Krus Ka Sandesh 09 – क्यों केवल यीशु मसीह ही हमारा उद्धारकर्ता है?

क्यों यीशु ही हमाराएकमात्र उद्धारकर्ता है-2

पवित्र शास्त्रः 1कुरिन्थियों 2ः6-9

‘‘फिर भी सिद्ध लोगों में हम ज्ञान की बातें सुनाते हैं, परन्तु इस संसार का और इस संसार के नाश होनेवाले हाकिमों का ज्ञान नहीं; परन्तु हम परमेश्वर का वह गुप्त ज्ञान, भेद की रीति पर बताते हैं, जिसे परमेश्वर ने सनातन से हमारी महीमा के लिये ठहराया। जिसे इस संसार के हाकिमों में से किसी ने नहीं जाना, क्योंकि यदि वे जानते तो तेजोमय प्रभु को क्रूस पर न चढ़ाते। परन्तु जैसा लिखा है, ‘‘जो बातें आँख ने नहीं देखीं और कान ने नहीं सुनीं, और जो बातें मनुश्य के चित में नहीं चढ़ीं, वे ही हैं जो परमेश्वर अपने प्रेम करनेवालों के लिय तैयार की हैं।श्

मसीह में प्यारे भाईयों बहनों और श्रोताओ-

क्रूस का सन्देश का यह सातवां भाग है। और पिछले भाग को ज़ारी रखते हुए, मै आपको यह प्रमाणित करूंगा कि यीशु ही हमारा उद्धारकर्ता है। इस संदेश की विषय सूची बहुत ही महत्वपूर्ण है यह हमारे लिए उद्धार प्राप्त करने और एक सामर्थी मसीही जीवन जीने के लिए एक निष्कर्ष है ।

उदाहरण के लिएः- मान लिजिए आपके पास एक संतरा है, अगर आप सोचते हैं कि यह स्वादिष्ट है क्योंकि दूसरे लोग बोल रहे हैं, तो इससे आप सबको कोई लाभ नहीं होगा। लेकिन जब आप इसे छीलकर खायेंगे तब आप इसके वास्तविक स्वाद को महसूस कर पायेंगे, और इसके पोशक तत्व से आपको लाभ मिलेगा।

विश्वास के साथ भी ऐसाही है। अपने दिमाग मे ज्ञान के तौर पर जानने के द्वारा कि जब मै यीशु पर विश्वास करूंगा तो उद्धार पाउंगा, आप उद्धार नही पा सकते। केवल कहने मात्र ही कि आप विश्वास करतें है वो भी इसलिए क्योंकि किसी ने आपको ऐसाकरने को कहा है, आप एक सामर्थी मसीही जीवन व्यतीत नही कर सकते।

आपको यह साफ तौर पर जान लेना चाहिए कि क्या कारण है कि यीशु ही हमारा उद्धारकर्ता है, और क्यों आप प्रभु यीशु में विश्वास करने के द्वारा उद्धार प्राप्त करते हैं?

तब ही आप आत्मिक विश्वास प्राप्त करते हैं और शत्रु दुष्ट और शैतान आपको परीक्षा में नही डाल सकता। और जब आप प्रचार करेंगे तो आपके पास वचन पर अधिकार होगा।

मैं आशा करता हूँ कि आप आज पूरी रीति से समझ गये होंगे कि क्यों यीशु ही हमारा उद्वारकर्ता है। और इसे अपने दिमाग में रखेंगे, क्योकि जब कोई आप से पूछेगा कि क्यों और कैसे यीशु मसीह ही हमारा एकमात्र उद्धारकर्ता है, तो आप उस समय इस प्रश्न का उत्तर देने के योग्य होंगे।

मैं प्रभु के नाम से प्रार्थना करता हूँ कि आपमें यीशु मसीह का जीवन हो, और उस जीवन को आप अनेको लागों को प्रचार करने के योग्य होंने पाओ।

मसीह मे प्यारे भाईयो, बहनों और श्रोताओ, मानवजाति जो कि पापी हैं उद्धार पाने लिए एक उद्धारकर्ता होना चाहिए, जो उनको उनके पापों से उद्धार दे सके। और उद्धारकर्ता बनने के लिए उसमे योग्यता होनी चाहिए।

