Krus Ka Sandesh 08 – भूमी के छुटकारे का नियम

क्यों यीशु ही केवल हमारा उद्धारकर्ता है?
पवित्र शास्त्र’’1कुरिन्थियों 2ः6-9

‘‘ फिर भी सिद्ध लोगों में हम ज्ञान सुनाते हैंः परन्तु इस संसार का और इस संसार के नाश होनेवाले हाकिमों का ज्ञान नहीं। परन्तु हम परमेश्वर का वह गुप्त ज्ञान, भेद की रीति पर बताते हैं, जिसे परमेश्वर ने सनातन से हमारी महिमा के लिये ठहराया। जिसे इस संसार के हाकिमों में से किसी ने नहीं जाना, क्योंकि यदि जानते, तो तेजोमय प्रभु को क्रूस पर न चढ़ाते। परन्तु जैसा लिखा है, कि जो आंख ने नहीं देखी, और कान ने नहीं सुना, और जो बातें मनुष्य के चित्त में नहीं चढ़ी वे ही हैं, जो परमेश्वर ने अपने प्रेम रखनेवालों के लिये तैयार की हैं।

प्यारे भाईयों और बहनों, क्रूस का सन्देश का यह छटवां भाग है। पिछले भाग में मैने आपको समझाया था कि परमेश्वर ने क्यों भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष को लगाया था। मैने आपको बताया था उसने इसे मनुष्यो को सच्ची खुशी देने के लिए लगाया था।

यदि मनुष्य दुःख का अनुभव न करे तो वे खुशी को भी महसूस नहीं कर सकते। केवल दुःख, दर्द और उदासी का अनुभव करने के बाद ही वे अपने हृदयों में खुशी की सच्ची कीमत को जान सकते हैं और खुश होने के लिए धन्यवादी हो सकते हैं।

एक बार एक व्यक्ति की आंख में ज़हर पड़ जाने के कारण वह कुछ नहीं देख पा रहा था। वह कुछ भी नहीं देख पा रहा था लेकिन मेरी प्रार्थना को प्राप्त करने के बाद जल्दी ही देखने लग गया। फिर उसने कहा कि अब उसे पता चला की अन्धे लोगों के लिए ये कितना घूटन भरा होता होगा।

हम वास्तव में धन्यवादी नहीं होते हैं कि हम देखने के योग्य हैं। क्यांकि हम शुरू से ही देख सकते हैं। लेकिन वे जो अन्धे हैं इस सुन्दर संसार को वर्षाधनुश, सूर्य, चद्रमा, बादलों और सब चीजों को नहीं देख सकते तो ये कितना दयनीय होता होगा।

परमेश्वर ने भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष को बनाकर अदन में रखा ताकि मनुष्य को भले बुरे का तुलनात्मक अनुभव मिल पाए। और इस ज्ञान के वृक्ष को जीवन के वृक्ष के साथ रखा। परमेश्वर ने इन दो प्रकार के पेड़ों को जिनमें तुलनात्मक अन्तर था रखा और आदम को दोनों वृक्षों के बारें में समझाया।

जीवन का वृक्ष अनन्त जीवन देता है, लेकिन भले और बुरे के ज्ञान का वृक्ष मृत्यु की ओर ले जाता है। परमेश्वर ने उस समझाया कि मृत्यु क्या है और इसका दर्द कैसा है और आदम को आज्ञा दी की इससे न खाना ताकि उसे इस प्रकार का दुःख न उठाना पड़े।

लेकिन परमेश्वर की आज्ञा को मानना या न मानना आदम की स्वतंत्र इच्छा पर था। ताकि वह अपने आप चुनाव कर सके। और क्योंकि आदम को पाप और मृत्यु का अनुभव नहीं था इसीलिए वह पूरी तरह परमेश्वर के समझाए जाने को अपने हृदय में न रख सका। इसीलिए अन्त में वह शैतान द्वारा धोखे में आ गया और भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष से खा लिया।

कुछ लोग पूछते हैं ‘‘आदम कैसे पाप कर सकता था जबकि उसमें कुछ भी पाप नहीं था? क्या ऐसा था कि आदम ने भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष से इसलिए खाया क्यांकि उसमें पाप था? परन्तु ऐसा नही है कि आदम ने पेड़ से इसलिए खाया क्यांकि आरम्भ से उसमें पाप था। वह उस पेड़ से खा सकता था इसलिए नही कि उसमे पाप था परन्तु इसलिए क्योंकि उसमें पाप कर लेने की स्वतंत्र इच्छा थी। स्वतंत्र इच्छा के अनुसार ही उसने परमेश्वर की आज्ञा का उलंघन किया और पेड़ से खाया। ऐसा करने के द्वारा पाप अस्तित्व में आया और आदम ने जाना पाप क्या होता है।

आर्थात आदम जो केवल अच्छी बातों को जानता था अब वह जान पाया कि बुराई और शारीरिकता क्या होती है। आज जब हम लोगों को पापों से दागी होते हुए देखते हैं तो समझ सकते हैं की आदम में बुराई कैसे आई। उदाहरण के लिएः- एक बच्चा जो लगातार दूसरे बच्चों को मारता है आरम्भ से दूसरों को मारने के लिए उत्पन्न नहीं हुआ था।

बेशक, क्योंकि वह मूल पाप के साथ जन्मा है उसके स्वभाव मे पाप पाया जाता है लेकिन दूसरों को मारना उसकी एक आदत बनने से पहले उस कार्य को ग्रहण करने एक की प्रक्रिया होती है। पहले वह किसी व्यक्ति को दूसरों को मारते हुए देखता है और फिर उसके बाद वह स्वयं उस व्यक्ति का अनुसरण करता है।

और जब वह स्वयं दूसरे बच्चे को मारता है तो दूसरा जिसे मारा गया था रोने लगता है। तब वह मारने वाला बच्चा ऐसा महसूस करता है कि ये तो मजेदार बात है। इसलिए वह इसे फिर दोहराता है। यदि वह इसे बार बार दोहराता है तो ये पूरी तरह से आदत बन जाती है। और फिर आदत से वह दूसरे बच्चों को मारता है।

