Krus Ka Sandesh-27 – तेज विषवाला सांप और क्रूस

(गिनती 21ः4-9)
फिर उन्होंने होर पहाड़ से कूच करके लाल समुद्र का मार्ग लिया, कि एदोम देश से बाहर बाहर घूमकर जाएं; और लोगों का मन मार्ग के कारण बहुत व्याकुल हो गया।
5 सो वे परमेश्वर के विरुद्ध बात करने लगे, और मूसा से कहा, तुम लोग हम को मिस्र से जंगल में मरने के लिये क्यों ले आए हो? यहां न तो रोटी है, और न पानी, और हमारे प्राण इस निकम्मी रोटी से दुखित हैं।
6 सो यहोवा ने उन लोगों में तेज विष वाले सांप भेजे, जो उन को डसने लगे, और बहुत से इस्त्राएली मर गए।
7 तब लोग मूसा के पास जा कर कहने लगे, हम ने पाप किया है, कि हम ने यहोवा के और तेरे विरुद्ध बातें की हैं; यहोवा से प्रार्थना कर, कि वह सांपों को हम से दूर करे। तब मूसा ने उनके लिये प्रार्थना की।
8 यहोवा ने मूसा से कहा एक तेज विष वाले सांप की प्रतिमा बनवाकर खम्भे पर लटका; तब जो सांप से डसा हुआ उसको देख ले वह जीवित बचेगा।
9 सो मूसा ने पीतल को एक सांप बनवाकर खम्भे पर लटकाया; तब सांप के डसे हुओं में से जिस जिसने उस पीतल के सांप को देखा वह जीवित बच गया।

मसीह में प्रिय भाइयों और बहनों, यूहन्ना 3ः14-16 कहता है, और जिस रीति से मूसा ने जंगल में सांप को ऊंचे पर चढ़ाया, उसी रीति से अवश्य है कि मनुष्य का पुत्र भी ऊंचे पर चढ़ाया जाए। ताकि जो कोई विश्वास करे उस में अनन्त जीवन पाए॥ क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।

यह एक भविष्यवाणी थी कि यीशु को क्रूस पर लटका दिया जाएगा। यहाँ,, आज की आयत में गिनती अध्याय 21 में दर्ज किया गया है कि मूसा ने साँप को उठा लिया था ।

फिर, इस घटना का क्या पाठ है और यह यीशु के क्रूस से कैसे संबंधित है?

इस संदेश के माध्यम से, आइए हम यीशु के एक बार फिर से क्रूस पर लटकाए जाने के अर्थ को याद करें और महसूस करें कि हमें अपने मसीह जीवन को कैसे व्यतीत करना चाहिए।

मैं प्रभु के नाम से प्रार्थना करता हूं कि आपको प्रभु के नाम से बड़ा अनुग्रह और ताकत मिले।

मसीह में प्रिय भाइयों और बहनों, आज की आयत में गिनती अध्याय 21 में जो हो रहा है वह इस्राएल के लोगों का मिस्त्र से निकलने के बाद हुआ।

इस्राएली 400 वर्षों तक मिस्र में गुलाम रहे और अपने आपको बचाने के लिए परमेश्वर को पुकारने लगे। इसलिए, परमेश्वर ने मूसा को भेजा, उसके द्वारा अपनी अद्भुत सामर्थ दिखाई, और इस्राएलियों को गुलामी से मुक्त किया।

वे बड़ी उम्मीदों के साथ प्रतिज्ञा किए गए देश कनान के लिए रवाना हुए। लेकिन जल्द ही, उन्होंने महसूस किया कि वास्तविकता उनकी अपेक्षा से काफी भिन्न थी।

उन्होंने सोचा कि मिस्र से निकलने के तुरन्त बाद वे उस देश में जाएंगे जहां दूध और मधु की धाराएं बहती हैं। उन्होंने सोचा कि परमेश्वर के चुने हुए लोगों के रूप में, मिस्र से निर्गमन के बाद वे केवल महिमा और आशीषों का आनंद लेंगे।
परन्तु परमेश्वर ने सबसे पहले उन्हें जंगल की ओर मार्गदर्शित किया। ऐसा इसलिए था क्योंकि आशीषित भूमि में प्रवेश करने के लिए उनके पास योग्यताएँ होनी चाहिए। उन्हें परमेश्वर के भरोसे कठिनाइयों पर विजय पाकर आशीष प्राप्त करने के लिए पात्र तैयार करना था।