मैंने आपको बताया कि उद्धारकर्ता होने के लिए पहली शर्त यह है कि वह एक मनुष्य होना चाहिए। भूमि छुड़ाने के नियम के विधि अनुसार केवल एक आदम का सम्बन्धि और एक मनुष्य ही इस योग्य है कि मनुष्य को उनके पापों से छुड़ा सके। इसलिए आप पहली शर्त को पूरा करते हैं, भूमि छुड़ाने के नियम के विधि अनुसार, केवल एक मनुष्य जो आदम का सम्बन्धि है, उसके पास ही यह योग्यता है कि मनुष्यों को उनके पापों से छुड़ा सके।

इतिहास बताता है कि यीशु एक मनुष्य के रूप में पैदा हुआ, और पहली शर्त के अनुसार वह योग्य है।

दूसरा शर्त क्या थी?

मैंने आपको बताया कि वह आदम के वंश का नही होना चाहिए। क्योंकि आदम के सभी वंश पापी थे, वे दूसरों को उनके पापों से नही छुड़ा सकते। पिछले भाग में मैंने आपको यहाँ तक बताया था।

मसीह में प्यारे भाईयो और बहनों, क्यों आदम के सभी वंशज पापी थे? यह इसलिए, क्योकि आदम के वंशजो ने जन्म से ही आदम के पाप को प्राप्त किया।

चलिए इसमें विस्तार से प्रकाश डालते हैं। जब परमेश्वर ने मनुष्य को बनाया, परमेश्वर ने आदम और हव्वा को जीवन का बीज़ दिया।

संक्षेप में, परमेश्वर नये जीवन को गर्भ धारण, पुरूष के शुक्राणु और स्त्री के अण्डे के संयोजन के द्वारा देता है।

माता-पिता की जीवन उर्जा उनके शुक्राणु और अण्डाणु मे पाई जाती है। और माता-पिता का स्वभाव, व्यक्तित्व, विषेशताएं और रूपरंग उनमें पाये जाते है। इसलिए जो बच्चे शुक्राणुओं और अडाणु के संयोजन से पैदा होते हैं उनका चेहरा, व्यक्तित्व, शारीरिक आकार यहां तक उनकी आदत भी अपने माता-पिता से मिलती जुलती है। अगर माता-पिता का शरीर बड़ा है तो उनके बच्चों का शरीर भी बड़ा होगा।

अगर माता-पिता गर्म मिजाज के हैं, तो बच्चों के स्वभाव में भी गर्ममिजाज होने की सम्भावना अधिक होती है। यदि माता-पिता कोमल और नम्र स्वभाव के हैं, तो आमतौर पर उनके बच्चे भी कोमल होते हैं।

कुछ मामलो में, जब बच्चे छोटे होते हैं तभी उनके पिता की मृत्यु हो जाती है। लेकिन जब बच्चा बड़ा होता है, तो उसमें अपने मृत पिता के चलने का तरीका, सोने की आदते और स्वाद को देखा जा सकता है।

बच्चे केवल अपने माता-पिता के समान ही नहीं वरन अपने दादा-दादी, नाना-नानी के समान भी होते हैं। वैसे ही, पूर्वजों के विशेषताऐ उनकी संतानो मे चली जाती है जो उनकी सफल पीढ़ी को दर्शाती है।

