Krus Ka Sandesh-15 – काँटों के मुकुट का प्रावधान

कांटों के ताज का प्रावधान
पवित्र शास्त्र : मरकुस 15ः16-20
(16)और सिपाही उसे किले के भीतर आंगन में ले गए जो प्रीटोरियुन कहलाता है, और सारी पलटन को बुला लाए।(7)और उन्हों ने उसे बैंजनी वस्त्रा पहिनाया और कांटों का मुकुट गूंथकर उसके सिर पर रखा।(18)और यह कहकर उसे नमस्कार करने लगे, कि हे यहूदियों के राजा, नमस्कार!(19)और वे उसके सिर पर सरकंडे मारते, और उस पर थूकते, और घुटने टेककर उसे प्रणाम करते रहे।(20)और जब वे उसका ठट्ठा कर चुके, तो उस पर से बैंजनी वस्त्रा उतारकर उसी के कपड़े पहिनाए; और तब उसे क्रूस पर चढ़ाने के लिये बाहर ले गए।

मसीह में प्यारे भाईयों और बहनां, और श्रौताआें
क्रूस के संदेश की गवाही देते हुए, यीशु इस संसार में हम पापीयों को बचाने के लिए आया।
पापीयों को बचाने के लिए, उसे मृत्यु के दंड को लेना पड़ा जो कि पापीयों को मिलना चाहिए था।
इसलिए यीशु ने बहुत से दर्द का सही और अन्त में उसे कू्रस पर चढ़ा दिया गया। यीशु की पीड़ाओ ने हमारे लिए हमारे पापों की माफी को लाया है।
और इसने हमें पापों के श्रापों से मुक्त किया हैं और परमेश्वर की आशिषों में जीवन व्यतीत करने का मौका दिया है।
प्रसगंवश, हमें साधारण तौर पर यह नही सोचना चाहिए कि यीशु ने हमें पापों से माफ कर दिया परन्तु हमें विस्तार से समझना चाहिए कि कैसे उसने हमें माफ किया।
केवल तभी, हम हृदय से यीशु से प्रेम कर पाएेंगे और और इस ज्ञान के साथ कि किस प्रकार उसने हमारे लिए पीड़ाओं का उठाया हम एक प्रभावशाली विश्वासी जीवन जी पाऐंगे। पिछले सत्र में, हमने यीशु के चरनी में रखें जाने, एक गरीब जीवन व्यतीत करने और कोड़े खाने के द्वारा अपना लहू बहाने में जो प्रावधान था उसे देखा।
अब में यीशु द्वारा काटों के मुकुट को पहनने में जो प्रावधान है उस विषय पर प्रचार करूगा। मुझे आशा है कि आप हृदय की गहराई से प्रभु के प्रेम को महसूस करेंगें जिसने हमारे लिए काटों का ताज पहनां। मैं प्रभु के नाम से प्रार्थना करता हूँ कि आप उस प्रेम में और भी सामर्थी होकर स्वर्ग के द्वार की और दौड़ते जाओगे।

मुख्य
प्यारे भाईयों और बहनां, यीशु परमेश्वर का पुत्र है, राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु। वह वास्तविकता में महीमावान ताज के योग्य है।
जबकि, जो ताज, यीशु ने पहना वह सोना और रत्नों से जड़ा कोई महीमावान ताज नही था बल्कि पैने काटों का था।
मरकुस 15ः16-18 कहता हैं कि,
(16)और सिपाही उसे किले के भीतर आंगन में ले गए जो प्रीटोरियुन कहलाता है, और सारी पलटन को बुला लाए।(7)और उन्हों ने उसे बैंजनी वस्त्रा पहिनाया और कांटों का मुकुट गूंथकर उसके सिर पर रखा।(18)और यह कहकर उसे नमस्कार करने लगे, कि हे यहूदियों के राजा, नमस्कार!
ब्रेबल( जो कि एक कंटीली झाड़ी होती है) इज्राइल में पाया जाता है और इसके कांटे लम्बे और मजबूत होते है। रोम के सैनिकों ने उन कंटीली शाखाओं से वह ताज बनाया जिसके काटें मनुष्य के सिर के आकार से थोड़े से छोटे थे और उसे यीशु के सिर पर चिपटा दिया।
वे लम्बे और भयानक कांटे उसके सिर पर त्वचा में अन्दर गड़ गये और उसने उसकी सिर की हड्डियों तक एक भयंकर दर्द दिया।
क्यों परमेश्वर ने अपने प्रिये एकलौते पुत्र का कांटो का ताज पहनने दिया? वह इसलिए था क्योंकि उसका प्रयोजन था कि वह उन पापों को माफ करें जो मनुष्य ने अपने विचारों में किये थे।
मनुष्य असत्य सोचता है जो कि सत्य के विरूद्ध है। और अपने अन्दर बुरी भावनाए रखता है क्योंकि उनके हृदयों में असत्य पाया जाता है।
वे बैर, ईर्ष्या, जलन, रखते है और दूसरों का न्याय और निन्दा करते है। वे दूसरों की संपति का लालच करते है, व्यभिचारी इच्छा रखते है और दूसरों को आदर देने का दिखावा करते है लेकिन तिरसस्कार और दूसरों के लिए अपन मन में घृणा रखते है।
क्योंकि उनके विचारों और हृदयों में ये पाप पाए जाते है, तो वे इन पापों को अपने क्रियाओं में भी करते है। चाहे उनके अन्दर कितने ही बुरे विचार और इच्छाऐं क्यों न हो, इस संसार में उन्हें, तब तक पाप नही माना जाता हैं जब तक कि वह कार्यां में प्रकट न हो जाए।
परन्तु जब कोई जन अपने विचारों और हृदय में पाप की इच्छा करता है, बाइबल उसकी निन्दा करती है। मती 5ः28 कहता है। परन्तु में तुम से यह कहता हूं, कि जो कोई किसी स्त्रा पर कुदृष्टि डाले वह अपने मन में उस से व्यभिचार कर चुका।
1 यूहन्ना 3ः15 कहता है,जो कोई अपने भाई से बैर रखता है, वह हत्यारा है; और तुम जानते हो, कि किसी हत्यारे में अनन्त जीवन नहीं रहता।
क्या आप जानते है कि ये आयतें कहती है कि आप में अनन्त जीवन नही है? मैंने हमेशा आपको इस विषय में बताया है कि जो कोई अपने भाई से बैर रखता है वह हत्यारा है।