लेकिन इस्राएलियों ने परमेश्वर की इच्छा को नहीं समझा और जब भी उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, वे केवल कुड़कुड़ाए और शिकायत करते रहे। अंत में, कनान देश में पहुँचने के बाद भी, वे उस देश को लेने के लिए अपना विश्वास नहीं दिखा सके, इसलिए उन्हें वीराने में 40 साल की परीक्षाओं से गुज़रना पड़ा।

40 वर्षों तक परीक्षाओं के दौरान, वे परमेश्वर के विरुद्ध शिकायत करते रहे और जब भी उन्हें कठिनाइयाँ हुईं, वे मूसा के विरुद्ध कुड़कुड़ाने लगे। फिर, हर बार, मूसा ने परमेश्वर से प्रार्थना की और सभी कठिनाइयों से गुजरने का रास्ता खोल दिया।

वे केवल एक व्यक्ति, मूसा के विश्वास के द्वारा अपनी यात्रा जारी रख सकते थे। लोगों की नाराजगी और शिकायत ने एक बड़ी आपदा ला दी। वे सीधे कनान देश में नहीं जा सकते थे, परन्तु उन्हें जंगल में इधर-उधर भटकना पड़ा, और उन्होंने इस बात की बड़ी शिकायत की।

गिनती 21ः5 कहता है, सो वे परमेश्वर के विरुद्ध बात करने लगे, और मूसा से कहा, तुम लोग हम को मिस्र से जंगल में मरने के लिये क्यों ले आए हो? यहां न तो रोटी है, और न पानी, और हमारे प्राण इस निकम्मी रोटी से दुखित हैं।

परमेश्वर ने उन्हें 400 साल की गुलामी से बचाया लेकिन अब वे शिकायत कर रहे थे कि परमेश्वर उन्हें जंगल में मरने को छोड़ देगा। साथ ही, उस मन्ने के बारे में जो स्वयं परमेश्वर ने उन्हें दिया, उन्होंने कहा कि यह निकम्मी रोटी है।

परमेश्वर उन पर क्रोधित हुआ, और अचानक तेज विष वाले सांप प्रकट हुए। बहुत से लोगों का साँपों के कारण मरने के बाद ही वे मूसा के पास आए और पश्चाताप किया।

जब मूसा ने उनके लिए प्रार्थना की, तो परमेश्वर ने उसे विपत्ति से बचने का एक मार्ग दिया। उस ने कहा, एक तेज विष वाला सांप की प्रतिमा बनवाकर खम्बे पर लटका

ये है आज आयत की कहानी। फिर, वह कौन सा पाठ हैं जो परमेश्वर चाहता है कि हम यहाँ सीखें?

पहला, यह है कि जब भी हमें कोई समस्या हो तो हमें परमेश्वर से उत्तर प्राप्त करना होगा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही वह है जो न केवल विष वाले सांप को नियंत्रित करता है बल्कि संसार की सभी चीज़ों को भी नियंत्रित करता है।

यह परमेश्वर ही था जिसने विष वाले साँपों को आने दिया। यह परमेश्वर ही था जिसने लोगों को उन साँपों से बचाया। निःसंदेह, परमेश्वर ने विष वाले साँपों को अचानक से आने नहीं दिया। वो जंगल जहां इस्राएली यात्रा कर रहे थे, वहां बहुत से तेज विषवाले सांप और बिच्छू थे। परन्तु ये वस्तुएँ लोगों को हानि नहीं पहुँचा सकीं क्योंकि वे परमेश्वर की सुरक्षा में थें।

अब, लोगों ने परमेश्वर के विरुद्ध शिकायत करके पाप किया। इसलिए, परमेश्वर ने उनकी और अधिक रक्षा नहीं की, और अब विषवाले साँप लोगों के बीच आकर हानि पहुँचा लगे।