चरित्र, आदतें, और व्यक्तित्व उनकी संतानो तक माता पिता के शुक्राणु और अंडाणु के माध्यम से जाते है।
बेशक, यहां तक कि एक ही माता-पिता से, बच्चों में कुछ विशेषताएं अन्य विशेषताओं से भी अधिक पाई जाती है। उनमें केवल मामूली सा अंतर पाया जाता है, लेकिन मूल तौर पर वे सब अपने माता-पिता के जीवन उर्जा को प्राप्त करते हैं। और इस जीवन उर्जा मे पापमय स्वभाव पाया जाता है।
क्योंकि पहले मनुष्य आदम के पाप में गिर जाने से, पूर्वजों का पापमय स्वभाव उनके वंशजां में आगे बढ़ता जाता है। यह मूल पाप है।
इसलिए आदम के सभी वंशज पापी हैं जिन्होने जन्म से ही आदम के पापमय स्वभाव को विरासत में पाया है।
रोमियों-5ः12 कहता है, ‘‘इसलिए जैसा एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, ;और वह मनुष्य आदम थाद्ध और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, यह इसलिए, ;क्योंकि पाप की मज़दूरी मृत्यु हैद्ध कि सबने पाप किया।
यह हमे बताता है कि एक मनुष्य आदम के पाप के कारण सभी मनुष्यों पर मृत्यु आई।
यदि मैं कहूं कि मनुष्य पापी के समान जन्म लेता है तो कुछ लोग यह सोचकर आश्चर्य कर सकते है कि, नये जन्मे बच्चे तो बहुत साफ और शुद्ध होते हैं। तो उनमे कौन से पाप पाये जाते है।? लेकिन आप उन्हें ध्यान से देखें, तो यहां तक छोटे बच्चों में भी बुराई पाई जाती है।
यहां तक कि वे एक साल के भी नही होतें तो भी उनमें हम बुराई पाते हैं। उदाहरण के लिए, यदि माता-पिता गर्म मिजाज के हैं तो नये जन्में बच्चो में भी काफी हद तक गुस्सा होता है। जब वे भूखे होतें है और जल्दी से उन्हें भरपूर दूध न पिलाया जाये, तो अपने चेहरा लाल पड़ जाता है और वे बहुत जोर जोर से रोते हैं।
और यहां तक आंसु बहाते हैं कि उनका गला घुटने लगता है। इस स्थिति में यदि मां बच्चे को दूध पीने के लिए अपना स्तन देती है तो बच्चा स्तनपान करने की कोशिश नहीं करता, लेकिन अधीरता के साथ रोता रहता है।
वे इन्कार करने के लिए सिर्फ अपना सिर हिलाते हैं। वे अपने मां के स्तन से दूध पीने से इन्कार करते हैं। और वे ये कहने की कोशिश करते हैं कि क्यों आपने दूध पिलाने मे इतनी देर की है? मै बहुत गुस्सा हूं और मै अभी दूध नही पीना चाहता। किसने इन नवजात शिशु को गुस्सा और अधीर होना सिखाया? जो अभी बातचीत भी नहीं कर पाता हैं।
यह इसलिए नही कि किसी ने उन्हें बुराई के बारे मे बताया, और उन्हे सिखाया वरन इसलिए क्योंकि वे अपने माता पिता से पापमय स्वभाव के साथ जन्मे है।
मैं ग्रामीण इलाके से था और सियोल मे पढ़ाई करता था। इसलिए छुटियों के दिनों मे मुझे घर जाना होता था। वहां कई सारे बच्चे होते थे।
मेरी छुटियों के दौरान मैं पास्टर हियोनकुवोन जू को अपने पीठ पर उठाता था। क्योंकि उसकी मां खेत मे काम करती थी मै उसको उसकी मां के पास दूध पिलाने के लिए खेत मे ले जाता और उसकी देखभाल करता था।और कई बार वह मेरे पीठ में पेशाब कर देता था।
मैने कई बच्चों को देखा जो सभ्य थे। हालांकि मैने उन्हें जल्दी से दूध नही पिलाया, वे बस कुछ समय के लिए रोते थे, और जब उन्हें दूध दे दिया जाता था, तो वे उसे जल्दी से पीते और हसने लगते थे। लेकिन कुछ बच्चे थे जो बहुत शरारती थे। और साथ ही बहुत गुस्से वाले थे।
उन शरारती बच्चों मे से एक हियोनकुवोन जू भी थे। इन नवजात बच्चों को गुस्सा और चिढ़चिढ़ापन करना किसने सिखाया? किसी ने उन्हें बुरा करना नहीं सिखाया। लेकिन वे अपने माता-पिता के स्वभाविक पाप के साथ जन्मे थे।