यहां तक कि आप किसी की हत्या भी न करो, परन्तु यदि आपके हृदय में केवल अपने भाई के विरूद्ध बैर है तो आप अपने भाई का हत्या कर रहा है। “और तुम जानते हो, कि किसी हत्यारे में अनन्त जीवन नहीं रहता।“
इसलिए, आखिरकार, यदि आप बुराई को निकाल नही फेंकते, आप स्वर्ग राज्य में प्रवेश नही कर सकते। इसलिए परमेश्वर हम से कह रहें है कि हम अपने शत्रुओं से भी प्रेम रखें। यह कितनी बुराई है अपने भाई से बैर रखना, जो कि आपका शत्रु भी नही है। इसलिए बाइबल, दोनों ही पुराने और नये नियम में हमें बताती है कि उस प्रकार के जन में अनन्त जीवन नही है।
यदि कोई व्यक्ति दूसरे से बैर रखता है, हांलाकि वह हत्यारा नही है, तौभी उसे परमेश्वर की दृष्टि में हत्या का पाप करने वाला माना जाऐगां क्योंकि परमेश्वर हम प्रत्येक के अन्दरूनी हृदय को देखता है।
इस कारण से यीशु ने कांटो के ताज को पहना है हमें माफ करने के लिए अपना लहू बहाया यहां तक कि उन पापों को भी जो हमने अपने विचारों में किये थे।
जो कोई इस सत्य पर विश्वास करता है वह माफी पाता है और उसे अपने हृदय और विचारों को शुद्ध कर देना चाहिए। प्यारे भाईयों और बहनों, आपको समझना चाहिए कि ऐसे कौन से विचार है जिसे हमारे विचारों में पाप नही होता है।
हमारे दिमाग में एक “याददाश्त प्रणाली“ होती है। जिसके द्वारा हम अपने ज्ञान को एकत्र कर सकते है और इस्तेमाल कर सकते है।
जो कुछ हमने देखा, सुना और सीखा है हम उसे अपने विवेक के द्वारा अपनी “याददाश्त प्रणाली“ में एकत्र करते हैं और वह जो एकत्रित होता है हम उसे ज्ञान कहते है।
जब वह एकत्रित ज्ञान प्रतिकृत होता है, तो जो प्रतिकृत होता है वह विचार कहलाता है।

जब किसी के सिर पर दुर्घटना या किसी और कारण से चोट लगती है, तो कुछ लोग अपनी याददाश्त खो बैठते है। वे कुछ भी याद नही कर पाते क्योंकि उनकी याददाश्त प्रणाली क्षतिग्रसित हो जाती है। इसलिए जब एकत्रित ज्ञान प्रतिकृत होता है तो जो प्रतिकृत होता है वह विचार कहलाता है।

परन्तु प्रत्येक के दिमाग में जन्म से एकत्रित ज्ञान अलग अलग होता है।
इस धरती पर 6 अरब से भी ज्यादा लोग पाए जाते है। परन्तु किसी के पास भी एक ही स्तर का ज्ञान नही पाया जाता।
वह इसलिए क्योंकि प्रत्येक की परिस्थिति और शिक्षा अलग अलग होती है। और प्रत्येक मनुष्य अलग अलग भावनाओं के साथ चीजों को ग्रहण करता है भले ही उन को एक ही व्यक्ति ने एक ही स्थिति में शिक्षित क्यों न किया हो।
और, उनके स्वभाव के किस प्रकार का हृदय उनमें पाया जाता है उसके अनुसार वे चीजों को अलग अलग भावनाओं के साथ ग्रहण करते है।

क्योंकि प्रत्येक का ज्ञान अलग अलग होता है। और उसके लिए महत्व का मापदंड और उसका भलाई और बुराई को पहचान करने का मापदंड भी अलग अलग होता है। और एक ही स्थिति में प्रत्येक व्यक्ति के ज्ञान से उत्पन्न हुए तत्व भी अलग अलग होते है।
कुछ लोग किसी चीज के लिए ऐसा कह सकते है कि वह बुरी और घिनौनी है परन्तु दूसरी तरफ उसी चीज के लिए दूसरे व्यक्ति उसे अच्छा और सुन्दर कह सकते है। एक देश में जिसे शिष्टाचार समझा जाता है उसे दूसरे देश में असम्य के तौर पर दडिंत किया जा सकता है।
इसी तरह प्रत्येक व्यक्ति के विचार अलग अलग होते है। और ज्यादातर विचार जो इस संसार के लोगां में पाए जाते है वे सत्य के विरूद्ध होते है।
जब आदम अदन की वाटिका में रहता था, उसके पास केवल सत्य का ज्ञान था। यह इसलिए था क्योंकि परमेश्वर ने उसे केवल सत्य ही सिखाया था। आदम के विचार केवल सत्य ही के थे। परन्तु जब से उसने पाप किया, सत्य का ज्ञान उसके हृदय से बहार निकल गया और असत्य ने उसके हृदय में सत्य की जगह ले ली।
सत्य का ज्ञान जैसे कि प्रेम, सेवा, और समझ की जगह असत्स जैसे कि बैर, लालच और पाने की इच्छा उसमें आ गई। शैतान असत्य के ज्ञान पर नियत्रण रखता है। और हमें प्रेरणा देता है कि हम परमेश्वर की इच्छा के विरोध में सोचें।
मैं आपको एक उदारण देता हूँ। मान लिजिए, आपके किसी एक सहकर्मी ने अच्छा काम किया और बहुत से लोगों के सामने उसकी प्रंशसा की गई। उस स्थिति में शैतान आपके अन्दर के असत्य को नियंत्रित कर सकता है। और अपको बुराई सोचने के लिए प्रेरित कर सकता है।
तब, आप ऐसा सोच कर शिकायत कर सकते है कि “यह काम केवल उसी ने नही किया है, परन्तु प्रंशसा केवल उसकी ही की गई या फिर क्यों केवल उसी की प्रशंसा की गई जबकि मैंने भी उस काम में उसकी मदद की थी।“
यदि उसके मन में केवल सत्य का ज्ञान है तो वह इस तरह से नही सोचेगा। शैतान उसे नियंत्रित नही कर सकता बल्कि वह सत्य के साथ यह कह कर आनन्द करेगा कि “ मैं खुश हूँ क्योंकि उसकी प्रंशसा हो रही हैं। अब से मैं भी उसी के समान मेहनती बनूंगा।