इसलिए, इस्राएल के लोगों को परमेश्वर के साथ अपने संबंधों में समस्या का कारण खोजना था और समस्या का समाधान परमेश्वर से प्राप्त करना था। यह केवल इस्राएल के लोगों के बारे में नहीं है। हमें भी परमेश्वर के सामने जाना है और किसी भी प्रकार की समस्या का उत्तर खोजना है जिनका हम इस पृथ्वी पर सामना करते हैं। यहाँ, विषवाले सांप शत्रु दुष्ट और शैतान को संदर्भित करता है।
उत्पत्ति 3ः14 में परमेश्वर उस सर्प से कहता है जिसने हव्वा की परीक्षा की थी, “तू जीवन भर मिट्टी चाटता रहेगा।“ यहाँ, मिट्टी आदम और उसके वंशजों को संदर्भित करती है, जिन्होंने पाप किया और शरीर में वापस चले गए। आदम के पाप करने के बाद से, सांप, अर्थात् शत्रु दुष्ट, शारीरिक लोगो के जीवन में आजमाइशे और परीक्षा लाता रहा जो पापों में जीवन जीते हैं, उन्हें अपने भोजन के रूप में लेते हैं।

संसारिक लोगो को जब कोई बीमारी हो जाती है या आपदा, दुर्घटना, समस्या, कठिनाई आ जाती है तो सब कुछ संयोगवश हुआ है कहते हैं। लेकिन परमेश्वर के बच्चों को ऐसा कभी नहीं करना चाहिए।

1 यूहन्ना 5ः18 कहता है, हम जानते हैं, कि जो कोई परमेश्वर से उत्पन्न हुआ है, वह पाप नहीं करता; पर जो परमेश्वर से उत्पन्न हुआ, उसे वह बचाए रखता हैः और वह दुष्ट उसे छूने नहीं पाता। यद्यपि बहुत से विषवाले साँप थे, जब परमेश्वर ने इस्राएलियों की रक्षा की, तो साँप उन्हें हानि नहीं पहुँचा सका। इसी तरह, इस संसार में कई आपदाएँ हैं, लेकिन जब परमेश्वर विश्वासियों की रक्षा करते हैं तो उन्हें परीक्षाओं और आजमाइशों का सामना नहीं करना पड़ता है।

इसलिए, जब विश्वासियों को समस्याएँ होती हैं, तो उन्हें इसका कारण खोजना होगा कि क्यों उन्होने परमेश्वर द्वारा सुरक्षा प्राप्त नहीं की। जिस प्रकार इस्राएल के लोगों ने पश्चाताप किया और मूसा के सामने आए, उन्हें अपने पापों का पश्चाताप करना चाहिए और परमेश्वर के सामने आना चाहिए।

यदि वे पूरी तरह से पश्चाताप करें और पाप की दीवार को गिरा दें, और परमेश्वर के वचन के अनुसार ज्योति में आ जाएं, तो किसी भी प्रकार की समस्या का समाधान हो सकता है।

आज की आयत में से दूसरी बात जो हमें समझनी चाहिए वह यह है कि जब हम विश्वास की परीक्षाओं से गुजरते हैं, तो हमें उन्हें केवल धन्यवाद और आनंद के साथ ग्रहण करना चाहिए।

याकूब 1ः4 कहता है, पर धीरज को अपना पूरा काम करने दो, कि तुम पूरे और सिद्ध हो जाओ और तुम में किसी बात की घटी न रहे॥ परमेश्वर अपने बच्चों को विश्वास की परीक्षाओं की अनुमति देता है ताकि वे शुद्ध सोने के समान विश्वास प्राप्त कर सकें और आशीष प्राप्त करने के लिए अपने पात्र तैयार कर सकें।

बाइबल में विश्वास के पिता भी कई प्रकार की कठिनाइयों के साथ परीक्षाओ के दिनों से गुज़रे जब तक कि उन्होंने उन आशीषों को प्राप्त नहीं किया जिसकी प्रतिज्ञा परमेश्वर ने उनसे की थी। राजा दाऊद को राजा के रूप में अभिषिक्त होने के बाद भी, शाऊल से दूर भागना पड़ा जो उसे मारने की कोशिश कर रहा था।