मैं एक और उदाहरण आपको देता हूं। जब मां अपने बच्चे के सामने किसी दूसरे बच्चे को गले लगायेगी तब क्या होगा?
बहुत से बच्चे ये पसन्द नहीं करते। और वे उस दूसरे बच्चे को अपने मां से अलग करने की कोशिश करते हैं।
वे सोचते हैं कि क्यों किसी और का बच्चा मेरी मां द्वारा गले लगाया जा रहा है? गांवो में स्त्रियां केवल मजाक करने के लिए दूसरे बच्चे को स्तनपान कराती हैं। तब उनके बच्चे यह बर्दाश्त नहीं कर पाते। और वे आकर उस बच्चे को दूर करने की कोशिश करते हैं, ताकि उनकी मां फिर उस दूसरे बच्चे को स्तनपान न कराये।
उनके भावनाओ के साथ उनके मन को भी ठेस लगती है जिसका अर्थ है कि क्यों किसी और का बच्चा मेरी मां की गोद मे है क्यो वह उसे प्यार दे रही है, क्यों वह मेरी मां का दूध पी रहा है।
यदि बच्चा अपनी मां से दूसरे बच्चे को अलग नही कर पाते हैं तो वे अपनी मां के उपर गुस्सा हो जाता है और कभी-कभी उसे मारता भी है। अगर वह भी काम नहीं करता तो वह आसुओं मे फूट पड़ता है।
अगर बच्चे में कोइ पाप नहीं है, और केवल अच्छाई और एक साफ दिल है, तो वह इस तरह की प्रतिक्रिया कभी भी नहीं दिखायेगा।
सत्य का अर्थ है अच्छी चीजों को दूसरो से साझा करना ,अगर दूसरा कोई बच्चा अपने मां का दूध बांटता है तो उसे नाराज़ होने के बजाय खुश होना चाहिए। और नापसंद का कारण यह है कि उसमें ईर्ष्या जलन और लालच है, । जो उसे इस बात के लिए उकसाता है कि वह ही अकेले अपनी मां का दूध पीये।
तो ईर्ष्या, जलन, लालच और चिड़चिड़ापन जैसे पापों को बच्चे में किसने डाला?
यह किसी के द्वारा नहीं डाला,लेकिन बच्चे का जन्म मूल स्वाभाविक पाप के साथ हुआ जो आदम से आया है। इसलिए, भजन संहिता-51ः5 में दाउद ने कहा है, देख, मैं अधर्म के साथ उत्पन्न हुआ, और पाप के साथ अपनी माता के गर्भ में पड़ा।
इसी तरह, सभी मनुष्य जो आदम के वंशज हैं वे सभी मूल पाप के साथ पैदा हुए हैं इसलिए कोई मनुष्य ऐसानही है जो उद्धारकर्ता हो सके।
यहां तक कि कुछ बीमारियां भी विरासत में मिलती है। ज़रा इसके बारे में सोचें। जीवन के इस एक छोटे से बीज़ में, शुक्राणु और अण्डाणु जो दिखाई भी नही देते, उसमें, व्यक्तित्व सहित रूपरंग ,चरित्र, आदतें, और सबकुछ पाया जाता है।
यहां तक कुछ बीमारियां छोटे से बीज में निहित होती हैं, और जो बीज़ दिखाई भी नहीं देता वो विरासत में मिलती है।
कुछ रोग जन्मजात होते है। यह बहुत आश्चर्यजनक है। उदाहरण के लिए, मां के शरीर में एक गांठ या पैदाइशी निशान होता है। इसी तरह आप यह देख सकते हैं कि उसके बच्चे में भी यह पैदाइशी निशान होगा या जिस स्थान पर मां को गांठ है उसी स्थान पर बच्चे को भी होगा। यह बहुत आश्चर्यजनक है।
सब कुछ एक छोटे से बीज में पाया जाता है, और बच्चा बढ़ता जाता है। यह पैदाइशी निशान चाहे वह लड़की हो या लड़का एक ही स्थान पर एक ही तरह का होता है। यदि माता-पिता के मुंह में कुछ गड़बड़ी है तो आप उनके बच्चे में भी गड़बड़ी को देख सकते हैं।
केवल यीशु ही एक मनुष्य है जो आदम के वंश से नहीं है।
क्यों यीशु एक मनुष्य होते हुए भी आदम के वंश का नहीं है? शारीरिक रूप में यीशु की वंशावली आदम के वंश से है, और उसके माता-पिता युसुफ और मरियम थे।