इसलिए प्रेम सत्य के साथ प्रसन्न होता है। और सत्य के साथ रहता है।
जब किसी के कार्य, उस बात सहमत नही होते जो आप चाहते है, यदि आप असत्य के विचारों का अनुसरण करते है, तो आप यह कह कर न्याय कर सकते है। कि वह गवांर और स्वार्थी है। आप के अन्दर दुर्भवनाऐं भी हो सकती है और उसके विरूद्ध मानसिकता भी हो सकती है। उस भंयकर गर्म मिजाज के बावजूद धीरज में बने रहने से आपको अधिक दर्द से गुजरना पड़ सकता है।
दूसरी तरफ यदि आप के पास सत्य का ज्ञान है, तो जब आप ऐसे व्यक्ति को देखते है जो बुराई कर रहा है, आप उसका न्याय नही करेगें या दुर्भवना नही रखेंगे बल्कि यह समझने की कोशिश करेगें कि उसने ऐसा क्यां किया और सचमुच उसे समझेगें।
यदि आप सच्चाई के साथ भलाई करते है, तो आपको समझने की भी कोशिश नही करनी होगी बल्कि आप केवल आंनन्दित और धन्यवादी ही होगे। आप हमेशा भलाई के साथ देखने और वर्णन करने की कोशिश करेंगे।
प्यारे भाईयों और बहनों, यदि एक मनुष्य ने अपने अन्दर केवल सच्चाई का ज्ञान ही एकत्र किया हो तो वह केवल सत्य ही सोच पाएगा। लेकिन वास्तव में, क्योंकि सभी ने जन्म से ही असत्य के ज्ञान का संचय किया हुआ है, इसलिए उसके हृदय से निकलने वाला हर विचार असत्य ही होता है।
इसीलिए आप को परमेश्वर पर विश्वास करने के बाद अपने ज्ञान को उस ज्ञान में बदल देना चाहिए जो सत्य से संबंध रखता हैं तो फिर आप के विचार सत्य में बदल जाएगें।
मैं आपको एक उदारण देता हूँ। यदि आप हानिकारण अवयवों से खाना बनाते है तो वह भोजन निश्चित तौर पर हानिकारक होगा। इसीलिए आप को अवश्य ही उन हानिकारक अवयवों को ताजे अवयवों से बदल देना चाहिए यदि आप अच्छा खाना बनाना चाहते है।
उसी प्रकार से, जब आप अपने अन्दर संचय ज्ञान को सत्य में बदल देते है, तो आपके विचार सत्य में बदल जाएगें। आपको यत्न से परमेश्वर के वचन को सुनना चाहिए और उसे अपना आत्मिक भोजन बनाए।
आपको सच्चाई और आत्मा में आराधना करनी चाहिए और वचन को “आमीन“ और “हाँ“ के साथ ग्रहण करना चाहिए और इसके द्वारा अपने आप को बदल देना चाहिए। यदि आप ऐसा लगातार करते रहतें है तो आप तेजी से आत्मा में प्रवेश कर सकते है।
कुछ लोग तब तो आमीन कहते है जब परमेश्वर का वचन उनके विचारों से सहमत होता है परन्तु जब उनके विचारों से सहमत नही होता तो वे “नही“ कह कर इन्कार कर देते है।
हांलाकि वचन कहता है कि “यदि आप सेवा करोंगे और अपने आप को नीचा करोंगे तो आप को ऊँचा किया जाएगा“ परन्तु वे सोचते है कि महान बनना आसान नही है यहां तक कि तरक्की करने के लिए बहुत से प्रयास भी क्यों न किये जाऐ और इस प्रकार से वे अपने आप को नीचा करने से और सेवा करने से इन्कार कर देते है।
यदि वचन उन्हें सिखाता है कि अपने बायां गाल भी फेर दो यदि कोई आपके दायें गाल पर थप्पड़ मारें और यदि कोई आपका कोट मागें तो उसे अपने जामा भी दे दो, तो वे कहते है कि वे इस संसार में उस प्रकार से जीवन व्यतीत नही कर सकते है। वे सोचते है कि उन्हे हमेशा हानि उठानी पड़ती है, है कि नही?
सर्वशक्तिमान परमेश्वर हमेशा उस व्यक्ति को ऊपर उठाते है जो सेवा करता है और उस मनुष्य को आशिषित करतें है जो परमेश्वर के वचन का पालन करते है।
परन्तु मनुष्य परमेश्वर के वचन पर विश्वास नही करता है और उन चीजों को मानता है जो परमेश्वर की इच्छा के विरोध में होती है। क्योंकि वचन उसके अपने ज्ञान और अनुभवों से सहमती नही खाता।
मैंने बहुत से मामलों में देखा है कि जो परमेश्वर के वचनों और सत्य को जानते है वे परमेश्वर के वचनो के द्वारा जो वे जानते है, दूसरों का न्याय करते है। मैंने अपने प्रचार में कहा कि प्रभु परमेश्वर के दाहिने हाथ में खड़े है जो कि स्तीफुनुस ने कहा था। ये कलिसिया के शुरूआत के समय की बात है और वहां पर बहुत से सदस्य थे परन्तु किसी ने कहा कि मैं परमेश्वर के वचनों को सही से नही जानता हूँ। प्रभु परमेश्वर के दाहिंने हाथ में बैठा है और मैं कह रहा था कि प्रभु खड़ा था और मैं गलत कह रहा था।