शराब के साथ भी ऐसा ही है।

यद्यपि शराब वास्तव में हमारे शरीर को कोई लाभ नहीं पहुंचाती, पर एक बार जब आप एक या दो बार इसे पीते हैं तो हो सकता है आप ऐसी स्थिति में पहुंच जाएं जहां आप स्वयं पर नियंत्रण न रख सकें। आपका शरीर कमजोर पड़ जाता और बहुत से बुरे प्रभाव हो जाते है।

और जब वे लगातार उन चीजों को लेते हैं तो वे उन्हें छोड़ नहीं पाते और उन्हें उसकी लत लग जाती है। ऐसा ही उनके साथ है जो बुरे शब्द बोलते हैं और वे जो क्रोधित हो जाते हैं।

यदि आप एक या दो बार बुरे शब्द बोलते हैं तो मज़ेदार महसूस करते हैं। और फिर आप बार बार ऐसा करने लगते हैं और आखिर में आप बहुत से बुरे शब्द बोलने लगते हैं। तब भी आप नहीं जानते की आप बुरे शब्द बोल रहे हैं। झूठ के साथ भी ऐसा ही है। यदि आप एक या दो बार झूठ बोलते हैं और दुसरों से बेईमानी करते हैं तो हो सकता है आपको अच्छा लगता हो। अपने फायदे के लिए आप फिर झूठ बोलते हैं। और तब से आदत बन जाती है और आप इसका एहसास भी नहीं करते की आप झूठ बोल रहे हैं।

इसलिए जब कोई आपको कहता है झूठ मत बोलो तो आप उससे वापस पूछते हैं ‘‘मैने कब झूठ बोला’’

प्रिय श्रौताओं मनुष्य का सांप के प्रभोलन को ग्रहण भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष से खाने का परिणाम क्या निकला? जैसा परमेश्वर ने कहा ‘‘तुम निश्चय मर जाओगे’’ उन्हें मृत्यु का सामना करना पड़ा। क्यांकि उनकी आत्मा मर चुकी थी, इसलिए परमेश्वर के साथ उनका संपर्क टूट चुका था और वे शत्रु दुष्ट और शैतान के गुलाम बन चुके थे।

रोमियों-6ः16 कहता है, ‘क्या तुम नहीं जानते कि किसी की आज्ञा मानने के लिए तुम अपने आप को दासों के समान सौंप देते हो, तो जिसकी आज्ञा मानते हो उसी के दास बन जाते हो चाहे पाप के जिसका परिणाम मृत्यु है, चाहे आज्ञाकारिता के जिसका परिणाम धार्मिकता है?

‘‘चाहे पाप के जिसका परिणाम मृत्यु’’ यदि आप पाप की आज्ञा मानते हो तो आप शत्रु दुष्ट की आज्ञा का पालन करते है जो पापों का शासक है। इसलिए उसका परिणाम मृत्यु है जो कि नरक है।

या ‘‘चाहे आज्ञाकारिता के जिसका परिणाम धार्मिकता है’’ यदि हम परमेश्वर और प्रभु की आज्ञा माने तो अन्त में हम धार्मिकता को पहुंचेगे और पवित्र बन जाएंगे। धार्मिकता को पहुंच कर हम स्वर्ग में अनन्त जीवन को प्राप्त करेंगे।

जैसा कहा गया कि आदम ने पाप की आज्ञा को माना और इसीलिए वह शत्रु दुष्ट का दास बन गया,जो कि अन्धकार की शक्ति का शासक है, ऐसा करके आदम ने अपना सारा अधिकार शत्रु दुष्ट को सौंप दिया।

उत्पत्ति-1ः28 कहता है, ‘‘परमेश्वर ने उन्हें आशीष दी, और उनसे कहा ‘‘फूलो-फलो और पृथ्वी में भर जाओ और उसे अपने वश में कर लो, और समुद्र की मछलियों तथा आकाश के पक्षियों और पृथ्वी पर चलने-फिरने वाले प्रत्येक जीव-जन्तु पर अधिकार रखो। जैसा कहा गया पहले मनुष्य आदम के पास सब वस्तुओं को वश में करने का अधिकार था।

लेकिन क्योंकि आदम शत्रु दुष्ट का दास बन चुका था, और सृष्टि का स्वामी होने के अधिकार और महिमा को शत्रु दुष्ट को सौंप दिए थे।

हम इस सत्य को लूका-4ः6 में पा सकते हैं। शैतान ने यीशु से कहा जब वह उसे संसार के राज्यों को दिखा रहा था ‘यह सारा अधिकार और इसका वैभव मैं तुझे दे दुंगा। क्योंकि यह मुझे दिया गया है, और मैं जिसे चाहता हूं उसे देता हूं, ‘‘परमेश्वर ने ये अधिकार आरम्भ से शैतान को नहीं दिया था लेकिन किसी और ने इसे शैतान को सौंप दिया था।

आईए मान लिजिए कि आप ने मुझे कोई किताब दे दी। अब ये किताब मेरी है। मैं जिसे भी चाहूं उसे दे सकता हूं क्योकि अब ये मेरी है। इसलिए यहां लिखा है कि ‘‘क्योंकि यह मुझे दिया है मैं जिसे चाहता हूं उसे देता हूं’’ शैतान ऐसा कह कर यीशु की परीक्षा कर रहा था। यदि यीशु ने उसे दण्डवत कर दिया होता, उसने अपना अधिकार यीशु को दे दिया होता।

शैतान के पास आरम्भ से सब अधिकार और संसार के सब राज्यों का वैभव नहीं था लेकिन ये उसे दिया गया था’’ अर्थात ये उसे आदम द्वारा सौंपा गया था।

परमेश्वर ने ये अधिकार आदम को दिया था और आदम ने इसे शैतान को दे दिया। शत्रु दुष्ट जिसने सारी सृष्टि को वश में करने का अधिकार प्राप्त कर लिया था मानवजाति को अधिक से अधिक पापों और बुराई से दागी बना दिया क्यांकि वे आदम की आज्ञा उलंघन करने के द्वारा पाप के दास बन चुके थे।

जैसे जैसे पीढ़ियां गुजरती गई मनुष्य का हृदय और अधिक बुरा होता चला गया और संसार और अधिक पापों से भर गया। उनके लिए जो पाप में जीवन जीते हैं। शत्रु दुष्ट गरीबी, विपदाएं, आंसु, दुःख और दर्द लाता है और अन्त में उन्हें नरक की ओर ले जाता है। अनन्तकाल की मृत्यु के लिए। जैसे जैसे समय बीत रहा है संसार अधिक से अधिक पाप से भरता जा रहा है।

मसीह में प्यारे भाईयो और बहनों, तो अब मनुष्य को क्या करना चाहिए? क्या उन्हें शत्रु दुष्ट का जीवन भर दास बन कर रहना पडे़गा और अन्त में नरक में जाना पड़ेगा?