परन्तु मत्ती-1ः20 कहता है, कि वह पवित्र आत्मा से गर्भवती है, अर्थात वह शुक्राणु और अंडाणु के संयोजन के द्वारा नही पर पवित्र आत्मा से गर्भवती थी। और मत्ती-1ः23 में भविष्यवाणी है कि, कुवांरी गर्भवती होगी, जरा समझिये यदि एक शादीशुदा स्त्री पवित्र आत्मा से गर्भवती हो, तो लोग कहेंगे कि यह पवित्र आत्मा के द्वारा नहीं परन्तु यह स्त्री और पुरूष के मिलन से हुआ। एक कुवांरी गर्भवती होगी और एक पुत्र जनेगी और उसका नाम इम्मानुएल रखा जाएगा।
मनुष्य का मूल पाप के साथ पैदा होने का कारण यह है क्योंकि वह अपने माता पिता के शुक्राणु और अंडाणु के द्वारा पापमय स्वभाव को प्राप्त करते है।
परन्तु यीशु, युसूफ के शुक्राणु या मरियम के अंडाणु के द्वारा गर्भ में नही आया, बल्कि पवित्र आत्मा के सामर्थ्य से गर्भ में आया।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर बिना किसी स्त्री और पुरूष के शुक्राणु और अंडाणु के, पवित्र आत्मा की सामर्थ के द्वारा गर्भ में उत्पन्न कर सकता था। युसुफ और मरियम दोनो ही आदम के वशंज है। यीशु ने केवल मरियम के शरीर को उधार लिया। वह पवित्र आत्मा के द्वारा गर्भ मे उत्पन्न हुआ, इसलिए उसने पापियों के किसी भी जीवन उर्जा को प्राप्त नहीं किया।
इसलिए प्रकार यीशु आदम के वंश का नहीं है इसलिए उसमे कोई मूल पाप नहीं है। पृथ्वी के सभी मनुष्यों में केवल यीशु मसीह ही पवित्र आत्मा के द्वारा गर्भ में आया। यहां तक कि दुनिया में जितने भी महान पुरूष हैं वे सभी आदम के वंशज हैं और उनमें पाप है। इसलिए वे उद्धारकर्ता नहीं हो सकते। केवल यीशु ही मनुष्यों का उद्धारकर्ता बन सकता है।
मसीह में प्यारे भाइयों और बहनों, यहां पर और एक बात है जो आपको याद रखना चाहिए।
बेशक मरियम अच्छी और प्यारी स्त्री थी और वह परमेश्वर द्वारा चुनी हुई थी, कि वह यीशु को जन्म दे। लेकिन फिर भी मरियम एक प्राणी है और वह यीशु की मां नहीं बन सकती।
इसलिए बाईबल में यीशु ने मरियम को एक बार भी मां कहकर नहीं पुकारा। कभी-कभी चेलो ने मरियम को मां करके लिखा हैं, लेकिन यह चेलों की दृष्टिकोण के अनुसारं था।
उदाहरण के लिए, यूहन्ना-19ः26 कहता है- जब यीशु ने अपनी मां को वहां देखा, और वह चेला जिससे यीशु प्यार करता था पास खड़ा था, उसने अपनी मां से कहा, हे नारी, देख यह तेरा पुत्र। यहां वाक्यांश है उसकी मां यह यूहन्ना के द्वारा लिखा गया है।
और यूहन्ना-2ः4 में हम देखते हैं, कनान में एक शादी के भोज मे, यीशु ने कहा, हे महिला मुझे तुझसे क्या काम अभी मेरा समय नहीं आया।
कुछ लोग मरियम को पवित्र माता कहते हैं यहां तक की उसके सामने झुकते भी हैं। और उससे प्रार्थना करते हैं केवल इसलिए कि उसने यीशु को जन्म दिया। लेकिन यीशु परमेश्वर का पुत्र है। और हमारी आराधना और प्रार्थना का उद्देश्य केवल त्रिएक परमेश्वर होना चाहिए।
अगर वह यीशु की पवित्र मां है, तो परमेश्वर कौन है जिसे यीशु अपना पिता कहता है? वे कैसे यह कह सकते हैं? तब उस विषय में परमेश्वर क्या है? पर परमेश्वर कहता है, मैं जो हूं सो हूं, वह किसी के द्वारा पैदा नही हुआ। वह अपने आप से मौजूद है।
परमेश्वर पहले से ही अस्तित्व मे है। वह अल्फा और आमेगा, आदि और अन्त है। हमारा प्रभु मूल परमेश्वर की ओर से विभाजित किया गया है। अगर उस प्रभु की मां हो तो परमेश्वर पिता क्या है? इसका कोई मतलब नही बनता।
शाखा कलीसिया की एक बहन मे मुझसे एक प्रश्न पूछा। सीनियर पास्टर, मैंने क्रूस का सन्देश किताब एक कैथोलिक पास्टर को दी और उसने किताब को पढ़ा। तब उसने इस प्रकार का प्रश्न पूछा, यीशु जब बच्चा था, वह मरियम को क्या कह कर पुकारता था। जब वह बड़ा हो रहा था ?
