में बनी होगी नगर की दिवारें सूर्यकॉत की बनी होंगी। इस पृथ्वी पर आप कुछ फूलों को देखते हैं और आप उनकी खुशबू को भी सूंघना चाहते हैं लेकिन वे जल्दी मुरझा जाते हैं। कितना सुन्दर लगता है जब चेरी के फूल खिलते हैं।
लेकिन लगभग एक सप्ताह के अन्दर वे मुरझा जाते हैं। गोल्डन बैल और अजेलिया जल्दी ही मुरझा जाते हैं। हो सकता है एक महीने में। लेकिन स्वर्ग के राज्य में पूरे खिले हुए फूल बहुत ही सुन्दर होंगे। पृथ्वी के फूलों में ज्यादा खुशबू नहीं होती, लेकिन स्वर्ग में बहुत ही सुन्दर और अधिक मात्रा में वह खुशबू देते हैं वह कैसा आनन्दमय जीवन होगा।
वह सुनहरे और चांदनी बगीचे से भरा हुआ होगा और जब आप उसपर कदम रखेंगे तो आप बहुत अच्छा महसूस करेंगे। कितना अच्छा और आनन्द से भरा वह जीवन होगा। आप खुशी महसूस कर सकते हैं क्यांकि आपकी खेती इस पृथ्वी की जा चुकी है। और यदि आप स्वर्गीय राज्य में पैदा हुए होते और अभी तक वहां रहे होते तो आप बिल्कुल ये नहीं जानते कि वहां अच्छा क्या होता है।
इस कारण आप धन्यवाद या प्रेम को नहीं जानते। लेकिन हम इस पृथ्वी पर रह चुके है और हम नरक में गिरने के लिए निर्घारित थे। लेकिन हमारे प्रभु के कारण हम स्वर्गीय राज्य में जा सकते हैं। और वहां हमेशा के लिए रह सकते हैं इसलिए हम अपने परमेश्वर और प्रभु के लिए हमेशा के लिए धन्यवादी हो सकते हैं।
यह इसलिए है क्यांकि अब हमारे पास केवल ज्ञान ही नही है वरन हम तुल्नात्मकता का एहसास कर चुके है इसलिए हम साफ तौर पर जान पाएगें की स्वर्ग राज्य बहुत ही अच्छा है। इसलिए समय गुजरने के बाद भी हम नही बदलेंगे परन्तु बजाए इसके हमारा प्रेम और धन्यावाद बढ़ता ही जाएगां।
मसीह में प्यारे भाईयो और बहनों, आदम ने भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष से खाने के बाद दुःख का अनुभव प्राप्त किया। तब वह जान सका की अदन की वाटिका में उसका जीवन कितना आनन्दित था।
लेकिन उसने इस सत्य को तब जाना, जब वह पापी बन चुका था। परमेश्वर के साथ उसकी बात चीत समाप्त हो चुकी थी और उसका आत्मा पहले ही मर चुका था। वह वापस वाटिका में नहीं जा सकता था, पहले के आनन्दित जीवन में।
न केवल आदम और हव्वा बल्कि उनके सब वंशज पापी होने के कारण मृत्यु का दण्ड प्राप्त करने के लिए ठहरा दिए गए थे। इसके लिए अब हम क्या कर सकते हैं कैसे हम जो पापी मानवजाति के रूप में पैदा हुए मृत्यु के दण्ड से बच सकते हैं?
परमेश्वर आदि से जानता था कि आदम भले और बुरे के वृक्ष से खाएगा और पाप करेगा, इसलिए इससे पहले की वह उस भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष को वहां लगाता उसने मानवजाति के उद्धार के मार्ग को तैयार कर लिया था।
ये सब योजनाएं पहले ही बना ली गई थी जब परमेश्वर ने सबसे पहले मानवजाति की खेती की योजना बनाई थी। जब परमेश्वर ने अपने बेटो को त्रिएकता में विभाजित किया, पहले से ही उसने उद्धार के मार्ग को भी तैयार कर लिया था इसीलिए परमेश्वर ने अपने बेटो को विभाजित किया।
आत्मिक क्षेत्र के नियम का उल्लंघन किये बगैर, उसने समय शुरू होने से पहले ही मानवजाति जो पापी है मृत्यु दण्ड से बचाने के मार्ग तैयार कर लिया था। तो फिर ये उद्धार का मार्ग क्या है? इसके बारे में अगले सत्र में बताउंगा।
निष्कर्ष
मसीह में प्यारे भाईयो और बहनों, क्या अब समझ में आया कि क्यां परमेश्वर ने भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष को वहां लगाया था?
यदि आप परमेश्वर की इच्छा को समझ जाएं कि क्यां परमेश्वर ने भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष को वहां रखा था तब आप परमेश्वर की विचित्र योजना की बढ़ाई करेंगे। आप स्वाभाविक रूप से परमेश्वर के प्रेम के लिए धन्यवाद देंगे की उसने हमें अनन्त खुशियों को प्राप्त करने का अवसर प्रदान किया।
जो इस सच्चाई को मानते और स्वर्ग की आशा करते हैं उनके पास केवल धन्यवाद और आनन्द ही होगा चाहे किसी प्रकार का जीवन क्यों न इस पृथ्वी पर उन्हें बिताना पड़े।
इसलिए 2 कुरिन्थियों 4ः17-18 कहता है ‘‘क्योंकि हमारा पलभर का यह हल्का सा क्लेश एक ऐसी चिरस्थायी महिमा उत्पन्न कर रहा है जो अतुल्य है हमारी दृष्टि उन वस्तुओं पर नहीं जो दिखाई देती हैं पर उन वस्तुओं पर है जो अदृश्य हैं, क्योंकि दिखाई देने वाली वस्तुएं अल्पकालिक हैं, परन्तु अदृश्य वस्तुएं चिरस्थायी हैं।
कोई बात नहीं चाहे कैसा भी दुःख या दर्द इस पृथ्वी पर हम सहें, वह केवल क्षण भर का है,लेकिन इस जीवन के बाद हम महिमायुक्त स्वर्गीय राज्य और अनन्त आनन्द को हमेशा हमेशा के लिए मनाएंगे।
मैं आशा करता हूं आप परमेश्वर के प्रेम को जानेंगे जो हमें सच्ची खुशी देना चाहता है। इसलिए मैं प्रभु के नाम में प्रार्थना करता हूं कि आप एक ऐसा मसीह जीवन बिताएं,जो आनन्द से उमड़ता हुआ, परमेश्वर को धन्यवाद देता हुआ हो और आपके पास स्वर्ग की अशा हो। आमीन

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