सब जानते हुए यदि परमेश्वर मनुष्य को नरक मे ही गिरने देता, तो वह उनकी रचना पहले ही से नहीं करता और न ही भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष को, तुलनात्मक होने देने के लिए लगाता।

मनुष्य को रचने मे परमेश्वर की इच्छा उन्हे इस ससांर मे जोते जाने और तुल्नात्मकता का अनुभव लेने के बाद अन्नत स्वर्ग राज्य मे अगुआई करने की है लेकिन यद्यपि हम भले-बुरे का तुलनात्मक अनुभव प्राप्त कर भी ले फिर भी पापों के दास होने के कारण हम स्वर्ग के राज्य में नहीं जा सकते।

क्योंकि इससे पहले की परमेश्वर मानवजाति की खेती करने की योजना बनाता वह पहले से ही जानता था, आदम भले और बुरे के ज्ञान के पेड़ से खाएगा। इसलिए उसने आरम्भ से मानवजाति को, जो पाप में गिर जाएंगे, बचाने का मार्ग तैयार कर लिया था।

वह मार्ग हमारा प्रभु यीशु मसीह है। मैं आशा करता हूं, इस सन्देश के द्वारा आप साफ साफ यीशु मसीह के बारे में समझ जाएंगे जो उद्धार का मार्ग है। मैं प्रभु के नाम में प्रार्थना करता हूं कि आप प्रभु को ग्रहण करेंगे और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेंगे।

प्यारे श्रोताओं, मानवजाति जो पापों के कारण, पापी बन चुकी थी कैसे उद्धार को प्राप्त कर सकती है? इसके अतिरिक्त मनुष्य पापों में पैदा होते, खाते, रहते, सीखते, अध्ययन करते और पापों में बढ़ते हैं। हॉलाकि परमेश्वर कुछ भी करने में सक्षम है तो क्या वह बिना शर्त के सब पापियों को माफ कर सकता है। शत्रु का नाश कर सकता है और हमे उद्धार दे सकता है?

यदि ऐसा होता तो, फिर मनुष्य की खेती की कोई आवयकता नही होती। परमेश्वर प्रेमी परमेश्वर है, और उसी समय वह न्यायी परमेश्वर भी है। वह सब कुछ आत्मिक क्षेत्र की व्यवस्था और नियम के अनुसार करता है। पापियों को क्षमा करना और उन्हें उद्धार देना अवश्य ही ठीक ठीक न्याय अनुसार होना चाहिए।

न्याय के अर्न्तगत मानवजाति को बचाने के लिए यीशु को कू्रस पर मरना पड़ा। हमारे स्थान पर यीशु को हमारे पापों को अपने उपर लेने के द्वारा परमेश्वर ने हमें क्षमा दी और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के योग्य बनाया।

यदि परमेश्वर प्रेमी हो और उसमें न्याय न हो तो इस संसार के सभी क्रम ढह जाएगे। कोई स्वतंत्र इच्छा न होगी। क्या होगा यदि परमेश्वर के पास न्याय न हो? मैं आपको पंक्ति में खड़ा करके आपके ऊपर हाथ रख कर आपकी आशीष ों के लिए प्रार्थना कर सकता हूं।

मैं आपके आशीषों के लिए प्रार्थना कर सकता हूं कि आपको 1000, 5000 या 10000 डॉलर या आधिक दशवांश देने पाओ। तो आशीष आ जाएगी। लेकिन क्या ये परमेश्वर का न्याय होगा? यदि आप बीमार है और मैं आपको लाईन में खड़ा करके चंगाई के लिए प्रार्थना करूं और यदि आप सब चंगे हो जाएं, तो क्या ये प्रेम है? क्या ये न्याय है?

परमेश्वर आपको तब आशीषें देता है जब आप अपने बर्तन को आशीष प्राप्त करने योग्य बनाते हैं। वह आपको तब चंगा करता है जब आप पाप की दीवारों को तोड़कर गिरा देते हैं और आपका विश्वास चंगाई पाने के योग्य हो जाता है। और जब आप प्रार्थनाएं ग्रहण करते हैं तो परमेश्वर आपके विश्वास के अनुसार कार्य करता है ये न्याय कहलाता है।

यही मनुष्य की खेती करना है। यदि आप जैसा आप चाहते हैं वैसे ही आशीषें प्राप्त करें, और आप केवल प्रार्थना के द्वारा चंगे हो जाए। तो इसका अर्थ ये हुआ कि न्याय जैसा कुछ है ही नही। तो फिर हर कोई इसी कलीसिया में आ जाएगा।

प्रत्येक जन प्रार्थना और आशीषे प्राप्त कर लेगा। और यदि हर कोई इस प्रकार से स्वर्ग चला जाता है तो फिर परमेश्वर के लिए मनुष्य की खेती करने का कोई उद्देश्य नहीं रह जाता है। वह सच्चे पुत्र या पुत्री प्राप्त नहीं कर सकता। वह कोई सच्ची संतान प्राप्त नहीं कर सकता जिसके पास सच्चा विश्वास हो, और जिसने बुराई को उतार फेंका हो और पवित्र बन चुका हो।