क्या उसने उसे अपनी मां नहीं कहा होगा? तब वह बहन कोई उत्तर नहीं दे पाई। मुझे आशा है कि आप इस संदेश को सुनकर इस प्रश्न का उत्तर दे पाएंगे। यीशु जन्म से ही सब कुछ जानता था। बाइबल में एक लेख मिलता हैं, जब वह अर्थात यीशु 12वर्ष का था तो किस तरह से वह मन्दिर में लेखकों और बाईबल के विद्वानों से बातचीत करता था।
वे सभी अचम्भित थे। वह केवल 12वर्ष का था लेकिन पूरी ज्ञान के साथ वह बाईबल के विषय में बात कर रहा था। जब वह 12वर्ष का था तब से ही उसे बाईबल का सम्पूर्ण ज्ञान था।
ठीक एैसे ही कुवारी मरियम के साथ भी था वह यीशु के गर्भ में आने से पहले ही सारा प्रकाशन प्राप्त कर चुकी थी और गर्भवती होने के बाद भी उसने प्रकाशन पाया। परमेश्वर के दूतों ने बच्चे के विषय में सब बता दिया था कि वह कौन है। और बाईबल हमें यह बताती है कि उसने इन सारी बातों को अपने मन में रखा।
और उसने वह प्रकाशन यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के मां से भी यीशु के जन्म के विषय में सुना था। वह पवित्र बच्चे के जन्म के बारे में जानती थी। वह बहुत अच्छी तरह से जानती थी कि वह किसी के प्रेमप्रंसग के द्वारा गर्भवती नहीं हुई।
वह अच्छी प्रकार से जानती थी कि वह अर्थात यीशु पवित्र है और वह पवित्र आत्मा के द्वारा गर्भ में आया। तो वह कैसे बच्चे को सिखाती? क्या वह उसे यह सिखाती कि वह उसकी मां है? इसका कोई अर्थ नहीं बनता। वह ऐसाकभी नही करती।
वह पहले से ही जानती थी कि वह कौन है। और जब वह बड़ा हो रहा था तो वह कैसे ये सिखाने की हिम्मत कर सकती था की वह उसकी मां है। बिलकुल नहीं। वह ऐसाबिलकुल नही करती। परन्तु बहुत से लोग इसे गलत समझ लेते हैं।
क्योंकि यूसुफ एक बढ़ई था, और वे कहते हैं कि यीशु ने अपने माता-पिता की मदद की और बढ़ई का काम किया। लेकिन कृपया इसके बारे में सोचें। यह केवल मानवीय सोच है। यह बाईबिल में नही लिखा है यह केवल मानवीय विचार है।
जब हमारा प्रभु बड़ा हो रहा था, और जब तक वह 30 का न हो गया वह, नासरत गांव के पीछे पहाडों पर प्रार्थना करने और परमेश्वर के वचन को मनन करने के लिए जाया करता था, और अपने समय के आने का इन्तज़ार कर रहा था। वह हमेशा परमेश्वर को देखता और प्रार्थना करता और बाईबिल के वचनों पर ध्यान करता रहता। क्योंकि वह अपने समय को जानता था और उस समय के आने का इंतजार कर रहा था। तो क्या उसने इतने कीमती समय के दौरान लोगों के घरों के निर्माण और बढ़ई का काम किया?
यह केवल एक मानव विचार है। अगर प्रचारक इस संदेश को ईन्टरनेट अथवा कैसेट के माध्यम से सुन रहे हैं तो मुझे आशा है कि जो प्रचार वे करते हैं उसमें सुधार कर लेंगे।
लेकिन कुछ लोग मरियम को ”पवित्र माता“ बोलते है और उसके आगे झुकते और उससे प्रार्थना करते हैं वो इसलिए कि उसने यीशु को जन्म दिया। लेकिन यीशु परमेश्वर का पुत्र है, और वह हमारी आराधना का विषय है और हमारी प्रार्थनाऐ केवल त्रिएक परमेश्वर से होनी चाहिए।
मसीह में प्यारे भाईयों और बहनों, और उद्धारकर्ता के तीसरी शर्त यह है कि उसके पास दुष्ट शत्रु और शैतान पर विजय होने की सामर्थ्य होनी चाहिए। अगर आप युद्ध क्षेत्र में कैदियों का बचाव करना चाहते है तो उन्हें दुश्मन से वापस लाने की शक्ति आपके पास होनी चाहिए।