इसलिए, आपको बाइबल की उचित जानकारी होनी चाहिए वो भी अनुकुल पदो के साथ। परन्तु केवल एक बात जो उसने सुनी थी, उसने केवल वही उचित सोचा परन्तु दुसरा उसके गलत लगा। इसलिए क्या आप यह कह कर अनुग्रह पा सकते हैं? आप सोचेगें कि “ओह, वह प्रचारक गलती कर रहा है।“ मुझे लगता है कि पूरे प्रचार का समय उसने यही सोचने में खर्च किया। इस प्रकार के ऐसे बहुत से मामले होते है।
यहां पर वह विचार जो परमेश्वर की इच्छा के विरोध में उत्पन्न होता है वह “शारीरिक विचार कहलाता है।
शैतान इस प्रकार के शारीरिक विचार मनुष्य में उत्पन्न करता है।
बाइबल हमें बताती है कि पतरस की यीशु ने डांटा क्योंकि उसने अपने शारीरिक विचारों का अनुसरण किया। जब यीशु ने कहा कि वह भविष्य में परमेश्वर की इच्छा के अनुसार कू्रस पर चढ़ाया जाएगा, पतरस ने कहा, हे प्रभु तुझ पर ऐसा कभी न होगा।“
पतरस ने एसा किसी बुरे उदेश्य से नही कहा। पतरस ने एसा इसलिए कहा क्यांकि दुख महसूस हुआ और वह चाहता था कि यीशु मारा न जाए। जब लोग इसे सुनते है तो वे इसे धार्मिकता या भलाई समझ सकते है।
राजा शाऊल के साथ भी ऐसा ही था। परमेश्वर ने उसे कहा कि वह सब कुछ नष्ट कर डालें परन्तु उसने अच्छी अच्छी चीजों को रख छोड़ा और अब उसने बहाना बनाया। कि मैंने ये चीजें परमेश्वर के लिए बलिदान करने के लिए रख छोड़ी। यदि आप शारीरिक विचारों से इसे सुनते है तो यह सुनने में कितना अच्छा प्रतीत होता है। परन्तु परमेश्वर की दृष्टि में वह एक दुष्ट और एक अनाज्ञाकारी आदमी था।
पतरस ने ऐसा प्रभु को ध्यान में रखते हुए कहा था परन्तु प्रभु ने क्या कहा? उसने ऐसा नही कहा “कि मैं जानता हूँ तूने ऐसा इसलिए कहा है कि तू मुझसे प्रेम रखता है परन्तु बजाए इसने उसने उसे डांटा “हे शैतान, मेरे साम्हने से दूर होः तू मेरे लिए ठोकर का कारण है; क्योंकि तू परमेश्वर की बातें नहीं, पर मनुष्यों की बातों पर मन लगाता है।“
ये मनुष्यों की बातें है, परमेश्वर की बातें नहीं, शारीरिक बुद्धि से इस बात की प्रशंसा की जा सकती है परन्तु आत्मिक तौर पर यह एक ऐसी बात थी जो डांटे जाने के योग्य थी।

यदि आप ने मुझे कोई बात भली इच्छा से कही हो और यदि मैं प्रभु के समान, आपको कठोरता से डांट दूं तो आप में से बहुत से नाराज हो जाएगें। आप मुड़ कर यह जवाब देगें कि “मैंने ऐसा सीनियर पास्टर के लिए प्रेम के कारण कहा था परन्तु वह मुझे ऐसे कैसे डांट सकते है।

डस तरह का व्यक्ति वचन ग्रहण नही कर पाता है। उसके पास डांट खाने के योग्य पात्र नही है। और वह आत्मा में प्रवेश करने से बहुत दूर है। कृप्या इनमें से कोई एक न बने। क्योंकि तू परमेश्वर की बाते नहीं, पर मनुष्यों की बातों पर मन लगाता है।“ यहां तक कि यीशु पतरस को डांटने में इतने अच्छे नही थे। उन्होंने इस प्रकार से नही समझाया कि “पतरस, यह शारीरिक विचार है और वह आत्मिक विचार है। इस अभिप्राय से तुम गलत हो।“