जैसा कहा गया है ‘‘पाप की मजदूरी मृत्यु है’’ क्रूस पर चढ़कर यीशु ने मृत्यु के दण्ड को ले लिया और पापियों के लिए पाप की मजदूरी को चुका दिया। जब हम इस सच्चाई में विश्वास करते हैं और यीशु को अपना उद्धारकर्ता ग्रहण करते हैं, तो हम विश्वास द्वारा धर्मी ठहरते हैं। यीशु के लहु द्वारा क्षमा प्राप्त करके हम मृत्यु के दण्ड से बच सकते हैं, और फिर शत्रु दुष्ट उन्हें जो प्रभु को ग्रहण करके परमेश्वर की संतान बन चुके हैं, और अधिक नियंत्रण में नहीं रख सकता।

तब उन्हें विपत्तियों में परिक्षाओं में या संकटों में रहने की जरूरत नहीं होती। लेकिन परमेश्वर की सन्तान के रूप में आशीषों में रहते हैं। लेकिन वे जो इस सत्य में विश्वास नहीं करते है वे पूछते हैं। क्यों हम उद्वार को केवल यीशु में विश्वास करके प्राप्त कर सकते हैं। वे जो इस प्रकार के सन्देह में है। वे कृप्या ध्यान से सुने।

वे कहते हैं बहुत से धर्म है। लेकिन क्यों यीशु ही केवल एकमात्र उद्धारकर्ता है? और क्यों केवल मसीहीयत में ही उद्धार है?

लेकिन हमें साफ-साफ जानना चाहिए, प्रेरितों के काम-4ः12 क्या कहता है ‘‘किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं, क्यांकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया है जिसके द्वारा हम उद्धार पाएं’’ परमेश्वर कहता है, यीशु के नाम को छोड़ कोई और नाम उसने हमें नहीं दिया है।

कोई और नहीं लेकिन केवल यीशु ही उद्धारकर्ता बन सकता है, और यीशु को अपना उद्धारकर्ता ग्रहण किये बिना हम में से कोई उद्धार प्राप्त नहीं कर सकता। तो फिर ऐसा क्यों है कि केवल यीशु ही हमारा एकमात्र उद्धारकर्ता है? क्यांकि ऐसा आत्मिक क्षेत्र के नियम के अनुसार है। ठीक जैसे संसार में नियम है वैसे ही आत्मिक क्षेत्र में भी नियम है।

मनुष्यों का मरना या क्षमा प्राप्त करना और उद्धार को प्राप्त करना, सब आत्मिक क्षेत्र के नियमों के अनुसार किया जाता है। आदम के पतन के बाद क्या कारण था कि मनुष्यजाति के लिए मृत्यु ठहरा दी गई। क्यांकि आत्मिक क्षेत्र का नियम यह आज्ञा देता है कि‘‘पाप की मजदूरी मृत्यु है’’।

आदम शत्रु दुष्ट का दास बन गया था जब उसने पाप कर दिया था। क्योंकि आत्मिक क्षेत्र का नियम यह आदेश देता है कि ‘‘जब तुम किसी की आज्ञा मानते हो तो उसके दास हो जाते हो’’ ठीक ऐसे ही मनुष्य का मृत्यु के दण्ड से छुटकारा पाना और उद्धार को प्राप्त करना भी आत्मिक क्षेत्र के अनुसार होना अवश्य है।

तो कैसे मानवजाति जो कि पापी है क्षमा और उद्धार प्राप्त कर सकती है? हम इसका जवाब बाइबल में प्राप्त कर सकते हैं। बाइबल में एक नियम है जिसे ‘‘भूमि छुड़ाने की व्यवस्था’’ कहते हैं।

लैव्यव्यवस्था-25ः23-25 कहता है ‘‘ भूमि सदा के लिये तो बेची न जाए, क्योंकि भूमि मेरी है; और उस में तुम परदेशी और बाहरी होगे। (हमारा वास्तविक घर स्वर्ग का राज्य है जहां हमारा पिता वास करता है, हम इस पृथ्वी पर परदेशी और प्रवासी हैं)। लेकिन तुम अपने भाग के सारे देश में भूमि को छुड़ा लेने देना।। यदि तेरा कोई भाईबन्धु कंगाल होकर अपनी निज भूमि में से कुछ बेच डाले, तो उसके कुटुम्बियों में से जो सब से निकट हो वह आकर अपने भाईबन्धु के बेचे हुए भाग को छुड़ा ले। ’’ इस्राएल में भूमि को बेचने और खरीदने का ये ही नियम था, ये न केवल वास्तविक भौतिक भूमि पर लागू होता था बल्कि मनुष्यों पर भी जो भूमि की मिटृ से बनाए गए हैं।

परमेश्वर ने कनान की भूमि को इस्राएल के लोगों के लिए उनके कबीलों और परिवारों के अनुसार बांट दिया था। लेकिन भूमि वास्तव में परमेश्वर की है। इसलिए लोग अपनी भूमि जो उन्होंने प्राप्त की थी बेच नहीं सकते थे, यदि उन्हें गरीब होने के कारण भूमि को बेचना पड़ता था, तो नजदीकी रिश्तेदार उस भूमि की कीमत चुकाकर उसे छुडा़ सकता था।

आम तौर से इस दुनियां में जब भूमि बेची जाती है,और जिसे बेची जाती है सारे अधिकार उसको पास चले जाते हैं। यदि खरीदने वाला भूमि का कुछ मुआवजा लेकर भूमि को वापिस देता है, तो काफी ये भाग्यशाली बात है, लेकिन यदि वह उसे बेचना नहीं चाहता तो हम कुछ नहीं कर सकते।

यदि भूमि का अधिकारी दुगनी कीमत पर भी इसे नहीं बेचना चाहता है, तो हम कुछ नहीं कर सकते।लेकिन इस्राएल में नियम ये है कि जब भूमि के वास्तविक स्वामी का नजदीकी रिश्तेदार भूमि की कीमत को चुका दे ।तो भूमि को खरीदने वाला यदि उसे बेचना न भी चाहें तौ भी उसे भूमि को वापिस करना होगा