30 वर्ष की आयु में मिस्र का प्रधान मंत्री बनने तक 13 वर्षों तक यूसुफ ने कई कठिनाइयों का सामना किया। जब वे मुश्किलो से गुजर रहे थे, उन्होने अपने आपको और भी ज्यादा दीन किया, सारे पापो को निकाल फेंका, और अपने पात्रो को आशीषे प्राप्त करने के लिए तैयार किया।

केवल अगर हम आशीष प्राप्त करने के लिए उचित पात्र तैयार करते हैं, तो परमेश्वर हमें उन सभी परीक्षाओं से जिनसे हम गुजरे हैं आराम देगा और हमें बहुतायत की आशीषों से पुरस्कृत करेगा। इस्राएलियों को जंगल में जिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ा, वे भी कनान की आशीषित भूमि को पाने का एक कदम था।

व्यवस्थाविवरण 8ः15-16 कहता है, और उस बड़े और भयानक जंगल में से ले आया है, जहां तेज विष वाले सर्प और बिच्छू हैं, और जलरहित सूखे देश में उसने तेरे लिये चकमक की चट्ठान से जल निकाला,
और तुझे जंगल में मन्ना खिलाया, जिसे तुम्हारे पुरखा जानते भी न थे, इसलिये कि वह तुझे नम्र बनाए, और तेरी परीक्षा करके अन्त में तेरा भला ही करे।
यदि लोग वास्तव में परमेश्वर में विश्वास करते और भरोसा करते हैं, तो उन्हें जंगल में कठिनाइयों के बारे में शिकायत नहीं करनी चाहिए थी, बल्कि परमेश्वर के आशीष के लिए उसका धन्यवाद करना चाहिए था और स्वयं को बदलना चाहिए था। धन्यवाद और आनंद के साथ परीक्षाओं से गुजरने के बाद, वे निश्चित रूप से कनान की प्रतिज्ञा की हुई भूमि में जा सकते थे।

केवल जब हम परीक्षाओं के माध्यम से आशीष प्राप्त करने के लिए पात्र तैयार करते हैं और परीक्षाओं को पास करके अपने विश्वास को साबित करते हैं, तो शत्रु दुष्ट इस पर आपत्ति नही कर सकता है जब परमेश्वर हमें आशीष देता है।

लेकिन अगर हम कठिनाइयों में शिकायत करते हैं और कुड़कुड़ाते हैं, तो परीक्षायें समाप्त नहीं होंगे बल्कि लंबे समय तक रहेंगी, और आशीषें नहीं आएंगी। शिकायते और आक्रोश के शब्दों को बोलना इस बात का प्रमाण है कि आपके पास आशीष प्राप्त करने के लिए पात्र तैयार नहीं है।

रोमियों 8ः18 कहता है, क्योंकि मैं समझता हूं, कि इस समय के दुःख और क्लेश उस महिमा के साम्हने, जो हम पर प्रगट होने वाली है, कुछ भी नहीं हैं।“ साथ ही, याकूब 5ः11 कहता है, देखो, हम धीरज धरने वालों को धन्य कहते हैंः तुम ने अय्यूब के धीरज के विषय में तो सुना ही है, और प्रभु की ओर से जो उसका प्रतिफल हुआ उसे भी जान लिया है, जिस से प्रभु की अत्यन्त करूणा और दया प्रगट होती है।

मुझे उम्मीद है कि आप किसी भी तरह की स्थिति में परमेश्वर को धन्यवाद देंगे और दयालु परमेश्वर पर भरोसा करके अंत तक सहन करेंगे। साथ ही, मुझे आशा है कि आप उन सभी आशीषों का आनंद लेंगे जो आपके लिए तैयार की गई हैं जब आप परमेश्वर की इच्छा अनुसार अपने आपको बदल डालते है।