“हे शैतान, मेरे साम्हने से दूर हो“ उनका मतलब यह नही था कि पतरस शैतान है परन्तु वह पतरस को जागृत करना चाहते थे कि शैतान हमारे शारीरिक विचारों पर नियत्रण रखता है। ताकि हम परमेश्वर की इच्छा के विरोध में सोचें।
शारीरिक लोग शारीरिक विचारों को बुद्धिमानी और भलाई समझते है।
जबकि, रोमियों 8ः7 कहता है “क्योंकि शरीर पर मन लगाना तो परमेश्वर से बैर रखना है, क्योंकि न तो परमेश्वर की व्यवस्था के आधीन है, और न हो सकता है।“
शरीर पर मन लगाना अर्थात शारीरिक विचार रखना परमेश्वर से बैर रखना है। इसलिए इसका परमेश्वर से काई संबंध नही है।
चाहे शारीरिक लोगों को शारीरिक विचार कितने ही बुद्धिमान और भले प्रतीत हो, जब आप अपने शारीरिक वचारों का अनुसरण करते हुए अपने कामों को करते है। तो इसका परमेश्वर से काई संबंध नही है।
केवल जब आप हर प्रकार के शारीरिक विचारों को ध्वस्त करते है, आप आत्मिक विश्वास प्राप्त कर पाएंगें जिसके द्वारा आप कुछ नही में से कुछ बना सकते है।
जब आप अपने शारीरिक विचारों को दूर कर चुके होते है। आप परमेश्वर के हृदय और इच्छा को समझ सकते है। और परमेश्वर को खुश कर सकते है और परमेश्वर के कार्यां का अनुभव कर सकते है।
परमेश्वर का सामर्थ्य मनुष्य के ज्ञान और विचारों से परे है और मनुष्य उसकी बुद्धि और समझ को माप नही सकता है। यदि हम शारीरिक विचारों का अनुसरण न करें बल्कि परमेश्वर की इच्छा का पालन करें, तो हम परमेश्वर की अमापनीय सामर्थ्य का अनुभव हर समय कर सकते है।
प्यारे भाईयों और बहनों, जब से मैं प्रभु से मिला हूं, मैंने कभी भी शारीरीक विचारों से परमेश्वर के वचनों पर संदेश नही किया है।
मेरी बीमारी के सात सालों में, कोई डाक्टर मुझे चंगा नही कर सका परन्तु परमेश्वर ने एक ही क्षण में मुझे चंगा कर दिया।
न ही मैंने कोई दवाऐं ली और न ही कोई आप्रेशन कराया, परन्तु चर्च गया और घुटने टेंके, और मैं तुरन्त ही अपनी सारी बीमारीयों से चंगा हो गया।
क्योंकि मैंने परमेश्वर की सामर्थ्य को स्वंय अनुभव किया, मैंने बाइबल के सभी वचनों पर विश्वास किया। जब मुझे बताया कि यीशु ने मरे हुए को जीवित किया और बीमारों को चंगा किया मैंने वैसे ही विश्वास किया जैसे कहा गया था।
सूरज और चंद्रमा यहोशू की प्रार्थनाओं से रूक गये। मूसा ने लाल समुद्र को विभाजित किया। कड़वा पानी मीठा हो गया। मैंने उन सब पर विश्वास किया।
दस विपतियां, लोगों की चाहत कि पतरस की छाया उन पर पड़ें, बीमारीयों को चंगा करना और दुष्ट आत्माओं को निकालना केवल रूमाल रखने के द्वारा और वो सारी चीजें जिन्हें आप शारीरीक विचारों से विश्वास नही कर सकते, मैंने उन सब पर विश्वास किया।
जब से मैं एक नया विश्वासी था, शुरूआत से ही, मैंने बाइबल की सभी 66 पुस्तके जैसे है वैसे ही विश्वास किया। और कभी संदेह नही किया। मैं इसके लिए कितना धन्यावादी हूं। क्योंकि मैंने सबकुछ विश्वास किया। हम आज कितने मर रहे लोगों को बचा रहें है? क्योकि मैंने बाइबल के सभी वचनां पर विश्वास किया, मैं बाइबल में अभिलिखित सभी आज्ञाओं का पालन कर सका।
क्योंकि मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर विश्वास किया। मैं किसी भी परिस्थिति में प्रार्थनाओं के द्वारा केवल परमेश्वर पर निर्भर रहा।
प्रत्येक समय परमेश्वर ने आश्चर्य कर्म प्रकट किये जो कि मनुष्य की योग्यताओं और समझ से परे थे।
मानमिन सेंट्रल चर्च में, ऐसे बहुत से भाई आरै बहनें है जिन्होने परमेश्वर के सामर्थी कार्यों को अनुभव लिया है क्योंकि उन्होंने शारीरिक विचारों का अनुसरण नही किया परन्तु परमेश्वर पर निर्भर रहें।
1997 में मसीह में एक भाई ने सुना कि उसकी बहन अस्पताल में भर्ती है क्योंकि उसने खेती का रसायन पी लिया था। उस समय वह परमेश्वर पर विश्वास नही करती थी और क्रोध के कारण उसने उसे पिया था।
वह रसायन इतना जहरीला था कि यदि कोई उसे थोड़ा सा भी पीता है तो उसका मृत्यु दर 100 प्रतिशत है। ऐसा कहा जाता है कि उसका कोई विशनाशक भी नही है।
उसका मुंह और भोजन नलिका ओर पेट बहुत बरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुकें थे। और उसके फेफड़ें, किडनी और जिगर सड़ रहे थे। हालाकि वह अस्पताल में थी, डाक्टरों के पास कोई चिकित्सक उपचार नही था परन्तु केवल वे लक्षण ही बता पा रहे थे कि वह ज्यादा से ज्यादा केवल 15 दिनों तक और जीवित रह पाऐंगी।
उसका भाई उसके पास गया उस समय वह गंभीर दर्द में मृत्यु का इंतजार कर रही थी और उसने उसे सुसमाचार का प्रचार किया।
उसने यीशु मसीह और जीवित परमेश्वर के बारे में उसे बताया। और उसने उसे बहुत से परमेश्वर के सामर्थी कार्यों के बारे में बताया जो मानमिन चर्च में हुऐ थे।
कम से कम उसने अपना हृदय खोला और फिर उसने मरीजों के कपड़ों में ही अस्पताल छोड़ दिया और उस दूर प्रांत से मेरे पास आई।
उस समय में उलसान मानमिन चर्च की सस्ंथापन सभा में गया हुआ था। वे क्वांग्जू में रहते थे और और वे पूरी तरह से मरीज के कपड़ो में ही आए हुए थे। प्रचार समाप्त करने के बाद, क्योंकि वहां पर बहुत सारे लोग थे इसलिए मेरे लिए वहां से बहार निकलना मुश्किल था। मुश्किल से ही में वहां से निकल पाया और उसे नाजुक अवस्था में देखा इसलिए मैंने उसके लिए प्रार्थना की।
मैंने उसके विश्वास को देखा और उसके लिए प्रार्थना की। अगले दिन कुछ आश्चर्यजनक बात उसके साथ हुई।
उसका सारा दुखदायी दर्द गायब हो गया और अंतिम चिकित्सक जांच में कहा गया कि वे सारे अंदरूनी अंग जो पूरी तरह से गल गये थे सामान्य स्वस्थ हो गए है।
डाक्टर ने कहा था कि वह अपनी दृष्टि को खो देगी क्योंकि तरल उसके बांई आख में जा चुका था। परन्तु मेरी प्रार्थनाओं के बाद उसकी आंख भी पूरी तरह से ठीक हो गई।
यदि वह अपने शारीरीक विचारों के अनुसार चलती तो वह संदेह कर चुकी होती कि कैसे कोई जिसने खेती के रसायन को पी लिया हो चर्च में चंगा हो सकता है?
परन्तु उसने अपने शारीरीक विचारों का अनुसरण नही किया परन्तु आशा रखी कि वह चंगी हो जाऐंगी यदि वह प्रार्थनाओं को ग्रहण कर लेगी। यह परमेश्वर को ग्रहण योग्य था।
जब वह परमेश्वर के सम्मुख आई, परमेश्वर ने उसके विश्वास को देखा और अपने सामर्थी कार्यों का अनुभव उसे कराया।