भूमि को छुड़ाने की इस व्यवस्था मे मानवजाति के लिए उद्धार के मार्ग को दर्शाया गया है जो पापी बन गए थे। ऐसा इसलिए है क्योंकि ये भूमि जो परमेश्वर की है उसके छुटकारे की व्यवस्था सीधे मनुष्य पर लागु होती है जो भूमि की मिटृ से बनाए गए हैं।

उत्पत्ति-3ः19 कहता है, ‘‘तू अपने माथे के पसीने की रोटी खाया करेगा और अन्त में मिटृ में मिल जाएगा, क्योंकि तू उसी में से निकाला गया है। तू मिटृ तो हैं अतः फिर मिटृ में मिल जाएगा।

उत्पत्ति-3ः23 कहता है, ‘‘इसलिए यहोवा परमेश्वर ने उसे अदन की वाटिका से बाहर निकाल दिया कि उसी भूमि पर खेती करे जिसमें से वह बनाया गया था। एैसे ही मत्ती-13 और लूका-8 में यीशु ने मनुष्य के हृदय की तुलना भूमी से कि है। अर्थात भूमि!

परमेश्वर ने मनुष्य को अदन की वाटिका से बाहर निकाल दिया। वे श्रापित हो गए और पृथ्वी पर निकाल दिये गए क्योंकि वे भूमि की मिटृ से रचे गए थे। वे इस भूमि पर खेती-बाड़ी करने के लिए निकाल दिये गए जिसमे से वे बनाए गए थे।

लेकिन अनेकों लोग, यहां तक कि धर्मशास्त्रि भी इसे गलत समझते हैं, वे सोचते हैं अदन की वाटिका मध्य पूर्व में कहीं मौजूद है। वे अभी भी रेगिस्तान में खोज कर रहे हैं।

वे विश्वास करते हैं कि यह यहीं कहीं होनी चाहिए और अभी भी इसे गलत स्थानो में ढूंढ रहे हैं। क्योंकि वे इसे ढुढं नहीं सकते है। इसलिए वे कहते हैं कि बाइबल मे ये अभिलेक एक काल्पनिक कथा है। लेकिन अदन की वाटिका अभी भी मौजूद है क्यों? परमेश्वर ने बाइबल में कहा है।

उसने करूबों को और चारों ओर घूमनेवाली ज्वालामय तलवार को नियुक्त कर दिया, और ये अनन्त काल की वस्तु है फिर ये कहां है? आप इसे अच्छे से जानते हैं। आप ने उत्पत्ति में दिये गए उपदेशों को सुना है और आप में से कुछ ने अपनी आत्मिक आंखों द्वारा उसे देखा भी है।

इस प्रकार से दो प्रकार के नियमों का आपस में एक दूसरे के साथ सीधा सम्बन्ध है। एक नियम तो मनुष्यों के लिए , जो भूमि की मिटृ से रचे गये थे, उनका शत्रु दुष्ट के हाथों मे चला जाना और वापिस दोबारा परमेश्वर के पास आ जाना। और दूसरा नियम भूमि को छुड़ाने का नियम जो एक बार बेच दी गई हो।

जैसे इस्राएल की सारी भूमि परमेश्वर की है, वैसे ही आदम पर सारा अधिकार परमेश्वर का है, इसलिए इसे हमेशा के लिए बेचा नहीं जा सकता था।

आदम जो परमेश्वर द्वारा रचा गया था और उसके सब वंशज जो आदम और हवा के द्वारा उत्पन्न हुए थे, परमेश्वर के थे। क्योंकि जीवन का बीज परमेश्वर द्वारा दिया गया था इसीलिए वे हमेशा के लिए बेचे नहीं जा सकते थे। इसलिए यदि कोई जो खरीदने योग्य है आता है। तो वह ही उन्हें वापिस खरीद सकता है।

ये वह नियम है अनुबन्ध में जो परमेश्वर और शैतान ने तब बनाया जब आदम ने पाप किया और शैतान को सौंप दिया गया। इस नियम के स्पष्टीकरण के बारें मेंं मैने 1984 में सुना था। जब मैं क्रूस के संदेश के बारे में मूसा के द्वारा समझ रहा था।

ये और भी मजेदार बात होगी यदि मैं आपको बताऊँ की कैसे उन्होंने इस अनुबन्ध को बनाया था। 1980 में भी मैंने इसे समझाया था। ये सचमुच रहस्यमय है।

यद्यपि आदम ने पाप किया और शैतान का दास बन गया और उसने अपना सारा अधिकार उसे सौंप दिया। लेकिन फिर भी भूमी के छुटकारे के नियम के अनुसार यदि वहां कोई छुड़ाने योग्य होता तो शत्रु शैतान को उस अधिकार को वापिस देना पड़ता।

क्यांकि शत्रु शैतान इसे जानता है, इसलिए वह हमेशा से इस खोज में रहता था कि उद्धारकर्ता कौन है।

इसलिए जब भी कोई परमेश्वर के आश्चर्यकर्म करता था तो शैतान उन लोगों को मारने की कोशिश करता था ये सोचते हुए कि हो सकता है ये वह हों जो भूमि को छुड़ाने के योग्य हों अर्थात ‘‘उद्धारकर्ता’

जब प्रभु का जन्म हुआ और इसे पूर्व के ज्योतिषियों द्वारा बताया गया तो शैतान ने राजा को दो-दो वर्ष के लड़के बच्चों को मार देने के लिए उकसाया।

क्योंकि शत्रु शैतान जानता है कि भूमी के छुटकारो के नियम के अनुसार वह जो योग्य है कीसी न कीसी समय अवश्य आएगा। वह हमेशा से उद्वारकर्ता की खोज मे था और उसे मारने की कोशिश की।

इसीलिए शैतान ने हमेशा उन लोगों को जो परमेश्वर से प्रेम करते, प्रचार करते और परमेश्वर की सामर्थ्य को प्रकट करते थे मारने की कोशिश की। यह 2000 साल पहले और आज भी ऐसा ही है। बेशक उद्धारकर्ता पहले ही आ चुका है लेकिन लोग उद्धार प्राप्त न कर सके, इसलिए शैतान हमेशा परमेश्वर के लोगों को मारने की कोशिश करता है।