और आत्मिक रीति उन्हे बचाने के लिए जो शैतान के गुलाम हैं हमारे पास शत्रु शैतान के ऊपर विजय होने की सामर्थ होनी चाहिए ताकि हम उन्हे वापस ला सकें। लेकिन यहां तक कि यदि कोई ताकतवर मनुष्य हो और वह बलवान शरीर का हो वह भी शत्रु शैतान को नही हरा सकता।
यहां पर शत्रु दुष्ट को जीतने की सामर्थ कोई शारीरिक सामथ नही बल्कि आत्मिक सामर्थ है।
और आत्मिक क्षेत्र मे सामर्थ?उसके पास होती है जिसमें कोई पाप नहीं। एैसे जैसे अन्धकार रोशनी के आने से चला जाता है। वे जो बिना किसी अन्धकार के पूरी रीति से उजियाले में रहते हैं उनके पास दुष्टात्माओं पर विजय पाने की सामर्थ्य होती है जो अन्धकार से सम्बन्ध रखती हैं।
यहां पर पाप दो प्रकार के होते है, मूल पाप और स्वयं के द्वारा किया गया पाप। मूल पाप के बारे में पहले ही व्याख्या कर चुका हूँ, वो पापमय स्वभाव जो आदम से चलता आ रहा है। यह मूल पाप शरीरिक माता-पिता से विरासत में मिलता है। और स्वयं के द्वारा किया गया पाप का मतलब ऐसे पाप से है जिसे हम अपने जीवन में जीवित रहते हुए करते हैं। लोग अपने जीवन में बहुत से छोटे बड़े पापों को करते हैं।
न केवल वे लोग जो गम्भीर पाप करते हैं बल्कि वे जो छोटे पाप करते हैं वो भी पापी होते हैं। याकूब 2ः10 कहता है, ’क्योंकि जो कोई सारी व्यवस्था का पालन करता है परन्तु एक ही बात में चुक जाये तो वह सब बातों में दोषी ठहरा।
यदि आप कई कानूनों में से किसी एक का भी उलंघन करते हैं तो आप पहले से ही पापी ठहर जाते हैं। इसके अलावा, संसारिक लोग पाप पर ध्यान नहीं देते जब तक कि वह कार्य के रूप में न दिखाया जाये। लेकिन आत्मिक तौर पर , केवल हृदय मे पाप होने से, हालांकी यह कार्य में प्रकट नही है, तौभी वह पहले से ही पापी ठहर चुका।
1 यूहन्ना 3ः15 कहता है, ’’जो कोई अपने भाई से बैर रखता है वो हत्यारा है, (प्रिय भाइयों आप क्यों हत्या करते हो? ओह सीनियर पास्टर मैंने कब हत्या की? पर कृप्या इसे स्पष्ट रूप से समझें) और तुम जानते हो कि, किसी हत्यारे में अनन्त जीवन नहीं रहता।’’
यदि आप अपने भाई से बैर करते हैं तो आप में अनन्त जीवन नहीं। इसका मतलब आप बचाये नहीं जायेंगे। अपने भाई से बैर करने का मतलब है आत्मिक रीति से हत्या करना। इसका मतलब हत्यारे में अनन्त जीवन नहीं और वह उद्धार नहीं प्राप्त कर सकता।
मत्ती 5ः28 पद में भी यही कहा गया है, ’’ परन्तु मैं तुमसे यह कहता हूं, कि जो कोई किसी स्त्री पर कुदृष्टि डाले वह अपने मन में उससे व्यभिचार कर चुका’’ इसलिए, यदि आपके मन में लालच है। तो आप एक चोर के समान पापी हैं क्योंकि आप के अन्दर बुरी इच्छा है। इसी प्रकार से ,यदि कोई मन में और कर्मो के द्वारा पाप करता है। ऐसाव्यक्ति मानवजाति को उनके पापों से नहीं छुड़ा सकता।
आदम के बाद पैदा हुआ हर कोई पापी है जिसके अन्दर मूल पाप पाया जाता है। और हर कोई स्वयं से भी पाप करता है। यहां ऐसाकोई नहीं जो यह साहसपूर्वक कह सके ’’कि मैंने न मन से और न कर्मो से कोई पाप किया है।’’
इस प्रकार किसी के पास भी योग्यता नहीं कि वह उद्धारकर्ता बन सके। केवल यीशु ही ऐसाहै जिसमें कोई पाप नहीं और न कभी उसने कोई पाप किया। इसलिए उसके द्वारा उद्वारकर्ता बनने की यह शर्त पूरी होती है।
यीशु आदम के वंश का नहीं था इसलिए उसमें मूल पाप नहीं था। उसने कभी पाप नहीं किया। क्योंकि वह जन्म से लेकर क्रूस पर चढ़ाये जाने तक पूरी रीति से परमेश्वर के व्यवस्था का पालन करता रहा।