उस प्रार्थना के बाद वह न केवल चंगी हुई परन्तु गर्व धारण भी किया और शादी के 21 साल बाद बच्चे को जन्म दिया।
क्योकि वह शादी के बाद 21 सालों तक गर्भवती नही हो पाई इसलिए यह उसके लिए कितना कष्टदायक रहा होगा। और साथ ही उस पर सताव भी हुआ था। उसका जीवन इतना अभागा हो गया था कि उसने आत्महत्या तक कर ली।

परन्तु परमेश्वर ने उसके विश्वास को देखा। उसने प्रचार को सुना और पूरी तरह से क्वाग्ंजू से उलसान आई। परमेश्वर ने इसे विश्वास माना और रातों रात और एक प्रार्थना के द्वारा चंगा कर दिया। पूरी रात भर उसे उच्च बुखार रहा परन्तु वास्तव में वह चंगाई की प्रक्रिया थी। अगले दिन दर्द जा चुका था। वह पूरी तरह से चंगी हो गई थी।

परन्तु उसकी इच्छा क्या थी। वह बच्चा प्राप्त करने की थी। और परमेश्वर ने शादी के 21 साल बाद उसे बच्चे की आशिष दी और अब आप देख सकते है कि बच्चा बड़ा हो गया है और स्वस्थ है और सुन्दर भी। यह कितना धन्यवादी है।

जब हम परमेश्वर को इस तरह से विश्वास दिखाते है तो परमेश्वर हमें इस प्रकार का बोनस देते है। इसे बढ़कर हमारे विश्वास के अनुसार क्या मिल सकता है। वह शादी के 21 सालों तक गर्भवती नही हो पाई। इसलिए वह काफी बूढ़ी भी हो चुकी थी। तो क्या उसके पास ऐसा विश्वास था कि वह गर्भवती हो पाती?
उसने उसे मांगा भी नही परन्तु परमेश्वर ने बोनस के तौर पर उसे बच्चे से आशिषित किया। इसलिए अब वह एक खुशी का जीवन जी सकती है। हमारे पिता परमेश्वर कितने भले है। हम परमेश्वर को केवल विश्वास के द्वारा प्रसन्न कर सकते है।
यदि हम अपने शारीरीक विचारों के अनुसार नही चलते वरन परमेश्वर पर भरोसा रखते है तो वह निश्चय ही हमारे लिए कार्य करेगा।
लेकिन समस्या यह है कि मनुष्य परमेश्वर पर निर्भर नही रहता परन्तु मानव बुद्धि और विधियों पर क्योंकि वह शारीरीक विचारों का अनुसरण करता है।
प्यारे भाईयों और बहनां, प्रत्येक सिद्वांत और ज्ञान जो हमें परमेश्वर के वचनों पर विश्वास करने और पालन करने से रोकता है वह हमारे शारीरीक विचार है।
लोग असंख्य शारीरीक विचारों के साथ जीवन व्यतीत करते है। इसलिए वे सब परमेश्वर के बैरी है।
हम में से जो अपने शारीरीक विचारों के कारण परमेश्वर के शत्रु थे, यीशु ने हमारे पापों से हम मुक्त करने और बचाने के लिए कांटों का ताज पहना।
तो हमें क्या करना चाहिए इस अदभुत अनुग्रह को पाने के लिए? 2 कुरिन्थियों 10ः5 कहता है सो हम कल्पनाओं को, और हर एक ऊंची बात को, जो परमेश्वर की पहिचान के विरोध में उठती है, खंडन करते हैं; और हर एक भावना( ऐसा नही कि यह सही है या यह गलत है परन्तु हर एक भावना) को कैद करके मसीह का आज्ञाकारी बना देते हैं।
जैसे कि यह आयत हमें सिखाती है, हमें हर प्रकार के विवादों का नाश करना है और और हर एक भावना को कैद करके मसीह का आज्ञाकारी बनना। केवल तभी शत्रु शैतान आप का पालन करेगा। जैसे की इसके अगले हिस्से में लिखा है कि हमें हर प्रकार के शारीरीक विचारों से मुक्ति प्राप्त करनी है जो कि परमेश्वर के ज्ञान के विरूद्ध है। हमें हर प्रकार के उस ज्ञान को जो परमेश्वर के वचन के विरोध में है उस से मुक्ति प्राप्त करनी है।
तो आपके विचार उन में बदल जाऐंगें तो परमेश्वर की इच्छा होगी। खास कर के हमारे विचारों में होने वाले पापों को दूर कर के हमें अपने हृदय को पवित्र करना चाहिए। विस्तृत जानकारी में इसका अर्थ यह है हमें शरीर की अभिलाषाओं, आंखो की अभिलाषाओं और जीवन के घंमड से मुक्ति प्राप्त करनी चाहिए।
1 यूहन्ना 2ः16 कहता है क्योंकि जो कुछ संसार में है, अर्थात् शरीर की अभिलाषा, और आंखों की अभिलाषा और जीविका का घमंड, वह पिता की ओर से नहीं, परन्तु संसार ही की ओर से है। अर्थात वे अध्ांकार की शक्तियों की ओर से है, शत्रु शैतान की ओर से है।
जब हमारे हृदय में बुराई होती है और हमारे दिमाग सांसारिक इच्छाओं से भरे हुए होते है। तो हम चाहे कितना ही सत्य में सोचने की कोशिश करें, हम मदद नही कर पाऐंगे बल्कि शारीरिक विचार ही हमें स्मरण आऐंगे। यदि हमारे पास शरीर की अभिलाषाऐं है तो सांसारिक आंनद हमें आकर्षक नजर आएगा और हम उसे पाने और उस प्रकार का आंनद लेने के प्रलोभन में पड़ जाएगें।