यहां किस बात की जरूरत है, एक ऐसे व्यक्ति की जो आदम के जीवन को छुड़ाने के योग्य हो। क्योंकि आदम का जीवन उसके पापों की कीमत के तौर पर बिक चुका था। वह व्यक्ति मानवजाति का उद्धारकर्ता बन सकता है।

परमेश्वर जिसने सच्ची संतान प्राप्त करने के लिए मानवजाति की खेती की योजना बनाई। उसने उद्धारकर्ता की भी योजना बनाई जो आदम को छुटकारा देगा। क्यांकि वह जानता था कि आदम भले-बुरे के ज्ञान के वृक्ष से खाएगा। और वहां एक व्यक्ति को उद्धारकर्ता के रूप में होना पड़ेगा। परमेश्वर ने एक व्यक्ति को तैयार किया जो योग्य था।

वह हमारा प्रभु यीशु मसीह है। भूमी के छुटकारे की व्यवस्था के अनुसार केवल यीशु ही ऐसा था जो मानवजाति को बचाने योग्य था। सृष्टि की रचना के समय से वह ही एक है।

भूमि के छुटकारे के नियम अनुसार उद्धारकर्ता की क्या योग्यताएं हैं । उसकी चार शर्ते हैं । आइए एक एक करके उन्हें देखें।


उद्धारकर्ता की पहली शर्त, ’’वह मनुष्य होना चाहिए’’।

आप कह सकते हैं, ये शर्त तो मैं भी पूरी कर सकता हूं क्योंकि मैं भी मनुष्य हूं’’ हां आप ठीक हैं, वह मनुष्य होना चाहिए, आप मनुष्य हैं, यहां कुत्ता, सूअर या कोई और जानवर नहीं हैं, सो उद्धारकर्ता बनने की चार शर्तों में से आपने पहली शर्त पूरी कर ली।
जैसा भूमि छुड़ाने की विधि के बारे में लैव्यव्यवस्था-25ः25 में वर्णन है’’ और यदि तुम्हारा भाई ऐसा दरिद्र हो जाए कि उसे अपनी निज भूमि से कुछ बेचना पड़े तो उसका जो सब से निकट कुटुम्बी हो, वह आकर उस भूमि को जिसे उसके भाई ने बेच डाला है छुड़ा ले।
जो व्यक्ति उस बेची हुई भूमि को छुड़ा सकता है वह निकट सम्बन्धी होना चाहिए। वैसे ही मनुष्य को छुड़ाने के लिए जो पाप के कारण शत्रु दुष्ट और शैतान को बेचा जा चुका है उसका छुड़ाने वाला भी आदम का सम्बन्धी होना चाहिए। आदम का सम्बन्धी होने का मतलब है ऐसा प्राणी जिसके पास आत्मा, प्राण और देह आदम के समान हों।
इसलिए 1कुरून्थियों-15ः21-22 कहता है ‘‘क्योंकि जब एक मनुष्य के द्वारा मृत्यु आई तो मनुष्य ही के द्वारा मरे हुओ का पुनरूत्थान भी आया (22) जिस प्रकार आदम में सब मरतें हैं। उसी प्रकार मसीह में सब जिलाए जाएंगे।
क्यांकि एक मनुष्य आदम के द्वारा मृत्यु आई। तो मृतकों का पुनरूत्थान भी एक मनुष्य के द्वारा आया जिसका अर्थ यह है कि उद्धारकर्ता भी, मनुष्य होना चाहिए।
इसीलिए उद्धारकर्ता की एक शर्त यह है कि वह मनुष्य होना चाहिए।
इस प्रकार मनुष्यों के पापों की कीमत को चुकाने के लिए छुड़ाने वाला मनुष्य होना चाहिए, इसलिए उद्धारकर्ता यीशु को भी मनुष्य ही होना था। लेकिन वह परमेश्वर का पुत्र है जो सृष्टिकर्ता परमेश्वर से विवभाजित हुआ था, और उसके पास ईश्वरीयता का सामर्थ्य, अधिकार और महिमा है।
तो यीशु कैसे मनुष्यों का कुटुम्बी हो सकता हैं?
यूहन्ना-1ः14 का पहला भाग यीशु के बारे में बताता है। ‘‘वचन देहधारी हुआ और हमारे बीच में निवास किया’’ यूहन्ना-1ः1 का दूसरा भाग कहता है ‘‘वचन परमेश्वर था’’
वचन देहधारी हुआ और हमारे बीच में निवास किया। और ये वचन परमेश्वर है। इसका अर्थ परमेश्वर जो वचन है, जिसने शारीरिक देह को मांस और हड्डियों के साथ पहन लिया और इस पृथ्वी पर आ गया।
क्यांकि उद्धारकर्ता को मनुष्य होना था, इसलिए हमारे प्रभु के पास आत्मा, प्राण और देह था। इसलिए जब वह सलीब पर मरा, तो उसने कैसे प्रार्थना की? उसने कहा, ‘‘हे पिता मैं अपना आत्मा तुझे सौंपता हूं’’ उसके पास हमारे जैसा ही आत्मा, प्राण और देह था।
यद्यपि वह पवित्र आत्मा द्वारा गर्भ में आया, फिर भी वह हमारा कुटुम्बी हो सकता है। क्या आप इसे समझते हैं? इसका सीधा सम्बन्ध आपके जीवन से हैं, इसलिए आपको इसे अच्छी तरह से समझना चाहिए कि आप किसी और के द्वारा धोखा न खाओ।
यीशु मसीह मनुष्य का शरीर धारण कर उत्पन्न हुए और एक मनुष्य की तरह मानवजाति को उनके पापां से छुड़ाने के लिए उत्पन्न हुए। क्यांकि वह मनुष्य था, उसे सोना पड़ता था और भूख और प्यास, आनन्द और दुख महसूस होता था। इसे हम बाइबल में देख सकते हैं। यीशु ने जहाज के निचले हिस्से में कुछ नींद ली। उसने खाना खाया और वह प्यासा भी था उसने पानी मांगा, वह आनन्दित, दुःखी हुआ और समय समय पर आंसू बहाए और जब उसने कष्ट उठाया और सलीब पर टांगा गया उसने अपना लहू बहाया और दर्द को महसूस किया।
यदि ऐतिहासिक रूप से देखें तो क्या हमारे पास प्रमाण हैं कि यीशु मसीह इस पृथ्वी पर आया था? हां हमारे पास हैं। ये आपके पास आपके घरों में हैं। आपके बेडरूम में इसके प्रमाण है। की मानवजाति का इतिहास दो भागों में बटा हुआ है, और यीशु के जन्म का समय उसका केन्द्र है।
संसार के इतिहास का समय आज साधारणतः ठण्ब्ण् और ।ण्क् में बंटा हुआ है।ठण्ब्ण् यीशु से पहले यानि यीशु के जन्म से पहले। ।क् यानि ।ददव क्वउपदप जिसका अर्थ ‘‘प्रभु के वर्ष में’’ ये यीशु के जन्म के बाद के समय को दर्शाता है। जब हम कहते हैं 2009 ।क् तो हमारा मतलब होता है 2009 साल गुजर चुके हैं यीशु को इस धरती पर मनुष्य रूप में जन्मे लिए हुए।
उद्धारकर्ता यीशु जिसमें हम विश्वास करते हैं। जो कि वचन है इस पृथ्वी पर देह में आया और हमारे बीच में निवास किया। इतिहास इस सत्य का गवाह है। यहां तक की अविश्वासियों के पास भी कैलेण्डर है। 2009 ए डी का अर्थ है 2009 साल बीत चुके हैं यीशु को इस पृथ्वी पर आए हुए। क्या आप इस पर विश्वास करते हैं? चाहे विश्वास करें या न करें कुछ फर्क नहीं पड़ता, ये सत्य सत्य ही रहेगा।
केवल देखने के द्वारा कि एक बड़ा ऐतिहासिक चिन्ह यीशु के जन्म का है। हम साफ साफ देख सकते हैं, कि यीशु इस पृथ्वी पर एक मनुष्य रूप में आया। यीशु परमेश्वर का पुत्र है लेकिन वह इस पृथ्वी पर मनुष्य रूप में आया था। उसने छुड़ाने वाले की पहली शर्त को पूरा किया।