मसीह में प्रिय भाइयों और बहनों, तीसरा बिंदु जो आप अहसास कर सकते हैं वह पिता के प्रेम का है जिसने इस्राएलियों को पीतल के सांप को देखकर विश्वास हासिल करने में मदद की। जब वे ज़हरीले साँपों द्वारा काटे गए, तो वे तभी जीवित रह सकते थे जब वे पीतल के साँप को देखते। सर्वशक्तिमान परमेश्वर उन्हें पीतल के साँप की ओर देखे बिना ही अपनी सामर्थ्य से चंगा कर सकता था।

ठीक उस सूबेदार के समान जिसने अंगीकार किया, केवल वचन ही कहदे,“ यदि इस्राएलियों को विश्वास था, तो परमेश्वर बस कह सकता था, “चंगे हो जाओ।“ लेकिन उनके पास उस तरह का विश्वास नहीं था।

परमेश्वर की सामर्थ की महानता के बावजूद, यदि वे विश्वास नहीं करते, तो उन्हें विषवाले सांपो के जहर से मरना पड़ता। इसलिए, परमेश्वर ने उन्हें चिन्ह दिया कि वे उसे देखे और उनकी मदद की कि वे विश्वास पायें।

सांप उन्हें डस रहा था, लेकिन जब उन्होंने उस विषवाले साँप की प्रतिमा को देखा जो खम्बे पर लटका हुआ था, तो वे और अधिक दृढ़ता से विश्वास कर सकते थे कि परमेश्वर ने पहले ही उन्हें विषवाले साँपों की आपदा से बचा लिया है।

मेरे बचपन में ग्रामीण इलाकों में लोग सांप को मारने के बाद उसे बाड़ या पेड़ पर लटका देते थे। यह देखने के लिए कि वह पूरी तरह से सूख चुका है मर चुका है। इसी तरह, जब लोग किसी बात पर विश्वास करते हैं, तो उनके हियाव में बहुत बड़ा अंतर होता है इस बात पर निर्भर करते हुए कि क्या उन्होने उसे अपनी आंखो से देखा है। हमारे चर्च को जीवित परमेश्वर के प्रमाण दिखाने होते है उसका कारण ये है।

यूहन्ना 4ः48 कहता है, “ यीशु ने उस से कहा, जब तक तुम चिन्ह और अद्भुत काम न देखोगे तब तक कदापि विश्वास न करोगे।

भले ही बाइबल सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बारे में बात करती है और प्रचारक कहते हैं, “प्रभु में विश्वास करो,“ जिनके हृदय कठोर हैं वे विश्वास करने को तैयार नहीं हैं।
यहाँ तक कि विश्वासियों में भी बहुत से लोग ऐसे हैं जो संसार के साथ समझौता करते हैं और परमेश्वर के वचन के अनुसार नहीं जीते हैं। लेकिन अगर लोग परमेश्वर के सामर्थी कार्यों को देखते, सुनते और अनुभव करते हैं, तो अविश्वासियों की भी परमेश्वर को स्वीकार करने की अधिक संभावना होगी। साथ ही, विश्वासी सच्चा विश्वास प्राप्त कर सकते हैं और परमेश्वर के वचन के अनुसार जी सकते हैं।

मसीह में प्रिय भाइयों और बहनों, फिर, आज हमसे संबंधित मानक पर विशवाल सर्प को देखकर इस्राएल के लोगों को उद्धार प्राप्त करने की यह घटना कैसी है?

जैसा कि यूहन्ना 3ः14-15 में कहा गया है, और जिस रीति से मूसा ने जंगल में सांप को ऊंचे पर चढ़ाया, उसी रीति से अवश्य है कि मनुष्य का पुत्र भी ऊंचे पर चढ़ाया जाए। ताकि जो कोई विश्वास करे उस में अनन्त जीवन पाए॥ यह घटना यीशु के क्रूस का प्रतीक है । निष्पाप यीशु ने पापियों के सारे पापों को अपने ऊपर ले लिया और क्रूस पर लटका दिया गया जैसे कि एक विषवाले सांप को खम्बे पर लटका दिया गया था।

हालाँकि, जबकि साँप शैतान है, हम कैसे कह सकते हैं कि साँप को खम्बे पर देखना और यीशु को क्रूस पर देखना एक ही बात है?