गलातियों 5ः19-21 हमें चेतावनी देता है कि शरीर के काम तो प्रगट हैं। कुछ कहते है कि कहां तक हम पाप कर सकते है कि हम उद्धार प्राप्त कर पाएें। अब मानमिन के सभी सदस्य सत्य को साफ तौर पर समझते है। परन्तु कुछ मसीह पूछते है कि वे कहां तक पाप कर सकते है कि वे तक भी वे उद्धार की सीमा पर बने रहें। लेकिन बाइबल, जबकि हमें बताती है कि हमें हर प्रकार के पापों को निकाल फेंकना है और बुराई के हर प्रकार को। क्या ये सचमुच विश्वास है यह पूछना कि किस प्रकार के पाप में कर सकता हूं कि बचाया जा सकूं।

पापों में, परमेश्वर कहते है कि पापमय स्वभाव के कार्य और शरीर के काम प्रकट है। परमेश्वर ने बाइबल में साफ तौर पर अभिलिखित किया है कि ऐसे पाप है जो माफ किये जा सकतें है यदि आप वास्तविकता में पश्चताप करतें है और मन फिराते है और दूसरे पाप जो माफ नही किये जा सकते।
गलतियों 5ः19-21 कहता है शरीर के काम तो प्रगट हैं, अर्थात् व्यभिचार, गन्दे काम, लुचपन। 20 मूर्त्ति पूजा, टोना, बैर, झगड़ा, ईर्ष्या, क्रोध, विरोध, फूट, विधर्म। 21 डाह, मलवालापन, लीलाक्रीड़ा, और इन के ऐसे और और काम हैं, इन के विषय में तुम को पहले से कह देता हूं जैसा पहिले कह भी चुका हूं, कि ऐसे ऐसे काम करनेवाले परमेश्वर के राज्य के वारिस न होंगे।
यदि आप स्वर्ग के राज्य के वारिस नही हो सकते तो इसका अर्थ है आपका उद्धार नही होगा।
शरीर की अभिलाषा हमें पापमय स्वभाव के कार्यों की इच्छा के लिए प्रवृत्त करती है।
आगे, आखों की अभिलाषा हमारे मन को उन चीजों के द्वारा जिन्हे हमें अपनी आखों से देखते है, और कानां से सुनते है । शारीरिक चीजों की खोज में लगा देती है।
आखों की अभिलाषाओं के कारण लोगों की सांसारिक और भौतिक चीजों की लालसाएं और भी अधिक बढ़ जाती है।
अंत में जीवन का घंमड तमाम सांसारिक चीजों के आंनद का अनुसरण करते हुए हमसे अपनी बड़ाई कराता है
यह जीवन का घमंड हमें दूसरों से बड़ा बनने और प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए और इस संसार के अधिकार और आदर पाने के लिए उकसाता है।
यदि हम शरीर की अभिलाषा को निकाल फेंकते है, तो आखों की अभिलाषा और इस जीवन का घमंड हमारे हृदय से शारीरिक विचारों के पीछे नही चलेगे बल्कि हमारे सोच में आत्मिक विचारों के पीछे चलेंगे।
मसीह में प्यारे भाईयों और बहनों, हम स्वर्ग में बेहतर ताज पहनेंगे क्योंकि यीशु ने हमारे लिए कांटों का ताज पहना।
स्वर्ग में बहुत प्रकार के ताज है। उदारण के लिए, कुछ प्रतियोगिताओं में इस संसार में, प्रत्येक हिस्सेदार को भागीदारी पुरूस्कार दिया जाता है। और कुछ विशेष पुरूस्कार, सोने के मेडल, चांदी का मेडल और कांस्य के मेडल विजेता को दिये जाते है।
उसी प्रकार से हमारे स्वर्गीय पुरूस्कार भी, किस प्रकार का जीवन हम ने इस पृथ्वी पर जीया है उसके अनुसार अलग अलग होगें।
1 कुरिन्थियों 9ः25 कहता है और हर एक पहलवान सब प्रकार का संयम करता है, वे तो एक मुरझानेवाले मुकुट को पाने के लिये यह सब करते हैं, परन्तु हम तो उस मुकुट के लिये करते हैं, जो मुरझाने का नहीं।
तो फिर ऐसे कौन से मुकुट है जो मुरझा जाते है उसका अर्थ है नर्क।
वह मुकुट जो मुरझाने का नही उन्हें दिया जाता है जिन्होंने प्रभु को ग्रहण किया है और सत्य को सुनते हुए पापों को दूर करने की कोशिश करते है।
महीमा का मुकुट जो 1 पतरस 5ः4 में है उन्हें दिया जाएगा जिन्हांने अपने पापों को दूर कर लिया है। और परमेश्वर के वचन के अनुसार जीवन व्यतीत करतें है और परमेश्वर को महीमा देते है।
आगे,जीवन का मुकुट जैसा कि याकूब 1ः12 और प्रकाशितवाक्य 2ः10 में लिखा है। यह उन्हें दिया जाएगा जो मृत्यु के बिन्दु तक विश्वास योग्य रहे है और बुराई के हर रूप को निकाल कर पवित्र हो चुकें है।
वे जो प्रेरित पौलुस के समान पूरी तरह से पवित्र हो चुके है और परमेश्वर को प्रसन्न करने वाले विश्वास के साथ अपने कर्तव्यों में विश्वास योग्य रहे है। उन्हें धार्मिकता का मुकुट दिया जाता है। जैसा कि 2 तिमोथि 4ः8 में लिखा है।
और अंत में प्रकाशितवाक्य 4ः4 में हम स्वर्ग में 24 प्राचीनां को पातें है जो सोने के मुकुट को पहने हुऐ है। ये सभी मुकुटों में से श्रेष्ठ है। परन्तु इसका अर्थ यह नही है कि वह जो इस सोने के मुकुट को पाएगा वह धार्मिकता के मुकुट को नही पा सकता। प्रेरित पौलुस ने दोनों ही धार्मिकता और सोने के मुकुट को प्राप्त किया।
यहां पर प्राचीन, इस धरती पर जो प्राचीन नियुक्त किये जाते है उन्हे संकेत नही करता। यह उनका जिक्र करता है जिनका विश्वास परमेश्वर के द्वारा पहचाना गया है। और फिर वे पूरी तरह से पवित्र है और परमेश्वर के सारे घराने में विश्वास योग्य है। और सोने के समान शुद्ध विश्वास प्राप्त करते है जो कभी भी दूषित नही होते।
इसी प्रकार से जितने पवित्र और विश्वासयोग्य परमेश्वर की संतान इस धरती पर हो चुके है। उसी के अनुसार उन्हें अलग अलग मुकुट दिये जाऐगें।
खास तौर पर सोने का मुकुट और धार्मिकता का मुकुट उन्हें पुरूस्कृत किया जाएगा जो परमेश्वर के द्वारा सबसे अधिक पहचान पाये हुए है। वे उस महीमा का आंनद लेगें जो स्वर्ग में सूरज के समान चमकती और जगमगाती है।
जब यीशु ने कांटो का मुकुट पहना, उसने हमें न केवल हमारे विचारों के द्वारा किये गये पापों से छुड़ाया बल्कि स्वर्ग में हमें बेहतर मुकुट भी पहनाता है।
इसलिए मुझे आशा है कि आप प्रभु के इस गहरे प्रेम का एहसास करेंगे और हर प्रकार के पापों को दूर करो जो विचारों के द्वारा किये जाते है। मैं प्रार्थना करता हूं कि आप हर प्रकार के शारीरिक विचारों को नाश करने पाओ जो आप में परमेश्वर के वचन के लिए संदेह उत्पन्न करते है और उन्हे पालन करने से आपको बाधित करते है।
मैं आप से विनती करता हूं कि आप केवल आत्मिक और भले विचारों को सोचें, पूरी तरह से परमेश्वर के वचनों का पालन करें और परमेश्वर के कार्यो अनुभव करें।
निष्कर्ष
आइये मैं इस संदेश का निष्कर्ष देता हूं। मसीह में प्यारे भाईयों और बहनों और दर्शकों, 2 तीमुथियुस 4ः8 कहता है भविष्य में मेरे लिये धर्म का वह मुकुट रखा हुआ है, जिसे प्रभु, जो धर्मी, और न्यायी है, मुझे उस दिन देगा और मुझे ही नहीं, वरन उन सब को भी, जो उसके प्रगट होने को प्रिय जानते हैं।
वे कौन है जो प्रभु के प्रकट होने की बाट जोहते है? वे वो है जिन्होंने दुल्हन के समान अपनी तैयारियों पूरी कर ली है। उन्होंने अपनी सम्पूर्ण आत्मा, प्राण, और देह को प्रभु यीशु मसीह के आने तक दोषरहित रखा है।