और दूसरी शर्त उद्धारकर्ता के लिए यह थी कि वह आदम का वंशज नहीं होना चाहिए।

आदम के सब वंशज पापी हैं। स्वयं पापी होने के कारण एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के पापों को नहीं मिटा सकता। उदाहरण के लिएः- आइए माने की दो भाई हैं। छोटे भाई के ऊपर बहुत बड़ा कर्ज है और अब उसे जेल जाना है। और यदि बड़ा भाई कर्जा चुका दे तो छोटे भाई को जेल नहीं जाना पड़ेगा।

लेकिन यदि बड़े भाई के ऊपर भी बहुत कर्जा है और इसे भी जेल जाना है तो वह अपने छोटे भाई का कर्जा नहीं चुका सकता। चाहे कितना भी वह छोटे का कर्जा चुकाने की कोशिश करें वह नहीं चुका सकता।

यद्यपि कोई अपने कुटुम्बी की बेची हुई भूमि को छुड़ाना चाहे लेकिन यदि वह स्वंय गरीब है और अपनी भूमि बेच चुका है तो वह दूसरों की भूमि छुड़ाने की दशा में नहीं है। इसी तरह उद्धारकर्ता भी एक मनुष्य होना चाहिए,जो मनुष्यों को उनके पापों से छुड़ा सकता है। लेकिन ठीक उसी समय वह पापी नहीं होना चाहिए।

क्यांकि आदम ने पाप किया और मृत्यु के मार्ग को चल पड़ा। इसीलिए एक पापी दूसरों को उनको पापों से छुड़ाने के लिए उद्धारकर्ता नहीं बन सकता। और इसीलिए उद्धारकर्ता आदम का वंशज नहीं होना चाहिए, क्योंकि आदम के सब वंशज पापी हैं।

इसका कोई फर्क नही पडता कि आप कौन सी जाति या कौन से देश से हैं। यदि आप दादाओं के दादाओं तक पीछे लौटते जाएं तो अन्त में सब का एक ही पूर्वज होगा और वह है आदम। सो मनुष्यों में कोई नहीं था जो उद्धारकर्ता होने के लिए दूसरी शर्त को पूरी कर पाता।

लेकिन केवल यीशु जो एक मनुष्य हेकर इस संसार में आया वह आदम का वंशज नहीं था यद्यपि वह मनुष्य था।

इस प्रकार यीशु मसीह उद्धारकर्ता की दूसरी शर्त को भी पूरा करता है।

यहां एक बात को आप साफ साफ जान लें। क्या कुंवारी मरियम आदम की वंशज है या नहीं? हां वह है। लेकिन उद्धारकर्ता आदम का वंशज नहीं होना चाहिए, लेकिन मरियम है। तो यदि कोई भी जो आदम के वंश से उत्पन्न हुआ है। वह व्यक्ति उद्धारकर्ता नहीं हो सकता।

मैं कह रहा हूं कि यदि उस व्यक्ति के पैदा होने में बीज का अर्थात, मरियम के अण्डणु का कार्य पाया जाता है तो वह उद्धारकर्ता नहीं बन सकता। इसलिए उद्धारकर्ता मनुष्य होना चाहिए लेकिन आदम का वंशज नहीं होना चाहिए। इसलिए परमेश्वर ने उद्धारकर्ता को जीवन का बीज, पुरूष का शुक्राणु और स्त्री के अण्डे को नहीं प्राप्त करने दिया। उसने उद्धारकर्ता को पवित्र आत्मा के द्वारा गर्भ में आने दिया।

इसलिए वह आदम का वंशज नहीं है। और जब परमेश्वर का पवित्र वचन शारीरिक देह में इस पृथ्वी पर आया, तो इस पृथ्वी पर पवित्र मां कैसे हो सकती है।