ऐसा इसलिए है क्योंकि यीशु के क्रूस को उठाने का अर्थ है शत्रु दुष्ट और शैतान का विनाश। यीशु को क्रूस पर देखना, विश्वास के साथ शत्रु दुष्ट और शैतान की मृत्यु के अधिकार के विनाश को देखना है। और इस विश्वास के द्वारा हम अनंत जीवन प्राप्त करते हैं। क्रूस के संदेश में, आप पहले ही यीशु के क्रूस पर चढ़ने के द्वारा शत्रु दुष्ट और शैतान के अधिकार को तोड़ने के प्रावधान को सुन चुके हैं।

क्योंकि पाप की मजदूरी आत्मिक क्षेत्र की व्यवस्था के अनुसार मृत्यु है, आदम और उसके वंशज, जो आदम के पाप के परिणामस्वरूप पापी बन गए थे, दण्डित किया जाना था।

अर्थात्, उन्हें शत्रु दुष्ट और शैतान के अधिकार में रहना था जो सभी प्रकार की परीक्षाओं और आजमाइशो से पीड़ित थे। फिर मृत्यु के बाद उन्हें नरक में गिरना था। मानव जाति को बचाने के लिए यीशु इस धरती पर आए। इस समय, शत्रु दुष्ट ने बुरे लोगों को उकसाया और पापरहित यीशु को क्रूस पर मार डाला।

शैतान ने सोचा कि वे हमेशा के लिए मृत्यु के अधिकार का आनंद तभी उठाएंगे जब वे उद्धारकर्ता के रूप में आए यीशु को मार डालेंगे। लेकिन ऐसा करने से शैतान ने मृत्यु का अधिकार खो दिया।

आत्मिक क्षेत्र के नियम के अनुसार, मृत्युदंड केवल पापियों पर लागू होता है। इसलिए, शत्रु दुष्ट और शैतान ने यीशु को मार कर आत्मिक क्षेत्र की व्यवस्था का उल्लंघन किया, जिसमें न तो मूल पाप था और न ही स्वयं से किया पाप। चूंकि उन्होंने आत्मिक क्षेत्र की व्यवस्था का उल्लंघन किया, इसलिए उन्हें इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी।

अर्थात्, उन्हें उन सभी की मृत्यु पर अपना अधिकार छोड़ना पड़ा जो यीशु को उद्धारकर्ता के रूप में मानते हैं।

मसीह में प्रिय भाइयों और बहनों, यीशु का सूली पर चढ़ना एक स्पष्ट ऐतिहासिक तथ्य है, और कोई भी उद्धार प्राप्त कर सकता है यदि वह यीशु पर विश्वास करता है जो उद्धारकर्ता के रूप में क्रूस पर चढ़ाया गया था।

साथ ही, जब हम प्रभु के नाम में विश्वास के साथ प्रार्थना करते हैं, तो हम सभी प्रकार की परीक्षाओं और आजमाइशो से दूर हो सकते हैं। परन्तु भले ही यीशु ने सभी मनुष्यों को छुड़ाया, जो इस तथ्य पर विश्वास नहीं करते वे उद्धार प्राप्त नहीं कर सकते। इस्राएल के लोगों को केवल तभी बचाया जा सकता था जब वे खम्बे पर लटके सांप को देखते। परन्तु जिनके हृदय कठोर थे और आज्ञा का पालन नहीं किया, उनके पास उस तेज विष वाले सांप द्वारा कांटे जाने के अलावा और कोई चारा नहीं था।
इसी तरह, आज भी, हम यीशु मसीह को स्वीकार कर सकते हैं और उसे विश्वास के साथ देख सकते हैं, लेकिन जो विश्वास नहीं करते हैं उन्हें बचाया नहीं जा सकता है, और वे अभी भी कष्टों और आजमाइशो से पीड़ित होने के बाद भी नरक में गिरेंगे।