ये लोग खुश होगे यदि प्रभु जल्दी आते है क्योंकि उन्होंने सारी तैयारियां समाप्त कर दी है और इंतजार कर रहे है। इसलिए यह कहता है। न केवल मैं परन्तु वे सभी जो प्रभु के प्रकट होने को प्रिय जानते है। वो जो प्रभु के प्रकट होने की लालसा में हैं यहां तक कि आज ही, उन्होंने अवश्य ही दुल्हन के समान अपनी तैयारियां समाप्त कर दी है।

जैसे कि बाइबल कहती है। उन्होंने ने अवश्य ही अपनी सम्पूर्ण आत्मा, प्राण, और देह को प्रभु यीशु मसीह के आने तक दोषरहित रखा है। परमेश्वर इस प्रकार के व्यक्ति को धार्मिकता का मुकुट देगें।
इस आयत का अर्थ है कि धार्मिकता का मुकुट उस सभी को दिया जाऐगा जिन्होंने उसके प्रकट होने की लालसा रखी है।
आप ने प्रभु के दूसरे आगमन की कितनी लालसा रखी है?
आप को प्रभु के दुल्हन की तैयारी जल्दी से जल्दी समाप्त करनी चाहिए ताकि आप अंगीकार कर सकें कि आप सचमुच उसके दूसरे आगमन की लालसा करते है।
जब दुल्हा अपनी दुल्हन को लेने आ चुका होगा, यदि दुल्हन विवाह भोज में प्रवेष करने के लिए तैयार नही होगी क्योंकि उसने दुल्हन की तैयारियों समाप्त नही की है तो उसका अगींकार की वह उसके आने की लालसा रखती है सत्य नही है।
केवल जब आप ने पूरी तरह से पवित्र और शुद्ध हृदय साध लिया है और परमेश्वर के सारे घराने में मूसा के समान विश्वास योग्य रहें है। आप नये येरूष्लेम में प्रवेष करने के योग्य है। और अपने हृदय से घोषणा कर पाएगें कि प्रभु जल्दि आ।
इस प्रकार का जन धार्मिकता का मुकुट प्राप्त कर सकता है और सबसे महिमावान और सुन्दर निवास स्थान में स्वर्ग में प्रवेष कर सकता है। में आप से याचना करता हॅू कि आप अपनी दुल्हन की तैयारी जितना जल्दि हो सकें पूरा करें प्रभु हमारे दुल्हे को प्राप्त करने के लिए।
में प्रभु के नाम से प्रार्थना करता हॅू कि आप सबसे महीमावान मुकुट प्राप्त करेंगें और धन्यावाद और महीमा हमेंषा के लिए परमेश्वर को देगें जब प्रभु आप को लेने फिर से आतें है। आमीन!

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