परमेश्वर अल्फा और ओमेगा है और उसका आदि या अन्त नहीं है, और कैसे कोई उसकी मां हो सकती है? वह तो केवल एक मात्र प्राणी है। वह सवयं युग्मक के द्वारा अर्थात मनुष्य के जीवन के बीज के द्वारा पैदा हुई थी। यदि वह यीशु की मां होती, तो यीशु कभी भी हमारा उद्धारकर्ता नहीं बन सकता था।

क्यांकि इसका अर्थ तो ये हुआ कि यीशु भी आदम का वंशज है। इसका अर्थ ये हुआ कि आदम का लहू उसने प्राप्त किया। वह उद्धारकर्ता नही बन सकता। मैं आशा करता हूं सब देखने वाले और सारे कैथोलिक इसे समझेंगे।

उद्धारकर्ता बनने के लिए वह आदम के वंश से नहीं होना चाहिए, और कैसे वह आदम का लहू या शुक्राणु या अडांणु प्राप्त कर सकता है? इसलिए वह कुंवारी यीशु की मां नहीं है।

लेकिन हम क्यों कहते हैं आदम के सब वंशज पापी हैं? और क्यों यीशु मसीह आदम का वंशज नहीं है, यद्यपि वह मनुष्य है? इन बातों के बारे में आपको अगले सत्र में समझाऊंगा।

आईए संदेश के अन्त में चले,

मसीह में प्यारे भाईयो और बहनों, प्रकाशितवाक्य 5ः1-2 कहता है ‘‘जो सिंहासन पर बैठा था उसके दाहिने हाथ में मैंने (यूहन्ना ने) एक पुस्तक देखी जो भीतर-बाहर लिखी हुई थी तथा सात मुहर लगाकर बन्द की गई थी (2) फिर मैंने एक बलवान स्वर्गदूत को देखा जो ऊंची आवाज से प्रचार कर रहा था’’ इस पुस्तक को खोलने और उसकी मुहरों को तोड़ने के योग्य कौन है?

ये पुस्तक जो परमेश्वर के हाथ में है, ये वह पुस्तक है, जो एक अनुबन्ध के समान है जो परमेश्वर और शत्रु दुष्ट और शैतान के बीच में भूमि के छुटकारे की व्यवस्था अनुसार बनाया गया था।

इस्राएल में भूमि बेचने के बाद वे एक अनुबन्ध लिखते हैं और बेचने और खीदने वाले की मोहर लगाकर उसे मोहरबन्द कर देते हैं। एक अनुबन्ध की प्रतिलिपी मन्दिर के भण्डार गृह में रख देते हैं। और जब कुटुम्बी आता है और भूमि को छुड़ाता है तो वे उस अनुबन्ध की प्रतिलिपी को बाहर निकाल कर उसकी मोहरबन्द को तोड़ देते हैं और फाड़ देते हैं।

ठीक इसी तरह मानवजाति को छुड़ाने के लिए जो अपने पापों के कारण बिक चुके थे। और अनुबन्ध की मोहर तोड़ने के लिए वहां एक व्यक्ति होना चाहिए जो आदम का कुटुम्बी होने के नाते मोहर को तोड़ सके।

आगे की आयतें 3 और 4 कहती हैं ’’पर स्वर्ग में या पृथ्वी पर या पृथ्वी के नीचे उस पुस्तक को खोलने और पढ़ने के योग्य कोई न मिला (4) इस पर मैं फूट फूट कर रोने लगा, क्यांकि उस पुस्तक को खोलने या पढ़ने योग्य कोई न मिला’’।

ये कौन है (मैं) ये यूहन्ना है यीशु के बारह चेलों में से एक जिसने प्रकाशितवाक्य की पुस्तक को लिखा, मैं फूट फूट कर रोने लगा, स्वर्ग में केवल स्वर्गदूत और आत्माएं हैं। पृथ्वी पर केवल जानवर और पापी हैं, और पृथ्वी के नीचे शत्रु शैतान और दुष्टआत्माएं हैं।

यूहन्ना रो रहा था क्यांकि उसे कोई न मिला जिसमें पापी को बचाने की योग्यताएं हों।

और उस समय स्वर्गराज्य के प्राचीनों में से एक ने यूहन्ना को आराम पहुंचाया और कहा ‘‘मत रो’’ देख यहूदा के कुल का वह सिंह जो दाऊद का मूल है विजयी हुआ है कि इस पुस्तक को और उसकी सात मुहरों को खोले’’

दाऊद का मूल यहूदा के कुल का वह सिंह यीशु को दर्शाता है।

यह हमे बता रहा है कि भूमी के छुटकारे की व्यवस्था के अनुसार यीशु के पास मानवजाति को छुटकारा दिलाने की योग्यताएं है। मैं आशा करता हूं कि आज के और आने वाले सन्देशों के द्वारा आप जानेंगे कि क्यों केवल यीशु मसीह ही हमारा उद्धारकर्ता है।

न केवल जब आप अंगीकार करते हैं कि ‘‘प्रभु, मैं विश्वास करता हूं’’ लेकिन जब आप वास्तव में समझते और विश्वास करते हैं कि क्यों केवल यीशु के पास ही उद्धारकर्ता बनने की योग्यताएं हैं तब वास्तव में आप आत्मिक विश्वास प्राप्त कर सकते है।

आपको इस जवाब को साफ साफ समझ लेना चाहिए कि क्यों उद्धार केवल मसीहीयत में ही यीशु के द्वारा उद्धार पाया जाता है। तो आप भी हमारे प्रभु के नाप पर भरोसा रखकर एक सामर्थी मसीही जीवन की अगुआई कर पाएगें

इसी प्रकार हमारे उद्वारकर्ता यीशु मसीह को समझने के द्वारा और अपने हृदय मे दृढ़ विश्वास रखने के द्वारा मैं प्रभु के नाम में प्रार्थना करता हूं कि आप भी परमेश्वर की उद्धार पाई हुई सन्तान के रूप रूप में स्वर्ग के राज्य में पहुंचेंगे। आमीन

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