यह आपके लिए कितना आभारी है कि आप प्रभु के क्रूस पर विश्वास करते हैं और बचाए जाते हैं! इसके अलावा, क्योंकि आप इस चर्च में परमेश्वर की सामर्थ के कई प्रमाण देखते हैं, आप निश्चित रूप से प्रभु में विश्वास कर सकते हैं, पापों को दूर कर सकते हैं और एक आत्मिक मसीह जीवन जी सकते हैं।

मसीह में प्रिय भाइयों और बहनों, हर कोई जो प्रभु के क्रूस की ओर देखता है, सभी श्रापों और विपत्तियों से बच सकता है। जब परमेश्वर की संताने किसी प्रकार की समस्या का सामना करते हैं या यदि वे किसी समस्या का समाधान प्राप्त करना चाहते हैं और आशीषे प्राप्त करना चाहते हैं, तो उन्हें अपनी प्रार्थनाओं में केवल यह कहते हुए अंगीकार नहीं करना चाहिए, ’मुझे विश्वास है’। उन्हें सबसे पहले अपने पापों का प्रायश्चित करना होगा।

फिर, उन्हें अपने हृदय को सत्य में बदलना होगा और परमेश्वर के सच्चे संतान के रूप में बदल जाना होगा। परमेश्वर का इस पृथ्वी पर मनुष्यों को बनाने का कारण सच्ची संतान को प्राप्त करना है जो अपने हृदय की गहराई से परमेश्वर से प्रेम करते हैं।

यदि आप वास्तव में अपने हृदय की गहराई से परमेश्वर से प्रेम करते हैं, तो आप किसी परीक्षा का सामना नहीं करेंगे, बल्कि सभी चीजों में आशीष प्राप्त करेंगे। लेकिन जब कुछ लोगों के सामने समस्याएं आती हैं तो वे उस समस्या को ही सुलझाना चाहते हैं और बच्चों की तरह परमेश्वर से मांगना और मांगना चाहते हैं।

दूसरों की नज़रों में ऐसा लगता है कि वे पश्चाताप कर रहे हैं और विश्वास के साथ उसके सामने आ रहे हैं। कुछ लोग स्वयं को जाँच कर अपने अंदरूनी हृदय को बदलने का प्रयास नहीं करते। अभी भी अन्य लोग अनिच्छा से वचन का अभ्यास करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि परमेश्वर डरावना परमेश्वर है इसके बजाय की वे उसके प्यार को महसूस करे।

लेकिन क्योंकि यह सच्चा विश्वास नहीं है, इस तरह के हृदय से उत्तर प्राप्त करना कठिन है। साथ ही, भले ही वे परमेश्वर से लगातार मांगकर उत्तर प्राप्त करते हों, अगला कदम समस्या है। वे समय बीतने के साथ-साथ परमेश्वर से दूर होते जाते हैं और अंत में उद्धार से दूर हो जाते हैं।

यह कैसे आशीष हो सकती है?

इसलिए, आपकी समस्या को हल करने में महत्वपूर्ण बात यह नहीं है कि केवल लगातार परमेश्वर से मांगते रहें। आपको अपने पापों और बुराई को एक विनम्र हृदय से खोजना होगा और स्वयं को परमेश्वर से प्रेम करने के लिए बदलना होगा। इस तरह, आपको प्रेम और भलाई की प्रार्थना करके परमेश्वर के हृदय को छूना और प्रभावित करना चाहिए।

तब, परमेश्वर निश्चित रूप से आपकी प्रार्थना सुनेंगे और यीशु मसीह के नाम में आपको उत्तर देंगे जो हमारे लिए क्रूस पर मरा।

मुझे आशा है कि आप हमेशा उस पिता के प्रेम को याद रखेंगे जिसने हमें आशीष देने के लिए अपना इकलौता पुत्र दिया है।

मैं प्रभु के नाम से प्रार्थना करता हूं कि आप शीघ्र ही परमेश्वर की खोई हुई छवि को पुनः प्राप्त करें, इस पृथ्वी पर एक आशीषित जीवन व्यतीत करें, और साथ ही स्वर्ग के राज्य में नए यरूशलेम की महिमा में वास करें।

(आमीन)

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