जन्म के आठवें दिन खतना किये जाने के समय से ही, उसने ऐसाकुछ नहीं किया जो असत्य था न तो अपने हृदय मे न ही अपने कामों में। इसलिए इब्रानियों 4ः26 मे यीशु को संदर्भित किया गया है। सो ऐसाही महायाजक हमारे योग्य था, जो पवित्र, और निष्कपट और निर्मल, और पापियों से अलग, और स्वर्ग से भी ऊंचा किया हुआ हो।
साथ ही साथ 1 पतरस 2ः22 कहता है, ’’उसने न तो कोई पाप किया और न उसमें मूंह में कोई छल पाया गया।’’
केवल यीशु ही पवित्र है और उसमें कोई पाप नहीं, और यीशु ही ऐसा है जिसने कभी कोई पाप नहीं किया।
क्योंकि यीशु मे बिलकुल भी कोई पाप नही था इसलिए उसके पास शत्रु दुष्ट और शैतान से मनुष्यजाति को बचाने की सामर्थ थी। और वह व्यवस्था के उस श्राप के अधीन भी नही था जो यह आदेश देता है कि पाप की मजदूरी मृत्यु है।
इसी लिए भले ही वह क्रूस पर मरा, लेकिन वह मृत्यु के अधिकार को तोड़ पाया और जी उठा।
मसीह मे प्यारें भाईयों और बहनों। क्योंकि यीशु मे कोई पाप नही था इसलिए वह मृत्यु के अधिकार को तोड़ सका और पापियों को बचाया और अपनी आत्मिक सामर्थ के द्वारा सब चीजों पर अधिकार रखता है। न केवल शत्रु दुष्ट और शैतान पर वरन बीमारियां, जीवाणु विषाणु और निर्बलताएं भी उसके वश मे है।

वे जो दुष्आत्माओ से ग्रसित थे जब वे यीशु के सामने आऐं, उसने दुष्ट आत्माओं को जाने की आज्ञा दी तो दुष्ट आत्माओं को उसकी बात मानकर छोड़कर जाना पड़ा।

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